Published on May 30, 2023 Updated 0 Hours ago
नेपाल की राजनीति में नया मोड़

नेपाल में उपचुनाव आमतौर पर शांति से संपन्न होते हैं. हालांकि इस बार ऐसा नहीं हुआ. अप्रैल में हुए उपचुनावों में चितवन, तनहुं, बारा जिलों के निर्वाचन क्षेत्रों से तीन नामी उम्मीदवार खड़े थे और इतना ही नहीं इन चुनावों में ज़ुबानी लड़ाइयों के साथ-साथ शारीरिक हिंसा की घटनाएं भी देखी गईं. अर्थशास्त्री डॉ. स्वर्णिम वागले, जिन्हें नेपाली मीडिया बड़े अरसे से अगले वित्त मंत्री के रूप में प्रचारित करता रहा है और जो पार्टी के भीतर एक उभरते हुए सितारे की तरह देखे जाते रहे हैं, उन्होंने 'देउबा-आरजू खेमे (इसका इशारा नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष, शेर बहादुर देउबा, उनकी पत्नी आरजू राणा देउबा और उनके क़रीबी नेताओं की ओर है) से लगातार अपमान मिलने के कारण' खुद को नेपाली कांग्रेस (NC) से अलग कर लिया है. पिछले चुनावों में भी वागले को टिकट नहीं दिया गया था जबकि उन्होंने पार्टी के घोषणापत्र को तैयार करने में योगदान दिया था और वे पार्टी के प्रमुख युवा नेताओं में से एक थे.


वागले का नेपाली कांग्रेस से अलगाव राष्ट्रीय स्वतंत्रता पार्टी (RSP) जैसी उभरते पार्टी के लिए एक बेहतरीन मौका साबित हुआ, जिसने उन्हें हाथों-हाथ लेते हुए तनहुँ 1 (तनहुँ जिले के दो संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में से एक) के उम्मीदवार के तौर पर खड़ा किया. नेपाल की समकालीन राजनीति में RSP बड़ी तेज़ी से उभरी है, जो नवंबर 2022 में अपने पहले चुनाव में चौथी सबसे बड़ी पार्टी साबित हुई. लेकिन पार्टी के मुखिया, रवि लामिछाने, एक पूर्व टीवी पत्रकार हैं और उन्हें व्यवस्था-विरोधी राष्ट्रवादी राजनीति के लिए जाना जाता है. उनकी संसद की सदस्यता रद्द कर दी गई क्योंकि उन्होंने अमेरिका की नागरिकता को छोड़ने के बाद नेपाल की नागरिकता के लिए आवेदन नहीं किया था. लामिछाने सांसद, जो संसद की सदस्यता खोने से पहले उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का पदभार संभाल रहे थे, का कहना था कि वो दोबारा मज़बूत वापसी करेंगे. उनकी यह बात सही साबित हुई. उन्होंने उपचुनावों में चितवन 2 क्षेत्र में 54,000 से ज्यादा वोट बटोरे. RSP ने जीत हासिल करने के बाद सत्तारूढ़ गठबंधन से समर्थन वापस ले लिया है. लामिछाने का कहना है कि उनकी पार्टी अब एक 'मजबूत विपक्ष' की भूमिका निभाएगी.

मधेस नेता और जनता समाजवादी पार्टी (JSP) के मुखिया, उपेंद्र यादव ने नवंबर में हुए चुनावों में सप्तरी 2 निर्वाचन क्षेत्र से हारने के बाद तीसरे निर्वाचन क्षेत्र, बारा 2, में अपनी साख बचाने की कोशिश की. लेकिन इसके लिए उन्हें नेपाली राजनीति में तेज़ी से उभरती हुई एक दूसरी पार्टी, जनमत पार्टी का सामना करना पड़ा, जिसके मुखिया मधेस नेता सी. के. राउत पूर्व में एक अलगाववादी नेता रह चुके हैं. हालांकि, उपेंद्र यादव की जीत हुई लेकिन मधेसों के बीच राजनीतिक समीकरण अब वैसे नहीं रह गए हैं जैसे 2008 में उनके नेतृत्व में हुए मधेस आंदोलनों के दिनों में थे. और मतगणना के दौरान, कुछ समय के लिए सही, यादव ज़रूर चिंतित रहे होंगे. यादव, आखिरकार जनमत पार्टी के उम्मीदवार शिवचंद्र कुशवाहा से 5081 मतों के अंतर से जीतने में कामयाब रहे, जिन्हें 23,000 से ज्यादा मत प्राप्त हुए थे.

RSP नेपाली राजनीति में हुए एक स्पष्ट बदलाव का प्रतिनिधित्व करती है, जो पारंपरिक दलों के लिए ख़तरे की घंटी है. जबकि सत्ता विरोधी लहर चुनावी लोकतंत्रों की एक सामान्य विशेषता है, लेकिन नेपाल में नेपाली कांग्रेस, नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (एमाले) जैसे दलों और माओवादियों को अब अपना अस्तित्व ख़तरे में दिखाई दे रहा है. यह ख़तरा जनता में व्यापक असंतोष से पैदा हुआ है, और ऐसा लगता है कि जनता इसके लिए ख़राब प्रशासन और सेवाओं के असमान वितरण और तीनों पार्टियों के नेताओं की भ्रष्टाचार में संलिप्तता (वर्तमान में जारी भूटानी शरणार्थी घोटाला इसका बेहतरीन उदाहरण है) को ज़िम्मेदार मानती है. अभी तक, पुराने राजनीतिक दल इस बात का सहारा ले सकते थे कि उनका कोई विकल्प नहीं है लेकिन अब हालात कुछ और हैं.

नए विकल्प


पिछले कुछ सालों में, नेपाल में कई नई पार्टियां इस एजेंडे के तहत  अस्तित्व में आई हैं कि वे वर्तमान राजनीति का विकल्प पेश करेंगी. लेकिन वे सभी दल, पुराने दलों से अलग हुए समूह भर थे. जैसे, पूर्व माओवादी नेता डॉ. बाबूराम भट्टराई की नया शक्ति, या पूर्व यूएमएल नेता माधव कुमार नेपाल की यूएमएल-समाजवादी पार्टी. 2013 में दूसरी संविधान सभा के चुनाव के बाद, भ्रष्टाचार के विरोध और सुशासन के वादे के साथ विवेकशील नेपाली पार्टी की स्थापना की गई थी, लेकिन पार्टी का साझा पार्टी (जिसके नेता ने बाद में खुद को राजशाही का समर्थक घोषित कर दिया) के साथ विलय एक आत्मघाती कदम साबित हुआ. हालांकि, पारंपरिक दलों के खिलाफ़ गुस्से और हताशा की भावना, ख़ासकर शहरी युवाओं के बीच, तब तक धीमे-धीमे पनपती रही जब तक उसे RSP के रूप में अभिव्यक्ति का अवसर नहीं मिल गया.

RSP कुछ वजहों से नेपाल में वैकल्पिक राजनीति का एक मंच तैयार करने में सफ़ल रही है. हालांकि, नेपाली जनता बूढ़ी हो रही है, लेकिन आबादी का 70 फ़ीसदी हिस्सा 40 साल से कम आयु के लोगों का है. पीढ़ी अंतराल का सबसे बड़ा उदाहरण नवंबर 2022 के चुनावों में देखने को मिला, जहां आधे मतदाताओं की उम्र 40 वर्ष से कम थी लेकिन 40 वर्ष से अधिक आयु के दो-तिहाई उम्मीदवार थे.


21वीं सदी में नेपाल का भी तेजी से शहरीकरण हुआ है, जिससे सूचनाओं के प्रवाह में वृद्धि हुई है और देश की राजनीतिक चेतना अब पुरानी विचारधाराओं के अधीन नहीं रही है. पारंपरिक रूप से, नेपाल के राजनीतिक दल अपने कैडर ले लिए उच्च शिक्षा प्रणाली पर निर्भर रहे हैं, इसलिए नेपाली विश्वविद्यालयों का अति-राजनीतिकरण हुआ है, लेकिन अब ज्यादा से ज्यादा लोग या तो निजी संस्थानों में दाखिला ले रहे हैं या फिर पढ़ाई या काम के लिए देश से बाहर जा रहे हैं. कैडर आधारित पुरानी राजनीतिक व्यवस्था पारंपरिक दलों को खाद-पानी दे सकती है, लेकिन युवा नेपाली, जिनके लिए सोशल मीडिया सूचना का प्राथमिक स्रोत है, अब पुराने दलों से कोई जुड़ाव महसूस नहीं करते. हालांकि, अनिवासी नेपालियों को दूर से ही मतदान में भाग लेने का अधिकार नहीं दिया गया है, लेकिन RSP के लिए विदेशों में रह रहे नेपालियों का समर्थन बेहद महत्वपूर्ण रहा है. ज़मीनी रिपोर्ट की मानें तो अप्रवासी नेपालियों ने देश में रह रहे अपने परिवारों और रिश्तेदारों को लामिछाने की पार्टी को वोट देने के लिए मनाया था.

पुराने दलों के बुजुर्ग नेता नए माहौल से पूरी तरह बेख़बर नजर आ रहे हैं और साथ ही भ्रष्टाचार में वृद्धि, सरकारी सेवा वितरण प्रणाली की अक्षमता और देश में आर्थिक अवसरों के अभाव जैसे कारणों से युवा नेपाली पुराने राजनीतिक दलों को प्रतिनिधि के तौर पर नहीं देख पा रहे हैं. यह असंतोष मई 2022 में स्थानीय सरकार के चुनावों में भी देखने को मिला, जब बालेन शाह और हरका संपंग राय जैसे निर्दलीय उम्मीदवार क्रमशः काठमांडू और धरान के मेयर चुने गए.

RSP ने (और मधेसियों के बीच कुछ हद तक जनमत पार्टी ने भी) इसी असंतोष का फ़ायदा उठाया है. RSP की सफ़लता का कारण सोशल मीडिया पर उसकी मज़बूत उपस्थिति है, जहां उसकी विचारधारा भ्रष्टाचार-विरोध और बेहतर शासन जैसे सरल वादों पर आधारित है और वह पारंपरिक दलों के खिलाफ़ जनता की भावनाओं को अपने पक्ष में संगठित करती है. उनके सासंद, विशेष रूप से सुमना श्रेष्ठ, अपनी पारदर्शिता साबित करने और स्वयं को एक आदर्श प्रतिनिधि के तौर पर पेश करने में सफ़ल रहे हैं, जहां नीतिगत मुद्दों पर जनता से अक्सर सलाह ली जाती है और इस संबंध में सारी जानकारियां दी जाती हैं, जो शायद नेपाल के संसदीय लोकतंत्र में पहली बार हुआ है.

यह तर्क दिया जा सकता है कि किसी एक चुनाव के नतीजों से राजनीति में व्यापक बदलाव के निष्कर्ष नहीं निकाले जाने चाहिए. जबकि यह तर्क अपनी जगह सही है, लेकिन निष्क्रिय सरकारें RSP जैसी पार्टियों के लिए पर्याप्त राजनीतिक ज़मीन तैयार करेंगी, जिसकी संभावना वर्तमान की बजाय भविष्य के चुनावों में दिखाई पड़ती है. इसलिए, जब तक पुरानी पार्टियां अपना रास्ता नहीं बदलतीं, वे निश्चित रूप से RSP को और ज़मीन सौंप देंगी. हालांकि पुरानी राजनीतिक पार्टियों का ऐसा नाटकीय बदलाव के लिए तैयार होना संभव नहीं दिखाई पड़ता. क्योंकि तीनों बड़ी पार्टियों का आंतरिक ढांचा निरकुंश और अलोकतांत्रिक है, जहां युवा नेताओं को आगे बढ़ने का पर्याप्त मौका नहीं दिया जाता है. इसीलिए डॉ. वागले जैसे सदस्य पार्टी से अलग हो रहे हैं.

भविष्य की तस्वीर


RSP का भ्रष्टाचार विरोधी एजेंडा सफ़ल साबित हुआ है क्योंकि नेपाल की सरकारी संस्थाएं भीतरी स्तर पर भ्रष्टाचार से खोखली हो गई है. इसी दौरान, नेपाल पुलिस ने एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया है जहां नेपाली राजनेता, नौकरशाह और स्थानीय गुर्गे नेपालियों को भूटानी शरणार्थियों के रूप में अमेरिका भेजने का वादा करके वर्षों से ठगते आ रहे हैं. जबकि मानव तस्करी के मामले समय-समय पर सामने आते रहते हैं, लेकिन वर्तमान घोटाले के सामने आने के बाद नेपाली कांग्रेस के नेता और पूर्व गृह मंत्री, और उनके निजी सचिव, एक पूर्व गृह सचिव और मंत्रालय के एक पूर्व सुरक्षा सलाहकार को गिरफ्तार किया गया है. UML के एक शीर्ष नेता और पूर्व उप-प्रधानमंत्री को 10 दिनों तक फरार रहने के बाद आखिरकार गिरफ्तार कर लिया गया. घोटाले में नाम आने के कारण उनके बेटे को भी गिरफ्तार किया गया है. जांच के दौरान कई और नाम सामने आए, जिसमें आरजू राणा देउबा का नाम भी शामिल है. भ्रष्टाचार-विरोधी भावना अपने चरम पर है, और जैसे-जैसे पार्टियों के और कारनामों का खुलासा हो रहा है, अब उनके नेताओं पर अपराधियों को सज़ा देने का दबाव बढ़ता जा रहा है.

भ्रष्टाचार के मामले नेपाल के लिए नए नहीं हैं. अपराध के बावजूद दंड से बच निकलने की संस्कृति के चलते दोषी राजनेता बिना कोई सज़ा भुगते दोबारा राजनीतिक मंच पर लौट आते हैं, क्योंकि  राजनीतिक ताकत का सहारा लेकर अक्सर आपराधिक जांच में बाधा डाली जाती है ताकि अपराधियों का बचाया जा सके. सत्तासीन गठबंधन पर पुराने ढर्रे पर न चलने का अब भारी दबाव है. यह दबाव शायद नेपाल के राजनीतिक इतिहास के किसी भी दौर से ज्यादा है क्योंकि RSP जैसे राजनीतिक विकल्पों इन मामलों पर नज़र गड़ाए हुए हैं.


इसलिए, RSP शहरी क्षेत्रों में पारंपरिक राजनीतिक समीकरणों को बदलने में सफ़ल रही है. यह ट्रेंड अभी जारी रहने वाला है. RSP की भविष्य की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि इसका संगठनात्मक ढांचा नेपाल के भीतरी इलाकों और शहरी क्षेत्रों से इतर दूसरे क्षेत्रों में कितना फैला है. इसके नेताओं ने सुझाव दिया है कि पार्टी अब संगठन निर्माण पर जोर देगी. मधेसियों के बीच अपने प्रभाव का विस्तार करने में उसे अभी तक सफ़लता नहीं मिली है, वहीं सी. के. राउत की जनमत पार्टी अब जन समाजवादी पार्टी (JSP) और लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी (LSP) जैसी पारंपरिक मधेस पार्टियों को चुनौती दे रही है. सुदूर पश्चिम में, नागरिक उन्मुक्ति पार्टी ने थारू वोटों पर कब्ज़ा जमाया है, और इस प्रकार, पारंपरिक राजनीतिक विचारधाराओं से परे क्षेत्रीयता और स्थानीय कारकों पर ज़ोर देने वाली राजनीतिक संस्कृति को बढ़ावा दिया है.

पुरानी पार्टियों को पांच साल के इसी मौजूदा कार्यकाल खुद को साबित करना होगा क्योंकि यही उनके लिए आखिरी मौका हो सकता है. शासन के निम्न स्तर और व्यापक भ्रष्टाचार को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि मामूली सुधार भी उनके पक्ष को मज़बूत कर सकता है. वहीं दूसरी ओर, वर्तमान शरणार्थी घोटाले में किसी भी तरह की राजनीतिक दखलअंदाजी के बाद उन्हें संसद के भीतर और बाहर दोनों मोर्चों पर कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा क्योंकि इसे पुरानी पार्टियों द्वारा भ्रष्टाचार को समर्थन देने और अपराधियों को खुली छूट देने के उदाहरण के तौर देखा जायेगा.

अगर RSP को अच्छे उम्मीदवारों और सही मुद्दों का साथ मिलता है तो उसके राजनीतिक उभार से पुरानी पार्टियां सत्ता से बाहर हो सकती हैं. वर्तमान में नेपाल की अर्थव्यवस्था डांवाडोल है, और जब तक व्यवस्थागत सुधार लागू नहीं किए जाते, इसके बेहतर होने की कोई उम्मीद दिखाई नहीं देती. अगर नेपाल इसी ढर्रे पर चलता रहा (आर्थिक विकास की धीमी गति, अवसरों की कमी, युवा नागरिकों का लगातार पलायन, और ख़राब शासन), तो पूरी संभावना है कि RSP जैसी राजनीतिक पार्टियां, जो नेपाल की पारंपरिक राजनीति का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं, अगले चुनावों में जीत हासिल करने में सफ़ल रहेंगी.

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