यह The China Chroniclesसीरीज का 36वां हिस्सा है।
‘चीनी राष्ट्र … उठ खड़ा हुआ है, समृद्ध हो गया है, और मजबूत हो गया है — और यह अब कायाकल्प की शानदार संभावनाओं को मूर्त रूप देने में जुट गया है… यह एक ऐसा युग होगा जो चीन को सबसे अहम स्थान के और करीब ले जाएगा तथा जो मानवता के लिए और भी अधिक योगदान करने लगेगा।’ इस आशय की घोषणा शी जिनपिंग ने की। जिनपिंग ने चीनी पार्टी के 19वें सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए ये बातें कहीं। उन्होंने चीनी शक्ति के एक ‘नए युग’ का आगाज किया और इसके साथ ही एक ऐसी रूपरेखा (रोडमैप) पेश की जो चीन को उसकी दूसरी शताब्दी के आखिर तक ‘समग्र राष्ट्रीय शक्ति और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव की दृष्टि से वैश्विक नेता’ बनने की ओर अग्रसर कर देगा।
बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) शी के शस्त्रागार में ऐसा प्रमुख हथियार है, जिसने चीन की सीमाओं से परे चीनी शक्ति को संस्थागत स्वरूप प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। जहां एक ओर शी ने अपने भाषण के दौरान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और खुली वैश्विक अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए एक साधन के रूप में अपनी इस विशिष्ट पहल पर प्रकाश डाला, वहीं दूसरी ओर बीआरआई के तहत अपेक्षा से अधिक घरेलू क्षमता को कम करने और विनिर्माण मूल्य श्रृंखला को आगे बढ़ाने की आर्थिक प्राथमिकताओं पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा, जैसा कि शी के भाषण में उल्लेख किया गया है। इसके अलावा, कनेक्टिविटी पहल चीन के उस विकास मॉडल का निर्यात करने के लिए मुख्य वाहन होगी जिसकी पेशकश चीन विकासशील देशों में अनुकरण के लिए कर रहा है।
लेकिन चीन का अभ्युदय वैश्विक मंच पर आखिरकार कैसे ‘जवाबदेह’ होगा?
लेकिन चीन का अभ्युदय वैश्विक मंच पर आखिरकार किस तरह से ‘जवाबदेह’ होगा? क्या यह वास्तव में ‘एक प्रमुख और जवाबदेह देश के रूप में अपनी भूमिका निभाना जारी रखेगा,” जैसा कि शी ने अपने भाषण में कहा था? बीआरआई के क्रियान्वयन से हमें इस संबंध में पहले से ही संकेत मिलने लगे हैं। ‘ऐसा प्रतीत होता है कि विदेश में चीनी निवेश के फायदेमंद होने की अवधारणा और वास्तविकता में काफी अंतर है।’ यह बात एक पत्रकार जुआन पाब्लो कार्डेनल ने रेखांकित की है जिन्होंने विकासशील देशों में चीनी निवेश के प्रभाव पर काफी बारीकी से गौर किया है।
नीचे दिए गए पांच चिंताजनक कारक (फैक्टर) अपने व्यक्तिगत उदाहरणों के रूप में हैं। बीआरआई के बढ़ते दायरे एवं पहुंच के तहत गवर्नेंस संबंधी इन खामियों के व्यापक संस्थागतकरण से ‘सबके फायदे वाले सहयोग’ की अवधारणा मृतप्राय हो जाएगी और चीनी विकास के हितकारी होने एवं चीन के एक जिम्मेदार विश्व शक्ति होने के दावे खोखले साबित हो जाएंगे।
‘पारस्परिक लाभ’ सवालों के घेरे में
अत: बीआरआई अब तक चीनी कंपनियों, चीनी सामग्री, चीनी श्रम और चीनी लाभ की एक गाथा के रूप में सामने आती रही है।
‘बीआरआई’ से यह उम्मीद की जा रही है कि इससे साझेदार देशों में आर्थिक विकास की गति तेज होगी जिससे आगे चलकर चीन एक क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति के रूप में उभर कर सामने आएगा। यह सचमुच एशिया-प्रशांत देशों में मौजूद 1.7 ट्रिलियन डॉलर सालाना की बुनियादी ढांचागत खाई को पाटने में मदद कर रही है। चाइनीज एशिया ड्रीम के लेखक टॉम मिलर ने बीआरआई देशों की यात्रा के दौरान यह पाया कि “कुछ ऐसे देश हैं, जैसे कि किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान, जहां बीआरआई के तहत वास्तव में आवश्यक बुनियादी ढांचागत सुविधाओं पर बड़ी धनराशि खर्च की जा रही है। पाकिस्तान में ऊर्जा की भारी किल्लत के कारण उसे अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में चार फीसदी गंवाना पड़ रहा है और उसे यह उम्मीद है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) से उसकी यह समस्या सुलझ जाएगी। इसके बावजूद कई अनियमित लाभ निरंतर सामने आ रहे हैं।
उद्योग
चीनी ऋणों का इस्तेमाल मुख्यत: चीन से प्राप्त सामग्री से बुनियादी ढांचे का निर्माण और यहां तक कि उनका प्रबंधन भी करने वाले चीनी ठेकेदारों एवं कंपनियों को भुगतान करने में किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, बीआरआई चीनी इस्पात की मांग में वर्ष 2020 तक 20 प्रतिशत की वृद्धि सुनिश्चित करेगी। इस बीच, जो गैर-प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया अपनाई जा रही है उसके तहत इस दौरान सृजित होने वाले कार्यों से स्थानीय कंपनियों को बाहर या दूर रखा जाता है।
चीन के आर्थिक उद्देश्यों को प्राथमिकता देने वाले ‘बनाओ, चलाओ एवं हस्तांतरित करो’ मॉडल से परे चीनी कंपनियों की व्यापक मौजूदगी स्थानीय उद्योगों, विशेषकर इन उद्योगों में कार्यरत छोटे और नए कारोबारियों के लिए नुकसानदेह साबित होगी। उदाहरण के लिए, पाकिस्तानी कारोबारियों द्वारा ज्यादा किफायती एवं वरीयता प्राप्त चीनी कारोबारियों से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने को लेकर जताई जा रही आशंका की पुष्टि यह तथ्य करता है कि किसी भी पाकिस्तानी कंपनी को अगले दो-तीन वर्षों के दौरान सीपीईसी के तहत स्थापित किए जाने वाले नौ विशेष आर्थिक जोनों में इकाई लगाने के लिए कथित तौर पर आमंत्रित नहीं किया गया है। [1]
श्रम
स्थानीय श्रम की सेवाएं बेहतर ढंग से नहीं ली जा रही हैं। मई में आयोजित बेल्ट एंड रोड फ़ोरम में शी ने दावा किया कि कार्यान्वयन के पहले तीन वर्षों में 180,000 स्थानीय रोजगार सृजित हुए थे। अनुमानित 85 मिलियन कम-कुशल कामगारों को ज्यादा श्रम-लागत बढ़त के साथ चीन से उन देशों में स्थानांतरित किए जाने की संभावना है जहां आमदनी अपेक्षाकृत कम है। इसके बावजूद उन उद्योगों में कार्यरत कामगार औद्योगिक पार्कों और मुक्त क्षेत्रों के चीनी कारोबारियों की मौजूदगी में हाशिये पर आ जाएंगे जो अब प्रतिस्पर्धी नहीं रह गए हैं। इसके अलावा, विचाराधीन या विकसित की जा रही परियोजनाओं को संतोषप्रद नहीं माना जा रहा है। उदाहरण के लिए, बीआरआई की प्रमुख परियोजना सीपीईसी पर विचार करते हैं। पहली बात तो यह है कि ज्यादातर सीपीईसी परियोजनाओं के लिए आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि, अब ये दृष्टिगोचर होने लगे हैं। दूसरी बात यह है कि न केवल चीनी और पाकिस्तानी कामगारों के अनुपात, जिसके जरिए रोजगार से जुड़े आंकड़ों का हवाला दिया जाता है, बल्कि पाकिस्तानी नागरिकों को किस प्रकार की नौकरियां मिल सकती हैं, इस बारे में भी कोई पारदर्शिता नहीं है। इसकी तह में जाने की जरूरत है क्योंकि पाकिस्तानियों की नियुक्ति मुख्यत: चीनी नागरिकों और चीनी निवेश की रक्षा करने के उद्देश्य से की जा रही है। आवासीय परिसरों का निर्माण ग्वादर में 500,000 चीनी प्रोफेशनलों की आने वाली लहर को समायोजित करने के उद्देश्य से किया जा रहा है; इसके मुकाबले ‘प्रांत में लोगों के लिए हजारों नौकरियां’ ग्वादर में पाकिस्तानी रोजगार के लिए उपलब्ध सर्वाधिक सावधानीपूर्ण अनुमान है। ग्वादर मुक्त क्षेत्र (फ्री जोन) में स्थानीय रोजगार पर हाल ही में जारी ‘बहुप्रतीक्षित’ आंकड़े वास्तविक संख्या प्रदान किए बिना ही ’55 फीसदी स्थानीय रोजगार’ का हवाला देते हैं। इस मुक्त क्षेत्र में 40,000 नौकरियों के एक और आंकड़े पर विचार-विमर्श किया जा रहा है, लेकिन एक बार फिर यह बात अब तक कोई खास स्पष्ट नहीं है कि कितनी नौकरियां चीनी लोगों को और कितनी नौकरियां पाकिस्तानी लोगों को मिलेंगी। दरअसल, इस बात को लेकर आम तौर पर अनिश्चितता व्याप्त है कि सीपीईसी से कितनी वास्तविक और संभावित स्थानीय नौकरियां सृजित होंगी। इस बारे में अभी से लेकर वर्ष 2030 तक 1 मिलियन नौकरियां और अगले दो वर्षों में 2.32 मिलियन नौकरियां सृजित होने के अनुमान लगाए गए हैं।
इस बात को लेकर आम तौर पर अनिश्चितता व्याप्त है कि सीपीईसी से कितनी वास्तविक और संभावित स्थानीय नौकरियां सृजित होंगी।
राजस्व
राजस्व सृजन एक और ऐसा क्षेत्र है जिसमें असमान फायदे और नुकसान स्पष्ट तौर पर नजर आते हैं। ग्वादर बंदरगाह जैसी बड़ी बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं से अर्जित होने वाले राजस्व का बड़ा हिस्सा चीन के ही खाते में जाएगा। पाकिस्तान को टर्मिनल एवं समुद्री परिचालनों से अर्जित होने वाले कुल राजस्व का केवल नौ फीसदी और मुक्त क्षेत्र परिचालन से अर्जित होने वाले कुल राजस्व का मात्र 15 प्रतिशत ही हासिल होगा। व्यापार और परिवहन शुल्क पूरी तरह से पाकिस्तानी खजाने में जाएंगे। यदि किसी स्थान पर कोई ऐसी परियोजना स्थापित की जाती है जो स्थानीय जरूरतों को पूरा नहीं कर पाती है और बाद में उसका कोई उपयोग नहीं हो पाता है या उसका कम इस्तेमाल ही हो पाता है तो वैसी स्थिति में चीन के बीआरआई भागीदारों के हिस्से में सफेद हाथी साबित होने वाली परियोजनाएं आ जाती हैं जिसके कारण ऋण चुकाने की उनकी क्षमता और भी कम हो जाती है। इस संबंध में श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह और उसके आसपास अवस्थित बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं का स्पष्ट उदाहरण आपके सामने है। 1 अरब डॉलर से भी अधिक राशि की लागत से गहरे पानी में निर्मित बंदरगाह को वर्ष 2010 में खोले जाने के बाद से लेकर अब तक 300 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा का भारी नुकसान हो चुका है। हंबनटोटा की ओर जाने वाला राजमार्ग जंगली हाथियों के झुंड से भरा रहता है, निकटवर्ती क्रिकेट स्टेडियम का कोई उपयोग नहीं किया जाता है, पड़ोस में अवस्थित मटाला अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा दुनिया का सबसे ज्यादा खाली रहने वाला एयरपोर्ट है जहां प्रति दिन विदेश जाने वाली महज तीन उड़ानों का ही संचालन होता है।
चीन भले ही राजनीतिक या रणनीतिक लाभ की खातिर अपने निवेश पर रिटर्न का त्याग कर दे, लेकिन स्थानीय जरूरतों को पूरा नहीं करने वाली परियोजनाएं बेल्ट एंड रोड के आसपास अवस्थित गरीब देशों के लिए अंतत: वित्तीय और राजनीतिक दृष्टि से नुकसानदेह ही साबित होंगी। इस संबंध में ग्वादर बंदरगाह का उदाहरण दिया जा सकता है।
गैर-जिम्मेदाराना वित्तीय तौर-तरीके
यूएनएस्कैप द्वारा इस साल के आरंभ में जारी की गई रिपोर्ट से यह बात सामने आई है कि चीन की अगुवाई वाली अव्यवहार्य बुनियादी ढांचागत परियोजनाएं या महंगे ऋण (6 प्रतिशत से अधिक ब्याज दर तक) लेकर स्थापित की गई परियोजनाएं गरीब एवं अधिक जोखिम वाले देशों के लिए वित्तीय दृष्टि से कैसे नुकसानदेह साबित हो सकती हैं। इस मामले में अब भी भारत के पड़ोस में अवस्थित श्रीलंका का उदाहरण जा सकता है। वर्तमान में श्रीलंका पर 8 अरब डॉलर से भी अधिक का कर्ज बोझ है जिसका 10 फीसदी चीन को अदा करना है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल का भी इसी नक्शेकदम पर चलना विशेष रूप से इसलिए भारी चिंता का विषय है क्योंकि इन देशों के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में चीनी निवेश का ही व्यापक योगदान है। उदाहरण के लिए, पिछले साल अक्टूबर में हस्ताक्षरित किया गया 24 अरब डॉलर का चीन-बांग्लादेश समझौता बांग्लादेश की जीडीपी के लगभग 20 प्रतिशत के बराबर है। कमजोर व्यापार संतुलन, अविकसित वित्तीय बाजारों, घटिया ऋण प्रबंधन एवं अपेक्षा से कम विदेशी मुद्रा भंडार के साथ-साथ चीन के ऋणों के अत्यंत महंगे साबित होने और बुनियादी ढांचागत विकास के अवांछित या अप्रयुक्त होने की स्थिति में चीन को ऋण वापस अदा करने की बांग्लादेशी क्षमता और भी घट जाएगी।
इसके कई नतीजे सामने आए हैं: संबंधित देशों को चीन अब और भी अधिक सियासी सुझाव देने लगा है, ऋण अब इक्विटी में तब्दील होने लगे हैं जिस वजह से राष्ट्रीय परिसंपत्तियां एवं महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे चीन के नियंत्रण में आने लगे हैं, और/अथवा ऋणों का बोझ कुछ इस कदर बढ़ गया है जिससे ऋण अब एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होने लगा है।
बिगड़ती सामाजिक-आर्थिक विषमता
यह दलील दी जा रही है कि बीआरआई देशों (पाकिस्तान में बलूचिस्तान, श्रीलंका में उत्तरी प्रांत, म्यांमार स्थित रखीन राज्य) के गरीब क्षेत्र एवं वहां रहने वाले लोग बीआरआई की बदौलत समृद्ध हो जाएंगे। चीन अपने झिंजियांग प्रांत में भी कुछ इसी तरह की कवायद कर रहा है। इसके बावजूद कई ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जो प्रतिकूल प्रभावों की ओर इंगित करती हैं।
उदाहरण के लिए, जमीनें हथियाई जा रही हैं। म्यांमार में 20,000 से भी अधिक लोग अपनी आजीविका गंवा सकते हैं क्योंकि क्यूकफीयू में एसईजेड (विशेष आर्थिक जोन) बनाने के लिए भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है। पहले से ही हाशिए पर पड़े समुदायों को आगे भी दरकिनार किया जा सकता है: पाकिस्तान में हजारा समुदाय को दरकिनार किए जाने का उल्लेख यूएनएस्कैप की रिपोर्ट में किया गया है। श्रीलंका में इस साल के आरंभ में चीनी निवेश पर जताए जा रहे विरोध ने हिंसक रूप अख्तियार कर लिया था क्योंकि हंबनटोटा के पास एक औद्योगिक क्षेत्र का निर्माण करने के लिए वहां के नागरिकों को अपने घरों एवं अपनी भूमि से बेदखल करने के प्रयास किए जा रहे थे। असमान विकास से जुड़ी चिंताएं अब भी बनी हुई हैं: पाकिस्तान स्थित चीनी दूतावास द्वारा पिछले अक्टूबर महीने में प्रत्येक प्रांत में सीपीईसी परियोजनाओं की हिस्सेदारी को स्पष्ट कर देने के बावजूद पाकिस्तान को बीआरआई परियोजनाओं के असमान वितरण और उनकी गति से जुड़ी चिंताओं के कारण अब भी अंतर-प्रांतीय तनाव का सामना करना पड़ रहा है।
इसके अलावा, चीन के इस पक्के विश्वास को भी परखा जा रहा है कि विकास, विशेष रूप से आर्थिक विकास की बदौलत अस्थिर क्षेत्रों में सुरक्षा सुनिश्चित हो जाएगी। भारत के पड़ोस में अवस्थित पहले से ही अशांत इलाकों में शोषणकारी चीनी निवेश से न केवल सामाजिक अशांति बढ़ने का अंदेशा है, बल्कि मताधिकार से वंचित या बेदखल किए गए लोगों और उग्रवादी समूहों द्वारा बीआरआई से जुड़े ढांचागत विकास पर हमला करने से असुरक्षा का माहौल ओर ज्यादा गंभीर हो जाएगा, जैसा कि बलूचिस्तान में देखा जा रहा है।
पारदर्शिता का अभाव और भ्रष्टाचार
शी भले ही इस बात का ढिंढोरा पीटते हों कि ‘बाघों से लड़ने, मक्खियों को नष्ट करने और लोमड़ियों का शिकार करने’ के लिए राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार विरोधी अभियान काफी जोर-शोर से चलाया जा रहा है, लेकिन विदेश में निवेश करने के मामले में अत्यधिक नैतिक ढिलाई देखी जा रही है। चीनी कारोबारी रणनीति के रूप में रिश्वतखोरी से सभी वाकिफ हैं। चीनी निवेश के जरिए पसंदीदा राजनीतिक दलों और नेताओं को उभरने में मदद करने के वास्तविक सबूत मौजूद हैं। बीआरआई से जुड़े कई देश भ्रष्टाचार में काफी लिप्त रहे हैं। चीनी धन के व्यापक इस्तेमाल, कंपनियों द्वारा अपनाए जाने वाले तरह-तरह के गैर वाजिब तौर-तरीकों और तेजी से क्रियान्वित की जाने वाली परियोजनाओं के प्रति चीन की विशेष रुचि के कारण गवर्नेंस से जुड़ी इस चुनौती के और भी ज्यादा गंभीर हो जाने का अंदेशा है।
दक्षिण एशिया में श्रीलंका का हंबनटोटा इस समस्या का एक जीता-जागता उदाहरण है। पाकिस्तान के हालिया ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए सीपीईसी को नियमित रूप से आलोचनाओं और भ्रष्टाचार से जुड़ी चिंताओं का सामना करना पड़ता है।
एक अनुमान के अनुसार, ‘बीआरआई’ के छत्र के तहत निवेश एक-तिहाई पर्यावरण अनुकूल (हरित) और दो-तिहाई पर्यावरण प्रतिकूल (ब्लैक) होगा।
पर्यावरण पर प्रतिकूल असर
इस साल के आरंभ में म्यांमार में चीन द्वारा वित्तपोषित 3.6 अरब डॉलर की लागत वाले माइटसोन बांध पर निर्माण कार्य मुख्यत: नदी और मछली के स्टॉक को नुकसान पहुंचने की चिंताओं को लेकर जताए गए व्यापक विरोध के कारण रोक दिया गया था। श्रीलंका में राष्ट्रीय उद्यानों के बाहर रहने वाले 400 हाथियों के निवास स्थलों पर खतरा मंडरा रहा है। यूएनएस्कैप की रिपोर्ट में सीपीईसी रूट के पश्चिमी पाकिस्तान में खेती योग्य भूमि से होकर गुजरने और इसे तहस-नहस करने का उल्लेख किया गया है।
बुनियादी ढांचे के विकास से हवा एवं पानी की गुणवत्ता और भूमि उपयोग में बदलाव आना तय है। चीन को पर्यावरणीय दृष्टि से अनुकूल बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए नहीं जाना जाता है। चीन को अपने शहरों में अपनी ही वायु प्रदूषण लड़ाई का सामना करना पड़ता है। चीन द्वारा ‘अपने प्रदूषण’ का निर्यात (सीपीईसी के तहत कोयला आधारित संयंत्रों की स्थापना करना इसमें शामिल है) किए जाने पर भी चिंताएं व्यक्त की जाती रही हैं। एक अनुमान के अनुसार, ‘बीआरआई’ के छत्र के तहत निवेश एक-तिहाई पर्यावरण अनुकूल (हरित) और दो-तिहाई पर्यावरण प्रतिकूल (ब्लैक) होगा। [2]
विकासशील देशों को अपने-अपने विकास एजेंडे के वित्त पोषण के लिए अब भी चीनी धन की सख्त आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, म्यांमार को गवर्नेंस संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जो उसे तत्काल आवश्यक सेवाएं प्रदान करने से रोक रही हैं। इस बीच, म्यांमार यह समझने की कोशिश कर रहा है कि बीआरआई आखिरकार राष्ट्रीय उद्देश्यों का पूरक कैसे बन सकती है। श्रीलंका सदैव उत्साहित रहता है: अगले तीन से पांच वर्षों में चीन की ओर से 5 अरब डॉलर का निवेश संभवतः पाइपलाइन में है, जो 1,00,000 नौकरियां पैदा कर सकता है। हालांकि, ये देश विकास के मामले में पीछे रह जाएंगे यदि उनकी संप्रभुता की भावना पर चोट करने वाले चीनी निवेश से उनका मोहभंग काफी तेजी से होता है। जन-केंद्रित कनेक्टिविटी, परामर्श, उत्तरदायी वित्तपोषण, पारदर्शिता, कौशल एवं क्षमता निर्माण, कानून के शासन और सुशासन के सिद्धांतों पर विकल्प पहले से ही उभर रहे हैं।
चीन ने अब तक 60 अरब डॉलर का निवेश किया है। यही नहीं, चीन आने वाले पांच वर्षों में 600-800 अरब डॉलर और खर्च करेगा। अब भी समय है कि शी और चीन उपर्युक्त वर्णित चिंताओं एवं समस्याओं को अच्छी तरह से समझ लें और इसके साथ ही कार्यान्वयन में अनुशासन लाएं, ताकि बीआरआई को और भी व्यापक रूप से उन ‘सभी के लिए फायदेमंद’ बनाया जा सके जो इनसे जुड़े हुए हें। क्या चीन में अपनी गलतियों को दूर करने की क्षमता है, यह एक और ऐसा सवाल है जिस पर गौर करने की आवश्यकता है। दरअसल, चीन किस तरह से ‘बीआरआई’ पर अमल करता है उसी से एक उभरते लीडर और शक्ति के रूप में उसका इरादा स्पष्ट हो जाएगा।
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