Author : Sohini Nayak

Published on Jul 09, 2021 Updated 0 Hours ago

उम्मीद इसी बात की है कि नेपाल एक बार फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो सकेगा. वो फिर से, चारों तरफ़ ज़मीन से घिरे दुनिया की छोटी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज़ी से विकास करने वाला देश बन सकेगा.

कोविड-19 के मुश्किल दौर में नेपाल को वैक्सीन और स्थिरता की तलाश: चीन पर बढ़ रही है निर्भरता

चारों तरफ़ ज़मीन से घिरा नेपाल इस वक़्त, चुनौतियों के बड़े बवंडर तूफ़ान का सामना कर रहा है. इस समय नेपाल के सामने कोविड-19 महामारी के संकट, तबाही मचाने वाले लैंडस्लाइड, अगले कुछ महीनों में होने वाले चुनाव जैसी चुनौतियां तो हैं ही. नेपाल इस वक़्त दुनिया की बड़ी ताक़तों के बीच प्रभाव बढ़ाने की खींच-तान के दलदल में भी फंसा हुआ है. जिस समय नेपाल कोविड की वैक्सीन की समस्या से उबरने की कोशिश कर रहा रहा था, उसी दौरान बाढ़ से हज़ारों लोगों के बेघर हो जाने से उसके हालात और बिगड़ गए. अब जबकि नेपाल इन संकटों से पार पाने की कोशिश कर रहा है, तो देखना होगा कि आपदा प्रबंधन कार्यक्रम और स्थिर स्वास्थ्य व्यवस्था किस तरह उसे इन आपदाओं से उबर पाने में मदद करते हैं.

इस समय नेपाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती वैक्सीन ख़रीदकर उसे अपने नागरिकों को लगाने की है. इसी वजह से वो तबाही वाले मंज़र से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अपील कर रहा है, जिससे नेपाल की बिखरती स्वास्थ्य व्यवस्था को संभाला जा सके.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोविड-19 महामारी के हालात पर साप्ताहिक रिपोर्ट नंबर 23 (7-13 जून 2021) के मुताबिक़, नेपाल में कोरोना के मामलों में 34.4 प्रतिशत की कमी आई है. महामारी से सबसे अधिक प्रभावित देश के तीन राज्य इस तरह से हैं- बागमती सूबा (47 प्रतिशत). प्रांत 1 (17 फ़ीसद), गंडकी प्रांत (12 प्रतिशत) (सारणी देखें). इसके अलावा, जहां राष्ट्रीय स्तर पर टेस्ट की पॉज़िटिविटी दर अभी भी 28 फ़ीसद के उच्च स्तर पर बनी हुई है. वहीं, देश के अलग अलग राज्यों का सामूहिक पॉज़िटिविटी रेट 21 से 49 प्रतिशत के बीच बनी हुई है. इस समय नेपाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती वैक्सीन ख़रीदकर उसे अपने नागरिकों को लगाने की है. इसी वजह से वो तबाही वाले मंज़र से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अपील कर रहा है, जिससे नेपाल की बिखरती स्वास्थ्य व्यवस्था को संभाला जा सके.

नेपाल ने अपने यहां कोरोना का टीकाकरण अभियान 27 जनवरी से शुरू किया था. इसके लिए उसे पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया से ऑक्सफोड्र एस्ट्राज़ेनेका की कोविशील्ड वैक्सीन की 11 लाख ख़ुराक मदद के रूप में मिली थी. ये वैक्सीन भारत ने अपनी ‘नेबरहुड फर्स्ट’ की नीति के तहत दी थी. इसके अलावा, नेपाल ने सीरम इंस्टीट्यूट से सीधे 10 लाख वैक्सीन ख़रीदी थी. इसके अलावा, मार्च 2021 में उसे विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोवैक्स सुविधा के ज़रिए कोविशील्ड वैक्सीन की 34.8 लाख डोज़, 3,50,000 सिरिंज और 3,500 वैक्सीन सुरक्षा डिब्बे भी मिले थे. दुर्भाग्य से इस पहले चरण के बाद महामारी की भयंकर दूसरी वेव ने इतना ज़ोरदार हमला किया कि नेपाल में हर दिन हर एक लाख लोगों पर क़रीब 32 नए केस सामने आने लगे. ये उस समय दुनिया में सबसे ज़्यादा दर थी.

नेपाल के टीकाकरण कार्यक्रम में (अपने वैक्सीन मैत्री अभियान के तहत) भारत अभिन्न भागीदार था. इसलिए, जब भारत ने अपने यहां कोरोना के मामले बढ़ने के बाद वैक्सीन का निर्यात बंद किया, तो उससे नेपाल का टीकाकरण अभियान पटरी से उतर गया और उसे दुनिया के हर मुमकिन देश से वैक्सीन देने की अपील करनी पड़ी. इसमें अक्सर उसके हाथ निराशा ही लगी. जून महीने में नेपाल में 3 करोड़ लोगों में से केवल 30 लाख (ग्राफ 1 देखें) लोगों को ही टीके लगाए जा सके थे. इनमें से 60 साल से ज़्यादा उम्र के कई ऐसे लोग भी थे, जो वैक्सीन की दूसरी ख़ुराक का इंतज़ार कर रहे थे.

इसका मतलब ये था कि नेपाल की कुल आबादी में से केवल दो प्रतिशत को ही वैक्सीन की दोनों डोज़ दी जा सकी थी. विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर टीकाकरण अभियान की दर ऐसे ही रही, तो 10 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन देने में 481 दिन लगेंगे. विशेषज्ञ मानते हैं कि हर्ड इम्युनिटी विकसित करने के लिए 60 से 80 प्रतिशत आबादी को टीका लगाने की ज़रूरत है. नेपाल तो इससे बहुत पीछे है. जिन लोगों को दूसरी डोज़ का इंतज़ार है, उनके लिए लगभग 14 लाख वैक्सीन की फ़ौरन ज़रूरत है. 

चीन के टीकों की क़ीमत को लेकर सवाल

हालात को देखते हुए, कई देशों ने नेपाल की ओर मदद का हाथ बढ़ाया है. इनमें पहला नंबर चीन का है, जिसने नेपाल को अपनी सिनोफार्म वैक्सीन (वेरो सेल से तैयार टीका) की 8 लाख ख़ुराक की मदद दी. इसके अलावा, सौदे की क़ीमत सार्वजनिक न करने की शर्त पर नेपाल ने चीन से 40 लाख टीके और ख़रीदने का फ़ैसला किया है. चीन इस शर्त को लेकर बहुत सख़्त है. नेपाल, वैक्सीन के लिए चीन पर निर्भर होता जा रहा है, जो भारत के लिए निराशा की बात है. आने वाले समय में इससे दक्षिण एशिया की कूटनीति में उतार चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं. नेपाल के बहुत से नेताओं ने चीन के टीकों की क़ीमत को लेकर सवाल उठाए हैं. (मीडिया में अटकलें हैं कि ये 10 डॉलर प्रति डोज़ है). माना जाता है कि नेपाल के नेताओं ने चीन से वैक्सीन लेने का फ़ैसला लेने में इसी वजह से देर की, क्योंकि इससे भारत के नाख़ुश होने की आशंका थी. क्योंकि, भारत पहले ही नेपाल को कोरोना की वैक्सीन दे रहा था. नेपाल ने वैक्सीन को अलग अलग देशों से ख़रीदने की कोशिश नहीं की. विपक्षी दलों का आरोप है कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, आने वाले चुनाव जीतने के लिए भारतीय जनता पार्टी का तुष्टिकरण कर रहे हैं. जब भारत ने वैक्सीन का निर्यात रोका, तो नेपाल के पास इस संकट से उबरने के लिए कोई प्लान बी नहीं था. अभी भी चीन के साथ छुपकर हुए वैक्सीन के सौदे पर पर्दा डाले रखा गया है. इसके पीछे शायद मक़सद ये है कि भारत को ये अंदाज़ा न हो कि नेपाल ने चीन से किस क़ीमत पर वैक्सीन ख़रीदी है. दो शक्तिशाली देशों के बीच बसे नेपाल के लिए बेहतर यही है कि वो दोनों ही देशों से अच्छे संबंध बनाए रखने की कोशिश करे, जिससे उसकी अपनी सुरक्षा और सेहत की गारंटी मिल सके. भले ही इसके लिए उसे वैक्सीन ख़रीदने के सौदे को गोपनीय क्यों न रखना पड़े.

नेपाल, वैक्सीन के लिए चीन पर निर्भर होता जा रहा है, जो भारत के लिए निराशा की बात है. आने वाले समय में इससे दक्षिण एशिया की कूटनीति में उतार चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं. नेपाल के बहुत से नेताओं ने चीन के टीकों की क़ीमत को लेकर सवाल उठाए हैं.

इसके अलावा, अमेरिका ने एशिया के देशों को वैक्सीन की क़रीब 70 लाख डोज़ देने का फ़ैसला किया है. इसमें नेपाल का नाम भी शामिल है. विदेशी सहायता की अमेरिकी संस्था USAID ने नेपाल के संकट को ‘सर्वोच्च प्राथमिकता’ घोषित किया था. इससे पहले चीन के शिजांग (तिब्बत) स्वायत्त क्षेत्र ने नेपाल को मदद के रूप में वैक्सीन की पहली खेप भेजी, जो काठमांडू पहुंच चुकी थी. यूरोपीय संघ ने भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ ममिलकर कोवैक्स के ज़रिए नेपाल को वैक्सीन देने का वादा किया है; हालांकि इसमें कुछ समय लग सकता है क्योंकि ये सौदा द्विपक्षीय नहीं है. निश्चित रूप से ऐसी कोशिशें नेपाल के लिए उम्मीद की किरण हैं.

मुश्किल और अनिश्चितता का दौर

यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि नेपाल के कोविड-19 प्रभावित क्षेत्रों में से कई प्रांत ऐसे हैं, जहां लगातार बारिश से बाढ़ आ गई है. इसीलिए, उन्हें और संरक्षण की ज़रूरत है. बागमती सूबे का सिंधुपालचौक ऐसा ही एक इलाक़ा है. वहां 400 परिवार बाढ़ से बेघर हो गए हैं. 31 लोगों की मौत हो गई है और सैकड़ों लोग लापता हैं. इसके अलावा मेलमाची रोड पर हाइवे के दो पुल और छह मोटर ब्रिज तबाह हो गए हैं; कर्नाली, गंडकी, लुंबिनी और बागमती प्रांत के कई हिस्सों में चट्टानें खिसकने का ख़तरा भी मंडरा रहा है; और मेलमाची जल आपूर्ति प्रोजेक्ट और खेतों पर भी बर्बादी के बादल मंडरा रहे हैं. इस चुनौती से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन की कार्यकारी समिति ने पहले ही अपना काम शुरू कर दिया है, जिससे सबसे पहले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.

दो शक्तिशाली देशों के बीच बसे नेपाल के लिए बेहतर यही है कि वो दोनों ही देशों से अच्छे संबंध बनाए रखने की कोशिश करे, जिससे उसकी अपनी सुरक्षा और सेहत की गारंटी मिल सके. भले ही इसके लिए उसे वैक्सीन ख़रीदने के सौदे को गोपनीय क्यों न रखना पड़े.

अब, चूंकि नेपाल इस वक़्त बेहद मुश्किल और अनिश्चितता के दौर से गुज़र रहा है, तो जनता और सरकार दोनों को एक दूसरे पर भरोसा बनाए रखना होगा. अब जबकि दोनों मिलकर काम कर रहे हैं, और दुनिया से मदद मिल रही है, तो उम्मीद इसी बात की है कि नेपाल एक बार फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो सकेगा. वो फिर से, चारों तरफ़ ज़मीन से घिरे दुनिया की छोटी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज़ी से विकास करने वाला देश बन सकेगा.

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