Author : Hari Bansh Jha

Published on Jun 10, 2021 Updated 0 Hours ago

नेपाल को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से इतनी मात्रा में स्वास्थ्य सामग्रियों की आपूर्ति होने के बावजूद देश में ऑक्सीजन, अस्पतालों के बिस्तर, आईसीयू बेड्स, वेंटिलेटर्स और क्रिटिकल केयर से जुड़ी मशीनों का घोर अभाव बना हुआ है.

कोविड-19 संकट के दौरान नेपाल को मिली अंतरराष्ट्रीय सहायता

नेपाल पर कोविड-19 की बहुत बुरी मार पड़ी है. 3 करोड़ की आबादी वाले इस देश में हफ़्ते भर पहले तक हर रोज़ 9000 लोग कोविड-19 की दूसरी लहर में संक्रमण की चपेट में आ रहे थे. कोरोना महामारी के चलते होने वाली मौतों का आंकड़ा प्रतिदिन 200 के पार निकल चुका है. देश के ज़्यादातर हिस्सों में पिछले चार हफ़्तों से लागू लॉकडाउन के चलते संक्रमण और मृत्यु दर में गिरावट आई है. इसके बावजूद देश में हालात नाज़ुक बने हुए हैं. 

26 मई तक के आंकड़ों के हिसाब से देश में 54 लाख से ज़्यादा लोग कोरोना की चपेट में थे. वायरस की वजह से जान गंवाने वालों की संख्या 6,677 थी. आशंका जताई जा रही है कि अगर हालात काबू में नहीं आए तो सितंबर के अंत तक नेपाल में कोविड-19 के चलते 41 हज़ार लोगों की जान जा सकती है.

ऐसा लगता है कि देश की जनता कोविड-19 के प्रसार पर रोक लगाने में संघीय सरकार की नाकामी से तंग आ चुकी है. संघीय, प्रादेशिक और स्थानीय स्तर पर सरकार की तीन शाखाओं के बीच कामकाज को लेकर कोई प्रभावी समन्वय विरले ही नज़र आता है.

नेपाल का कोई भी हिस्सा- चाहे वो तराई हो, पहाड़ी क्षेत्र हो या ऊंचे पर्वतीय इलाक़े हों- इस वायरस से अछूता नहीं है. हालांकि काठमांडू घाटी नेपाल में कोविड-19 महामारी का मुख्य केंद्र है. अकेले पशुपति आर्यघाट में ही हर रोज़ कोविड-19 के चलते मृत्यु का शिकार हुए 100 से भी ज़्यादा लोगों के शवों के दाह संस्कार किए जा रहे हैं. कोरोना महामारी ने देश के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाक़ों को भी अपनी चपेट में ले लिया है. 

संघीय, प्रादेशिक और स्थानीय समन्वय का अभाव 

ऐसा लगता है कि देश की जनता कोविड-19 के प्रसार पर रोक लगाने में संघीय सरकार की नाकामी से तंग आ चुकी है. संघीय, प्रादेशिक और स्थानीय स्तर पर सरकार की तीन शाखाओं के बीच कामकाज को लेकर कोई प्रभावी समन्वय विरले ही नज़र आता है. संघीय सरकार प्रादेशिक और स्थानीय सरकारों पर महामारी से लड़ने में असहयोग का आरोप लगा रही है. जबकि प्रादेशिक और स्थानीय सरकारें कोविड-19 महामारी से निपटने में नाकामी का ठीकरा संघीय सरकार पर फोड़ रही हैं. उनकी शिकायत है कि संघीय सरकार से आवश्यक वित्तीय और दूसरी ज़रूरी मदद नहीं मिलने के कारण वो प्रभावी रूप से काम नहीं कर पा रहे हैं.

नेपाल के आस-पड़ोस (दिल्ली और भारत के दूसरे राज्यों समेत) में कोरोना महामारी की दूसरी लहर मार्च-अप्रैल में ही रफ़्तार पकड़ने लगी थी. इसके बावजूद नेपाली सरकार हाथ पर हाथ धरे निश्चिंत बैठी रही. नेपाल में कोरोना वायरस के मामलों की संभावित बढ़ोतरी से निपटने के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाने, वेंटिलेटर और तमाम दूसरे इंतज़ामों की ओर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया. अगर सरकार का टीकाकरण अभियान सुचारु ढंग से आगे बढ़ा होता तो मौजूदा परिस्थितियों और नाकामियों के बावजूद शायद हालात इतने नहीं बिगड़ते. नेपाल दुनिया के उन पहले देशों में शुमार है जहां इस साल जनवरी में ही टीकाकरण अभियान की शुरूआत हो गई थी. 

नेपाल में टीकाकरण अभियान का आग़ाज़ एस्ट्राज़ेनेका की कोविशील्ड वैक्सीन के दस लाख डोज़ से हुई थी. नेपाल को टीके की ये खेप भारत से अनुदान सहायता के तौर पर मिली थी. नेपाल की फ़ौज को भी भारत से अनुदान योजना के रूप में इसी वैक्सीन के एक लाख डोज़ मिले थे. इसके अलावा कोवैक्स सुविधा के तहत भी नेपाल को भारत से कोविशील्ड टीके के 3,48,000 डोज़ हासिल हुए थे.

राष्ट्रीय स्तर पर इतने बड़े स्वास्थ्य संकट के वक़्त नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने कोविड-19 महामारी से निपटने में अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से मदद की अपील की है. 

बाद में नेपाल ने भारत के पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया (एसआईआई) को भी कोविशील्ड वैक्सीन के 20 लाख डोज़ के ऑर्डर दिए थे. हालांकि नेपाल को इसमें से सिर्फ़ दस लाख डोज़ ही मिल पाए हैं. भारत में टीके की मांग बढ़ने के चलते नेपाल को एसआईआई से टीके की सप्लाई रुक गई. लिहाजा कोविशील्ड वैक्सीन के और 10 लाख डोज़ नेपाल को प्राप्त नहीं हो सके. 

भारत से कोविशील्ड वैक्सीन की ज़रूरी आपूर्ति हासिल करने में नाकाम रहने के चलते नेपाल में भारी अव्यवस्था का माहौल बन गया. हालात कितने गंभीर हैं इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि नेपाल में 65+ से ऊपर की आयु के एक करोड़ 30 लाख वरिष्ठ नागरिकों को 12 हफ़्ते बीत जाने के बाद भी कोविशील्ड वैक्सीन की दूसरी डोज़ नहीं लग पाई है. अब नेपाली सरकार इन लोगों को 12 से 16 हफ़्ते के बीच टीके की दूसरी डोज़ लगाने पर विचार कर रही है. 

अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से नेपाल को ज़रूरी सहायता

राष्ट्रीय स्तर पर इतने बड़े स्वास्थ्य संकट के वक़्त नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने कोविड-19 महामारी से निपटने में अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से मदद की अपील की है. विदेशों में  स्थित नेपाल के कूटनीतिक मिशनों के ज़रिए भी अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से नेपाल को ज़रूरी सहायता उपलब्ध कराने का आग्रह किया गया है. 

नेपाल में कोविड-19 से पैदा हुए हालात की गंभीरता समझते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के कार्यकारी निदेशक ने स्पष्ट किया है कि महामारी पर काबू पाने के लिए नेपाल को तत्काल आपात सहायता की ज़रूरत है. इसके परिणामस्वरूप अमेरिकी सरकार ने अपने यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फ़ॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) के ज़रिए नेपाल को आपात सहायता की पहली खेप मुहैया कराई है. इस सहायता में वेंटिलेटर्स के 100 यूनिट, कोविड-19 की टेस्टिंग के उपकरण, ऑक्सीजन से संबंधित रसद और पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (पीपीई) शामिल हैं. 

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अनुदान सहायता के तहत नेपाल को कोविड-19 वैक्सीन के 10 लाख डोज़ भेजने की घोषणा की है. इसके अलावा चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र ने नेपाल को ऑक्सीजन के 800 भरे हुए सिलेंडर, 10 ऑक्सीजन कन्संट्रेटर्स, पांच वेंटिलेटर्स, 200 आईसीयू बिस्तर और 1500 एंटीजेन किट्स मुहैया कराए हैं. इससे पहले भी चीन अनुदान के तौर पर नेपाल को वीरो सेल वैक्सीन के 8 हज़ार डोज़ दे चुका है. 

सिंगापुर ने भी नेपाल को अपनी प्रारंभिक मदद के तौर पर वेंटिलेटर समेत 13 टन मेडिकल उपकरण, Bi-Pap सिस्टम्स, पल्स ऑक्सीमीटर, पीसीआर टेस्ट किट्स और स्वैब्स, RNA extraction मशीनें और कुछ अन्य राहत सामग्रियां प्रदान की हैं. 

एक और चिंताजनक बात ये है कि संक्रमित मरीज़ों के इलाज के लिए नेपाल में पर्याप्त संख्या में क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट्स ही नहीं हैं. हालात इतने बदतर हैं कि कुछ अस्पतालों में एनेस्थिसियोलॉजिस्ट के अभाव में वेंटिलेटर्स को इस्तेमाल में ही नहीं लाया जा सका है.

स्विट्ज़रलैंड ने नेपाल को मेडिकल आपूर्तियों के रूप में 80 लाख अमेरिकी डॉलर मूल्य की 30 टन सामग्रियां भेजी हैं. इनमें 40 वेंटिलेटर्स, ऑक्सीजन कन्संट्रेटर्स, 11 लाख रैपिड एंटीजेन टेस्ट किट्स और पीपीई शामिल हैं. 

संयुक्त राष्ट्र भी अपने नेपाल कोविड-19 रिस्पॉन्स प्लान के तहत अगले तीन महीनों में आपात राहत के तौर पर 8.37 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता पहुंचाने वाला है. ये सहायता नेपाल में कमज़ोर वर्गों के साढ़े 7 लाख लोगों की मदद के मकसद से दी जाने वाली है. इसी प्रकार यूरोपीय संघ (ईयू) ने सहायता पैकेज के तौर पर 7.5 करोड़ यूरो का अनुदान दिया है. 

स्पेन के संगठनों ने दूसरी मेडिकल किटों के अलावा 50 ऑक्सीजन सिलेंडर, 10 ऑक्सीजन कन्संट्रेटर्स और 15 वेंटिलेटर्स भेजे हैं. इसके साथ ही फ़िनलैंड, फ़्रांस, जर्मनी और बेल्जियम जैसे देशों ने नेपाल को 50 ऑक्सीजन सिलेंडर, 20 कन्संट्रैटर्स, 77 वेंटिलेटर, 14 रेस्पिरेटर्स, 1,64,000 एंटीजेन टेस्ट किट्स, 34 लाख मास्क, 42,500 दस्ताने, 3000 आईसोलेशन गाउन और 20,000 ऑक्सीजन कैनुला प्रदान किए हैं. इनके अलावा ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड ने भी नेपाल को स्वास्थ्य सामग्रियों की मदद पहुंचाने की प्रतिबद्धता जताई है. 

नेपाल को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से इतनी मात्रा में स्वास्थ्य सामग्रियों की आपूर्ति होने के बावजूद देश में ऑक्सीजन, अस्पतालों के बिस्तर, आईसीयू बेड्स, वेंटिलेटर्स और क्रिटिकल केयर से जुड़ी मशीनों का घोर अभाव बना हुआ है. एक और चिंताजनक बात ये है कि संक्रमित मरीज़ों के इलाज के लिए नेपाल में पर्याप्त संख्या में क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट्स ही नहीं हैं. हालात इतने बदतर हैं कि कुछ अस्पतालों में एनेस्थिसियोलॉजिस्ट के अभाव में वेंटिलेटर्स को इस्तेमाल में ही नहीं लाया जा सका है. 

कोविड-19 महामारी से लड़ने में मदद करने की नेपाली अपील पर अलग-अलग द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संस्थाओं ने अपने हाथ आगे बढ़ाए हैं. इसके बावजूद नेपाल की सरकार दुनिया के किसी भी हिस्से से वैक्सीन के अतिरिक्त डोज़ हासिल करने में नाकाम रही है. टीकाकरण के शुरुआती दौर में भारत और चीन द्वारा मुहैया कराए गए टीकों के अलावा नेपाल बाक़ी दुनिया में और कहीं से भी टीके हासिल नहीं कर सका है. विशेषज्ञों का मत है कि वैक्सीन के ज़रिए ही ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की जान बचाई जा सकती है. हालांकि दूसरी मेडिकल आपूर्तियों की अहमियत की भी अनदेखी नहीं की जा सकती.

भारत की भूमिका और भी ज़्यादा अहम

इस संकट से नेपाल को उबारने के लिए क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट्स और दूसरी मेडिकल आपूर्तियों के साथ-साथ टीके मुहैया कराने में अंतरराष्ट्रीय बिरादरी, ख़ासतौर से नेपाल के पड़ोसी के नाते भारत की भूमिका और भी ज़्यादा अहम हो जाती है. अगर भारत ये भूमिका नहीं निभाता है तो कोई एक या एक से ज़्यादा देश हालात का फ़ायदा उठा सकते हैं. वो कोविड-19 महामारी से लड़ने में मदद करने की आड़ में नेपाल में आक्रामक ढंग से प्रवेश कर सकते हैं. अगर ऐसे हालात बने तो भारत को काफ़ी शर्मिंदगी झेलनी होगी क्योंकि भारत ने अबतक नेपाल में काफ़ी साख बटोरी है. इसके साथ ही भारत और नेपाल के बीच सरहदों की खुली व्यवस्था के चलते भारत तबतक कोविड-19 से सुरक्षित नहीं रह सकता जबतक नेपाल में इसपर काबू न पा लिया जाए. वक़्त का तकाज़ा है कि भारत राष्ट्रहित में नेपाल को टीके के आवश्यक डोज़ समेत तमाम मेडिकल आपूर्तियां मुहैया कराए.

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