नेपाल इन दिनों अप्रत्याशित संकट के दौर से गुजर रहा है. नेपाल पर राजनीतिक अस्थिरता के साथ-साथ कोरोना महामारी की दोहरी मार पड़ी है. चूंकि संसद के निचले सदन को भंग कर दिया गया है और प्रधानमंत्री ओली देश में नवंबर में होने वाले चुनाव से पहले तक केयरटेकर सरकार चला रहे हैं या फिर सरकार में उनके बने रहने की वैधता को लेकर जब तक सुप्रीम कोर्ट का कोई फैसला नहीं आ जाता, इस संकट को ख़त्म करने को लेकर कोई आधिकारिक कार्रवाई हाल के दिनों में मुमकिन नहीं लगती है. नेपाल की ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में भारत जैसे पड़ोसी दोस्तों को वहां के हालात पर फौरन ध्यान देना चाहिए जिससे संकट की इस घड़ी के दौरान इसका सकारात्मक हल निकाला जा सके. चारों तरफ से घिरा हुआ नेपाल आयात पर पूरी तरह निर्भर है जो हाल के दिनों में दवाईयों और वैक्सीन की भारी किल्लत से गुजर रहा है. जबकि कोवैक्स सुविधा के तहत नेपाल को भारत ने 1 मिलियन कोविशील्ड डोज़ मुहैया कराई थी, लेकिन बची हुई वैक्सीन के डोज़ को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने नेपाल को मुहैया नहीं कराया – और अब जिन्होंने वैक्सीन की पहली डोज़ ले ली है वो दूसरी डोज़ का इंतज़ार कर रहे हैं. भारत में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने सभी को चौंका दिया और बहुत ही कम समय में नेपाल की भी भारत जैसी ही हालत हो गई थी. नेपाल की वैक्सीन ख़रीद नीति योजना के मुताबिक नहीं थी, और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को नेपाल ने सिर्फ 3 मिलियन वैक्सीन की डोज़ का ही ऑर्डर किया था. एक मुल्क जिसकी आबादी 30 मिलियन के करीब है उसे अपने देश में वैक्सीन की वास्तविक डोज़ की ज़रूरतों का ख़्याल रखना चाहिए था. हालांकि बाद में नेपाल ने रूस से स्पूतनिक V और चीन की साइनोफ़ार्म जैसी वैक्सीन के विकल्प को तलाशना शुरू कर दिया.
नेपाल की ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में भारत जैसे पड़ोसी दोस्तों को वहां के हालात पर फौरन ध्यान देना चाहिए जिससे संकट की इस घड़ी के दौरान इसका सकारात्मक हल निकाला जा सके.
जहां तक नेपाल के कोरोना संबंधित आंकड़ों की बात है तो यह काफी निराश करने वाला है. नेपाल के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक 22 मई 2021 तक नेपाल में पिछले 24 घंटे में 8,591 कोरोना संक्रमण के नए मामले सामने आए थे जिसने कुल संक्रमणों की संख्या को 5,05,643 तक पहुंचा दिया. देश भर में कोरोना संक्रमण के चलते हुई मौत का आंक़ड़ा 6,153 हो चुका है. देश में कोरोना के एक्टिव केस की संख्या 115,806 तक पहुंच गई है. स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक अब तक 373,684 संक्रमित लोग ठीक हो चुके हैं उनमें से 8,848 लोगों ने तो पिछले 24 घंटों में रिकवरी की है. 25 मई 2021 तक कोरोना संक्रमितों की संख्या 520,461 थी, जबकि एक्टिव केस की संख्या 115,447 थी और कोरोना से जान गंवाने वालों की संख्या 6,531 थी जबकि 3,98,483 लोग इससे ठीक हुए. ट्रेंड के मुताबिक ही ये आंकड़े थे लेकिन नुकसान के वास्तविक आंकड़ों को प्राप्त करना मुमकिन नहीं है क्योंकि नेपाल की कोविड टेस्टिंग की काबिलियत कभी संतोषजनक नहीं रही – कई मामलों के बारे में तो पता ही नहीं चला. ऐसे में माना जा सकता है कि ये आंक़ड़े निचले स्तर को प्रदर्शित करते हों. इसलिए ये बेहद ज़रूरी है कि नेपाल की केंद्रीय और संघीय सरकारों को आवश्यक कदम उठाना चाहिए.
नेपाल की चरमराई हुई अर्थव्यवस्था
जैसा कि नेपाल कोविड 19 के दूसरे चक्र में फंसा हुआ है, तो ऐसे में बहुत कम अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसियां वहां की बदहाल जनता की मदद करने के लिए आगे आई हैं. एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) ने “एडीबी कोविड 19 रिसपॉन्स: नेपाल” के तहत वहां की सरकार और सहायक एजेंसियों को मदद का हाथ बढ़ाया है. एडीबी के निष्कर्ष बताते हैं कि “कोरोना महामारी नेपाल की अर्थव्यवस्था के हर सेक्टर पर असर डालेगी, जो सकल घरेलू उत्पाद में 0.13 फ़ीसदी की कमी पैदा करेंगे और इसके चलते लगभग 15,880 लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा.” दिग्गज उद्योग चैंबर्स और थिंक टैंक के निष्कर्षों पर भरोसा करने के बाद यही कहा जा सकता है कि वास्तविक नुकसान इससे कहीं ज़्यादा होगा और शायद ही अर्थव्यवस्था का कोई ऐसा सेक्टर होगा जो इसके प्रतिकूल प्रभाव से अछूता रह जाएगा. बगैर किसी निर्माण क्षमता और सेवा क्षेत्र में ज़रूरी विशेषज्ञता के स्वास्थ्य सेक्टर की भी हालत बेहद दयनीय है. निजी अस्पतालों के तौर पर कुछ अपवाद हो सकते हैं लेकिन ज़मीनी हालात इससे कहीं ज़्यादा चिंताजनक हैं.
नेपाल की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा आधार वहां के लघु और मध्यम कारोबार(एसएमई) हैं और साल 2021 में कोरोना संक्रमण की पहली लहर के साथ ही इस सेक्टर पर प्रतिकूल असर पड़ना शुरू हो चुका था जिसके चलते इसकी पूरी संचालन व्यवस्था गड़बड़ा गई थी. सरकार ने इसे लेकर सिर्फ दो शब्द वाली प्रतिक्रिया दी – जिसका मूल भाव था कोई कार्रवाई नहीं. अर्थव्यवस्था के फ्रंटलाइन सेक्टर जैसे पर्यटन, होटल, उड्डयन, कारोबार और उत्पादन संबंधित सप्लाई सेवाएं, शिक्षा, स्वास्थ्य, रिटेल – सभी क्षेत्रों में अप्रत्याशित नुकसान झेलना पड़ा और अब हालात और भी ख़राब हैं क्योंकि कोविड की दूसरी लहर ने एक दो चीजों को छोड़कर उत्पादन गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी है. पिछले वर्ष “विजिट नेपाल 2020″ अभियान की शुरुआत होते ही इसे बंद करना पड़ा था, जबकि इसका मकसद दो मिलियन से ज़्यादा दिग्गज लोगों को इस अभियान से जोड़ना था, जो पूरी तरह से अधूरा रह गया. काठमांडू के ज़्यादातर लग्ज़री होटल या तो बंद पडे हैं या फिर इनमें बहुत ही कम लोग रह रहे हैं. इसके चलते सहायक सेवाएं जैसे यात्रा,पर्यटन और होटल सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं. ये सभी कारोबार एक साथ नेपाल की अर्थव्यवस्था में 10 फ़ीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं.
निष्कर्षों पर भरोसा करने के बाद यही कहा जा सकता है कि वास्तविक नुकसान इससे कहीं ज़्यादा होगा और शायद ही अर्थव्यवस्था का कोई ऐसा सेक्टर होगा जो इसके प्रतिकूल प्रभाव से अछूता रह जाएगा.
नेपाल में निजी क्षेत्र की तरह ही सार्वजनिक क्षेत्र पर भी भारी असर पड़ा है, ख़ास कर सरकारी बैंकों को काफी नुकसान झेलना पड़ा, क्योंकि इन बैंकों के निवेश ज़्यादातर उन क्षेत्रों में लगे हुए थे जो होटल और उड्डयन क्षेत्र से जुड़े हुए थे. सेवा क्षेत्र से जुड़ी सहायक विनिर्माण इकाइयां और स्टार्ट-अप की हालत भी बेहद ख़राब है ख़ासकर तब जबकि विदेशों से मांग नहीं आ रही है और चीन कच्चे माल की पूर्ति नहीं कर पा रहा है. नेपाल की अर्थव्यवस्था में दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी – होलसेल (थोक) और रिटेल (खुदरा) सेक्टर की है जो 14.37 फ़ीसदी के बराबर है – वो भी बदहाल अवस्था में है और चीन से आयात में भी भारी गिरावट दर्ज़ की गई है. इतना ही नहीं, भारत के साथ कारोबार भी अब बीते दिनों की बात हो चुकी है.
नेपाल के प्राकृतिक और मानव संसाधन स्रोतों का भी पूर्ण दोहन नहीं हो सका है, हालांकि हाल के वर्षों में विदेशों में नौकरी और उच्च शिक्षा को लेकर पलायन ने कई मायनों में नेपाल के लिए सकारात्मक बदलाव की शुरुआत की है. उल्लेखनीय है कि विदेशी प्रेषण(विदेशों से आने वाले पैसों) का नेपाल की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान है. साल 2019 में इसका जीडीपी में 26 फीसदी योगदान था लेकिन देश में पलायन के उच्च दर का होना कई मायनों में नुकसानदेह भी है. यह इस बात की ओर इशारा करता है कि नेपाल की घरेलू अर्थव्यवस्था को बढावा देने के एजेंडे से यह इसे दूर कर रहा है. विदेशों से आने वाले पैसों (प्रेषण) में कमी और सरकारी राजस्व संग्रह में कमी के चलते आने वाले दिनों में नेपाल की अर्थव्यवस्था में भारी अस्थिरता आने की आशंका है. उपभोग के स्तर में लगातार गिरावट का दीर्घकालीन असर होगा, जिसमें सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव भी शामिल हैं.
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक “आगे मुद्रास्फीति के बढ़ने का भी जोखिम है. चीन की तरफ से सीमित सप्लाई की वजह से नेपाल को तीसरे देशों से आयात करना पड़ेगा जिसकी वजह से उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी होगी. जाहिर है स्थितियां काफी गंभीर हैं. हालांकि अभी भी कोरोना संक्रमण का पूरा असर देखना बाकी है, लेकिन यह तय है कि इस कोरोना संक्रमण ने पूरे विश्व में अनिश्चितता का माहौल ला दिया है. लोग चिंतित इसलिए भी हैं क्योंकि इस ख़तरनाक संक्रमण के बारे में अभी भी लोगों को ना तो ज़्यादा जानकारी है और ना ही इसके आर्थिक नतीजों के बारे में पूरी तरह पता है.”
अप्रत्याशित संकट से सामना
विश्व बैंक के दक्षिण एशिया से संबंधित रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल समेत दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था में कोई ज़्यादा सुधार नहीं होने वाला है. लेकिन अपनी ही रिपोर्ट के ठीक उलट विश्व बैंक कुछ आंकड़ों को सामने लाने में काफी उत्साहित दिखता है, “दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार होने की संभावना है क्योंकि साल 2021 में अर्थव्यवस्था में 7.2 फ़ीसदी की तेजी संभावित है जबकि साल 2022 में 4.4 फ़ीसदी की दर से अर्थव्यवस्था बढ़ सकती है, जो कि साल 2020 के सबसे निचले स्तर से पूरे क्षेत्र को ऊपर उठाने में मदद कर सकता है. हालांकि कोरोना संक्रमण काल से पहले भी विकास काफी असंतुलित था और आर्थिक गतिविधियां भी सीमित थीं, क्योंकि कई कारोबार को चलाने के लिए नुकसान की भरपाई जरूरी थी और मजदूरों की आवश्यकता भी. इतना ही नहीं ज़्यादातर अनौपचारिक क्षेत्र में बेरोजगारी, आय में कमी, बढ़ती असमानता और मानव संसाधन की कमी की स्थिति है.”
विदेशों से आने वाले पैसों (प्रेषण) में कमी और सरकारी राजस्व संग्रह में कमी के चलते आने वाले दिनों में नेपाल की अर्थव्यवस्था में भारी अस्थिरता आने की आशंका है. उपभोग के स्तर में लगातार गिरावट का दीर्घकालीन असर होगा, जिसमें सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव भी शामिल हैं.
जाहिर है ऐसे समय में संगठित कोशिश की ज़रूरत है जिसके तहत सरकार उद्योग धंधों और नागरिक सामाजिक संस्थाओं के साथ तारतम्यता स्थापित करती है. कोरोना संक्रमण के दौरान राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य को प्राथमिकता देने का यह नतीजा होगा कि नेपाल एक स्थायी संकट का सामना मजबूती से कर सकेगा. नेपाल की कम आबादी, उत्पादक अंतर्राष्ट्रीय पहुंच, और प्रजातांत्रिक सरकार नेपाल की अर्थव्यवस्था में बदलाव के संकेत हैं. नीतियों से इसका रास्ता निकलेगा तो राजनीतिक इच्छाशक्ति इसे प्रभावित करेगी.
वैकल्पिक विकास के मानकों के लिए कोशिशें
पिछले पांच सालों में विकास के संकेतों के बावजूद सरकारी राजस्व में कोरोना संक्रमण के दौरान भारी कमी आई है. वित्तीय वर्ष 2019 – 20 में सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में नेपाल का ऋण अनुपात 40:16 है. विकास की कमी को पूरा करने के लिए ऋण लेने का विकल्प अभी भी मौजूद है, जिससे घरेलू अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाया जा सकता है. हालांकि इसके लिए उन बातों पर विशेष ध्यान रखना होगा जहां से इन पैसों के दुरुपयोग की संभावना पैदा होती है. मौजूदा संकट के पहले भी नेपाल को ना सिर्फ अपने विकास की रणनीति पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है बल्कि उन संसाधानों की तलाश भी ज़रूरी है जो देश के अंदर मौजूद हैं.
समावेशी और टिकाऊ विकास के लक्ष्य के साथ नेपाल को प्रतियोगी कीमत पर बिजली का उत्पादन और उसका व्यवसायीकरण भी करना चाहिए – जिसमें उसे अपने घरेलू बाज़ार का ध्यान रखना चाहिए. इसके साथ ही लोगों पर कम टैक्स लगाना चाहिए जिससे आय के स्रोत में इजाफ़ा हो सके, जिससे टैक्स और सीमा शुल्क की गड़बड़ियों को सुधारा जा सके.
समावेशी और टिकाऊ विकास के लक्ष्य के साथ नेपाल को प्रतियोगी कीमत पर बिजली का उत्पादन और उसका व्यवसायीकरण भी करना चाहिए – जिसमें उसे अपने घरेलू बाज़ार का ध्यान रखना चाहिए. इसके साथ ही लोगों पर कम टैक्स लगाना चाहिए जिससे आय के स्रोत में इजाफ़ा हो सके, जिससे टैक्स और सीमा शुल्क की गड़बड़ियों को सुधारा जा सके. विकास के वैकल्पिक प्रतिमान के प्रति झुकाव नेपाल की अर्थव्यवस्था के लिए निश्चित तौर पर गेमचेंजर साबित हो सकती है. लिहाजा इस विकल्प को अमल में लाने का मौका नहीं गंवाना चाहिए.
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