Author : Ankita Dutta

Published on Aug 07, 2023 Updated 0 Hours ago
NATO के विलनीयस शिखर सम्मेलन की कुछ बड़ी और अहम बातें

2022 के मैड्रिड शिखर सम्मेलन, जहां मित्र राष्ट्र फोर्स के नये मॉडल को लेकर सहमत हुए और उन्होंने अगले दशक में गठबंधन को आगे बढ़ाने के लिए एक सामरिक धारणा (स्ट्रैटेजिक  कॉन्सेप्ट) को अपनाया, के बाद 11-12 जुलाई 2023 को आयोजित विलनीयस शिखर सम्मेलन पिछले वर्ष के दौरान उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) की प्रगति की समीक्षा और भविष्य में किसी संघर्ष के लिए इसे तैयार करता हुआ दिखाई दिया. वैसे तो इस शिखर सम्मेलन को लेकर बहुत ज़्यादा उम्मीदें थीं कि यूक्रेन की सदस्यता को लेकर एक टाइमलाइन की घोषणा की जाएगी लेकिन इस मुद्दे पर ये खरा नहीं उतर पाया. हालांकि नेटो की विज्ञप्ति और G7 के साझा घोषणापत्र के बीच जो बात साफ थी वो ये कि गठबंधन के सदस्यों ने यूक्रेन को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को दोगुना कर दिया है और अपने लचीलेपन को बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं. ये लेख विलनीयस शिखर सम्मेलन के अहम नतीजों के बारे में बताता है.

नेटो की विज्ञप्ति और G7 के साझा घोषणापत्र के बीच जो बात साफ थी वो ये कि गठबंधन के सदस्यों ने यूक्रेन को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को दोगुना कर दिया है और अपने लचीलेपन को बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं. ये लेख विलनीयस शिखर सम्मेलन के अहम नतीजों के बारे में बताता है.  

शिखर सम्मेलन की मुख्य बातें

पहला, नेटो अपनी एक विज्ञप्ति में स्वीकार करता है कि “रूसी संघ मित्र देशों की सुरक्षा, शांति और यूरो-अटलांटिक क्षेत्र में स्थिरता के लिए सबसे बड़ा और सीधा ख़तरा है.” रूस के ख़िलाफ़ अपनी रक्षा और प्रतिरोध को मज़बूत करने की तरफ उसका नज़रिया शिखर सम्मेलन का बार-बार का विषय बना हुआ है. लेकिन दो दिलचस्प घटनाक्रम हए हैं: पहला, बेलारूस और ईरान के द्वारा निभाई जा रही भूमिका के बारे में नेटो की चिंताओं को शामिल किया गया है. नेटो ने “रूस के सुरक्षा बलों को यूक्रेन पर हमला करने और रूस के आक्रमण को बनाए रखने की अनुमति देने में क्षेत्र और बुनियादी ढांचा” मुहैया कराने के लिए बेलारूस को घेरा है. रूस में ताज़ा घटनाक्रम का हवाला देते हुए नेटो ने “तथाकथित प्राइवेट मिलिट्री कंपनियों” की संभावित तैनाती को लेकर भी चिंता जताई है. एक और महत्वपूर्ण संदर्भ ईरान के द्वारा रूस को अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV) मुहैया कराना है जिनका इस्तेमाल यूक्रेन के अहम बुनियादी ढांचों पर हमला करने के लिए किया गया है.

दूसरा, बाल्टिक सागर आखिरकार ‘नेटो झील’ बन गया है. ये समिट नेटो के सदस्य के रूप में फिनलैंड के लिए पहला था और तुर्किए स्वीडन के द्वारा गठबंधन में शामिल होने की कोशिश का समर्थन करने के लिए तैयार हो गया. इस तरह ऐसे क्षेत्र में सामरिक बदलाव का रास्ता तैयार हो गया जहां एक समय रूस का दबदबा था. 10 जुलाई 2023 को एक प्रेस स्टेटमेंट में तुर्किए ने अपने इस इरादे का एलान किया कि वो अपनी संसद में नये देश को नेटो में शामिल करने से जुड़े प्रोटोकॉल को मंज़ूरी के लिए पेश करेगा. इसमें ये भी माना गया कि 2022 के मैड्रिड शिखर सम्मेलन के समय से स्वीडन ने तुर्किए की सुरक्षा चिंताओं को हल करने की दिशा में काम किया है, साथ ही स्वीडन ने अपने संविधान में संशोधन कर PKK (उग्र कुर्द संगठन) के ख़िलाफ़ आतंकवाद विरोधी सहयोग का विस्तार किया है और तुर्किए को हथियारों का निर्यात फिर से शुरू किया है. हालांकि अगर नज़दीक से देखा जाए तो राष्ट्रपति अर्दोआन को भी बहुत सी रियायतें मिलीं जिनमें नेटो के लिए पहली बार काउंटर-टेररिज़्म के स्पेशल कोऑर्डिनेटर के पद की स्थापना; स्वीडन में रहने वाले तुर्किए के कुर्दों के विरुद्ध ठोस कार्रवाई; F-16 सौंपने पर अमेरिका के साथ  बातचीत की फिर से शुरुआत; और सबसे आश्चर्यजनक बात राष्ट्रपति अर्दोआन के द्वारा यूरोपियन यूनियन (EU) में तुर्किए के शामिल होने की हसरत को पूरा करने पर फिर से ज़ोर देना. EU में तुर्किए के शामिल होने की प्रक्रिया 2016 से लटकी हुई है.

तीसरा, इस बात की उम्मीद थी कि नेटो में यूक्रेन की सदस्यता को लेकर एक समय सीमा तय हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसके बदले नेताओं ने दोहराया कि “हम यूक्रेन को न्योता देने की स्थिति में उस समय होंगे जब सहयोगी देश तैयार हो जाएंगे और शर्तें पूरी होंगी.” राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने सदस्यता के लिए समय सीमा तय नहीं करने को “अभूतपूर्व और बेतुका” बताया लेकिन इस बात के संकेत पहले से थे कि इस तरह का कोई वादा नहीं किया जाएगा. राष्ट्रपति बाइडेन ने 9 जुलाई 2023 को एक इंटरव्यू में कहा कि यूक्रेन नेटो की सदस्यता के लिए तैयार नहीं है. उन्होंने ये भी जोड़ा कि “गठबंधन के द्वारा यूक्रेन को शामिल करने पर विचार करने से पहले युद्ध के ख़त्म होने की आवश्यकता है”. यहां तक कि जर्मनी ने भी संघर्ष के जारी रहने की स्थिति में यूक्रेन को ठोस समय सीमा देने के बारे में चिंता जताई थी. कोई टाइमलाइन न होने के बावजूद राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के हाथ कुछ ठोस नतीजे लगे जिनमें नेटो-यूक्रेन परिषद का निर्माण, यूक्रेन की नेटो सदस्यता के लिए मेंबरशिप एक्शन प्लान को छोड़ना और यूक्रेन के सुरक्षा बलों को पश्चिमी देशों के स्टैंडर्ड के मुताबिक अपग्रेड करने में मदद के लिए कई वर्षों के कार्यक्रम की नींव रखना शामिल हैं.

साथ ही अपनी “चाहे जितना समय लगे” की प्रतिबद्धता के हिस्से के तहत फ्रांस, जर्मनी और नॉर्वे जैसे सदस्य देशों ने यूक्रेन की रक्षा के लिए नये वादों का एलान किया. इसमें जर्मनी से 686 मिलियन यूरो का सुरक्षा पैकेज शामिल है जिसमें 40 मार्डर इन्फैंट्री  फाइटिंग व्हीकल्स, 25 लेपर्ड 1 A5 मेन बैटल टैंक, इत्यादि जुड़े हुए हैं. नॉर्वे की सरकार ने 2.5 बिलियन क्रोनर (218 मिलियन यूरो) अतिरिक्त देने का भरोसा दिया और फ्रांस ने यूक्रेन को स्काल्प लॉन्ग-रेंज मिसाइल मुहैया कराने का वादा किया. G7 ने भी यूक्रेन की दीर्घकालीन सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय रूप-रेखा की साझा घोषणा के साथ अपनी प्रतिबद्धताओं को दोगुना कर दिया. इसमें यूक्रेन की आर्थिक, तकनीकी और वित्तीय क्षमता को मज़बूत करने के लिए द्विपक्षीय सुरक्षा वादा शामिल है. सुरक्षा गारंटी के मामले में इसमें आधुनिक सैन्य उपकरणों के मामले में लगातार सहायता, यूक्रेन के रक्षा औद्योगिक अड्डे की मज़बूती और खुफिया जानकारी साझा करने एवं यूक्रेन के सुरक्षा बलों की ट्रेनिंग शामिल हैं. इसके बदले में यूक्रेन ने वादा किया कि वो शासन व्यवस्था, कानून पर अमल एवं न्यायपालिका, रक्षा और सैन्य क्षेत्रों में सुधार की प्रक्रिया को जारी रखेगा.

चौथा, शिखर सम्मेलन की विज्ञप्ति और चर्चाओं में वैसे तो यूक्रेन के संकट और रूसी आक्रमण के ख़िलाफ़ गठबंधन को मज़बूत करने का वर्चस्व रहा लेकिन बड़ी चिंता के रूप में चीन की भी प्रमुखता से चर्चा हुई. विज्ञप्ति में नेटो के द्वारा 2022 में अपनाए गए स्ट्रैटेजिक  कॉन्सेप्ट की भाषा को दोहराया गया. स्ट्रैटेजिक  कॉन्सेप्ट में चीन को नेटो की सुरक्षा, हितों एवं मूल्यों के लिए एक ख़तरा बताया गया था और ये इस चेतावनी को आगे बढ़ाता है कि चीन “अपनी रणनीति, इरादों और सैन्य तैयारी के बारे में अपारदर्शी” बना हुआ है. इसमें रूस और चीन के बीच गहराती सामरिक साझेदारी और रूस को चीन के समर्थन से निपटने की बात की गई है. वैसे तो नेटो गठबंधन चीन के साथ रचनात्मक भागीदारी के लिए तैयार है लेकिन यूरो-अटलांटिक सहयोगियों के लिए चीन के द्वारा खड़ी की गई चुनौतियों और चीन की ज़बरदस्ती की हरकतों के विरुद्ध उनके लचीलेपन और तैयारी को बढ़ाने की आवश्यकता को स्पष्ट तौर पर स्वीकार किया गया है.

नेताओं ने दोहराया कि “हम यूक्रेन को न्योता देने की स्थिति में उस समय होंगे जब सहयोगी देश तैयार हो जाएंगे और शर्तें पूरी होंगी.” राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने सदस्यता के लिए समय सीमा तय नहीं करने को “अभूतपूर्व और बेतुका” बताया लेकिन इस बात के संकेत पहले से थे कि इस तरह का कोई वादा नहीं किया जाएगा.

इसके भीतर इंडो-पैसिफिक पर भी ज़ोर दिया गया है. विलनीयस समिट नेटो का ऐसा दूसरा समिट है जिसमें इंडो-पैसिफिक के सहयोगियों ने भाग लिया है. विज्ञप्ति में जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड के साथ नेटो के जुड़ाव का विस्तार करने की तरफ इशारा किया गया है और इस तथ्य के महत्व पर ज़ोर दिया गया है कि इंडो-पैसिफिक रीजन की सुरक्षा यूरो-अटलांटिक की सुरक्षा से जुड़ी हुई है. वैसे तो सहयोगी देशों के बीच इंडो-पैसिफिक में नेटो की मौजूदगी और भागीदारी को मज़बूत करने की ज़रूरत को लेकर सर्वसम्मति थी लेकिन इस बात को लेकर अलग-अलग राय है कि इस मामले में कैसे आगे बढ़ा जाए. शिखर सम्मेलन के दौरान जापान में नेटो का प्रतिनिधि कार्यालय खोलने के बारे में एलान की उम्मीद थी लेकिन फ्रांस ने ये दलील देते हुए चिंता जताई कि ये कदम चीन को गलत संकेत भेजेगा और इस भौगोलिक विस्तार से अपने प्रमुख क्षेत्र यानी यूरो-अटलांटिक रीजन को लेकर नेटो का ध्यान कम होने का जोखिम होगा.

शिखर सम्मेलन की पांचवीं प्रमुख बात है रक्षा खर्च और भविष्य के लिए गठबंधन को तैयार करना. रक्षा खर्च नेटो के लिए एक स्थायी समस्या बनी हुई है और असमान बोझ का बंटवारा सबसे विवादित मुद्दा है. 2022 में यूक्रेन संकट के साथ इसने एक नया आयाम ले लिया है. उस समय यूरोप के कई देशों ने अपने-आप रक्षा बजट बढ़ाने और अपने सैन्य इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ अपने रक्षा-औद्योगिक आधार को बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई थी. शिखर सम्मेलन से पहले जारी अनुमानों में 31 मित्र राष्ट्रों में से 11 ने अपना रक्षा बजट 2 प्रतिशत के पार कर लिया था और इसमें पोलैंड सबसे आगे है (तस्वीर 1). विज्ञप्ति में बताया गया है कि पिछले कुछ वर्षों में रक्षा खर्च बढ़ गया है लेकिन अधिक ‘प्रतिस्पर्धी सुरक्षा व्यवस्था’ की वजह से GDP के 2 प्रतिशत से ज़्यादा खर्च की ज़रूरत पड़ेगी. इस तरह ज़ोर दिया गया है कि 2 प्रतिशत कम-से-कम है, न कि अधिकतम सीमा.

तस्वीर 1- GDP के हिस्से के रूप में रक्षा खर्च (%)

स्रोत: https://www.nato.int/nato_static_fl2014/assets/pdf/2023/7/pdf/230707-def-exp-2023-en.pdf

एक और महत्वपूर्ण नतीजा था भविष्य के किसी भी संघर्ष के लिए गठबंधन को तैयार करने के उद्देश्य से क्षेत्रीय रक्षा योजनाओं पर मित्र राष्ट्रों के द्वारा समझौते पर पहुंचना. वैसे तो इस योजना को सार्वजनिक नहीं किया गया है लेकिन माना जाता है कि नेटो के सहयोगी किसी भी युद्ध की शुरुआत से पहले ही सारी योजनाएं बना लेंगे. शीत युद्ध ख़त्म होने के बाद ये पहला मौक़ा है जब नेटो ठोस एक्शन प्लान बना रहा है जो मित्र राष्ट्रों को अपनी सेना को अपग्रेड करने और इंटरऑपरेबिलिटी (एक-दूसरे के साथ तालमेल) बढ़ाने में मदद करेगा. लेकिन इसमें दो चुनौतियां आ सकती हैं- पहली चुनौती है क्षेत्रीय रक्षा योजना को लागू करने में वित्तीय पहलू. रक्षा योजना में बढ़ोतरी हुई है लेकिन लंबे समय तक इन क्षेत्रीय योजनाओं को बनाए रखने के लिए नेटो गठबंधन के सैन्य खर्च को काफी बढ़ाने की आवश्यकता होगी. दूसरी चुनौती ये है कि इन योजनाओं को अमल में लाने में समय लगेगा क्योंकि यूक्रेन को लेकर अपनी प्रतिबद्धता की वजह से मित्र राष्ट्र पहले से ही अपनी सीमा से ज़्यादा खर्च में बढ़ोतरी कर चुके हैं. इसलिए किसी भी क्षेत्रीय रक्षा योजना के लिए हाइब्रिड युद्ध से निपटने की अधिक क्षमता के साथ मित्र राष्ट्रों के सैन्य-औद्योगिक आधार को अपग्रेड करने की ज़रूरत है.

नतीजा

यूक्रेन को लेकर नेटो के सदस्य देशों की प्रतिबद्धता के मामले में ये समिट कुछ ठोस काम को आगे बढ़ाने में कामयाब रहा. समिट के दौरान नेटो की नई क्षेत्रीय रक्षा योजना को परिभाषित किया गया, चीन को लेकर चिंता के बारे में चर्चा हुई और रूस को ये मज़बूत संकेत भेजा गया कि गठबंधन के सदस्यों की रक्षा के लिए नेटो तैयार है. एक बड़ा नतीजा नेटो में स्वीडन को शामिल करने के बारे में तुर्की की हरी झंडी है. इससे ये गठबंधन उत्तरी यूरोप में और मज़बूत होगा और रूस को ये संकेत गया कि नेटो की स्थापना की संधि के अनुच्छेद X के तहत इस मामले पर विचार-विमर्श में किसी तीसरे देश का दखल नहीं है.

हालांकि यूक्रेन की सदस्यता को लेकर ठोस उपायों की कमी के बारे में निराशा है. ये सहयोगी देशों के बीच सर्वसम्मति की कमी की तरफ इशारा करता है. फिर भी यूक्रेन गठबंधन के सदस्यों से अल्पकालीन के साथ-साथ दीर्घकालीन सुरक्षा प्रतिबद्धता हासिल करने में सफल रहा. चूंकि नेटो में शामिल होने को लेकर बारीक बातों को तय किया जाना अभी बाकी है, ऐसे में समिट के दौरान जिस एकमात्र मुद्दे का समाधान हुआ वो ये कि क्या यूक्रेन इस गठबंधन का सदस्य बनेगा. ये 2008 के बुखारेस्ट शिखर सम्मेलन से आगे बढ़ना है जहां केवल यूक्रेन की यूरो-अटलांटिक आकांक्षाओं को स्वीकार किया गया था. इसके बावजूद विलनीयस शिखर सम्मेलन यूक्रेन की दीर्घकालीन सुरक्षा के लिए न केवल नेटो के सदस्य देशों की तरफ से समर्थन के एलान के साथ बल्कि G7 के साझा घोषणापत्र के द्वारा भी कुछ निराशाओं को दूर करने में सफल रहा.


अंकिता दत्ता ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक  स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.

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