Published on Jul 02, 2022 Updated 0 Hours ago

म्यांमार वर्तमान में बढ़ती मानवीय आवश्यकताओं और सिर पर खड़ी एक संभावित आर्थिक मंदी से जूझ रहा है.

म्यांमार: तख़्तापलट, कोविड-19 और जारी आर्थिक संकट

ये लेख इनस्टेबिलिटी इन इंडियाज नेबरहुड: अ मल्टी प्रोस्पेक्टिव एनालिसिस निबंध श्रृंखला का हिस्सा है.


म्यांमार की सेना (जुंटा) ने वर्ष 2020 के चुनावों में व्यापक स्तर पर धांधली के तथाकथित दावों का हवाला देते हुए 1 फरवरी, 2021 को दूसरी बार चुनी हुई नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) की सरकार की शक्तियों को सीज़ कर सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था. म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची को कुछ अन्य एनएलडी नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था और एनएलडी पार्टी को जुंटा द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था. तख़्तापलट ने जुंटा की तानाशाही के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों को भड़काया और देशव्यापी बहिष्कार, विरोध एवं अवज्ञा आंदोलन शुरू हुए. 

म्यांमार अभी बढ़ती मानवीय आवश्यकताओं से जूझ रहा है. इसके साथ ही देश एक संभावित आर्थिक मंदी के मुहाने पर खड़ा है. महामारी की वजह से मूल्य-श्रृंखला में पैदा हुए व्यवधानों, कार्यबल में कमी, खाद्य असुरक्षा, संसाधनों की बर्बादी और घरेलू मोर्चे पर नगदी की कमी जैसी समस्याएं स्थिति को और जटिल बना रही हैं.

म्यांमार अभी बढ़ती मानवीय आवश्यकताओं से जूझ रहा है. इसके साथ ही देश एक संभावित आर्थिक मंदी के मुहाने पर खड़ा है. महामारी की वजह से मूल्य-श्रृंखला में पैदा हुए व्यवधानों, कार्यबल में कमी, खाद्य असुरक्षा, संसाधनों की बर्बादी और घरेलू मोर्चे पर नगदी की कमी जैसी समस्याएं स्थिति को और जटिल बना रही हैं. इसके अतिरिक्त, देश से पूंजी के बाहर जाने के साथ-साथ पश्चिमी देशों के नए प्रतिबंधों ने देश को एक अनिश्चितिता वाली स्थिति में पहुंचा दिया है. म्यांमार में आपस में जुड़े इन आर्थिक मुद्दों ने समस्या को और भी ज़्यादा कठिन बना दिया है.

घरेलू अर्थव्यवस्था और पूंजी उत्पादकता

किसी भी नागरिक अशांति का धरेलू अर्थव्यवस्था पर असर हमेशा कई स्तरों पर बहुत ही व्यापक और मुश्किल में डालने वाला होता है. तख़्तापलट और लगातार हिंसा ने उत्पादन के कारकों (मानव और भौतिक पूंजी) की वृद्धि और उत्पादकता को कम कर दिया है, जो कि राष्ट्र की रीढ़ हैं. इस वजह से आर्थिक पूंजी पर निवेश का रिटर्न कम हो गया है. इसके अलावा, तख़्तापलट के विनाशकारी प्रभावों ने देश में पूंजी मूल्यह्रास (capital depreciation) की दर को स्थाई तौर पर बढ़ा दिया है. म्यांमार की आर्थिक और पूंजीगत गिरावट को निम्नलिखित तथ्यों के माध्यम से समझाया जा सकता है. 

पहला, वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से ही और खासकर सेना द्वारा सत्ता पर कब्जे के बाद से, ज़्यादातर कंपनियों और फर्मों ने बिक्री में कमी, नगदी के प्रवाह में कमी और बैंकिंग व इंटरनेट सेवाओं का उपयोग करने में परेशानियों का सामना किया है. यह सब अर्थव्यवस्था में कार्यबल के लिए बेहद हानिकारक सिद्ध हुआ है. तख़्तापलट और महामारी के संयुक्त प्रभाव से वर्ष 2021 में म्यांमार में 16 लाख नौकरियां चली गईं. इतना ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में किसान भी सशस्त्र संघर्ष से बुरी तरह से प्रभावित हुए. इसके अलावा निर्माण, वस्त्र, पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी उद्योग भी रोज़गार की कमी से जूझता रहा, जहां रोज़गार में साल-दर-साल क्रमश: 31 प्रतिशत, 27 प्रतिशत और 30 प्रतिशत की कमी दर्ज़ की गई.

म्यांमार में आबादी का एक बड़ा हिस्सा पोषणयुक्त भोजन से वंचित है. इसके अलावा, सैन्य अधिग्रहण ने ना सिर्फ़ ईंधन की क़ीमतों, जैसे- पेट्रोल के दाम को 33 प्रतिशत और डीज़ल के दाम को 29 प्रतिशत तक बढ़ाया, बल्कि अक्टूबर, 2021 से म्यांमार के लिए डॉलर भी अधिक महंगा होना शुरू हो गया.

दूसरा, बड़े स्तर पर आर्थिक नुकसान और बेरोज़गारी ने खाद्य संकट की स्थिति को पैदा किया. म्यांमार में आबादी का एक बड़ा हिस्सा पोषणयुक्त भोजन से वंचित है. इसके अलावा, सैन्य अधिग्रहण ने ना सिर्फ़ ईंधन की क़ीमतों, जैसे- पेट्रोल के दाम को 33 प्रतिशत और डीज़ल के दाम को 29 प्रतिशत तक बढ़ाया, बल्कि अक्टूबर, 2021 से म्यांमार के लिए डॉलर भी अधिक महंगा होना शुरू हो गया. इस सबका असर यह हुआ कि देश में लगभग सभी वस्तुओं का खुदरा मूल्य बढ़ गया. खाद्य तेल की क़ीमत तख़्तापलट के पहले की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक हो गई और कुल खाद्यान्न आयात की क़ीमत में 20 से 50 प्रतिशत वृद्धि हुई.

म्यांमार एक खाद्य सुरक्षा संकट का सामना कर रहा है और इससे देश की 70 प्रतिशत आबादी के प्रभावित होने का ख़तरा है. वर्ष 2022 में एक करोड़ 13 लाख लोगों के मध्यम और गंभीर स्तर की खाद्य असुरक्षा से घिरे होने का अनुमान लगाया गया है. हालांकि लोगों की आय कम हुई है, खाद्य और कृषि की लागत बढ़ी है और इन परिस्थियों ने आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को कर्ज़ लेने, अपनी बचत को ख़र्च करने और अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संपत्तियां बेचने को मज़बूर किया है. इन सबके अलावा, देश में हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि लोग खाना कम खा रहे हैं या भोजन छोड़ रहे हैं या फिर पूरे दिन बिना खाए गुज़ार रहे हैं. ऐसा करने वाले लोग वर्ष 2020 में 23 प्रतिशत थे, जो वर्ष 2022 में बढ़कर 33 प्रतिशत हो गए हैं. बताया गया है कि रखाइन प्रांत में वर्ष 2021 में 30 प्रतिशत परिवारों के पास खाने के लिए भोजन नहीं था, जबकि वर्ष 2020 ऐसे परिवारों की संख्या 9 प्रतिशत थी. चिन राज्य में 58 प्रतिशत परिवारों के लोग कम खाना खाने को मज़बूर हैं, जबकि 2020 में ऐसे परिवारों की संख्या 21 प्रतिशत थी. 

कोरोना वायरस और तख़्तापलट की वजह से उत्पन्न हुए दोहरे संकट ने म्यांमार के विदेशी व्यापार को भी कम कर दिया है. अक्टूबर, 2020 में म्यांमार का विदेशी व्यापार 20.36 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जो अप्रैल, 2021 में घटकर 15.78 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रह गया.

निवेशकों का दूर जाना और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

सितंबर, 2021 तक म्यांमार की अर्थव्यवस्था में 18 प्रतिशत की कमी देखी गई और तब से सितंबर, 2022 तक अनुमानित विकास दर सिर्फ़ 1 प्रतिशत के आसपास है. लड़खड़ाते आर्थिक मानदंडों से यह स्पष्ट रूप से साबित होता है कि देश में चल रही राजनीतिक उथल-पुथल ने अर्थव्यवस्था में कारोबारी वातावरण को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है. इस वजह से विदेशी निवेश क़ाफ़ी हद तक कम हो गया है. इस हालातों ने ना केवल इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को वित्त पोषित करने वाले देशों, जैसे जापान के सहायाता कार्यक्रम प्रभावित हुए हैं, बल्कि कई अंतरराष्ट्रीय बिजनेस, जैसे नॉर्वे की टेलीकॉम दिग्गज़ कंपनी टेलीनॉर, म्यांमार में अपने निवेश पर पुनर्विचार कर रही है. इसके अतिरिक्त, संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस), यूनाइटेड किंगडम (यूके), यूरोपीय संघ (ईयू) और कनाडा जैसी पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं ने ना केवल जुंटा शासन से संबंधित व्यक्तियों के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाए हैं, बल्कि म्यांमार की सेना द्वारा किए व्यापारिक सौदों पर भी पाबंदी लगा दी है. 

कोरोना वायरस और तख़्तापलट की वजह से उत्पन्न हुए दोहरे संकट ने म्यांमार के विदेशी व्यापार को भी कम कर दिया है. अक्टूबर, 2020 में म्यांमार का विदेशी व्यापार 20.36 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जो अप्रैल, 2021 में घटकर 15.78 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रह गया. म्यांमार के परिधान उद्योग का देश के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में एक महत्वपूर्ण योगदान हुआ करता था. एक समय था जब म्यांमार का परिधान शिपमेंट वर्ष 2011 से 2019 तक 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर (कुल निर्यात का 10 प्रतिशत) से बढ़कर 6.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर (कुल निर्यात का 30 प्रतिशत) हो गया था. लेकिन देश का वस्त्र उद्योग आज गंभीर संकट में घिरा हुआ है, हज़ारों परिधान कारखानों को चलाना मुश्किल हो रहा और लोगों की नौकरियां जा रही हैं. वस्त्र उद्योग को ना सिर्फ़ घरेलू मांग में कमी का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि एच एंड एम, बेनेटन और प्रिमार्क जैसे वैश्विक साझेदारों की मांग में भी कमी देखी गई है, जिन्होंने म्यांमार में क़ारोबार बंद कर दिया है. कुल मिलाकर, क़ारख़ाने बंद होने, मैन्युफैक्चरिंग में व्यवधान, COVID-19 की वजह से काम रुकने और तख़्तापलट के कारण लगाए गए प्रतिबंधों के कारण देश का परिधान सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित हुआ है.

म्यांमार आर्थिक बहाली योजना

म्यांमार सरकार से उम्मीद है कि वह म्यांमार इकोनॉमिक रिकवरी प्लान (एमईआरपी) यानी म्यांमार आर्थिक बहाली योजना की घोषणा करेगी, जो वर्ष 2021-2022 से वर्ष 2023-2024 के बीच को समय को कवर करने वाला मध्यम अवधि का एजेंडा होगा. इसके साथ ही म्यांमार सरकार की यह योजना वर्ष 2023 में होने वाले अगले चुनाव से पूर्व पोस्ट- COVID-19 के बाद के आर्थिक सुधार को आगे बढ़ाने वाला होगा. कहा जा रहा है कि इसमें नौकरी के अवसरों को बढ़ाने और मूल्य वर्धित आर्थिक गतिविधियों को प्रेरित करने के लिए 30 लक्ष्य, 165 परिणाम और 430 कार्य योजनाएं शामिल हैं. इसमें कर निर्धारण, बैंकिंग, वित्त, व्यापार, डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास, परिवहन और आपूर्ति श्रृंखला, पर्यटन विकास, कृषि, पशुधन और मत्स्य पालन और ऊर्जा क्षेत्र को कवर करने वाली प्रक्रियाओं में सुधार शामिल होने की भी उम्मीद है. हालांकि, इसको लेकर आज तक ना तो आधिकारिक तौर पर कोई ऐलान किया गया है और ना ही इससे जुड़े कोई दस्तावेज़ सार्वजनिक तौर सामने लाए गए हैं.

म्यांमार एक गंभीर मानवीय संकट से जूझ रहा है. पिछले दो दशकों में यह सबसे खराब स्थिति है, जिसका देश सामना कर रहा है. म्यांमार में बच्चों समेत विस्थापित लोगों की संख्या मई, 2022 तक 10 लाख से अधिक हो गई है. ऐसा लगता है कि देश आर्थिक सुधारों के रूप में उचित कदमों को आगे बढ़ाने, श्रम बाज़ारों और खाद्य सुरक्षा की स्थिति में सुधार लाने को लेकर एक ऐसी स्थिति में पहुंच गया है, जहां हर स्तर पर सिर्फ़ गतिरोध है. महामारी और राजनीतिक मुद्दों से पैदा हुई चुनौतियों से पार पाने और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने के लिए म्यांमार सरकार को एमईआरपी में निहित आर्थिक वृद्धि के कई कार्यक्रमों को लागू करने की ज़रूरत है, ताकि हर दिन बढ़ते जा रहे आर्थिक संकट को कम किया जा सके. 

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Authors

Soumya Bhowmick

Soumya Bhowmick

Soumya Bhowmick is a Fellow and Lead, World Economies and Sustainability at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED) at Observer Research Foundation (ORF). He ...

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Sreeparna Banerjee

Sreeparna Banerjee

Sreeparna Banerjee is an Associate Fellow in the Strategic Studies Programme. Her work focuses on the geopolitical and strategic affairs concerning two Southeast Asian countries, namely ...

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