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दख़ल न देने की नीति का उल्लंघन किए बिना BRI निवेश को सुरक्षित बनाने की चीनी क्षमता की परीक्षा म्यांमार में है.
Image Source: Getty
साल 2013 में ‘बेल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव’ (BRI) शुरू करने के बाद से, चीन ने दूसरे देशों में अपने निवेश और कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए निजी सुरक्षा कंपनियों (PSC) पर अधिक से अधिक भरोसा किया है. इससे इसकी सीमित वैश्विक सैन्य उपस्थिति की भरपाई हो रही है. रूस की ‘अर्ध निजी सैन्य और सुरक्षा कंपनियों’ (PMC) के विपरीत, जो आमतौर पर खुफ़िया सैन्य अभियानों में शामिल होती रही हैं, चीन की निजी सुरक्षा कंपनियां कहीं अधिक लक्ष्य-उन्मुखी हैं और उनका मक़सद चीन की सेना, यानी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की तैनाती के बिना BRI प्रोजेक्ट को सुरक्षा देना है.
पाकिस्तान से लेकर उप-सहारा अफ्रीका तक चीनी परियोजनाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा और म्यांमार में चल रहे गृह युद्ध ने PSC की भूमिका को बढ़ा दिया है. इस कारण चीन पेशेवर रुख़ अपनाने और निगरानी में सख़्ती बरतने को मजबूर हुआ है. मॉस्को की ‘कलाश्निकोव कूटनीति’ के विपरीत, चीन की PSC नीति नियमों से काफ़ी हद तक बंधी हुई है और इसे एक सहनशील सुरक्षा औजार के रूप में तैयार किया गया है. यह BRI और वैश्विक सुरक्षा पहल (GSI) के द्वारा हासिल की जाने वाली उसकी व्यापक भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के भी अनुकूल है, जो टकराव के बजाय स्थिरता के माध्यम से प्रभाव जमाने की बीजिंग की सोच को आगे बढ़ाती है.
यह पहले ही कहा जा चुका है कि साल 2025 में वैश्विक असुरक्षा में तेजी आएगी और चीन के नजदीकी पड़ोसी देश लगातार अस्थिर होते भी जा रहे हैं. यह म्यांमार में काफ़ी स्पष्ट दिखता है, जहां संघर्ष बढ़ रहा है और अर्थव्यवस्था का गिरना जारी है.
यह पहले ही कहा जा चुका है कि साल 2025 में वैश्विक असुरक्षा में तेजी आएगी और चीन के नजदीकी पड़ोसी देश लगातार अस्थिर होते भी जा रहे हैं. यह म्यांमार में काफ़ी स्पष्ट दिखता है, जहां संघर्ष बढ़ रहा है और अर्थव्यवस्था का गिरना जारी है. हाल के वर्षों में, बीजिंग ने यहां कुछ प्रमुख निवेशों पर रोक लगा दी है. शायद वह यहां BRI के विस्तार को खतरे में डालने से पहले स्थिरता की झलक देखना चाहता है. जैसे-जैसे यहां हालात बिगड़ रहे हैं, BRI को लेकर मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. कभी इन परियोजनाओं को चीन के वैश्विक वर्चस्व का प्रतीक माना जाता था, लेकिन अब ये अस्थिर भू-राजनीति जैसी चुनौतियों का सामना कर रही हैं. इससे इनके भविष्य और दुनिया भर में बीजिंग के प्रभाव का नया रूप देखने को मिल सकता है.
चीन के दो प्रमुख आर्थिक गलियारों में से एक म्यांमार से ही गुजरता है. यह करीब 15 अरब डॉलर का चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा (CMEC) है, जबकि दूसरा है, 62 अरब अमेरिकी डॉलर का चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC). दोनों गलियारों को लेकर जो ख़बरें आई हैं, वे बताती हैं कि बीजिंग अपने निवेश और नागरिकों की सुरक्षा के लिए निजी सुरक्षा कंपनियों की तैनाती को उत्सुक है. हालांकि, इस ख़बर ने संदेह और नाराजगी, दोनों पैदा किए हैं. आलोचकों का तर्क है कि इससे या तो राष्ट्र की संप्रभुता कमज़ोर हुई है या इसे ऐसा तैयार किया गया है कि वह इसका सीधा उल्लंघन करेगी. रिपोर्ट बताती हैं कि चीन की निजी सुरक्षा कंपनियां पहले से ही म्यांमार में काम कर रही हैं, फिर भी म्यांमार की सैन्य जुंटा सरकार और चीन की निजी सुरक्षा कंपनी के बीच एक संयुक्त सुरक्षा कंपनी बनाने को लेकर बहुचर्चित समझौता हुआ है, जो इनके कामों के पैमाने व दायरों को बढ़ाने का काम करेगी.
बीजिंग जहां चीन के कर्मचारियों और निवेशों की सुरक्षा के लिए सीधे दख़ल के गुण-दोष का बार-बार आकलन करता रहता है, वहीं उसकी निजी सुरक्षा कंपनियां दूसरे देशों में चीन के हितों की रक्षा करने और ऐसे क्षेत्रों में सुरक्षा क्षमताओं को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती हैं, जिसके निजी और सरकारी होने की रेखा शायद ही कभी स्पष्ट होती हैं. चूंकि बीजिंग सीधे दख़ल न देने की अपनी नीति को आगे बढ़ाता है, इसलिए म्यांमार के बिगड़े हालात से वहां चल रही परियोजनाएं और क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने को लेकर चीन की व्यापक भू-राजनीतिक सोच, दोनों पर खतरा बढ़ जाता है.
म्यांमार में CMEC और चीन की अन्य व्यापारिक गतिविधियों को लेकर उपजा विवाद बढ़ते संघर्ष के प्रति चीन की संवेदनशीलता को उजागर करता है और चल रहे गृह युद्ध को लेकर उसकी समझ स्पष्ट करता है. चीन-म्यांमार संबंधों के विशेषज्ञ पास्कल एब के मुताबिक, तख़्ता-पलट के बाद हुई संघर्ष की शुरुआत से पहले ही CMEC एक महत्वाकांक्षी और विवादास्पद परियोजना मानी जा रही थी. चीन-विरोध की भावना के जोर पकड़ने के बाद इस परियोजना को म्यांमार की राजनीति में उन दरारों से टकराना पड़ा है, जो गहरी जड़ें जमाई हुई हैं. इनमें पहली दरार है- बामर प्रभुत्व वाली केंद्रीय सरकार और अल्पसंख्यक क्षेत्रों के बीच लंबे समय से चल रहा तनाव, और दूसरी- नागरिकों व सेना में सत्ता पाने की जंग, जिसका नतीजा 2021 में तख़्ता-पलट के रूप में निकला था. जिस तरह CPEC को लेकर ग्वादर बंदरगाह के आसपास चीन के विरोध में हिंसा भड़की, उसी तरह CMEC में क्याउकफ्यू बंदरगाह विभिन्न पक्षों के बीच परियोजना और राजस्व नियंत्रण को लेकर जोर-आजमाइश का केंद्र बन गया है. इससे यहां कई तरह की मुश्किलें खड़ी हो गई हैं. एक तो म्यांमार की स्थिति पहले से ही जटिल है, जहां स्थानीय विद्रोही लड़ाकों की एक बड़ी संख्या चीन के साथ लगी मुख्य सीमा को नियंत्रित कर रही है और फिर, कई आपराधिक संगठनों का भी जन्म हो गया है, जिनमें चीनी लोग बतौर नागरिक शामिल भी हैं और पीड़ित भी.
पाकिस्तान की तरह, जहां आधिकारिक तौर पर चीन की निजी सुरक्षा कंपनियों के पूर्ण स्वामित्व की किसी भी संभावना से इंकार किया जाता रहा है, चीनी निजी सुरक्षा कंपनियां म्यांमार में पहले से ही सक्रिय हैं.
पाकिस्तान की तरह, जहां आधिकारिक तौर पर चीन की निजी सुरक्षा कंपनियों के पूर्ण स्वामित्व की किसी भी संभावना से इंकार किया जाता रहा है, चीनी निजी सुरक्षा कंपनियां म्यांमार में पहले से ही सक्रिय हैं. अलबत्ता, यहां सैन्य जुंटा खुले तौर पर चीनी सुरक्षा कंपनी की उपस्थिति का समर्थन करते हैं और चीनी कंपनी के साथ साझा सुरक्षा कंपनी की स्थापना को तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं. यह प्रस्तावित निजी सुरक्षा संयुक्त उद्यम दो उद्देश्यों को पूरा करता है- पहला, कुछ भी गलत होने पर चीन सार्वजनिक तौर पर इंकार कर सकने में सक्षम होगा, जबकि दूसरा, म्यांमार में सैन्य जुंटा यह दावा करके अपना चेहरा बचा सकेंगे कि किसी विदेशी संस्था को म्यांमार की संप्रभुता से खेलने की इजाज़त नहीं दी गई है. चीनी राज्य युन्नान के नजदीक मौजूद कनुमिंग म्यांमार और सीमावर्ती क्षेत्रों में सक्रिय चीनी PSC के लिए पसंदीदा ‘लॉन्च प्वाइंट’ बन गया है.
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि चीन में प्रांतीय स्तर पर स्थानीय सरकारें एक भरोसेमंद, बेहतर प्रदर्शन करने वाले निजी सुरक्षा बल के गठन और प्रबंधन को प्रोत्साहित करती रही हैं. फिर भी, चीनी निजी सुरक्षा क्षेत्र के विकास की निगरानी करने वाले सबसे हालिया नियम, जो जून 2024 से लागू हुआ है, अब भी चीनी PSC को लेकर अपेक्षित दिशा-निर्देश नहीं देता और यह स्पष्ट नहीं करता कि विदेशों में काम करते समय सशस्त्र कर्मियों को तैनात करना है या नहीं, और अगर करना है, तो कैसे करना है? चीनी निजी सुरक्षा कंपनियों का विकास 1990 के दशक में प्रतिबंधात्मक कानूनों के साथ हुआ है, जब देंग शियाओपिंग ने चीन के आर्थिक विस्तार को गति देने के लिए इनको लाइसेंस देना शुरू किया. शुरुआत में केवल सेना व पुलिस के सेवानिवृत्त कर्मी ही ऐसी कंपनी बना सकते थे और निजी सुरक्षा अधिकारियों को हथियार रखने की मनाही थी. 2009 के एक कानूनी संशोधन से इसका विस्तार किया गया और नकदी व कीमती सामान की सुरक्षा के लिए इन अधिकारियों को हथियार रखने की अनुमति दी गई. साथ ही, ऐसी कंपनी बनाने के लिए पूर्व सुरक्षा अधिकारी होने की शर्त भी हटा दी गई. फिर भी, चीन की ज्यादातर निजी सुरक्षा कंपनियों में सेवानिवृत्त सैन्य व पुलिस कर्मियों का दबदबा बना हुआ है.
साल 2013 में BRI की शुरुआत होने के बाद से, अपने बढ़ते वैश्विक प्रभाव को बनाए रखने के लिए चीन के सामने सुरक्षा मांग बढ़ गई है. विदेशों में चीनी निवेश में बढ़ोतरी ने स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय निजी सुरक्षा कंपनियों पर उसकी निर्भरता बढ़ा दी है.
साल 2013 में BRI की शुरुआत होने के बाद से, अपने बढ़ते वैश्विक प्रभाव को बनाए रखने के लिए चीन के सामने सुरक्षा मांग बढ़ गई है. विदेशों में चीनी निवेश में बढ़ोतरी ने स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय निजी सुरक्षा कंपनियों पर उसकी निर्भरता बढ़ा दी है. हालांकि, चीनी निजी सुरक्षा क्षेत्र का व्यावसायिकरण एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है. चूंकि, सुरक्षा ज़रूरतों और चीन की दख़ल न देने की पुरानी नीति के बीच संतुलन बनाना मुश्किल साबित हो रहा है, इसलिए बीजिंग नियमों को सख़्त करने और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की GSI (पश्चिमी ढांचे से अलग एक नई सुरक्षा व्यवस्था बनाने की पहल) नीति के अनुकूल निजी सुरक्षा कंपनियों को संतुलित करने को प्रेरित हुआ है. इन कंपनियों की क्षमताओं को बढ़ाने के प्रयासों में शामिल है- चीनी वाणिज्य दूतावासों, संयुक्त राष्ट्र शांति सेना और बेहतर संचालन मानकों के साथ मजबूत समन्वय बनाना. हालांकि, चीनी निजी सुरक्षा कंपनियों की वास्तविक भूमिका को लेकर पश्चिम में संदेह बना हुआ है, विशेष रूप से सैन्य-नागरिक संलयन (MCF) नीति के तहत चीन द्वारा खुफ़िया जानकारी जुटाने के कथित प्रयासों को देखते हुए.
बहरहाल, इन सभी ख़तरों को कम करने के लिए चीन सख़्त निगरानी, सख़्त नियमन और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के प्रति वफादार निजी सुरक्षा कंपनियों को बढ़ावा देने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. हालांकि, क्या चीनी सुरक्षा कंपनियां विदेशों में हथियार रख सकती हैं, यह मसला नए नियम बनने के बाद भी सुलझा नहीं है. यह प्रवृत्ति पहले से ही प्रमुख क्षेत्रों में नई सुरक्षा रणनीतियां बनाने को मजबूर कर रही है, जिसका शुरुआती उदाहरण मध्य एशिया है, जहां चीनी निवेश परदे की ओट में चुपचाप काम करते हैं और उनका स्थानीय जुड़ाव भी कम है, वहीं अफ्रीका में सरकारी उद्यमों (SOE) के निवेश से मिलान करना और संकट में कमज़ोर प्रतिक्रिया कठिनाइयां पैदा करते हैं.
कुल मिलाकर, BRI का भविष्य चीन की सुरक्षा-निवेश गठजोड़ को बेहतर बनाने की क्षमता पर टिका है और म्यांमार इसका नया लिटमस टेस्ट है. यहां बहुत कुछ दांव पर है, इसलिए चीन के प्रांतीय और केंद्रीय अधिकारी यह मानते हुए PSC पर कड़ी नज़र रखते हैं कि चीन के इस ‘करीबी विदेश’ में कोई भी गलत कदम मुख्य भूमि पर अस्थिरता पैदा कर सकता है. इस ‘करीबी विदेश’ में अस्थिरता को देखते हुए चीनी निजी सुरक्षा क्षेत्र में सुधार की ज़रूरत महसूस हो रही है, जिस कारण बीजिंग एक चौराहे पर खड़ा है. सवाल यही है कि वह अपनी निजी सुरक्षा कंपनियों को पेशेवर बनाए, अन्य देशों में उसकी मौजूदगी बढ़ाए या फिर एक हाइब्रिड रणनीति अपनाए? इनमें से हर विकल्प का चीन की वैश्विक सुरक्षा स्थिति के लिहाज से गहरा अर्थ है.
(एलेसेंड्रो आर्डुइनो, किंग्स कॉलेज लंदन के लाउ चाइना इंस्टीट्यूट से जुड़े व्याख्याता हैं)
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Alessandro Arduino is an affiliate lecturer at the Lau China Institute of King's College London. ...
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