Author : Naghma Sahar

Published on Jun 17, 2019 Updated 0 Hours ago

पुलवामा जैसे हमलों के बाद अमेरिका का रुख़ भारत के पक्ष में रहा है. SCO में भारत चीन और रूस जैसे देशों के साथ है जो पश्चिमी देशों के लिए हमेशा चिंता खड़ी करते रहे हैं.

बिश्केक में मोदी: भारत के लिए ये ज़रूरी है कि वो अपने पक्ष में खड़े रहे

प्रधानमंत्री मोदी के बिश्केक दौरे को लेकर मीडिया की सबसे ज्यादा दिलचस्पी इस बात पर थी कि, क्या वहां पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कोई बातचीत होगी. शंघाई कोऑपरेशन आर्गेनाईजेशन के इस सम्मलेन के होने से पहले ही, हालांकि – ये साफ़ कर दिया गया था की भारत और पाकिस्तान के बीच किसी द्विपक्षीय मुलाक़ात की संभावना नहीं है फिर भी क़यास लगाये जा रहे थे कि क्या 2015 में उफ़ा की तरह ही अचानक से कोई मुलाक़ात या एक दूसरे को देख कर हाथ हिलाने जैसे किसी औपचारिकता की उम्मीद की जा सकती है या नहीं? दोनों के न मिलने को पीएम मोदी का इमरान को ‘ग्रेट स्नब’ कहा गया. बहरहाल दोनों का आमना सामना हुआ और एक दूसरे के साथ औपचारिकता भी साझा की गई लेकिन भारत की सरकार ने इस बात को पुरज़ोर तरीके से रखा कि इसे कोई बातचीत या मुलाक़ात न माना जाए. भारत का रुख़ बहुत साफ़ है आतंक और बातचीत एक साथ नहीं हो सकती है. भारत इसे लेकर कितना गंभीर है ये तब और साफ़ हुआ जब प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना आतंक को स्पॉन्सर करने वाले देशों को कटघरे में खड़ा किया .

भारत का रुख़ बहुत साफ़ है आतंक और बातचीत एक साथ नहीं हो सकती है.

लेकिन, SCO की अहमियत भारत के लिए पाकिस्तान से बातचीत के मौके से कहीं ज्यादा है. किरगिस्तान के राष्ट्रपति जीन्बोकोव की प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में मौजूदगी ये साफ़ कर रही थी कि भारत इस संगठन की सदस्यता को गंभीरता से ले रहा है और इस मौके को मध्य एशिया में अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए इस्तेमाल करना चाहता है. भारत और पाकिस्तान दोनों ही साल 2017 में SCO के पूर्ण सदस्य बने. भारत को SCO में शामिल करने की वकालत रूस ने की थी. 1996 में बना ये संगठन पहले शंघाई फाइव के नाम से जाना जाता था. शंघाई संगठन की ज़रुरत 1991 में इसलिए महसूस की गई थी क्यूंकि सोवियत यूनियन टूट गया था और यूरोप और एशिया क्षेत्र में नये संगठनो की ज़रूरत थी. शंघाई फाइव में मूल रूप से चीन, कज़ाखिस्तान, किर्गिस्तान, रूस और ताजीकिस्तान थे. सेंट्रल एशिया के दूसरे देश संगठन के विस्तार के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन रूस भारत को इसमें शामिल करने के पक्ष में था. इसकी एक बड़ी वजह रूस की चीन की बढती ताक़त को लेकर परेशानी थी. रूस ने जब भारत को इसमें शामिल करने की वक़ालत की तो चीन अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान को भी इसमें ले आया. अब भारत पाकिस्तान के साथ इस संगठन के आठ सदस्य देश हैं.

इस का एक बड़ा मकसद रहा है – इस इलाके में सदस्य देश के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना लेकिन अब तक सदस्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग ज्यादा नहीं रहा है. चीन ने SCO डेवलपमेंट बैंक और फ्री ट्रेड एरिया का प्रस्ताव दिया था, इसे अब तक कोई कामयाबी नहीं मिली थी. फिर भी इस क्षेत्र में आर्थिक विकास और सहयोग, सभी देशों को एक दूसरे से जोड़ना, ये SCO के पिछले शिख़र सम्मेलन का भी फोकस रहा है. इस साल बिश्केक डिक्लेरेशन के मुताबिक सदस्य देशों का लक्ष्य SCO देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाना होगा. साथ ही इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी, पर्यावरण, आतंकवाद से लड़ने में आपसी सहयोग पर ज़ोर है. हालांकि, यहां पाकिस्तान की मौजूदगी आतंक के खिलाफ़ लड़ाई और जानकारी साझा करने की बात पर सवाल खड़े करती है. चूँकि, दुनिया के कई बड़े देशों ने ये माना है कि पाकिस्तान अब भी आतंक की पनाहगाह़ बना हुआ है. एक ऐसे देश के साथ खुफ़िया जानकारी साझा करना भारत के लिए कैसे मुमकिन होगा जिसे वो आतंक का प्रायोजक मानता है, ये देखने लायक होगा.

इस साल बिश्केक डिक्लेरेशन के मुताबिक सदस्य देशों का लक्ष्य SCO देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाना होगा. साथ ही इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी, पर्यावरण, आतंकवाद से लड़ने में आपसी सहयोग पर ज़ोर है.

जहाँ तक इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी का जाल बिछाने की बात है, चीन अपने बेल्ट रोड प्रोजेक्ट का जाल इस क्षेत्र में बिछा रहा है और ज़्यादातर देशों को इस पर कोई आपत्ति नहीं है भारत को छोड़ बाक़ी तमाम देश चीन के बेल्ट रोड प्रस्ताव से सहमत हैं.

शंघाई सहयोग संगठन भारत की मध्य एशिया नीति को आगे बढाने का एक अच्छा मंच है. भारत के लिए शंघाई संगठन में शामिल होने के दो बड़े लक्ष्य हैं- पहला, इस क्षेत्र में आपसी सहयोग का जाल बिछाना, व्यापार को एक दूसरे से जोड़ने का ढांचा तैयार करना और दूसरा आतंकवाद के खिलाफ़ एकजुट होना. भारत ये चाहता है कि उसे SCO की आतंक निरोधी संस्था, रीजनल एंटी टेरर (/RATS ) से ख़ुफ़िया जानकारी मिले. भारत के लिए ये अहम इसलिए भी है क्यूंकि भारत के अमेरिका के साथ बढ़ते संबंधों से रूस और चीन की करीबी बढ़ी है, हालांकि पहले रूस की ही वजह से भारत SCO का सदस्य बना. चीन और रूस की बढ़ती दोस्ती भारत के लिए एक चुनौती है. भारत और रूस पारंपरिक तौर पर एक दूसरे के करीब रहे हैं, रूस भारत का सब से बड़ा हथियार निर्यातक रहा है लेकिन आज के दौर में अमेरिका के साथ भारत के बढ़ते संबंधों की वजह से ये स्थिति बदली है. पुलवामा जैसे हमलों के बाद अमेरिका का रुख़ भारत के पक्ष में रहा है. SCO में भारत चीन और रूस जैसे देशों के साथ है जो पश्चिमी देशों के लिए हमेशा चिंता खड़ी करते रहे हैं. चीन के साथ डोकलाम टकराव के बाद वुहान में संबंधों को पटरी पर लाने की कोशिश हुई है. अमेरिका और चीन एक दूसरे के साथ व्यापार युद्ध में उलझे हैं. ईरान परमाणु संधि से अमेरिका का बाहर आने का एकतरफ़ा फैसला और रूस-अमेरिका का कई मुद्दों पर टकराव, इन घटनाओं ने अमेरिका को भारत का पक्ष लेने के लिए मजबूर किया है.

भारत ये चाहता है कि उसे SCO की आतंक निरोधी संस्था, रीजनल एंटी टेरर (/RATS ) से ख़ुफ़िया जानकारी मिले. भारत के लिए ये अहम इसलिए भी है क्यूंकि भारत के अमेरिका के साथ बढ़ते संबंधों से रूस और चीन की करीबी बढ़ी है, हालांकि पहले रूस की ही वजह से भारत SCO का सदस्य बना.

SCO में शामिल होने से भारत का प्रभाव जो अब तक दक्षिण एशिया तक सीमित है वो उस दायरे से आगे पूरे एशिया में फैल सकता है. हालांकि, यहाँ पर भी एक आक्रामक चीन से भारत का मुकाबला है जो अपने बेल्ट रोड प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में जुटा है. ये भी अलग-अलग भू-राजनीतिक टकराव और समीकरण के खेल का मैदान होगा. भारत के लिए SCO की अहमियत “शंघाई स्पीरिट” है जो गुट निर्पेक्षता पर ज़ोर देती है, दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में दख़ल नहीं देने पर ज़ोर देती है. इसलिए ये भारत के हित में होगा कि वो अपने पक्ष में रहे. पिछले रायसीना डायलॉग के दौरान भारत के तब विदेश सचिव और अब विदेशमंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर ने बख़ूबी ये बात कही थी.. इन खेमों में बंटती दुनिया में भारत को अपने पक्ष में खड़े रहना चाहिए. “India should be on India’s side.”

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