Published on Oct 28, 2023 Updated 26 Days ago

अभी ये देखना बाक़ी है कि मालदीव, अपने नए नेतृत्व की अगुवाई में बढ़ती आर्थिक चुनौतियों से कैसे निपटता है.

राष्ट्रपति चुनाव के बाद मालदीव का तल्ख़ आर्थिक हक़ीक़त से सामना

राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करने के बाद, मालदीव के निर्वाचित राष्ट्रपति डॉक्टर मुहम्मद मुइज़्ज़ू और उनकी टीम के सामने देश की मौजूदा और आने वाले समय की बड़ी आर्थिक चुनौतियां खड़ी दिख रही हैं. ये भी हो सकता है कि इन चुनौतियों के चलते मालदीव को अपने पड़ोसी भारत के साथ सहयोग जारी रखने को मजबूर होना पड़े. चुनाव अभियान के दौरान भारत, मुइज़्ज़ू के ‘विदेशी सैनिकों को वापस भेजने’ के नकारात्मक अभियान का शिकार रहा था. इसके कारण समझने के लिए ज़्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं है. मालदीव एक वित्तीय संकट की तरफ़ बढ़ रहा है. भले ही ये संकट उतना भयानक नहीं है, जैसा पिछले साल एक और पड़ोसी देश श्रीलंका ने झेला था, लेकिन चुनौती बड़ी ज़रूर है. इससे भी बड़ी बात ये कि मालदीव के हर फ़िक्रमंद नागरिक को इस लगातार आगे बढ़ते टाइम बम का अंदाज़ा है और वो इस दौरान श्रीलंका के हालात पर लगातार नज़र बनाए हुए थे. मालदीव के नागरिकों को ये बात भी बख़ूबी मालूम है कि ये भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ की नीति ही थी, जिसने संकट के दौरान शुरू से लेकर आख़िर तक श्रीलंका की मदद की थी.

विश्व बैंक के मुताबिक़, 2023 में मालदीव की वास्तविक GDP विकास दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है. जबकि 2024 से 2025 के दौरान औसत GDP विकास दर 5.4 प्रतिशत रहने की उम्मीद है.

विश्व बैंक के मुताबिक़, मालदीव का ‘आर्थिक विकास अगले दो वर्षों के दौरान धीमा हो जाएगा, और अगर मालदीव वैश्विक आर्थिक सुस्ती के बीच महंगे क़र्ज़ लेता रहा, तो उसकी वित्तीय चुनौतियां और भी बढ़ती जाएंगी.’ विश्व बैंक के मुताबिक़, 2023 में मालदीव की वास्तविक GDP विकास दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है. जबकि 2024 से 2025 के दौरान औसत GDP विकास दर 5.4 प्रतिशत रहने की उम्मीद है. वैसे तो तेज़ी से विकसित हो रहा पर्यटन उद्योग, मध्यम अवधि में एक सकारात्मक उम्मीद जगाता है. लेकिन, विश्व बैंक ने कहा है कि दुनिया में सामान के बढ़ते दामों, पूंजीगत व्यय और सब्सिडी में बढ़ोतरी  और बजट घाटे की केंद्रीय बैंक द्वारा भरपाई के कारण मालदीव पर महंगाई का भारी दबाव है, जिससे उसके सामने बड़ी वित्तीय चुनौतियां खड़ी हो गई हैं.

विश्व बैंक ने कहा कि मालदीव का घाटा कम होने की उम्मीदों के बावजूद उसका कुल क़र्ज़ GDP के 115 प्रतिशत के बराबर रहने की आशंका है. बैंक का कहना है कि, ‘इस साल सरकार ने GST की दरों में इज़ाफ़ा किया था. लेकिन, वित्तीय स्थिति को संभालने के लिए तुरंत और ठोस क़दम उठाने की ज़रूरत है, क्योंकि 2023 में सब्सिडी कम करने प्रस्तावित सुधार अपेक्षा के मुताबिक़ हुए नहीं.’ इसीलिए विश्व बैंक चाहता है कि मालदीव की सरकार ‘राजस्व बढ़ाने के साथ साथ अपने ख़र्च पर लगाम लगाए और आसंधा स्वास्थ्य बीमा योजनाओं जैसे कार्यक्रमों को दुरुस्त करे, सरकार के मालिकाना हक़ वाली कंपनियों (SOE) को सब्सिडी कम करे, टैक्स देने वालों का दायरा बढ़ाए और घरेलू आमदनी के स्रोत बढ़ाने’ जैसे क़दम उठाए.

इन बातों का संदर्भ ये है कि विश्व बैंक ने पूर्वानुमान लगाया था कि सरकार पर क़र्ज़ के भारी बोझ का असर, आने वाली मुइज़्ज़ू सरकार के कार्यकाल में, यानी 2026 तक मालदीव के निजी क्षेत्र पर भी पड़ने लगेगा. इस वजह से 2026 में मालदीव को क़र्ज़ लेने में काफ़ी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ेगा. विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि निजी क्षेत्र पर सरकारी क़र्ज़ का असर पड़ने की एक वजह, मालदीव का कम विदेशी मुद्रा का भंडार है. 2026 में मालदीव की सरकार को 50 करोड़ मालदीवी रुपिया (अरब 7.7 MVR) का क़र्ज़ चुकाना है, जो उसने 2021 में लिया था. इसके अलावा, मालदीव की सरकार ने अबु धाबी फंड फॉर डेवलपमेंट  (ADFD) से भी 10 करोड़ डॉलर का लोन लिया है, जिसे 2026 तक चुकाना है.

सरकार के मालिकाना हक़ वाली कंपनियों को लगातार सब्सिडी देने से वित्तीय परेशानियां और बढ़ रही हैं. IMF ने कहा था कि वैसे तो मज़बूत बफ़र की मदद से मालदीव का बैंकिंग सिस्टम मज़बूत बना हुआ है.

विश्व बैंक ने कहा कि सरकारी और सरकार की गारंटी के तहत विदेश से लिए गए क़र्ज़ की रक़म 1.07 अरब डॉलर पहुंच जाएगी, जिसे 2026 तक चुकाना है. जबकि 2024 में 45 करोड़ डॉलर और 2025 में 65 करोड़ डॉलर का विदेशी उधार मालदीव को चुकाना है. विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक़, ‘सरकार पर क़र्ज़ का इतना भारी बोझ और दोबारा क़र्ज़ लेने के उससे जुड़े जोखिम, मालदीव की अर्थव्यवस्था को घरेलू और बाहरी झटकों के प्रति बेहद कमज़ोर बना देते हैं.’ बैंक ने चेतावनी दी कि बिना किसी रियायत वाला अतिरिक्त क़र्ज़ लेने पर मालदीव की अर्थव्यवस्था की स्थिति और कमज़ोर हो जाएगी.

क़र्ज़ का बढ़ता बोझ

अगर विश्व बैंक की ताज़ा रिपोर्ट ये कहती है, तो पिछले साल दिसंबर में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने कोविड महामारी के बाद मालदीव की रिकवरी की तारीफ़ करते हुए इसके लिए उठाए गए निर्णायक नीतिगत क़दमों को सराहा था. लेकिन, IMF ने ये भी कहा था कि मालदीव की वित्तीय कमज़ोरियां उच्च स्तर पर बनी हुई हैं और वित्तीय घाटा भी दोहरे अंकों में है, जो बढ़े हुए पूंजीगत व्यय, ब्याज के बढ़े हुए बोझ और तनख़्वाह देने में ख़र्च हो रही भारी रक़म की तरफ़ इशारा करता है. सरकार के मालिकाना हक़ वाली कंपनियों को लगातार सब्सिडी देने से वित्तीय परेशानियां और बढ़ रही हैं. IMF ने कहा था कि वैसे तो मज़बूत बफ़र की मदद से मालदीव का बैंकिंग सिस्टम मज़बूत बना हुआ है. लेकिन, सरकार और बैंकों के गठजोड़ की वजह से जोखिम भी बढ़ गए हैं.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इशारा किया था कि मालदीव पर ‘विदेशी क़र्ज़ के भारी बोझ और कुल क़र्ज़ की भारी रक़म के तले दबने का अंदेशा बना हुआ है…’ विदेश से और पूंजी जुटाने की कोशिश बढ़ने से पहले से ही कमज़ोर विदेशी मुद्रा भंडार पर और दबाव बढ़ेगा जिससे क़र्ज़ चुकाने की मियाद बढ़ने का ख़तरा है. डॉलर की कमी लगातार बनी हुई है, जो एक विशाल समानांतर विदेशी मुद्रा विनियम बाज़ार के रूप में दिख रही है. IMF ने एक जनवरी 2023 से GST और पर्यटन पर GST (TGST) की दरें बढ़ाने के लिए इब्राहिम सोलिह सरकार की तारीफ़ भी की थी. IMF चाहता था कि मालदीव का केंद्रीय बैंक यानी मालदीव मॉनिटरी अथॉरिटी (MMA) सरकार को जो उधार देता है, वो धीरे धीरे ख़त्म किया जाए, जिससे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा भंडार और क़ीमतों पर दबाव कम किया जा सके.

ये कहना पर्याप्त होगा कि चुनाव की वजह से वित्तीय स्थिति से ध्यान भटकने के बावजूद, मालदीव की सरकार ने अपनी वित्तीय जवाबदेही पूरी करने के लिए 2.4 अरब मालदीवी रूपिया (MVR) के बराबर सरकारी बॉन्ड (T-bills) बेचने/ जारी करने में सफलता हासिल की थी.

इसी बीच, क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच (Fitch) ने मालदीव के ‘लंबी अवधि  के विदेशी मुद्रा जारी करने में डिफॉल्ट करने (IDR) की रेटिंग B माइनस बरक़रार रखी थी.’ इससे GDP को लेकर सकारात्मक सोच ज़ाहिर होती है, जो पर्यटन उद्योग में तेज़ी से बढ़ोतरी  और मालदीव की भू-राजनीतिक और सामरिक अहमियत के कारण उसको मिलने वाली द्विपक्षीय और बहुपक्षीय वित्तीय मदद के जारी रहने का संकेत है. फिच ने कहा था कि इस बाहरी मदद से मालदीव की सरकार पर क़र्ज़ के लगातार बढ़ रहे भारी बोझ और कम विदेशी मुद्रा भंडार के बीच संतुलन बनाने में मदद मिलती है. यही नहीं, विदेशी सहायता से मालदीव को झटका लगने की जो कमज़ोरियां हैं और जिनके चलते पर्यटन उद्योग की संभावनाएं कम हो सकती हैं, उनसे पार पाने में भी मदद मिलती है.

फिच ने ये भी कहा था कि, ‘क़र्ज़ को लेकर नकारात्मक आकलन’ नक़द पूंजी उपलब्धता की कमी और बाहर से वित्तीय सहायता के जोखिमों की तरफ़ इशारा करता है, जो विदेशी क़र्ज़ चुकाने के बढ़ते दबाव, घटते विदेशी मुद्रा भंडार और मुश्किल वैश्विक हालात की वजह से डॉलर के मुक़ाबले मालदीव के रुपये  को कमज़ोर कर सकते हैं. फिच ने ये भी कहा था कि ऊर्जा और खाद्यान्न की ऊंची क़ीमतों के कारण, आयात के भारी बोझ की वजह से मालदीव का विदेशी मुद्रा भंडार काफ़ी दबाव में रहेगा और डॉलर की तुलना में मालदीव की मुद्रा को स्थिर बनाए रखने के लिए मालदीव मॉनिटरी अथॉरिटी (MMA) को विदेशी मुद्रा के बाज़ार में लगातार दख़ल देते रहना होगा.

जैसा कि फिच की रिपोर्ट ने इशारा किया कि दिसंबर 2022 में मालदीव के केंद्रीय बैंक ने भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ 20 करोड़ डॉलर के करेंसी स्वैप सुविधा का लाभ उठाते हुए 10 करोड़ डॉलर की रक़म ली थी. उसके बाद से मालदीव का कुल विदेशी मुद्रा भंडार 69.4 करोड़ डॉलर तक गिर गया है. वित्त मंत्रालय का अनुमान है कि आधिकारिक विदेशी मुद्रा भंडार इस साल दिसंबर तक 60.63 करोड़ डॉलर रह जाने का अंदाज़ा है. MMA के मुताबिक़, फौरी विदेशी क़र्ज़ चुकाने के बाद अगस्त के आख़िर में उपयोग के लायक़ विदेशी मुद्रा केवल 15 करोड़ डॉलर थी. जबकि इस साल जुलाई में ये रक़म 12.5 करोड़ डॉलर ही थी.

फिर भी, 2023 में मालदीव के पास केवल 1.1 महीने के बाहरी ख़र्च को चुकाने लायक़ विदेशी मुद्रा भंडार बचा था, जबकि B औसत के मुताबिक़ इसे कम से कम 3.5 महीने के संभावित ख़र्च के बराबर रहना चाहिए था. हालांकि, एक सकारात्मक पहलू की तरफ़ इशारा करते हुए रेटिंग एजेंसी फिच ने कहा था कि 2023 में मालदीव में विदेशी पर्यटकों की आमद 19 लाख तक पहुंचने की संभावना है, जो कोविड से पहले के साल यानी 2019 की तुलना में 11.6 प्रतिशत अधिक है, जिससे 2023 में आर्थिक विकास की दर 7.2 प्रतिशत और उसके बाद के दो वित्तीय वर्षों में औसतन 6.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है. ये कहना पर्याप्त होगा कि चुनाव की वजह से वित्तीय स्थिति से ध्यान भटकने के बावजूद, मालदीव की सरकार ने अपनी वित्तीय जवाबदेही पूरी करने के लिए 2.4 अरब मालदीवी रूपिया (MVR) के बराबर सरकारी बॉन्ड (T-bills) बेचने/ जारी करने में सफलता हासिल की थी. वित्त मंत्रालय के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि सरकार T-bills और बॉन्ड बेचकर सरकार ने लगभग 76 अरब MVR का क़र्ज़ ले रखा है.

औक़ात से ज़्यादा उधार पर जीवन

अगर हम घुमा-फिराकर बात करने के बजाय, सपाट शब्दों में कहें तो मालदीव की सरकार अपनी औक़ात से ज़्यादा ख़र्च कर रही थी. उन्होंने कहा कि सरकार का लगातार बढ़ता ख़र्च और पूंजीगत व्यय या तो भारत और चीन जैसे देशों से बाहरी क़र्ज़ लेकर पूरा किया जा रहा था, या फिर घर में घाटे की अर्थव्यवस्था संचालित करके. घरेलू स्तर पर सरकार, बैंक  सेक्टर को ऊंची ब्याज दरों पर कम अवधि के बॉन्ड या ट्रेज़री बिल जारी करके रक़म उगाही कर रही थी, या फिर ज़्यादा रुपये  प्रिंट करके, या फिर दोनों माध्यमों से.

वैसे तो मुइज़्ज़ू सरकार से ये अपेक्षा की जा सकती है कि वो मौजूदा क़र्ज़ों को चुकाने की मियाद बढ़ाने के लिए चीन और भारत से गुज़ारिश करेगी. फिर भी उसे विकास की नई परियोजनाओं के लिए बाहरी पूंजी की ज़रूरत पड़ेगी. क्योंकि इन परियोजनाओं से सरकार के लिए संपत्ति निर्मित होती है और रोज़गार सृजन से अर्थव्यवस्था के विकास की गति बनी रहती है. तीसरी दुनिया के देशों में विकास में साझीदार के तौर पर भारत का रिकॉर्ड चीन से काफ़ी बेहतर रहा है. क्योंकि चीन पूंजी निवेश के साथ साथ मज़दूर भी अपने देश से ही लाता है. इस वजह से स्थानीय आबादी रोज़गार और पारिवारिक आमदनी से महरूम हो जाती है.

मालदीव को भारत से लगातार आर्थिक मदद की ज़रूरत है. वहीं, भारत को आपसी सहमति के साथ मालदीव से सामरिक सुरक्षा सहयोग की आवश्यकता है.

फिर भी, मालदीव की सरकार को लगातार बढ़ते व्यय को पूरा करने के लिए वित्तीय पूंजी जुटाने के दूसरे स्रोतों का सहारा लेना पड़ सकता है. विश्व बैंक और IMF इसका सबसे अच्छा विकल्प माने जाते हैं. हालांकि, तीसरी दुनिया के देशों में ये दोनों संगठन लोकप्रिय नहीं हैं. क्योंकि, दोनों ही क़र्ज़ देने से पहले जनता पर टैक्स और दूसरी सेवाओं की दरें बढ़ाने की मांग करते हैं, जिसे संबंधित देश के आम लोग बिल्कुल पसंद नहीं करते. इसीलिए, दोस्त देशों से पूंजीगत व्यय के लिए उधार मांगना एक विकल्प है. मालदीव में लोकतंत्र की स्थापना से पहले के दौर में ये एक विकल्प हुआ करता था. इस मामले में भी चीन के मुक़ाबले ख़ास तौर से मालदीव के मामले में भारत का ट्रैक रिकॉर्ड बहुत अच्छा रहा है.

हालांकि, नई सरकार के नेतृत्व में ये सारा मामला किस दिशा में आगे बढ़ता है, वो आगे चलकर देखना पड़ेगा. क्योंकि, आगामी सरकार के नेता मुइज़्ज़ू अपने पूरे चुनाव अभियान के दौरान भारत का नाम लिए बग़ैर उस पर ये कहकर हमला करते रहे हैं कि वो मालदीव की धरती से ‘हर विदेशी सैनिक को निकाल बाहर’ करेंगे. वैसे तो मुइज़्ज़ू की चुनावी जीत पर उनको सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया के ज़रिए बधाई दी थी. चुनाव के बाद, मालदीव में भारत के उच्चायुक्त मुनु मुहावर ने प्रधानमंत्री मोदी की तरफ़ से एक चिट्ठी भी मुइज़्ज़ू से मिलकर उनको दी थी. वहीं, मुइज़्ज़ू के पीपीएम-पीएनसी गठबंधन ने इस मुलाक़ात को ‘उपयोगी’ बताया था और कहा था इस दौरान ‘आपसी रिश्तों को और मज़बूत बनाने पर चर्चा हुई’. इस बात को, भविष्य में दोनों देशों के आपसी संबंध को लेकर उम्मीद का आधार बनाया जा रहा है, क्योंकि मालदीव को भारत से लगातार आर्थिक मदद की ज़रूरत है. वहीं, भारत को आपसी सहमति के साथ मालदीव से सामरिक सुरक्षा सहयोग की आवश्यकता है. ख़बरों के मुताबिक़, भारत के उच्चायुक्त ने मुइज़्ज़ू से मुलाक़ात में ‘विदेशी सैनिक’ मसले को निर्वाचित राष्ट्रपति और उनकी आगामी सरकार की ‘तसल्ली’ के मुताबिक़ सुलझाने का वादा किया है.

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