Published on Jun 20, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत में लैंगिक असमानता से निपटने के लिए सरकार को ज़्यादा बारीकी वाली जेंडर-रिस्पॉन्सिव (लैंगिक रूप से प्रतिसंवेदी) बजटिंग अपनाने की ज़रूरत है.

नामीबिया से सबक : क्या भारत में जेंडर से जुड़े लैंगिक बजट की ‘जांच-परख’ कर उसके सुधार की सख़्त ज़रूरत है?

भारत में जेंडर-रिस्पॉन्सिव बजटिंग की शुरुआत 2001 से हुई. 2003 में, भारत सरकार ने सुझाया कि सभी मंत्रालय और विभाग अपनी-अपनी वार्षिक रिपोर्ट में एक खंड लैंगिक मुद्दों पर शामिल करें. 2004 में, सरकारी लेनदेन को वर्गीकृत करने तथा ‘जेंडर बजटिंग की व्यवहार्यता को जांचने और इसके लिए सामान्य तौर-तरीक़ा सुझाने’ के लिए एक विशेषज्ञ समूह गठित किया गया. 1 जनवरी 2005 तक, सभी विभागों और मंत्रालयों को वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के दिशानिर्देशों के मुताबिक़ जेंडर बजटिंग सेल गठित करने का निर्देश दिया गया.

2005 में, वित्त मंत्रालय ने वार्षिक बजट सर्कुलर के तहत जेंडर बजटिंग पर अपना पहला नोट जारी किया. भारत में जेंडर बजट स्टेटमेंट के दो हिस्से हैं :

बजट के भाग ए में महिला-विनिर्दिष्ट योजनाएं शामिल होती हैं, जो 100 फ़ीसद आवंटन महिलाओं के लिए मुहैया कराती हैं (पोषण 2.0 जैसी योजनाएं).

बजट के भाग बी में महिला-समर्थक योजनाएं शामिल होती हैं, जो महिलाओं के लिए कम से कम 30 फ़ीसद से लेकर 99 फ़ीसद तक आवंटन मुहैया कराती हैं (समग्र शिक्षा जैसी योजनाएं).

बाद में, वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने 8 मार्च 2007 को जेंडर बजट सेल (जीबीसी) के कामकाज को स्पष्ट करते हुए उनके लिए दिशानिर्देश तय किये. जेंडर बजटिंग योजना को क्षमता निर्माण की राह आसान बनाने और अनुसंधान को समर्थन देने, जेंडर के चश्मे से बजट का सूत्रीकरण करने और प्रक्रियाओं को लागू करने, राज्य सरकारों और सरकारी एजेंसियों को इस योजना का इस्तेमाल करने की अनुमति देने के लिए शुरू किया गया. बाद में 2013 में, जेंडर बजटिंग को संस्थाबद्ध करने की दिशा में रोडमैप को स्पष्ट करने के लिए सभी राज्यों को एक दिशा-निर्देशावली जारी की गयी.

जेंडर बजटिंग योजना को क्षमता निर्माण की राह आसान बनाने और अनुसंधान को समर्थन देने, जेंडर के चश्मे से बजट का सूत्रीकरण करने और प्रक्रियाओं को लागू करने, राज्य सरकारों और सरकारी एजेंसियों को इस योजना का इस्तेमाल करने की अनुमति देने के लिए शुरू किया गया.

2015-16 तक, 56 मंत्रालय और विभाग जेंडर बजटिंग सेल गठित कर चुके हैं, लेकिन पिछले पांच सालों से भारत की जेंडर बजटिंग 5 फ़ीसद के नीचे रही है. 2022 में आये बहु-प्रतीक्षित जेंडर बजट में भी कुछ गिरावट देखने को मिली. बीते साल के 4.4 फ़ीसद के मुक़ाबले यह इस साल केंद्रीय बजट का 4.3 फ़ीसद ही रह गया. हालांकि, धनराशि के लिहाज़ से बजट बढ़ा है, पर कुल केंद्रीय बजट के प्रतिशत के हिसाब से यह कम हुआ है. 2021 में जेंडर बजट के लिए आवंटित राशि 19.7 अरब अमेरिकी डॉलर थी, जो 11 फ़ीसद बढ़कर 22.05 अरब अमेरिकी डॉलर हो गयी है. महिला-विनिर्दिष्ट योजनाओं वाले भाग ए के लिए 3.45 अरब डॉलर आवंटित किये गये हैं. यह बीते साल के 3.25 अरब डॉलर से 6 फ़ीसद ज़्यादा है. महिला-समर्थक योजनाओं (जिनका प्राथमिक फोकस महिलाओं पर होता है) वाले भाग बी के लिए 18.6 अरब डॉलर आवंटित किये गये हैं, जो कुल जेंडर बजट का 84 फ़ीसद है. बजट के इस खंड में बीते साल के 16.6 अरब डॉलर के मुक़ाबले 12 फ़ीसद की वृद्धि देखने को मिली है. 2020 में, वैश्विक महामारी से पहले जेंडर बजट केंद्रीय बजट का 4.72 फ़ीसद था.

समाज में मौजूद बड़ी विभाजक दरारों को महामारी सामने ले लायी है. इसने स्पष्ट किया है कि भले ही महिलाएं देश की आबादी में 48 फ़ीसद की हिस्सेदारी रखती हों, पर महामारी की सबसे ज़्यादा मार उन्हें ही झेलनी पड़ रही है. इसके बावजूद, डिजिटल साक्षरता, कौशल प्रशिक्षण, और महिलाओं के ख़िलाफ़ घरेलू हिंसा जैसे क्षेत्रों को बजट का केवल दो फ़ीसद मिला है.

नामीबिया से क्या सीखा जा सकता है

उप-सहारा क्षेत्र के देश, नामीबिया ने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर इंडेक्स 2021 रिपोर्ट में छठा स्थान हासिल किया. इसके ठीक बाद रवांडा है. केवल यही दो देश हैं जिन्होंने शीर्ष 10 देशों की सूची में जगह बनायी है. मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में भारत 131वें स्थान पर है और नामीबिया 130वें, लेकिन भारत के 83.3 फ़ीसद की तुलना में नामीबिया का 91.7 फ़ीसद क़ानूनी ढांचा एसडीजी सूचकों के तहत लैंगिक समानता को प्रोत्साहित, लागू और निगरानी करता है.

1990 में दक्षिण अफ्रीका से आज़ादी के बाद, नामीबिया की सरकार ने 1997 में, पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता दूर करने के लिए नेशनल जेंडर पॉलिसी (एनजीपी) और नेशनल प्लान ऑफ एक्शन (एनपीएसी) को अपनाया, जिसे 1998 में अनुमोदित किया गया. तब से नामीबियाई सरकार ने लंबा रास्ता तय किया है और उसने नेशनल जेंडर पॉलिसी (2010-2020) और एनपीएसी को लागू किये जाने के बाद से हर कार्यालय/मंत्रालय/एजेंसी में जेंडर सेल का गठन किया है. 2014-15 में, संसद में महिलाओं की संख्या में ख़ासी बढ़ोतरी हुई – यह कुल सांसदों के 25 फ़ीसद से बढ़कर 47 फ़ीसद हो गयी. इसके अलावा, राजनीतिज्ञों को लैंगिक संवेदनशीलता को लेकर प्रशिक्षित किया गया; लैंगिक नज़रिये से संसदीय बहसों में वृद्धि हुई; और नामीबियाई सरकार ने 2022 में अपने वार्षिक बजट के लिए जेंडर रिस्पॉन्सिव बजटिंग के वास्ते 5.4 अरब नामीबियाई डॉलर प्रदान किये हैं, जो कुल बजट के 9.2 फ़ीसद के बराबर है.

2014-15 में, संसद में महिलाओं की संख्या में ख़ासी बढ़ोतरी हुई – यह कुल सांसदों के 25 फ़ीसद से बढ़कर 47 फ़ीसद हो गयी. इसके अलावा, राजनीतिज्ञों को लैंगिक संवेदनशीलता को लेकर प्रशिक्षित किया गया; लैंगिक नज़रिये से संसदीय बहसों में वृद्धि हुई; और नामीबियाई सरकार ने 2022 में अपने वार्षिक बजट के लिए जेंडर रिस्पॉन्सिव बजटिंग के वास्ते 5.4 अरब नामीबियाई डॉलर प्रदान किये हैं, जो कुल बजट के 9.2 फ़ीसद के बराबर है.

2015 में, नामीबिया का लैंगिक समानता एवं बाल कल्याण मंत्रालय (एमजीईसीडब्ल्यू) जेंडर रिस्पॉन्सिव बजटिंग (जीआरबी) के दिशानिर्देश लेकर आया. ये दिशानिर्देश उन मौजूदा लैंगिक असमानता चुनौतियों को उजागर करते हैं जिनका नामीबिया सामना कर रहा है. इनमें शामिल हैं : किशोरावस्था में गर्भधारण, लिंग-आधारित हिंसा, गरीबी का उच्च स्तर ख़ासकर युवा महिलाओं के बीच, और जेंडर कार्यक्रमों के लिए अपर्याप्त वित्तपोषण. ये दिशानिर्देश चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए नीतिगत समाधानों को भी सूचीबद्ध करते हैं, जैसे कि जेंडर-विनिर्दिष्ट ख़र्च को अपनाना जो लोक सेवाओं में लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है, जेंडर आधारित बजट विश्लेषण करना, और जेंडर रिस्पॉन्सिव बजटिंग के लिए संसद के लिए ट्रैकिंग टूल विकसित करना. 

नामीबिया में जेंडर रिस्पॉन्सिव बजटिंग के तरीक़े  

नामीबिया में जीआरबी के लिए दो मुख्य तरीक़े अपनाये जाते हैं :

  • तीन श्रेणियों में ख़र्च का तरीक़ा:
  • जेंडर-विनिर्दिष्ट ख़र्च: ऐसे कार्यक्रमों के लिए आवंटन जो विनिर्दिष्ट तौर पर महिलाओं, पुरुषों, लड़कियों, और लड़कों के समूहों को लक्षित करते हैं. इनमें मातृ स्वास्थ्य, लड़कियों की शिक्षा, सूक्ष्म-ऋण, महिलाओं के लिए आमदनी पैदा करने वाली गतिविधियां शामिल हैं.
  • लोक सेवाओं में लैंगिक समता को बढ़ावा देने वाले ख़र्च: इसमें सरकारी विभागों और प्राधिकरणों में रोज़गार के समान अवसर के लिए आवंटन शामिल हैं.
  • साधारण या मुख्यधारा के ख़र्च: इस श्रेणी का फोकस महिलाओं, पुरुषों, लड़कियों, और लड़कों पर अतिरिक्त प्रभाव (डिफरेंशियल इम्पैक्ट) पर होता है. इसके तहत वो सारे ख़र्च आते हैं, जो ऊपर की दो श्रेणियों में शामिल नहीं होते. इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा, खनन और रक्षा पर ख़र्च शामिल हैं.

  • जेंडर रिस्पॉन्सिव बजटिंग के लिए पांच चरणों वाला तरीक़ा
  • महिलाओं व पुरुषों, लड़के व लड़कियों की स्थिति का विश्लेषण: यह जेंडर आधारित ज़रूरतों का विश्लेषण करता है और उसका इस्तेमाल योजना बनाने तथा कार्यक्रमों को डिज़ाइन करने में करता है.
  • नीतिगत ढांचे का जेंडर आधारित विश्लेषण: यह चरण नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों को यह तय करने के लिए जांचता है कि क्या वे पहले चरण में चिह्नित किये गये समूहों की ज़रूरतों को पूरा करते हैं.
  • बजट का जेंडर आधारित विश्लेषण: नीतिगत उद्देश्यों और लक्षित समूहों की प्राथमिकता वाली ज़रूरतों के अनुरूप आवश्यक राजस्व और ख़र्च का विश्लेषण इस चरण के तहत आता है.
  • बजट लागू किये जाने की निगरानी: इसके तहत वो उपाय करना शामिल है कि नियोजित बजट के मुताबिक़ ख़र्च किया जाए.
  • नीति और संबंधित बजट के जेंडर आधारित असर का आकलन: यह मूल्यांकन का चरण है जहां असर को जांचा जाता है. लक्षित समूहों की ज़रूरतों को नीतिगत उद्देश्य पूरा कर रहे हैं या नहीं, इसे समझने के लिए यह आवश्यक है.

एनडीपी (नेशनल डेवलपमेंट प्लान) 5, 2017-22 के मुताबिक़, सरकार की योजना जीआरबी दिशानिर्देशों को सभी कार्यालयों/मंत्रालयों/एजेंसियों में समाविष्ट करने की है. एनजीपी को लागू करने के लिए समन्वय कार्यप्रणाली काम करने लगी है, एमजीईसीडब्ल्यू की योजना जेंडर-आधारित हिंसा (जीबीवी) को 2015 के 33 फ़ीसद से घटाकर 20 फ़ीसद करना है. इसके अलावा, नामीबिया के 10 कार्यालय/मंत्रालय/एजेंसियां जेंडर के चश्मे से अपने बजट का विश्लेषण कर चुके हैं, जो कुल बजट आवंटन का लगभग 70 फ़ीसद है. इस विश्लेषण में सामने आया कि 10 कार्यालय/मंत्रालय/एजेंसियों में से नौ जीआरबी को लागू कर रहे हैं.

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा एक ऐसा ढांचा तैयार करने के उपाय किये जा सकते हैं, जो योजना निर्माण, समन्वय, निगरानी और पहलकदमियों की प्रगति का मूल्यांकन सुनिश्चित करे तथा आकलन करे कि क्या उद्देश्य पूरे हो रहे हैं या नहीं.

लैंगिक असमानता भारत के विकास की राह में एक बड़ा व्यवधान बनी हुई है. इसके लिए बारीकी भरा ऐसा तरीक़ा अपनाने की ज़रूरत है जो जीआरबी को मुख्यधारा में लाकर और नामीबिया की नीतिगत पहलकदमियों से सबक लेकर मौजूदा समय और भविष्य में कमज़ोर समूहों की ज़रूरतों व चुनौतियों को पूरा करे. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा एक ऐसा ढांचा तैयार करने के उपाय किये जा सकते हैं, जो योजना निर्माण, समन्वय, निगरानी और पहलकदमियों की प्रगति का मूल्यांकन सुनिश्चित करे तथा आकलन करे कि क्या उद्देश्य पूरे हो रहे हैं या नहीं. देश भर में प्रशासनों को अपने कर्मियों को लैंगिक संवेदनशीलता, आय सृजन आसान बनाने वाले संसाधनों, और फंड के आवंटन को लेकर प्रशिक्षित करना होगा. समावेशी और टिकाऊ विकास हासिल करने के लिए सभी स्तरों पर मंत्रालयों के बीच भागीदारी और समन्वय शुरू करना होगा.

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