2021 में जापान के रक्षा श्वेत पत्र के कवर पर पूरी तरह युद्ध के कवच में घोड़े पर सवार, सख़्त और डरावने सामुराई (जापानी योद्धा) को दिखाया गया. इस साल सामुराई की जगह नीले मैदान में एक उदार, लगभग काल्पनिक कला संग्रह को दिखाया गया. ये अजीब बात है कि जापान का नवीनतम सामरिक दस्तावेज़ सौंदर्यशास्त्र पर एक टिप्पणी के साथ शुरू हो. लेकिन इसके बावजूद 2021 में एक लड़ाकू सामुराई को कवर पर रखना विवादों के केंद्र में था क्योंकि कुछ लोगों ने इसे ‘सैन्यवाद’ की तरफ़ जापान की वापसी के प्रतीक से जोड़ दिया था. इस साल के जापान के रक्षा श्वेत पत्र के लिए कम स्पष्ट और सुरक्षित कवर की पसंद को लेकर कोई कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र है. कवर के डिज़ाइन और रंगों की पसंद को लेकर लोगों का विचार चाहे जो भी हो लेकिन जापान के रक्षा योजनाकारों ने जापान की सुरक्षा चुनौतियों को लेकर एक व्यापक दृष्टिकोण सामने रख दिया है. एक सरसरी निगाह डालने से उस चीज़ के बारे में पता चलता है कि जो जापान के नीति निर्माताओं को रात में भी सोने नहीं देती: सैन्य आधुनिकीकरण की तरफ़ चीन का अभियान. चीन का बेहद शेखी बघारने वाला “नागरिक-सैन्य एकीकरण” कार्यक्रम, जिसका उद्देश्य एशिया की महाशक्ति के नागरिक क्षेत्र के उत्पादन और इनोवेशन के ठिकानों को सैन्य प्राथमिकता के साथ मिलाना है, जापान के लिए विशेष रूप से चिंता का केंद्र बिंदु बना हुआ है. “विश्व स्तरीय सेना” बनने की राह में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी आधुनिक तकनीकों को मिलाकर “बौद्धिक” युद्ध छेड़ने की चीन की महत्वाकांक्षा जापान के लिए गहरी चिंता बनी हुई है.
चीन का बेहद शेखी बघारने वाला “नागरिक-सैन्य एकीकरण” कार्यक्रम, जिसका उद्देश्य एशिया की महाशक्ति के नागरिक क्षेत्र के उत्पादन और इनोवेशन के ठिकानों को सैन्य प्राथमिकता के साथ मिलाना है, जापान के लिए विशेष रूप से चिंता का केंद्र बिंदु बना हुआ है.
जापान ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को भी बढ़ती बेचैनी के साथ देखा है. प्रधानमंत्री किशिदा के इस दृढ़ विश्वास कि “आज जो यूक्रेन के साथ हुआ है वो कल पूर्वी एशिया के साथ हो सकता है” को दिखाते हुए रक्षा श्वेत पत्र में उस व्यापक डर की रूप-रेखा खींची गई है कि क्षेत्रीय प्रभुत्व और अंतर्राष्ट्रीय यथास्थिति का उल्लंघन आने वाले वर्षों में निराशाजनक रूप से आम घटनाएं हो सकती हैं. उत्तर कोरिया जापान के लिए इस भू-राजनीतिक ख़तरे की तीसरी कड़ी है. 2022 में उत्तर कोरिया का प्रकट रूप से कभी न ख़त्म होने वाला मिसाइल टेस्ट स्पष्ट रूप से ये संदेश देता है कि उसका बड़ा परमाणु भंडार काफ़ी आधुनिक हो रहा है.
जापान की रणनीति
जापान की रणनीति तीन तरह की है: जापान की रक्षा क्षमताओं का विस्तार करके किसी भी तरह के आक्रमण को रोकना; अमेरिका और जापान के गठबंधन को बढ़ाना; और इंडो-पैसिफिक में दूसरे देशों के साथ ज़्यादा सहयोग पर ज़ोर देना. हर रणनीति पर समान रूप से ध्यान देना होगा.
इस रणनीति की शुरुआत करते हुए जापान के प्रधानमंत्री किशिदा की पार्टी ने आख़िरकार रक्षा खर्च में बढ़ोतरी का समर्थन किया है. जापान की कैबिनेट ने अगले पांच वर्षों में रक्षा खर्च को दोगुना करने को मंज़ूरी दी है. ये ऐसा क़दम है जिसकी वजह से अमेरिका और चीन के बाद जापान विश्व में रक्षा पर खर्च करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश बन जाएगा. जापान में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा विशिष्ट वर्ग, जो कि कासुमिगासेकी (जहां जापान के ज़्यादातर मंत्रालय स्थित हैं) और कांतेई (जापान के प्रधानमंत्री का निवास) में मौजूद है, के पास इस बढ़ी हुई फंडिंग के लिए योजना है. पहली योजना ये है कि जापान के दक्षिणी द्वीप श्रृंखला पर कई सारी नई सैन्य सुविधाएं स्थापित कर सशस्त्र बलों ने अपनी सामरिक ताक़त दक्षिण-पूर्व की तरफ़ लगा दी है. उनका उद्देश्य स्पष्ट है. नक्शे पर एक नज़र डालने से पता चलता है कि ताइवान और चीन समुद्री सीमा के हिसाब से जापान के बिल्कुल बग़ल में हैं. दूसरी ये कि आधुनिक सैन्य तकनीकों के लिए रिसर्च और डेवलपमेंट पर फंडिंग बढ़ने की उम्मीद है. इलेक्ट्रोमैग्नेटिक की ताक़त वाले रेल गन से लेकर बेहद शक्तिशाली माइक्रोवेव बीम तक जापान तकनीक का सहारा लेकर बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस से लेकर ड्रोन हमले को नाकाम बनाने की तरफ़ ज़रूरी क़दम उठा रहा है. इसके अलावा खुफ़िया जानकारी, निगरानी और टोह लेने की क्षमता को मज़बूत करने का अभियान चलाया जा रहा है. खुफ़िया जानकारी और विश्लेषण को लंबे समय से जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली में एक दरार माना जाता रहा है. शिंज़ो आबे ने जो बहुत सी चीज़ें विरासत में छोड़ी हैं, उनमें से एक है ज़्यादा केंद्रीकृत और कम रास्तों के सहारे सीधे पहुंचने वाला खुफ़िया समुदाय.
इलेक्ट्रोमैग्नेटिक की ताक़त वाले रेल गन से लेकर बेहद शक्तिशाली माइक्रोवेव बीम तक जापान तकनीक का सहारा लेकर बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस से लेकर ड्रोन हमले को नाकाम बनाने की तरफ़ ज़रूरी क़दम उठा रहा है. इसके अलावा खुफ़िया जानकारी, निगरानी और टोह लेने की क्षमता को मज़बूत करने का अभियान चलाया जा रहा है.
अंत में, जापान ने बेहद तन्मयता के साथ देखा है कि किस तरह साइबर और अंतरिक्ष के क्षेत्र आधुनिक युद्ध के अगले मोर्चे बन गए हैं. जापान ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में समय के साथ अपनी जागरुकता बढ़ाने के लिए समर्पित सैन्य इकाइयों को तैयार किया है और उसे इलेक्ट्रॉनिक युद्ध की चुनौतियों के लिए तैयार कर रहा है. ऐसा देश जिसने आम तौर पर अपनी साइबर रक्षा तैयारी में कम निवेश किया है, उसके लिए इस तरह के बदलाव सिर्फ़ बेहतरी के लिए हैं. हालांकि जापान की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वो अपनी नागरिक तकनीकी बुनियाद को अपनी सुरक्षा आकांक्षाओं के साथ जोड़ने में किस हद तक सफल हो पाता है. सैन्य इस्तेमाल से जुड़ी रिसर्च में शामिल होने को लेकर जापान के वैज्ञानिक समुदाय की परंपरागत अनिच्छा को देखते हुए जापान के सामने चुनौतियां बहुत ज़्यादा हैं.
अमेरिका के साथ गहरे होते संबंध
जापान ने एक और जिस विषय पर प्रमुखता से ध्यान केंद्रित किया है, वो है अमेरिका-जापान गठबंधन. रूस के ख़िलाफ़ आर्थिक प्रतिबंधों से लेकर ताइवान स्ट्रेट में सैन्य कार्रवाई को लेकर तालमेल तक अमेरिका और जापान और भी ज़्यादा क़रीब आए हैं. जिस वक़्त अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बार-बार चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उस वक़्त दोनों पक्ष अपने गठबंधन को क्षेत्रीय स्थिरता का प्रमुख स्तंभ बनाने के लिए दृढ़ लग रहे हैं. वैसे तो चीन की चुनौतियों को लेकर सहयोग पर इस गठबंधन का स्पष्ट रूप से ध्यान है लेकिन आर्थिक सुरक्षा की रणनीतियों को सहज बनाना और तकनीकी सहयोग को गहरा करना भविष्य के लिए ज़रूरी होगा.
अंत में, जापान की रक्षा रणनीति इंडो-पैसिफिक में अपने साझेदारों को बहुत महत्व देती है. रक्षा मंत्रालय को उम्मीद है कि अपने साझेदारों के साथ मिलकर वो मुक्त और खुले इंडो-पैसिफिक को सुरक्षित रख पाएगा. इस उद्देश्य के लिए “कर्मियों का सहयोग एवं आदान-प्रदान, सैन्य टुकड़ी का सहयोग एवं आदान-प्रदान, क्षमता निर्माण के लिए सहयोग और रक्षा उपकरण एवं तकनीक सहयोग” को बढ़ावा दिया जाएगा. ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम के साथ पारस्परिक पहुंच के समझौते पर हस्ताक्षर करने की जापान की इच्छा इस बात की तरफ़ इशारा करती है कि दिलचस्पी रखने वाले देशों के साथ रक्षा सहयोग को गहरा करने की जापान की रुचि में बढ़ोतरी हुई है. इसकी वजह ये है कि क्षेत्रीय सुरक्षा व्यवस्था बिगड़ रही है.
मौजूदा उपलब्ध संक्षिप्त संस्करण में आक्रामक हमले की क्षमता को हासिल करने के इर्द-गिर्द बहस का ज़िक्र नहीं किया गया है. अतीत में जापान आक्रामक अभियानों को अमेरिकी बलों के हवाले छोड़कर संतुष्ट रहा है. लेकिन अब सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी से जुड़ी राष्ट्रीय सुरक्षा अनुसंधान समिति ने भी आक्रामक हमले की कार्रवाई के लिए अपने समर्थन को जताया है. जहां आधुनिकीकरण पर ज़ोर देने वाले चीन और किसी की बात न मानने वाले उत्तर कोरिया ने जापान को अपनी रणनीति पर गंभीरता से पुनर्विचार के लिए मजबूर कर दिया है लेकिन जापान के द्वारा आक्रमक क्षमता हासिल करने से अमेरिका-जापान सुरक्षा गठबंधन का स्वरूप बदल जाएगा. अमेरिका की आक्रामक क्षमता और जापान के रक्षा योगदान वाले अमेरिका-जापान गठबंधन को अपने काम के परंपरागत बंटवारे पर फिर से विचार करना होगा. आक्रामक हमला करने वाले हथियारों को हासिल करने की लागत, उन्हें प्रभावशाली बनाने वाले साजो-सामान के साथ पूर्ण, भी काफ़ी होगी.
निष्कर्ष
जापान के सुरक्षा हितों का नया और अधिक व्यापक संस्करण पिछले दिनों स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के दौरान साफ़ तौर पर दिखाई दिया. जापान के विशेष आर्थिक क्षेत्र में चीन की मिसाइल गिरने के बाद जापान ने अपने लड़ाकू विमानों को तैयार किया और अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर चीन के द्वारा बैलिस्टिक मिसाइल को लॉन्च करने की निंदा की. 50 साल से ज़्यादा समय तक ताइवान को लेकर सोच-समझकर चुप्पी साधने के बाद जापान ने स्वीकार किया है कि ताइवान पर चीन का हमला जापान के लिए “एक आपात स्थिति” होगी और इसी के मुताबिक़ उसने दूसरे देशों के साथ हिस्सेदारी बढ़ा दी है.
नौ वर्षों में पहली बार जापान अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को फिर से लिखने के लिए तैयार है. साथ ही एक समय जिसे नामुमकिन बताया जा रहा था, जैसे कि आक्रामक हमले की क्षमता हासिल करना, वो अब मुमकिन हो रहा है. इसे देखते हुए जापान की रक्षा रणनीति में बदलाव अच्छी तरह से और सही मायने में हो रहा है.
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