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Jammu and Kashmir: आतंकवादियों को उपलब्ध वित्तीय सहायता (Terror Financing in Kashmir) के खिलाफ़ ठोस कार्रवाई से भी सुरक्षा बलों (Indian Army) को काफी बल और सहायता मिली है. अधिकारियों का मानना है कि पत्थरबाज़ी (Stone Pelting in Kashmir) की घटनाएं अब इसलिए लगभग बंद हो गई हैं, क्योंकि इसे बढ़ावा देने के लिए जो पैसा उपलब्ध होता था अब वह लगभग बंद हो गया है.
Jammu and Kashmir: आतंकवादियों को उपलब्ध वित्तीय सहायता (Terror Financing in Kashmir) के खिलाफ़ ठोस कार्रवाई से भी सुरक्षा बलों (Indian Army) को काफी बल और सहायता मिली है. अधिकारियों का मानना है कि पत्थरबाज़ी (Stone Pelting in Kashmir) की घटनाएं अब इसलिए लगभग बंद हो गई हैं, क्योंकि इसे बढ़ावा देने के लिए जो पैसा उपलब्ध होता था अब वह लगभग बंद हो गया है. लेकिन पत्थरबाजी पर अंकुश इसलिए भी लग पाया है क्योंकि अब इसे बढ़ावा देने वाले मुख्य भड़काऊ लोगों की पहचान कर उनके खिलाफ़ कड़ी पुलिसिया कार्रवाई (Jammu Kashmir Police) की जा रही है. टेरर फाइनैंसिंग को लेकर नेशनल इनवेस्टिगेटिंग एजेंसी (NIA) की जांच भी लोकिप्रय और प्रभावी हो रही है. लोकिप्रय इसलिए क्योंकि कानून (Law and Order in Kashmir) का पालन करने वाले आम लोगों की कीमत पर फायदा उठाने वाले ‘संघर्ष उद्योजक’ (कॉनिफ्लक्ट आंत्नप्रेन्योर्स) के खिलाफ़ दशकों में पहली बार जांच एजेंसियां कार्रवाई कर रही हैं. प्रभावी इसलिए क्योंकि इसकी वजह से निधि अटक गई है, परिणामस्वरूप अशांति फैलाने का काम प्रायोजित करना बेहद मुश्किल हो गया है. आयकर विभाग (Income Tex Department), प्रवर्तन निदेशालय (ED), सीबीआई (CBI), जेकेपी (Jammu Kashmir Police), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (Raw, India) और इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB, India) के समावेश वाले टेरर मॉनिटरिंग ग्रुप (Terror Monitoring Group) के गठन की वजह से इन एजेंसियों को टेरर फाइनैंसिंग नेटवर्क (Terror Financing Network in Kashmir) के खिलाफ़ ज्य़ादा समन्वय के साथ काम करने को मिल रहा है. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) भी आतंकी वित्तपोषण (सीएफटी) ऑपरेशन्स के खिलाफ़ ज्य़ादा सक्रिय होकर काम करने लगा है. ऐसा लगता है कि अब अधिकारियों की समझ में आ गया है कि आतंकवाद को नैतिक और वित्तीय सहायता देने वाली व्यवस्था को खत्म करना कितना महत्वपूर्ण हो गया है. मनी लॉन्ड्रिंग एवं टेरर फाइनांस के खिलाफ कार्रवाई भले ही चल रही हो, लेकिन इनके खिलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई को भी काफी तेज़ किया जाना बेहद आवश्यक हो गया है.
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) भी आतंकी वित्तपोषण (सीएफटी) ऑपरेशन्स के खिलाफ़ ज्य़ादा सक्रिय होकर काम करने लगा है. ऐसा लगता है कि अब अधिकारियों की समझ में आ गया है कि आतंकवाद को नैतिक और वित्तीय सहायता देने वाली व्यवस्था को खत्म करना कितना महत्वपूर्ण हो गया है.
सीएफटी की वजह से घाटी में आसन्न मादक पदार्थों की महामारी भी अधिकारियों की चिंता का विषय बनी हुई है. लेकिन इससे जुड़े अधिकांश सबूत उपाख्यानात्मक अर्थात किस्सा संबंधी ही हैं. इससे जुड़ा डेटा 21 गिरफ्तारियां, 74 किलो ड्रग्स की बरामदगी, 22 लाख रुपए की जब्ती[8] इस बात का संकेत नहीं देते हैं कि यह मादक पदार्थो की महामारी है. इसके बावजूद सुरक्षा बलों के साथ नागरिकों को भी लगता है कि आतंकवादी और मादक पदार्थ के बीच का गठजोड़ एक गंभीर मामला है. कुछ मामलों में नशेड़ियों द्वारा आतंकवादियों की सहायता करना अथवा स्वयं आतंकी घटनाओं में शामिल होने की बात सामने आने पर विश्लेषकों और सुरक्षा अधिकारियों को विश्वास है कि कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने में नार्कोटिक्स अहम भूमिका अदा कर रहा है. हालांकि, इस विश्लेषण की पुष्टि करने के लिए अब तक कोई ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है. कुछ ड्रग्स तो घाटी के घने जंगली इलाके में स्थानीय स्तर पर ही तैयार किए जाते हैं. नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार से व्यापार निलंबित किए जाने के बाद से ही ड्रग्स की तस्करी ज्यादा मात्रा में नहीं हो रही है. यहां मिलने वाले अधिकांश ड्रग्स, हेरोइन, हशिश और अफ़ीम को पंजाब सीमा से तस्करी कर लाया गया और फिर वहां से इसे घाटी तक पहुंचाया गया है. इसके अलावा ओपीओईड्स (मेथाएम्प्फेटामाइन) की तस्करी भारत के अन्य हिस्सों से की जा रही है.
आतंकवादरोधी ऑपरेशन्स में सुरक्षा बलों के दबदबे और सफ़लता का मुख्य कारण यह है कि उन्होंने वर्षो से यहां अपना मजबूत खुफ़िया तंत्र विकसित कर उसे लगातार मजबूत बनाया है. घाटी में खुफिया तंत्र की सबसे अहम बात यह है कि इसमें अंतर एजेंसी और अंतर सेना के बीच बेहद अच्छा सहयोग और समन्वय है.
कुछ सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार घाटी में होने वाले ऑपरेशन्स में 70 प्रतिशत के आसपास गैर-गतिशील होते हैं. जेकेपी का दावा है कि 70 से 80 प्रतिशत ऑपरेशन्स उसके द्वारा जुटाई गई खुफिया जानकारी पर आधारित होते हैं. इसमें टेक्नॉलजी इंटेलिजेंस (टेकइंट) का व्यापक उपयोग होता है, लेकिन सुरक्षा बलों को असल धार ह्यूमन इंटेलिजेंस (ह्यूमिंट) की वजह से ही मिलती है. जेकेपी के अनुसार, वह जो खुफिया जानकारी एकत्रित करती है उसमें 60 प्रतिशत ह्यूमिंट होता है, जबकि टेकइंट की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत के आसपास रहती है. सटीक और पुख्त़ा खुफ़िया जानकारी ने यह सुनिश्चित किया है कि अब आतंकवादी की उम्र काफी कम हो गई है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसकी वजह से ऑपरेशन्स के दौरान कोलैटरल डैमेज को न्यूनतम कर दिया गया है. नैरेटिव (आभास) का जो समानांतर युद्ध अलगाववादियों और उनके आतंकी फूट सोल्जर्स (पैदल सैनिक) के साथ लड़ा जा रहा है उसमें यह बात अहम मानी जाती है.
राष्ट्रीय राइफल्स (आरआर) का खुफिया तंत्र भी काफी अहम है. घाटी में तैनाती के अपने लंबे इतिहास के दौरान आरआर यूनिट्स ने अपने एरिया ऑफ रिस्पॉन्सिबिलिटी (एओआर) का वस्तुत: वर्चुअल चित्रण तैयार कर लिया है. वे जानते हैं कि कौन कहां रहता है, कौन क्या करता है, एक घर विशेष में कितने लोग रहते हैं, कौन किसका रिश्तेदार है और कौन किससे मिल रहा है.
राष्ट्रीय राइफल्स (आरआर) का खुफिया तंत्र भी काफी अहम है. घाटी में तैनाती के अपने लंबे इतिहास के दौरान आरआर यूनिट्स ने अपने एरिया ऑफ रिस्पॉन्सिबिलिटी (एओआर) का वस्तुत: वर्चुअल चित्रण तैयार कर लिया है. वे जानते हैं कि कौन कहां रहता है, कौन क्या करता है, एक घर विशेष में कितने लोग रहते हैं, कौन किसका रिश्तेदार है और कौन किससे मिल रहा है. वे अपने एओआर में होने वाली छोटी से छोटी गतिविधि पर बारीक नजर रखते हैं और इतने वर्षों के दौरान वे अपने डेटाबेस को बिल्ड, मेंटेन और अपडेट करने में सफल हुए हैं. यह डेटाबेस उनके यूनिट के रिकार्ड्स में हमेशा उपलब्ध रहता है. इसके बावजूद आतंकवाद की कुछ घटनाएं हुई हैं, लेकिन आरआर ने अपने पास मौजूद जानकारी की सहायता लेकर अतिरिक्त जानकारी एकत्रित कर इसके लिए जिम्मेदार आतंकवादियों को महज़ कुछ ही दिनों के भीतर ख़त्म करने में सफलता हासिल की है. सुरक्षा के उच्चाधिकारियों का कहना है कि भविष्य में भी शांति बनाए रखने और आतंकवाद विरोधी प्रयासों में आरआर की भूमिका नि:संदेह अपरिहार्य रूप से अहम है. अधिकारियों की ओर से संकेत दिया गया कि कैसे उत्तर कश्मीर के बांदीपोर और गंडेरबल से आरआर के यूनिट्स को हटाने के बाद वहां हिंसा में थोड़ी वृद्धि देखने को मिली थी. सुरक्षा बलों का आकलन है कि प्रभावी आतंकवाद-रोधी सुरक्षा ग्रीड को बनाए रखने की दृष्टि से संपूर्ण घाटी को एक ईकाई के रूप में देखा जाना आवश्यक है क्योंकि जब घाटी को टुकड़ो में बांटकर देखा जाता है तो ऐसा होने पर इसमें दिखने वाली दरार का लाभ आतंकवादी उठाने में सफल रहते है.
नोट: Sushant Sareen द्वारा लिखे गये ओआरएफ़ हिंदी के लॉन्ग फॉर्म आर्टिकल का एक छोटा सा हिस्सा है. इस विषय के बारे में विस्तार से जानने के लिए क्लिक करें, इस Occasional Research Paper के लिंक को, जिसका शीर्षक है-“बदलाव की दहलीज़ पर खड़ा है जम्मू और कश्मीर; लेकिन चुनौतियां आगे भी रहेंगी बरक़रार !”
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Sushant Sareen is Senior Fellow at Observer Research Foundation. His published works include: Balochistan: Forgotten War, Forsaken People (Monograph, 2017) Corridor Calculus: China-Pakistan Economic Corridor & China’s comprador ...
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