Author : Rajen Harshé

Published on Nov 30, 2023 Updated 0 Hours ago

भू-राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी विचारों के साथ राजनीतिक-कूटनीतिक लाभ की ज़रूरत ने संघर्ष को लेकर अफ्रीका के देशों की प्रतिक्रिया निर्धारित की है.

इज़रायल-हमास संघर्ष: अफ्रीका की बंटी हुई प्रतिक्रिया

इज़रायल-हमास के बीच संघर्ष में 7 अक्टूबर 2023 को हमास के अभूतपूर्व हमले में इज़रायल के लगभग 1,400 लोगों की मौत हो गई. इस हमले के ख़िलाफ़ इज़रायल की जवाबी कार्रवाई में 10,000 से ज़्यादा फिलिस्तीनियों की मौत हुई. इतने बड़े पैमाने पर हिंसा, जिसमें बच्चों और आम लोगों के ख़िलाफ़ क्रूरता की गई, की वजह से ये युद्ध मानवीय कानून और मानवाधिकार की धारणा को चुनौती दे रहा है. रूस-यूक्रेन संघर्ष की तरह इज़रायल-फ़िलिस्तीन युद्ध ने भी अफ्रीका को विभाजित कर दिया है. संघर्ष को लेकर उनके अलग-अलग रवैये का विश्लेषण करने से पहले कुछ शुरुआती टिप्पणी करना ज़रूरी होगा. 

 इज़रायल ने पहले ही अफ्रीका के देशों के साथ पारस्परिक तौर पर लाभकारी संबंधों के जाल को फैला लिया है. इस तरह के संबंधों में अफ्रीका के उन देशों के साथ इज़रायल की खेती की तकनीक़ को साझा करना शामिल है जहां बंजर या अर्ध-बंजर ज़मीन है. .

शुरुआती टिप्पणी

वैसे तो कई अफ्रीकी देशों ने 1973 के अरब-इज़रायल युद्ध के बाद इज़रायल के साथ अपना कूटनीतिक संबंध तोड़ लिया था लेकिन मौजूदा समय में अफ्रीका के कम-से-कम 30 देशों का दूतावास या वाणिज्य दूतावास (कॉन्सुलेट) तेल अवीव में है और 54 में से 44 अफ्रीकी देश आधिकारिक रूप से एक देश के रूप में इज़रायल को मान्यता देते हैं. इस तरह ये साफ है कि इज़रायल अफ्रीका में कानूनी मान्यता हासिल करने के लिए जूझ नहीं रहा है. इसके अलावा, इज़रायल ने पहले ही अफ्रीका के देशों के साथ पारस्परिक तौर पर लाभकारी संबंधों के जाल को फैला लिया है. इस तरह के संबंधों में अफ्रीका के उन देशों के साथ इज़रायल की खेती की तकनीक़ को साझा करना शामिल है जहां बंजर या अर्ध-बंजर ज़मीन है. इसी तरह इज़रायल ने अफ्रीका के देशों में सुरक्षा से जुड़े बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने के लिए मदद की पेशकश की है. धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में पवित्र शहर यरूशलम दुनिया के अलग-अलग इलाकों, ख़ास तौर पर अफ्रीका, से विभिन्न धर्मों- ईसाई, यहूदी और इस्लाम- के लोगों को आकर्षित करता है. मौजूदा समय में क्षेत्रीय संगठन, अफ्रीकन यूनियन (AU) और ज़्यादातर अफ्रीकी देशों ने इज़रायल और हमास के बीच तुरंत युद्ध ख़त्म करने और शांति एवं सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए बातचीत शुरू करने की वकालत की है. लेकिन इस तरह का बाहरी हावभाव उन बुनियादी जटिलताओं को नहीं दिखाता है जो फ़िलिस्तीन और इज़रायल को लेकर अफ्रीकी देशों के रवैये को तय कर रही हैं. 

इज़रायल समर्थक रुख़ वाले देश

सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित अफ्रीका के देशों में कीनिया, घाना, रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) और रवांडा ने तुरंत हमास के हमले की निंदा की. कीनिया के इज़रायल समर्थक रुख़ को अमेरिका के साथ उसके संबंध से जोड़ा जा सकता है. कीनिया रणनीतिक रूप से पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित है और अमेरिका ने 1964 से कीनिया के साथ नज़दीकी संबंध बनाए रखे हैं. शीत युद्ध के दौरान अमेरिका पूर्वी अफ्रीका में साम्यवाद (कम्युनिज़्म) के ख़िलाफ़ लड़ाई मे कीनिया को एक अड्डे के तौर पर इस्तेमाल कर रहा था. अगस्त 1998 में जब अल-क़ायदा ने कीनिया की राजधानी नैरोबी और तंज़ानिया की राजधानी दार एस सलाम में अमेरिका के दूतावासों पर हमला करके 200 से ज़्यादा लोगों की हत्या की तो इज़रायल ने रेस्क्यू ऑपरेशन करने में कीनिया की मदद की थी. कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवाद से लड़ाई का मक़सद अमेरिका-इज़रायल और कीनिया को एक साथ जोड़ता है. अल-क़ायदा से जुड़े और सोमालिया में आधारित कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन अल शबाब- जो कि पूर्वी अफ्रीका में सक्रिय है- को काबू में रखने के लिए अमेरिका ने कीनिया को हथियार भी मुहैया कराए हैं. कीनिया की तरह दूसरे अफ्रीकी देशों ने भी इज़रायल के साथ नज़दीकी संबंध स्थापित किए हैं. घाना पहला अफ्रीकी देश था जिसने 1957 में अपनी स्वतंत्रता के बाद इज़रायल के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित किए थे. अरब-इज़रायल युद्ध के बाद ये संबंध टूट गए लेकिन कुछ ही समय बाद घाना इन्हें फिर से शुरू करने में कामयाब रहा. इसी तरह DRC और रवांडा ने भी इज़रायल के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित किए हैं. 

 मोरक्को की राजधानी रबात में अलग-अलग वर्गों के लोगों ने सड़कों पर उतरकर इज़रायल की ज़्यादती के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया. मोरक्को में बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों के दौरान दोनों देशों के बीच दिसंबर 2020 में हुए समझौते को रद्द करने की मांग की जा रही है.

उत्तरी अफ्रीका के क्षेत्र के भीतर इज़रायल के साथ सामान्य रिश्ते बनाने में मोरक्को सबसे आगे रहा है. अमेरिकी मध्यस्थता की वजह से मोरक्को ने दिसंबर 2020 में इज़रायल के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित किए. अमेरिका ने पहले ही पश्चिमी सहारा के ऊपर मोरक्को की संप्रभुता को मान्यता दे दी थी. इसी तरह, जैसे ही मोरक्को और इज़रायल के बीच संबंध मज़बूत होने लगे तो इज़रायल ने भी जुलाई 2023 में पश्चिमी सहारा के ऊपर मोरक्को की संप्रभुता को मान्यता दे दी. इसके बदले में मोरक्को को 2023 के आख़िर में इज़रायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू की मेज़बानी करनी थी. वास्तव में, मोरक्को के फायदे के लिए अमेरिका और इज़रायल ने पश्चिमी सहारा में पोलिसारियो फ्रंट के तहत स्थापित सहारवी अरब डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (SADR) नाम के देश को संज्ञान में लेने से इनकार कर दिया. मोरक्को और इज़रायल ने 2020 के बाद ड्रोन, टैंक और यहां तक कि जासूसी के उपकरणों के ज़रिए अपनी सुरक्षा साझेदारी को मज़बूत करना शुरू कर दिया. इसके अलावा, मोरक्को की 40 प्रतिशत आबादी खेती से जुड़ी हुई है और वो लोग सूखे एवं अकाल से संघर्ष कर रहे हैं. पानी की कमी दूर करने के लिए भी मोरक्को ने इज़रायल के साथ दोस्ती करना ठीक समझा क्योंकि इज़रायल ने कृषि तकनीक़ के क्षेत्र में इनोवेटिव रणनीतियां तैयार की हैं. 

अमेरिका-इज़रायल और मोरक्को के बीच बढ़ते संबंधों के बावजूद हमास के क्षेत्र में इज़रायल के लगातार हमलों, ख़ास तौर पर अस्पताल जैसी जगह में आम लोगों के ख़िलाफ़, ने उत्तर अफ्रीका में इज़रायली आक्रामकता के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों को शुरू कर दिया. मोरक्को की राजधानी रबात में अलग-अलग वर्गों के लोगों ने सड़कों पर उतरकर इज़रायल की ज़्यादती के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया. मोरक्को में बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों के दौरान दोनों देशों के बीच दिसंबर 2020 में हुए समझौते को रद्द करने की मांग की जा रही है. इस तरह मोरक्को के राजा मोहम्मद VI की राजनीतिक चतुराई के बावजूद इज़रायल और मोरक्को के बीच रिश्तों को एक बड़ा झटका लगा है. मोरक्को आंतरिक रूप से विभाजित हो रहा है जहां इस्लामिक जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी ने इज़रायल के ख़िलाफ़ हमास के हमले को बहादुरी का काम बताकर स्वागत किया है. इज़रायल की तरह फ़िलिस्तीन भी अफ्रीका के देशों में अपने लिए समर्थन जुटा रहा है. 

फ़िलिस्तीन समर्थक रुख़ वाले देश

अरब देशों की लीग के सदस्य और उत्तर अफ्रीका में मोरक्को के कट्टर प्रतिद्वंद्वी अल्जीरिया ने अपने यहूदी विरोधी रवैये को दोहराया है और फ़िलिस्तीन के लोगों के द्वारा अपने लिए एक देश की स्थापना की इच्छा का साफ तौर पर समर्थन किया है. इसी तरह ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति कैस सईद ने इज़रायल पर नरसंहार के अपराध का आरोप लगाया है और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सिसी इज़रायल के ख़िलाफ़ लोगों के गुस्से का इस्तेमाल उनकी सरकार को हटाने की कोशिश में लगी विपक्षी पार्टियों की गतिविधियों से लोगों का ध्यान हटाने में कर रहे हैं. 

अफ्रीकी देशों के बीच दक्षिण अफ्रीका ने इज़रायल के ख़िलाफ़ कड़ा रुख़ अख्तियार किया है. सबको याद है कि 1997 में नेल्सन मंडेला ने ज़ोर देकर कहा था कि फ़िलिस्तीन की आज़ादी के बिना दक्षिण अफ्रीका की आज़ादी अधूरी होगी. फ़िलिस्तीन के लोगों के लिए अलग देश (होमलैंड) की दिशा में काम करने वाले फिदेल कास्त्रो, यासिर अराफात और मुअम्मर गद्दाफ़ी के साथ उनके करीबी व्यक्तिगत संबंध थे. राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने कहा है कि फ़िलिस्तीन का इतिहास दक्षिण अफ्रीका में श्वेत अल्पसंख्यक सरकार के ख़िलाफ़ रंगभेद विरोधी संघर्ष को दिखाता है. दक्षिण अफ्रीका के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और सहयोग के मंत्री नलेदी पैंडोर ने तो संयुक्य राष्ट्र (UN) से ये तक अनुरोध कर दिया कि इज़रायल को एक रंगभेदी देश घोषित किया जाए. दक्षिण अफ्रीका ने अपने राजदूत और राजनयिक मिशन को इज़रायल से वापस बुला लिया है और गज़ा पट्टी में इज़रायल की बमबारी को “नरसंहार” बताते हुए निंदा की है. उसने ये भी एलान किया है कि प्रिटोरिया में इज़रायली राजनयिकों की मौजूदगी अब मान्य नहीं है. वास्तव में, उत्तरी आयरलैंड में बातचीत के ज़रिए विवाद के निपटारे में अपनी कामयाबी को देखते हुए दक्षिण अफ्रीका ने फ़िलिस्तीन मुद्दे के समाधान के लिए विरोधी पक्षों के बीच मध्यस्थता की पेशकश की है. 

 हमास-इज़रायल संघर्ष ने अफ्रीका में सोच के स्तर पर बंटवारे को उजागर किया है. अफ्रीकी देश आपस में बंटे हुए हैं और मोरक्को एवं दक्षिण अफ्रीका जैसे कुछ देश इस मुद्दे पर आंतरिक रूप से विभाजित हैं.

हालांकि दक्षिण अफ्रीका भी आंतरिक रूप से फ़िलिस्तीन के सवाल को लेकर बंटा हुआ है. जूइश बोर्ड ऑफ डेप्युटीज़, साउथ अफ्रीकन ज़ियोनिस्ट फेडरेशन और मुख्य विपक्षी पार्टी डेमोक्रेटिक अलायंस (DA) आधिकारिक नीतियों का विरोध कर रही हैं. वो ये दलील दे रही हैं कि इज़रायल के राजनयिकों को प्रिटोरिया छोड़ने के लिए कहने के बावजूद दक्षिण अफ्रीका समस्या का समाधान करने में सक्षम नहीं हो पाएगा. इसके अलावा विडंबना ये भी है कि इज़रायल का सबसे बड़ा आलोचक होने पर भी दक्षिण अफ्रीका 2021 में 750 मिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार के साथ अफ्रीकी महादेश में इज़रायल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. 

तटस्थ देश

नाइजीरिया अफ्रीका के उन गिने-चुने देशों में से है जिसने युद्ध को लेकर तटस्थ रहने का फैसला किया है, हालांकि उसने तुरंत युद्ध ख़त्म करने की अपील की है. इसी तरह युगांडा भी तटस्थ है लेकिन राष्ट्रपति मुसेवेनी व्यक्तिगत रूप से दो-देश वाले समाधान का समर्थन करते हैं.

इसके अलावा लाल सागर के क्षेत्र के देशों को अपनी तरफ मिलाने की कोशिश के तहत इज़रायल ने इथियोपिया के यहूदियों के लिए मानवीय सहायता की पेशकश की है. इज़रायल के लिए लाल सागर महत्वपूर्ण है क्योंकि उसका एक-चौथाई हिस्सा अक़ाबा की खाड़ी में है जो कि लाल सागर का एक प्रवेश द्वार है. इज़रायल लाल सागर के क्षेत्र में स्थित देशों जैसे कि जॉर्डन, मिस्र, सऊदी अरब, यमन, सूडान, इरीट्रिया और जिबूती के साथ भागीदारी के लिए लगभग मजबूर है. इस संदर्भ में इज़रायल को स्वेज़ नहर, ईलात (लाल सागर के उत्तरी किनारे पर इज़रायल का बंदरगाह) और अदन की खाड़ी में घटनाक्रम को लेकर चौकन्ना रहना होगा.  

साथ ही, अफ्रीका के देशों से अपनी दोस्ती के मिशन में इज़रायल 2021 में अफ्रीकन यूनियन (AU) में ऑब्ज़र्वर का दर्जा पाने में कुछ समय के लिए सफल हो गया था, हालांकि बाद में AU ने अल्जीरिया में प्रदर्शन की वजह से ये दर्जा वापस ले लिया. इसके विपरीत फ़िलिस्तीन को AU में ऑब्ज़र्वर का दर्जा हासिल है. 

निष्कर्ष

हमास-इज़रायल संघर्ष ने अफ्रीका में सोच के स्तर पर बंटवारे को उजागर किया है. अफ्रीकी देश आपस में बंटे हुए हैं और मोरक्को एवं दक्षिण अफ्रीका जैसे कुछ देश इस मुद्दे पर आंतरिक रूप से विभाजित हैं. भू-राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी विचारों के साथ-साथ राजनीतिक-कूटनीतिक लाभ की ज़रूरत ने एक साथ मिलकर इस संघर्ष को लेकर अफ्रीकी देशों की नीतियों को तय किया है.


राजन हर्षे सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ इलाहाबाद, प्रयागराज के पूर्व वाइस चांसलर हैं. वो जी. बी. पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.

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