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Published on Mar 30, 2024 Updated 0 Hours ago

म्यांमार में बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के लक्ष्य हासिल करने में रुकावट पैदा कर रही है.

क्या भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी में बाधा खड़ी कर रहा है म्यांमार?

8 फरवरी 2024 को सरकार ने भारत और म्यांमार के बीच मुक्त आवाजाही व्यवस्था (FMR) को रद्द करने का ऐलान किया. भारत सरकार के मुताबिक देश की आंतरिक सुरक्षा और पूर्वोत्तर में जनसांख्यिकीय संतुलन को बनाए रखने के लिए ऐसा करना ज़रूरी है. ये फैसला करने से कुछ दिन पहले भारत सरकार ने ये भी तय किया था कि वो भारत-म्यांमार की 1,643 किमी लंबी सीमा पर बाड़ लगाएगी. म्यांमार की भौगोलिक स्थिति भारत के लिए सामरिक और आर्थिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है. एक्ट ईस्ट पॉलिसी (AEP) के ज़रिए भारत ने दक्षिण पूर्व एशिया, खासकर दक्षिण पूर्व एशिया देशों के संघ (ASEAN) पर अपना प्रभाव बढ़ाने की जो रणनीति बनाई है, उसकी दृष्टि से म्यांमार हमारे लिए बहुत अहम हो जाता हैलेकिन 2021 में जब से सेना ने म्यांमार में सत्ता संभाली है, तभी से ये देश राजनीतिक उतार-चढ़ाव का सामना कर रहा है. 27 अक्टूबर 2023 के ब्रदरहुड अलायंस के तीन संगठनों, अराकान आर्मी, ताआंग नेशनल लिबरेशन आर्मी और म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक आर्मी ने म्यांमार की सत्तारूढ़ मिलिट्री जुंटा के खिलाफ 'ऑपरेशन 1027' शुरू किया था. इसने भी भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी की राह में रुकावट पैदा की है.

भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी क्या है?

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'लुक ईस्ट पॉलिसी' को 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' के रूप में दोबारा परिभाषित किया. इस पॉलिसी के तीन मुख्य उद्देश्य हैं. पहला, भारत और आसियान देशों के बीच व्यापार, निवेश और सांस्कृतिक संबंध बढ़ाना. दूसरा, भारत के संघर्षग्रस्त पूर्वोत्तर इलाके में शांति और स्थिरता लाना. तीसरा, आसियान देशों के साथ मिलकर म्यांमार में चीन की बढ़ती सैनिक और आर्थिक ताकत का मुकाबला करना. अपने इन उद्देश्यों का हासिल करने के लिए भारत ने कलादान मल्टी मॉडल प्रोजेक्ट (KMMP) और भारत-म्यांमार-थाईलैंड के बीच त्रिपक्षीय समझौते (IMTTP) के तहत म्यांमार के साथ अपना सम्पर्क बढ़ाया. कलादान परियोजना का मकसद बांग्लादेश और म्यांमार के ज़रिए भारत के पूर्वोत्तर इलाकों तक संपर्क को बेहतर करना था. इसके लिए कोलकाता बंदरगाह को म्यांमार के सितवे बंदरगाह से जोड़ा गया. म्यांमार में राष्ट्रीय राजमार्ग के ज़रिए ये रास्ता मिज़ोरम तक जाता है. इसी तरह आईएसटीटीपी के ज़रिए भारत के सीमावर्ती मोरे शहर को म्यांमार के तामू नगर के रास्ते थाईलैंड के मेई सोत शहर से जोड़ा गया. इसके ज़रिए इन तीनों देशों में सड़क मार्ग से व्यापार, पर्यटन और शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ सकता है.

2021 के सैनिक तख्तापलट के बाद म्यांमार की क्या स्थिति है?

म्यांमार की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि अगर भारत को सड़क मार्ग या जल मार्ग से दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व एशिया की तरफ जाना है तो म्यांमार की सीमा से गुज़रना ही होगा. म्यांमार की सामरिक अहमियत तो है ही साथ ही म्यांमार को भारत अपने लिए एक महत्वपूर्ण बाज़ार और भरोसेमंद आर्थिक साझेदार भी मानता है. भारत और म्यांमार के बीच हुए व्यापारिक समझौते के तहत 62 वस्तुओं को शुल्क से छूट दी गई है. इसमें कृषि उत्पाद, घरेलू बर्तन, मोटरसाइकिल, कॉस्मेटिक और सीमेंट जैसी वस्तुएं शामिल हैं. 2022-23 के बीच दोनों देशों में 1.76 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ.

7 अक्टूबर 2023 के ब्रदरहुड अलायंस के तीन संगठनों, अराकान आर्मी, ताआंग नेशनल लिबरेशन आर्मी और म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक आर्मी ने म्यांमार की सत्तारूढ़ मिलिट्री जुंटा के खिलाफ 'ऑपरेशन 1027' शुरू किया था. इसने भी भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी की राह में रुकावट पैदा की है.

दोनों देशों के बीच व्यापार तो बढ़ रहा है लेकिन एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत भारत की जो परियोजनाएं म्यांमार में चल रही हैं, उनमें देरी हो रही है. कलादान प्रोजेक्ट के तहत सिवते बंदरगाह और मिज़ोरम के बीच बन रहे 68 मील लंबे हाइवे का काम अभी पूरा नहीं हुआ है, जबकि मिज़ोरम साइड में काम करीब पूरा हो गया है और सितवे बंदरगाह का भी संचालन हो रहा है. आईएमटीटीपी के तहत चल रहे प्रोजेक्ट्स का भी भारत और थाईलैंड में 70 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है लेकिन म्यांमार ये नहीं बता रहा कि उसके यहां कितना काम हुआ है. हालांकि म्यांमार के व्यापार मंत्री आंग निंग ऊ ने ये कहा है कि हाइवे में अब कुछ ही हिस्से का काम बचा है और तीन साल में ये पूरा हो जाएगा. लेकिन हकीकत ये है कि म्यांमार में राजनीतिक अस्थिरता की वजह से इन अहम परियोजनाओं का काम धीमा हुआ है. जातीय सशस्त्र संगठनों (AEO)और म्यांमार में मिलिट्री जुंटा के बीच में हिंसा तेज़ हुई है. खास बात ये है कि ईस्ट एक्ट पॉलिसी के तहत चल रही परियोजनाएं जिन सगाइंग, रखाइन और चिन प्रांत में हैं, वहां जातीय सशस्त्र संगठनों और नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (NUG) का शासन है. कलादान प्रोजेक्ट के लिहाज से अहम माने जाने वाले पलेतवा शहर में अराकन आर्मी का कब्जा है, जिसके साथ भारत की बातचीत नहीं होती हैऐसे में भारत के लिए अब ये ज़रूरी हो गया कि वो नई ज़मीनी वास्तविकताओं को समझे और महत्वपूर्ण बुनियादी परियोजनाओं को वक्त पर पूरा करने के लिए इन संगठनों के साथ बातचीत शुरू करे.

भारत अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र को विद्रोहियों के ख़तरे से सुरक्षित रखने के लिए म्यांमार की सैनिक सत्ता से बातचीत करता रहा है. भारतीय सेना और म्यांमार की मिलिट्री जुंटा उन बागी समूहों के खिलाफ मिलकर काम करते हैं, जो 1990 के दशक के बाद से ही म्यांमार की धरती पर रहकर भारत में उग्रवादी गतिविधियों में शामिल होते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर एक्ट ईस्ट पॉलिसी से जुड़ी परियोजनाएं जल्द पूरी होती हैं तो सशस्त्र संघर्षों का मुकाबला करने में मदद तो मिलेगी ही साथ ही म्यांमार के रास्ते आसियान देशों से सम्पर्क भी आसान होगा. इससे भारत के पूर्वोत्तर इलाकों में तेज़ विकास होगा. आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी क्योंकि ये इलाके चारों तरफ ज़मीन से घिरे हैं. रोज़गार और विकास के मौके बढ़ेंगे तो युवा भी विद्रोही गुटों से दूर रहेंगे. लेकिन अब जिस तरह से म्यांमार की मिलिट्री जुंटा भारत-म्यांमार सीमा पर विद्रोही गुटों का मुकाबला करने में भारत की मदद करने के अपने वादे से मुकर रही है, उसने राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर भारत की चिंताएं बढ़ा दी हैं. इसका एक सबूत तब दिखा जब नवंबर 2021 में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ऑफ मणिपुर और मणिपुर नागा पीपुल्स फ्रंट ने म्यांमार की धरती का इस्तेमाल असम राइफल्स के काफिले पर हमला करने के लिए किया. कुछ दिन पहले मणिपुर के तेंगनोपाल जिले में भी आर्मी के काफिले पर हमला करने की कोशिश की गई. ये जिला म्यांमार की सीमा से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है. इससे भी ये साबित होता है कि म्यांमार से मदद न मिलने के नतीजे कितने गंभीर हो सकते हैं.

हकीकत ये है कि म्यांमार में राजनीतिक अस्थिरता की वजह से इन अहम परियोजनाओं का काम धीमा हुआ है. जातीय सशस्त्र संगठनों (AEO)और म्यांमार में मिलिट्री जुंटा के बीच में हिंसा तेज़ हुई है.

भारत के पूर्वोत्तर के राज्यों, खासकर मिज़ोरम और मणिपुर में जिस तरह शरणार्थियों के आने की संख्या बढ़ी है, उसने भी सुरक्षा को लेकर नई चुनौतियां पेश कर दी हैं. म्यांमार की मिलिट्री जुंटा ने हाल ही में अपने यहां के विद्रोहियों पर हवाई हमला किया था, जिसके बाद म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों में भारी वृद्धि हुई है. 2021 में म्यांमार में हुए सैनिक तख्तापलट के बाद से मिज़ोरम में म्यांमार के 60,000 अप्रवासी आ चुके हैं. म्यांमार में जैसे राजनीतिक हालात हैं, उसके बाद शरणार्थियों की संख्या और ज्यादा बढ़ने की आशंका है. इतना ही नहीं म्यांमार से जो चिन कुकी शरणार्थी आ रहे हैं, उन्हें ही मणिपुर में हिंसा के लिए मुख्य तौर पर जिम्मेदार माना जा रहा है. इस हिंसा की वजह से मोरेह-तामू बाज़ार पर असर पड़ा है. भारत और म्यांमार के बीच द्विपक्षीय व्यापार के लिए लिहाज से ये बाज़ार काफी अहम है. स्कॉलर्स के मुताबिक मणिपुर में जारी हिंसा ने भारत-म्यांमार सीमा पर सम्पर्क मार्गों पर बुरा असर डाला है. ऐसे में हो सकता है कि जो लोग ईस्ट एक्ट पॉलिसी के तहत पूर्वोत्तर भारत में निवेश करना चाह रहे हों, वो इससे हतोत्साहित होंगे. म्यांमार में जारी राजनीतिक अस्थिरता पूर्वोत्तर भारत पर नकारात्मक असर डाल रही है.

चीन का बढ़ता असर

चीन के बढ़ते असर ने भी भारत के लिए म्यांमार की सामरिक अहमियत बढ़ा दी है. म्यांमार में चीन का राजनीतिक और आर्थिक प्रभुत्व बढ़ता जा रहा है. चीन का इरादा म्यांमार के रास्ते अपनी पहुंच बंगाल की खाड़ी तक बढ़ाने की है. इसने भी भारत की चिंता बढ़ा दी है. चीन ने चीन-म्यांमार इकोनॉमिक कॉरिडोर की स्थापना की है. म्यांमार के कोको द्वीप पर भी चीन ने अपनी निगरानी बढ़ाई है. इसकी वजह से भारत को बंगाल की खाड़ी में सुरक्षा की चिंता बढ़ाई है. इतना ही नहीं चीन अब म्यांमार में सबसे ज्यादा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने वाला देश बन गया है. चीन अब जिस तरह म्यांमार का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है, उसने भी भारत के लिए ख़तरा बढ़ाने का काम किया है. हालांकि भारत ने एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत म्यांमार में अपना निवेश बढ़ाया है, जिससे वो नई भू-राजनीतिक परिस्थितियों में अपनी अहम जगह बनाए रखे. लेकिन म्यांमार में चीन के प्रभाव को कम करने के लिए भारत जो रणनीतियां अपना रहा है, उसे लेकर सवाल उठ रहे हैं. चीन अपनी म्यांमार नीति के तहत मिलिट्री जुंटा ही नहीं बल्कि विद्रोही गुटों से भी बात कर रहा है, जबकि भारत ऐसा नहीं करता. विद्रोही गुटों से बात करने का ही असर है कि चीन ने ब्रदरहुड अलायंस और मिलिट्री जुंटा के बीच शान प्रांत में युद्ध विराम करवाया था. हालांकि ये युद्धविराम 3 दिन में ही टूट गया. भारत की सामरिक नीति में कमी दिखती है. भारत मानता है कि सिर्फ मिलिट्री जुंटा से बात करके वो म्यांमार में चीन के बढ़ते असर को कम कर सकता है. लेकिन चीन जिस तरह मिलिट्री जुंटा के साथ-साथ विद्रोही गुटों से भी बात कर रहा है. अगर भारत ने म्यांमार के इन बागी समूहों से बात नहीं की तो फिर ये कहा जा सकता है कि म्यांमार पर चीन का प्रभाव बढ़ता जाएगा.

भारत ने एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत म्यांमार में अपना निवेश बढ़ाया है, जिससे वो नई भू-राजनीतिक परिस्थितियों में अपनी अहम जगह बनाए रखे. लेकिन म्यांमार में चीन के प्रभाव को कम करने के लिए भारत जो रणनीतियां अपना रहा है, उसे लेकर सवाल उठ रहे हैं.

निष्कर्ष

भारत के लिए म्यांमार के साथ अच्छे संबंध रखना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि इससे पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में सशस्त्र संघर्ष का मुकाबला करने में मदद तो मिलेगी ही, साथ ही इस क्षेत्र का विकास भी होगा. चीन का असर भी कम होगा. लेकिन म्यांमार में जारी राजनीतिक अस्थिरता ने पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ा दी हैं. शरणार्थियों की बढ़ती संख्या और म्यांमार पर बढ़ते चीन के असर ने भी भारत की चिंता बढ़ाई है. भारत वैश्विक स्तर पर अपनी राजनीतिक और आर्थिक ताकत बढ़ाना चाहता है. ऐसे में भारत के लिए ये ज़रूरी है कि वो म्यांमार को लेकर अपनी नीति पर फिर से विचार करे और एक्ट ईस्ट पॉलिसी के अपने लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में ध्यान दे.

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