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Published on Aug 29, 2024 Updated 0 Hours ago

क्या भारत की अफ्रीका को लेकर रणनीति में अपने प्रतिद्वंद्वियों के सामने डटकर खड़े रहने और मज़बूत साझेदारी को आकार देने का दम है?

भारत की अफ्रीका ‘रणनीति’, कितना सफल और असरदार?

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भारत के अफ्रीका के साथ संबंधों का वर्णन करने के लिए ‘‘दीर्घकालीन’’, ‘‘गहरी पैठ वाली’’, ‘‘साझा-हितों वाली’’, ‘‘समान महत्वाकांक्षी’’, ‘‘एकजुटता’’, ‘‘प्राकृतिक सहयोगी’’ और ‘‘ऐतिहासिक’’ जैसे शब्दों का उपयोग किया जाता है. G20 की अध्यक्षता करते हुए भारत की अगुवाई में ही अफ्रीकन यूनियन को G20 का स्थायी सदस्य बनाने का निर्णय लिया गया. G20 एक ऐसा प्रतिष्ठित वैश्विक मंच है जो लाखों अफ्रीकी नागरिकों को प्रभावित करने वाले आर्थिक फ़ैसले लेता था, लेकिन इन फ़ैसलों में अफ्रीकी आवाज को महत्व नहीं दिया जाता था. ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी ने जब AU को G20 में स्थान देने के लिए G20 में शामिल विभिन्न देशों के मुखियाओं को फोन किया तो उनके इस कार्य की प्रशंसा की गई. भारत की ओर से उठाया गया यह कदम उसकी अफ्रीका से जुड़ी रणनीति का ही हिस्सा था. भारत हमेशा से वैश्विक मंचों पर अफ्रीका की अहम भूमिका का पैरोकार रहा है. ऐसे में भारत ने G20 की अपनी अध्यक्षता के अवसर का लाभ उठाते हुए वैश्विक दक्षिण की चिंताओं को मंच मुहैया करवाने का फ़ैसला प्राथमिकता के साथ लिया. इसके पहले भी प्रधानमंत्री मोदी ने यूगांडा की संसद के अपने संबोधन में यह घोषणा कर ही दी थी कि अफ्रीका हमेशा से “भारत की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर” रहेगा. हाल ही में विदेश मंत्री एस. जयशंकर के अफ्रीका दिवस समारोह के दौरान दिए गए संबोधन में भी इसी तरह की एकजुटता का स्वर निकाला था. उनके संबोधन में सिर्फ अफ्रीका को लेकर प्राथमिकता की बात नहीं की गई, बल्कि यह सारे अफ्रीकी नागरिकों, जिसमें अफ्रीका का प्रत्येक पुरुष, महिला और बच्चा शामिल है को ध्यान में रखकर भारत ने अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया था.

अफ्रीका को लेकर भारत की मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता तो है ही, लेकिन इसके साथ-साथ भारत और अफ्रीका के बीच नज़दीकी आर्थिक संबंध भी है. भारत इस वक़्त अफ्रीका का तीसरा सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी है.

अफ्रीका को लेकर भारत की मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता तो है ही, लेकिन इसके साथ-साथ भारत और अफ्रीका के बीच नज़दीकी आर्थिक संबंध भी है. भारत इस वक़्त अफ्रीका का तीसरा सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी है. पहले दो स्थानों पर यूरोपियन यूनियन (EU) तथा चीन का नंबर आता है. भारत और अफ्रीका के बीच दो-तरफा व्यापार लगभग 82.1 बिलियन अमेरिकी डालर का है. हाल के वर्षों में अफ्रीका में भारतीय निवेश भी तेज़ी से बढ़ा है. FDI स्टॉक के मामले में भारत इस वक़्त अफ्रीका का दसवां सबसे बड़ा निवेशक है. 2000 के आरंभिक दशकों से ही अफ्रीका के साथ भारत का विकास सहयोग भी काफ़ी तेजी से विस्तारित हुआ है. भारत की लाइन ऑफ़ क्रेडिट प्रोग्राम का सबसे ज़्यादा लाभ अफ्रीकी देशों को ही मिला है. हालांकि, बुनियादी सुविधा क्षेत्र में चीन अगुवाई कर रहा है. लेकिन अफ्रीकी इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए चीनी निवेश हाल के वर्षों में काफ़ी तेजी से गिरा है. ऐसे में अफ्रीका के साथ बुनियादी सुविधाओं का विकास ही भारत की विकास साझेदारी में बेहद अहम भूमिका अदा कर रहा है. अब तक भारत ने 43 अफ्रीकी देशों में 206 परियोजनाओं को पूरा कर दिया है, जबकि 65 परियोजनाओं पर काम चल रहा है. इन परियोजनाओं पर कुल 12.4 बिलियन अमेरिकी डालर का ख़र्च हो चुका है. इसके साथ ही भारत अपने  ITEC प्रोग्राम, छात्रवृत्ति और उपमहाद्वीप में संस्थान निर्माण के तहत भी अफ्रीका की क्षमता में इज़ाफ़ा करने में योगदान दे रहा है.

 

केंद्र में अफ्रीका

यह बात सच है कि अफ्रीका पर फोकस लाने की दिशा में भारत ने काफ़ी काम किया है. लेकिन क्या भारत, अफ्रीका का पसंदीदा सहयोगी है? यह भी सच है कि वर्षों पुराने संबंधों की वजह से भारत को अफ्रीकी उपमहाद्वीप में काफ़ी इज्जत मिलती है, लेकिन क्या यह इज्ज़त भारत को लाभदायक स्थिति में पहुंचाने के लिए काफ़ी है? इस सवाल का जवाब देना मुश्किल है. ख़ासकर उस संदर्भ में जब वैश्विक ताकतें इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं. लेकिन नई दिल्ली में नौ वर्ष पूर्व भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन का सफ़लतापूर्वक आयोजन करने के बावजूद चौथे भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन का आयोजन करने में भारत की विफ़लता अफ्रीका में उसके कमज़ोर प्रभाव को प्रतिबिंबित करती है. भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन के आयोजन में हो रही देरी का कारण अक्सर COVID-19 महामारी और चुनावी कार्यक्रमों को ही बताया जाता है. लेकिन इसी बीच अफ्रीकन यूनियन ने अपने अन्य सहयोगियों जैसे चीन (2021), तुर्किए (2021), EU (2022), यूनाइटेड स्टेट्‌स (US) (2022), जापान (2022) तथा रूस (2023) के साथ अनेक शिखर सम्मेलनों का आयोजन किया है. द फोरम फॉर चाइना अफ्रीका को-ऑपरेशन (FOCAC) 2024 का भी सितंबर 2024 में आयोजन किया जाना है. अफ्रीका की प्राथमिकताओं में भारत को ऊपरी स्थान नहीं मिला हुआ है.

यह भी सच है कि वर्षों पुराने संबंधों की वजह से भारत को अफ्रीकी उपमहाद्वीप में काफ़ी इज्जत मिलती है, लेकिन क्या यह इज्ज़त भारत को लाभदायक स्थिति में पहुंचाने के लिए काफ़ी है? इस सवाल का जवाब देना मुश्किल है.

भारतीय नेतृत्व अफ्रीका में आरंभ की गई भारत की पहलों को लेकर काफ़ी गौरवान्वित महसूस करता हैं. लेकिन क्या अफ्रीकी विकास परिदृश्य में भारत की स्थिति केवल उपस्थिति दर्ज़ करवाने वाली ही रह गई है? अफ्रीका में की जा रही भारत की विकास पहलों का क्या प्रभाव पड़ रहा है? महामारी के दौरान भारत ने वैक्सीन मैत्री कार्यक्रम के तहत तत्काल कदम उठाते हुए अफ्रीका की सहायता की थी. भारत ने उसे वक़्त मेडिकल कूटनीति और खाद्यान्न शिपमेंट्‌स भेजने के साथ-साथ अफ्रीका के साथ विकास सहयोग में भी इज़ाफ़ा किया था. लेकिन उपमहाद्वीप में हो रहे परिवर्तनों को देखते हुए भारत को भी अफ्रीका के संदर्भ में अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाने की आवश्यकता है.

 

चित्र 1 : सब सहारन अफ्रीका की वास्तविक GDP विकास दर (2010 to 2022)

 

यहां चार्ट है….

 

स्रोत: वर्ल्ड बैंक डाटा पर आधारित अनुमान.

 

हाल के वर्षों में अफ्रीका में काफ़ी कुछ बदला है. अफ्रीका के अधिकांश देशों को विभिन्न झटकों का सामना करना पड़ा है. इसकी शुरुआत 2015 में वस्तुओं की कीमत में हुए उछाल के साथ हुई. इसके बाद COVID-19 महामारी और फिर यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण ऊर्जा, खाद्यान्न और खाद की कीमतों में उछाल देखा गया. अफ्रीका की GDP विकास दर भी हाल के वर्षों में गिर गई है (देखें चित्र 1). UNCTAD’s की वर्ल्ड इंवेस्टमेंट रिपोर्ट 2024 के अनुसार 2023 में अफ्रीका में FDI निवेश में 3 प्रतिशत की गिरावट देखी गई. 2023 में अफ्रीका के दक्षिण अफ्रीकी क्षेत्र को छोड़कर अन्य इलाकों में होने वाले FDI निवेश में कमी देखी गई. ऐसे में पिछले कुछ वर्षों में यहां विकास को लेकर हुई उन्नति ख़त्म हो गई और SDGs अब पहुंच से पूर्णत: बाहर दिखाई देने लगे है. अफ्रीका इस वक़्त सुरक्षा की एक बड़ी चुनौती का भी सामना कर रहा है. वहां 35 गैर-अंतरराष्ट्रीय सशस्त्र संघर्ष चल रहे है, जिसकी वजह से लाखों लोगों की जान गई है और इतनी ही संख्या में लोगों को विस्थापित होना पड़ा है.

 

द्विपक्षीय संबंधों में निरंतरता

वर्तमान स्थिति को देखते हुए अफ्रीका को लेकर भारत के दृष्टिकोण में तुरंत बदलाव की ज़रूरत है. भारतीय पक्ष को तत्काल ही चौथे भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन के आयोजन पर जोर देना चाहिए. चौथे भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन को अफ्रीका के समक्ष मौजूद विकास चुनौतियों के संदर्भ में भविष्य में भारत के साथ साझेदारी की भूमिका को लेकर एजेंडा तय करना चाहिए. इस एजेंडा में अफ्रीका की चुनौतियों के साथ-साथ उसकी आकांक्षाओं, उसकी तरुण और जवान आबादी का भी समावेश होना चाहिए. 

 

भारत-अफ्रीका बातचीत में निरंतरता बनाए रखना ज़रूरी है, लेकिन ऐतिहासिक संबंधों और एकजुटता का हवाला देकर भारत की बात बनती दिखाई नहीं दे रही. भारत को अब भविष्य की ओर देखने वाला एजेंडा बनाकर भारत और अफ्रीका के बीच ऐसी साझेदारी को विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए जो अफ्रीका और भारत के 2.8 बिलियन नागरिकों की संयुक्त उम्मीदों को पूरा कर सकें.

अब वक़्त आ गया है जब भारत तथा अफ्रीका को एक विस्तृत रोडमैप तैयार करना चाहिए, जो दोनों देशों के बीच संबंधों को और करीब लाकर विकास में तकनीक के उपयोग को सक्षम बना सकें.

चौथे भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन के विकास के लिए मानव पूंजी तथा तकनीक का उपयोग करने वाली साझा रणनीति बनाने की दिशा में काम करना चाहिए. तकनीकी सहयोग ही 1960 तथा 1970 के दशकों से भारत तथा अफ्रीका के बीच विकास साझेदारी का आधार रहा है. लेकिन अब वक़्त आ गया है जब भारत तथा अफ्रीका को एक विस्तृत रोडमैप तैयार करना चाहिए, जो दोनों देशों के बीच संबंधों को और करीब लाकर विकास में तकनीक के उपयोग को सक्षम बना सकें. भारत तथा अफ्रीका को अपनी-अपनी शक्तियों को साझा करते हुए अपने-अपने अनुभवों का लाभ उठाकर जटिल विकास चुनौतियों का मुकाबला करना चाहिए. इसके लिए सबसे ज़रूरी बात यह है कि एक कुशल श्रमिक बल तैयार किया जाएगा. यह सच है कि क्षमता निर्माण ही अफ्रीका के साथ भारत के संबंधों को मजबूत आधार प्रदान करता आया है, लेकिन अब भारत और अफ्रीका दोनों को ही एक विस्तृत रणनीति बनाकर अपनी विशाल युवा आबादी का लाभ उठाना चाहिए. इसके लिए दोनों ही देशों को आने वाले दशकों में स्वाथ्य, पोषण, शिक्षा और प्रशिक्षण में निवेश को बढ़ाना होगा. ऐसा होने पर ही वे पश्चिमी देशों की उम्रदराज़ हो रही आबादी के मुकाबले अपनी युवा आबादी के कार्यबल का लाभ उठाने में सफ़ल हो सकेंगे. सरल मायनों में अब वक़्त आ गया है कि इस आलेख की शुरुआत में लिखे गए शब्दों से आगे बढ़कर बात करनी होगी. क्या कोई सुन रहा है? 


(मलांचा चक्रवर्ती, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो तथा डिप्टी डायरेक्टर (रिसर्च) हैं.)

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