Author : Gurjit Singh

Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 15, 2024 Updated 0 Hours ago

इस बात की संभावना बहुत अधिक है कि इंडोनेशिया के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति, पूर्व राष्ट्रपति जोको विडोडो की विरासत को बनाए रखेंगे.

जोको विडोडो के समर्थन से जनरल प्राबोवो सुबियांतो के सत्ता में आने से क्या इंडोनेशिया में एक नई सियासी विरासत उभर रही है?

14 फरवरी 2024 को इंडोनेशिया में हुए बेहद महत्वपूर्ण चुनावों ने जनरल प्राबोवो सुबियांतो को देश के नए राष्ट्रपति के तौर पर निर्वाचित किया है. जनरल सुबियांतो इस वक़्त इंडोनेशिया के रक्षा मंत्री हैं. चुनाव मैदान में अपने दो प्रतिद्वंदी होने के बावजूद, जनरल सुबियांतो ने 50 फ़ीसद वोट हासिल करने की सरहद आसानी से लांघ ली. इस वजह से दूसरे दौर के पहले ही चुनाव प्रक्रिया समाप्त हो गई. अब दोबारा चुनाव की ज़रूरत नहीं बची है. इंडोनेशिया में व्यवस्था है कि अगर शीर्ष के दो प्रतिद्वंदियों में से कोई भी जब 50 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल नहीं कर पाता है, तो दूसरे दौर के चुनाव कराने पड़ते हैं.


इंडोनेशिया के चुनावों के ज़रिए सत्ता के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के हाथ में चली गई है. इस बदलाव को हम सबसे अच्छी तरह से इस बात से समझ सकते हैं कि मौजूदा राष्ट्रपति जोको विडोडो की जगह लेने वाले नए राष्ट्रपति सुबियांतो पहले के चुनावों में उनके प्रतिद्वंदी रहे थे. वहीं, उनके साथ उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार, मौजूदा राष्ट्रपति जोको विडोडो के बेटे थे. इससे अनूठा राजनीतिक समीकरण बनने का कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता था. क्या नए राष्ट्रपति इंडोनेशिया में शासन चलाने का कोई नया तरीक़ा लागू करेंगे, या फिर वो जोको विडोडो की विरासत को ही आगे बढ़ाएंगे? ये सवाल ख़ास तौर से इसलिए पूछा जा रहा है कि प्राबोवो सुबियांतो की सरकार में उप-राष्ट्रपति जिब्रान रकाबुमिंग राका होंगे, जो मौजूदा राष्ट्रपति जोको विडोडो के बेटे हैं.

इंडोनेशिया में व्यवस्था है कि अगर शीर्ष के दो प्रतिद्वंदियों में से कोई भी जब 50 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल नहीं कर पाता है, तो दूसरे दौर के चुनाव कराने पड़ते हैं.


ज़ाहिर है कि जोको विडोडो अगर वंशवादी राजनीति को नहीं, तो अपनी ख़ुद की विरासत निर्मित करने में ज़रूर जुटे हैं. 2021 में विडोडो के बेटे जिब्रान ने पारताई डेमोक्रेसी इंडोनेशिया परजुआंगन (इंडोनेशिया डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ स्ट्रगल या PDIP) के उम्मीदवार के तौर पर सोलो शहर के मेयर के रूप में उनकी जगह ली थी. अब वो उप-राष्ट्रपति पद तक पहुंच गए हैं, जिसके लिए उनकी उम्र भी कम थी. जिब्रान के भाई और जोको विडोडो के सबसे छोटे बेटे काएसांग पंगारेप को सितंबर 2023 में युवा इंडोनेशियन सॉलिडैरिटी पार्टी (PSI) का प्रमुख घोषित किया गया है. हालांकि संसद के चुनावों में उनकी पार्टी कोई ख़ास प्रदर्शन नहीं कर सकी. राष्ट्रपति जोको विडोडो ख़ुद 62 बरस के हैं और अभी उनके पास सियासी असर दिखाने के लिए लंबी उम्र पड़ी हुई है.


इंडोनेशिया में चुनाव

जोको विडोडो सोलो के एक कामयाब छोटे उद्यमी थे मगर उनकी कोई ख़ास सियासी पहचान नहीं थी. पर उन्होंने 2012 में सोलो के मेयर का चुनाव जीतकर ख़ुद को इस गुमनामी से आज़ाद कर लिया था. उस वक़्त PDIP की मेगावती सुकर्णोपुत्री और जनरल प्राबोवो सुबियांतो की गेरिंद्रा पार्टी ने आपस में हाथ मिलाकर सत्ता पर पकड़ बनाए रखी थी. हालांकि 2009 में उनका गठबंधन, डेमोक्रेटिक पार्टी के हाथों चुनाव हार गया था. इसका नतीजा ये हुआ कि जोको विडोडो को जकार्ता का नया गवर्नर बनने का मौक़ा मिल गया. वहीं, गेरिंद्रा पार्टी ने एक सुदूर के एक छोटे द्वीप से उठाकर अहोक को जकार्ता का डिप्टी गवर्नर बना दिया था. जब 2014 में जोको विडोडो ने PDIP की ओर से राष्ट्रपति का चुनाव जीता, तो अहोक जकार्ता के गवर्नर बन गए थे.


PDIP को लगता है कि विडोडो के एक दशक लंबे शासनकाल के बावजूद अभी भी उसकी छवि मेगावती सुकर्णोपुत्री की पार्टी की है, जो सारे फ़ैसले लेती हैं. PDIP ने विडोडो को निर्णय प्रक्रिया से अलग रखकर शायद उनको पार्टी का एक सामान्य कार्यकर्ता समझने में भूल की थी. हो सकता है कि 2012 में पार्टी का ये ख़याल सही रहा हो जब जोको विडोडो को जकार्ता का गवर्नर चुना गया था. या फिर ये बात उस वक़्त भी सही रही हो जब 2014 में वो पार्टी की तरफ़ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाए गए थे. पर, दस बरस तक राष्ट्रपति बनने के बाद जोको विडोडो की अपनी पहचान और ख़ूबियां हैं, जिनका लाभ PDIP अपने हित में कर सकती थी. उनको देश की 80 प्रतिशत जनता का समर्थन था, ये बात साफ़ नज़र आ रही थी. इसके बजाय PDIP ने जोको विडोडो को किनारे धकेल दिया और राष्ट्रपति चुनाव के लिए सेंट्रल जावा के गवर्नर गंजर प्रोनोवो को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया. लेकिन, जोको विडोडो पार्टी के इस फ़ैसले से सहमत नहीं थे. उन्होंने मेगावती सुकर्णोपुत्री की तुलना में जनरल प्राबोवो सुबियांतो से बेहतर मोल-भाव कर लिया. वैसे भी मेगावती ने जोको विडोडो से जो वादे पहले किए थे, उनको भी नहीं पूरा किया था. 

 बजाय PDIP ने जोको विडोडो को किनारे धकेल दिया और राष्ट्रपति चुनाव के लिए सेंट्रल जावा के गवर्नर गंजर प्रोनोवो को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया. लेकिन, जोको विडोडो पार्टी के इस फ़ैसले से सहमत नहीं थे.


पूरे चुनाव अभियान के दौरान साफ़ दिख रहा था कि प्राबोवो के पीछे जोको विडोडो का हाथ है. राष्ट्रपति के तौर पर वो निरपेक्ष बने रहे. उनके समन्वय मंत्री और क़रीबी साथी जनरल लुहुत पंजायतन ये कहने में नहीं हिचकिचाए कि भले ही विडोडो निरपेक्ष हों, मगर इस बात की संभावना अधिक है कि उनकी विरासत को शायद जनरल प्राबोवो ज़्यादा बनाए रखेंगे. ऐसे में जोको विडोडो और मेगावती के बीच की इस दरार ने उन मतदाताओं को प्रभावित किया, जिन्होंने पहले PDIP को समर्थन दिया था. ऐसा लगता है कि युवा पीढ़ी ने PDIP को छोड़ दिया और उनका झुकाव एक दुलार करने वाले दादा की छवि रखने वाले प्रबोवो की तरफ़ हो गया. ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया पर उनकी ज़बरदस्त गतिविधियां भी दूसरों की तुलना में ज़्यादा असरदार रहीं. 


इंडोनेशिया की सियासत में और भी कई दरारें पड़ी हुई हैं. पारंपरिक मुस्लिम समूहों का दबदबा भी सिमटा है. (9.5 करोड़ समर्थकों) वाले नहदातुल उलामा (NU) और (5 करोड़ समर्थकों) वाले मोहम्मदिया ने अक्सर पर्दे के पीछे आपसी तालमेल से काम करने की कोशिश की है. लेकिन, उनके समर्थक और नेता बंटे हुए थे.


अपने दूसरे कार्यकाल में जोको विडोडो ने नहद्लतुल उलमा (NU) के नेता मारूफ अमीन को अपना उप-राष्ट्रपति बनाया था. लेकिन, वो शायद ही कभी दिखे या सुनाई दिए हों. NU के कई नेता प्रबोवो के समर्थक हैं. निचले स्तर के कुछ लोग, पूर्व शिक्षा मंत्री और जकार्ता के गवर्नर अनीस बास्वेदान का भी समर्थन करते हैं. 2019 में मुहम्मदिया और नहद्लतुल उलमा ने एक हद तक प्राबोवो का समर्थन किया था; पर, इस बार वो शुरुआत में तो अनीस का समर्थन कर रहे थे. लेकिन, बाद में उनमें फूट पड़ गई और एक तबक़ा चुनाव के बाद के चरणों में प्राबोवो का समर्थन करने लगा. ये तब हुआ जबकि अनीस ने इंडोनेशिया की सबसे बड़ी इस्लामिक पार्टी के अध्यक्ष मुहैमिन इस्कंदर को अपने साथ उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था. इस्कंदर नेशनल अवेकनिंग पार्टी (PKB) की अगुवाई करते हैं, जिसके इंडोनेशिया के सबसे बड़े इस्लामिक संगठन नहद्लतुल उलमा के साथ मज़बूत रिश्ते हैं. इस वजह से अनीस को फ़ायदा भी मिला. राष्ट्रपति चुनाव में 25 फ़ीसद वोट लेकर वो दूसरे स्थान पर रहे. जबकि प्राबोवो को लगभग 58 प्रतिशत और गंजर को 20 फ़ीसद से भी कम वोट मिले.


इस तरह PDIP के समर्थकों, मुस्लिमों के पारंपरिक संस्थागत समर्थकों और कट्टरपंथी मुसलमान तबक़े, सबके सब बंटे हुए थे, जिसका फ़ायदा प्राबोवो सुबियांतो को मिला और वो अपने हक़ में ज़्यादा वोट जुटा सके. इसमें PDIP और आम तौर पर मुस्लिम संगठनों के वो समर्थक भी शामिल थे, जो राष्ट्रपति जोको विडोडो के साथ खड़े रहे थे. जोको विडोडो के करिश्मे और लोकप्रियता का साथ लेकर प्राबोवो ने बाक़ी उम्मीदवारों के मुक़ाबले काफ़ी बड़ी बढ़त बना ली थी.


प्राबोवो पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के पुराने मामलों से संबंधों को लेकर हमला किया गया था. उन्होंने परिचर्चाओं में इस मसले का बड़ी समझदारी से मुक़ाबला किया. इंडोनेशिया के 20.4 करोड़ मतदाताओं में से 52 प्रतिशत की उम्र 40 बरस से कम है. ऐसे में उनके लिए इन आरोपों के बारे में समझ बहुत कम थी. प्राबोवो की जीत में ये युवा फैक्टर बहुत कारगर साबित हुआ.


क्या प्राबोवो की जीत, सुकर्णों ख़ानदान के अंत का संकेत है? इंडोनेशिया के संस्थापक सुकर्णो की बेटी मेगावती कुछ मुश्किलों के साथ राष्ट्रपति बन सकी थीं. वो 1999 से 2001 तक उप-राष्ट्रपति और फिर 2001 से 2004 तक राष्ट्रपति रही थीं, पर उनको राष्ट्रपति का पूरा कार्यकाल कभी नहीं मिला. बाद में प्राबोवो से गठबंधन करने की उनकी कोशिशें कामयाब नहीं हुईं. इसके बाद, वो सियासी गॉडमदर बन गईं और उन्होंने जोको विडोडो को राष्ट्रपति के लिए और बहुत से दूसरे स्थानीय नेताओं को राज्यों के गवर्नर और दूसरे पदों पर बिठाया. इसकी वजह, पार्टी पर उनका मजबूत नियंत्रण है, जिसकी वजह से वो 20 प्रतिशत से अधिक वोट और उसी अनुपात में संसद में सीटें जीत सकती थीं.


हालांकि, ऐसा लगता है कि मेगावती की अपनी संतानों में वैसा करिश्मा भी नहीं है. उनकी बेटी पुआन महारानी को जोको विडोडो ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान समन्वय मंत्री बनाया था, जो मंत्री पद से एक पायदान ऊपर का ओहदा है. दूसरे कार्यकाल में वो संसद की स्पीकर बनीं. वैसे तो पुआन महारानी बहुत मीठे स्वभाव की शख़्सियत हैं. लेकिन, वो अपनी मां मेगावती जैसी सियासी तरक़्क़ी नहीं कर सकी हैं. मेगावती के बेटे भी संसद में रहने के बावजूद अपनी कोई सियासी पहचान नहीं बना सके हैं.


ऐसे में अब सुकर्णो की विरासत का क्या होगा? राष्ट्रपति चुनाव में मेगावती की पार्टी को ज़बरदस्त हार का सामना करना पड़ा. पर संसद और सूबों में वो अभी भी एक प्रमुख पार्टी है. मेगावती ने जोको विडोडो को अपनी विरासत का संभावित वारिस बनाने से पल्ला झाड़ लिया है. अब सियासत में सक्रिय अपने दो बेटों के ज़रिए जोको विडोडो अपनी ख़ुद की विरासत संवारने में जुट गए हैं.


अब आगे जो हम देखेंगे, वो मेगावती के साए से उबरकर एक नए सत्ताधारी वर्ग का उभार होगा. इस नए सत्ताधारी तबक़े की वफ़ादारी जोको विडोडो के साथ जुड़ी होगी. प्राबोवो अपने साथ अपने नज़दीकी लोगों को सत्ता मे ले आएंगे, जो काफ़ी समय से सत्ता से दूर रखे गए थे. अपने पिछले कार्यकाल में विडोडो ने चुनाव हराने के बावजूद प्राबोवो को अपनी कैबिनेट में रक्षा मंत्री बनाया था. उन्होंने गेरिंद्रा पार्टी को सरकार में साझीदार बनाया था. अब इस भूमिका का और विस्तार होगा.


जोको विडोडो चाहेंगे कि उनकी विरासत बनाए रखी जाए. इसमें इंडोनेशिया में मूलभूत ढांचे का निर्माण भी शामिल है, जिसके लिए चीन से ज़्यादातर समर्थन हासिल कर लिया गया है. प्राबोवो से उम्मीद है कि वो इसको बनाए रखने की कोशिश करेंगे, लेकिन वो इसमें अपनी तरफ़ से भी कुछ चीज़े जोड़ेंगे, ताकि इंडोनेशिया पर चीन का वैसा दबदबा न रह पाये. जोको विडोडो ने निकेल और दूसरे खनिजों की प्रोसेसिंग शुरू करके सियासत में राष्ट्रवादी नज़रिए का विस्तार किया था. इलेक्ट्रिक गाड़ियों के बढ़ते चलन की वजह से इन क़दमों की कहीं ज़्यादा अहमियत होगी. चीन ने इंडोनेशिया में निकेल की खदानों में भारी निवेश कर रखा है. जोको विडोडो चाहते थे कि इसकी प्रोसेसिंग का ज़्यादा काम इंडोनेशिया में ही हो, जिससे मूल्य संवर्धन हो सके. इससे बिजली घरों में निवेश आएगा, जो निकेल की प्रोसेसिंग की अहम कड़ी हैं. विडोडो चाहते थे कि उनका देश इलेक्ट्रिक गाड़ियों की आपूर्ति श्रृंखला का अहम हिस्सा बने. प्राबोवो द्वारा ये प्रयास जारी रखने की उम्मीद है.


निष्कर्ष


जोको विडोडो की पसंदीदा परियोजना कालीमंतन में नुसानतारा के नाम से नई राजधानी का निर्माण है. भले ही इस नई राजधानी से जकार्ता में उम्मीद के मुताबिक़ भीड़ कम न हो. लेकिन, इससे एक नए शहर का निर्माण होगा, जो अधिक आधुनिक और टिकाऊ होगा. अगर नुसानतारा को लेकर प्राबोवो के ख्यालात उतने मज़बूत न हों, तो भी उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव की परिचर्चाओं में इस बात से इनकार नहीं किया था कि नई राजधानी नुसानतारा के पास उनके क़ब्ज़े में विशाल भूभाग हैं, जो शहरीकरण में बढ़ोत्तरी की वजह से काफ़ी मुनाफ़ा देने वाले साबित होंगे.

राष्ट्रपति चुनाव की परिचर्चाओं में इस बात से इनकार नहीं किया था कि नई राजधानी नुसानतारा के पास उनके क़ब्ज़े में विशाल भूभाग हैं, जो शहरीकरण में बढ़ोत्तरी की वजह से काफ़ी मुनाफ़ा देने वाले साबित होंगे.


और आख़िर में जोको विडोडो चाहेंगे कि उनका नाम और विरासत सुकर्णो और मेगावती की विरासत से आगे बढ़कर याद रखा जाए. इस मक़सद को हासिल करने में प्राबोवो ख़ास तौर से मददगार साबित होंगे, क्योंकि विडोडो के बेटे उनकी सरकार में उप-राष्ट्रपति हैं और शायद आगे चलकर वो राष्ट्रपति भी बन जाएं.


इसके लिए, उनका सत्ताधारी गठबंधन ऑनवार्ड इंडोनेशिया समर्थन जुटाएगा. नई संसद में दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी पार्टियां गोलकर और गेरिंद्रा पहले ही इस गठबंधन का हिस्सा हैं. डेमोक्रेटिक पार्टी, नेशनल मैंडेट पार्टी (PAN) और दूसरी छोटी पार्टियां भी साथ आ जाएंगी. PDIP और अन्य दूसरे दलों, जिन्होंने अनीस का समर्थन किया था, उनका क्या होगा, ये देखना दिलचस्प होगा. जोको विडोडो में विशाल गठबंधन बनाने की काफ़ी क्षमता है. 575 सांसदों में से उनके पास 471 या 82 प्रतिशत सांसदों का समर्थन था. लेकिन, अभी तो प्राबोवो को अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के शुरुआती दिनों में जोको विडोडो के इस हुनर की ज़रूरत ज़्यादा होगी.

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