Published on Oct 13, 2023 Updated 0 Hours ago

ब्रिक्स की अपनी सदस्यता को ईरान विदेश नीति की सफलता के तौर पर देखता है लेकिन ये देखा जाना अभी बाकी है कि क्या ये कदम दीर्घकालीन फायदे के रूप में तब्दील होगा.

ईरान की ब्रिक्स सदस्यता का पश्चिम एशिया और दुनिया के लिए क्या मतलब है?

दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में 22-24 अगस्त 2023 को आयोजित 15वें ब्रिक्स (BRICS) शिखर सम्मेलन के दौरान 2024 से छह नए सदस्यों को इस संगठन में शामिल करने को मंज़ूरी दी गईये सदस्य देश हैं अर्जेंटीनाइथियोपिया और मध्य पूर्व एवं उत्तर अफ्रीका (MENA) रीजन के चार देश– मिस्रसऊदी अरबसंयुक्त अरब अमीरात (UAE) और ईरानइन नए सदस्यों के साथ ब्रिक्स एक तानाशाही संगठन बनने की तरफ बढ़ रहा है क्योंकि नए सदस्यों में से ज़्यादातर देशोंख़ास तौर पर MENA रीजन से संबंध रखने वालेमें तानाशाही शासन है

ख़बरों के मुताबिक40 से ज़्यादा देशों ने ब्रिक्स संगठन में शामिल होने में दिलचस्पी जताई हैइस संगठन की स्थापना 2009 में BRIC (ब्राज़ीलरूसइंडियाचाइनाके तौर पर की गई थी और एक साल के बाद जब दक्षिण अफ्रीका इसमें शामिल हुआ तो ये BRICS हो गयाअपने भाषण में मेज़बान देश दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने ज़ोर दिया कि: “मिलाकर देखें तो ब्रिक्स देश वैश्विक अर्थव्यवस्था में एकचौथाई और वैश्विक व्यापार में पांचवें हिस्से का योगदान करते हैं और इन देशों में दुनिया की कुल आबादी के 40 प्रतिशत लोग रहते हैंजिस समय हम ब्रिक्स की 15वीं सालगिरह मना रहे हैंउस वक्त ब्रिक्स के देशों के बीच पिछले साल 162 अरब अमेरिकी डॉलर का कुल व्यापार हुआब्रिक्स देशों में कुल सालाना प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 20 साल पहले के मुकाबले चार गुना हुआ है.” वहीं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि ब्रिक्स का विस्तार सदस्य देशों के बीच सहयोग का शुरुआती बिंदु है जो स्पष्ट रूप से ब्रिक्स के सहयोगात्मक तौरतरीके को मज़बूत कर रहा है और दुनिया में शांति एवं विकास को बढ़ावा दे रहा है

जिस समय हम ब्रिक्स की 15वीं सालगिरह मना रहे हैं, उस वक्त ब्रिक्स के देशों के बीच पिछले साल 162 अरब अमेरिकी डॉलर का कुल व्यापार हुआ. ब्रिक्स देशों में कुल सालाना प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 20 साल पहले के मुकाबले चार गुना हुआ है.”

नए देशों के जुड़ने के साथ ये समूह दुनिया की कुल आबादी में से आधी की नुमाइंदगी करेगासाथ ही विस्तार के बाद इस संगठन को अगले साल से “BRICS+”/”BRICS प्लस” का नाम दिया जा सकता है और इसमें दुनिया में सबसे ज़्यादा हाइड्रोकार्बन ऊर्जा की खपत करने वाला देश चीन और दुनिया में सबसे ज़्यादा ऊर्जा का उत्पादक देश सऊदी अरब शामिल होगा

शिखर सम्मेलन के दौरान चर्चा का एक मुख्य विषय था डॉलर के इस्तेमाल को ख़त्म करने की इस समूह की आकांक्षाइसे ब्रिक्स के “सेंट्रल बैंक”- न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB)- की प्रमुख और ब्राज़ील की पूर्व राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ ने भी चीन के सरकारी टीवी चैनल CCTV के साथ एक इंटरव्यू के दौरान ज़ोर देकर कहा था

वास्तव मेंशुरू में ये योजना बनाई गई थी कि ब्रिक्स नए सदस्यों को जोड़ने के संबंध में पहले एक तौरतरीका विकसित करेगाइस तरह लगता है कि नया तौरतरीका बनाने से पहले नए सदस्यों को जोड़ने की घोषणा अचानक उठाया गया कदम हैइसे अलग ढंग से कहें तो ख़बरों के मुताबिक अलगअलग देशों ने नए सदस्यों को जोड़ने के प्रस्ताव को आगे बढ़ायाउदाहरण के तौर परमिस्र की सदस्यता को उसी महादेश के दक्षिण अफ्रीका ने आगे बढ़ाया और ईरान की सदस्यता को रूस और शायद चीन ने

ये लेख इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान की सदस्यताब्रिक्स संगठन में शामिल होने के पीछे ईरान के मक़सद और ईरान के स्वागत के साथसाथ इसके नतीजों पर ध्यान केंद्रित करेगा

ब्रिक्स में ईरान का दाखिला

ये व्यापक तौर पर माना जाता है कि ईरान की सदस्यता को रूस ने आगे बढ़ाया और कमसेकम चीन ने इसका स्वागत कियाइसके पीछे ख़ास तौर पर अमेरिका के नेतृत्व मे लगाई गई पाबंदियों और आम तौर पर दबाव से बचने की उनकी क्षमता को मज़बूत करने की कोशिश है

ईरान के लिए ब्रिक्स की मिलने वाली सदस्यता कई वजहों से प्रोपेगैंडा की सफलता का एक बेहतरीन उदाहरण हैपहली वजह है कि ये ईरान के द्वारा पश्चिमी देशों के कमज़ोर होने के नज़रिए को ठोस बनाने के साथसाथ मुख्य रूप से चीन और रूस की अगुवाई में गैरपश्चिमी नई विश्व व्यवस्था का एक अभिन्न अंग बनने के उसके बताए गए मक़सद को मज़बूत करता है. दूसरी वजह ये है कि सदस्यता मिलने के साथ ईरान ये ऐलान कर सकता है कि अमेरिकी दबाव को झेलने में वो कामयाब रहा है और उसे अमेरिका या पश्चिमी देशों को किसी तरह की रियायत की पेशकश भी नहीं करनी पड़ीदोनों बातों के नतीजतन ईरान के लिए ब्रिक्स में आना “पूरब की तरफ देखो” के भूराजनीतिक दृष्टिकोण और पश्चिमी देशों के सामने टकरावपूर्ण रवैये की मज़बूत पुष्टि है

पहली वजह है कि ये ईरान के द्वारा पश्चिमी देशों के कमज़ोर होने के नज़रिए को ठोस बनाने के साथ-साथ मुख्य रूप से चीन और रूस की अगुवाई में गैर-पश्चिमी नई विश्व व्यवस्था का एक अभिन्न अंग बनने के उसके बताए गए मक़सद को मज़बूत करता है.

ये विचार ईरान के अधिकारियों और सत्ता से जुड़े बड़े संगठनों की प्रतिक्रिया में दिखता हैराष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने कहा कि ब्रिक्स के साथ उनके देश का जुड़ना एक ऐतिहासिक उपलब्धि का प्रतीक हैईरान में बेहद कट्टरपंथी अख़बार केहान ने इस ख़बर को पहले पन्ने पर इस शीर्षक के साथ छापा “बिना JCOPA और FATF: ईरान की ब्रिक्स सदस्यता अमेरिकी पाबंदियों पर निशाना”. दूसरे शब्दों में ईरान को  तो अपने परमाणु कार्यक्रम को छोड़ना पड़ा ही आतंकवाद को फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के बारे में अंतर्राष्ट्रीय शर्तों को पूरा करना पड़ाइस बीचइस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (IRGC) से जुड़े जावन अख़बार के पहले पन्ने की प्रतिक्रिया ने ईरानी नेतृत्व की इस सोच को मज़बूत किया कि नई विश्व व्यवस्था का उदय हो रहा हैअख़बार के लेख का शीर्षक था “नई दुनिया को सलाम”. 

जो बात निश्चित है वो ये कि ईरान ब्रिक्स की सदस्यता को अपनी विदेश नीति की एक और सफलता के रूप में देखता हैइससे पहले 1) ईरान को इस साल जुलाई में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की पूर्ण सदस्यता मिली थी; 2) मार्च में क्षेत्रीय विरोधी सऊदी अरब के साथ चीन की मध्यस्थता में दुश्मनी कम हुई थी; 3) अमेरिका के साथ समझौते के तहत 10 अरब अमेरिकी डॉलर की ईरानी संपत्ति पर लगी रोक को हटाया गया था और 4) ये निश्चितता आई थी कि ईरान की सरकार अगर देश में सत्ता विरोधी प्रदर्शनों पर बेरहमी से कार्रवाई करती है या अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज़ी से आगे बढ़ाती है तो उसे पश्चिमी देशों से बहुत ज़्यादा नुक़सान होने का डर नहीं है

संभावित परेशानियां

कागज़ों मेंब्रिक्स का विस्तार इस संगठन की भूआर्थिक और भूराजनीतिक प्रतिष्ठा को बढ़ाने की तरफ एक मील का पत्थर हैइस तरह एक गैरपश्चिमीबहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की रचना की तरफ एक महत्वपूर्ण गुणात्मक बदलाव है

ब्रिक्स के विस्तार के साथसाथ ईरान की सदस्यता को लेकर जीत के भाव के बावजूद एक गैरपश्चिमी विश्व व्यवस्था के रैखिक विकास (लीनियर डेवलपमेंटकी तरफ संभावित जटिलताएं हैंपहली जटिलता ये है कि ईरान में भी सरकार के द्वारा सफलता की स्थिति पेश किए जाने के बावजूद संदेह का माहौल हैउदाहरण के लिएईरान के सुधारवादी अख़बार हममिहान ने तेहरान यूनिवर्सिटी के इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर अलीरज़ा सुल्तानी का एक इंटरव्यू प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने इस विचार के ख़िलाफ़ दलील दी कि केवल ब्रिक्स की सदस्यता से ईरान की आर्थिक और विकास से जुड़ी चुनौतियों का समाधान हो जाएगाउन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस तरह के विचार पर यकीन गलत और असलियत से परे हैउनके मुताबिक सिर्फ ब्रिक्स में शामिल होने से ईरान के सामने मौजूद चुनौतियां हल नहीं हो जाएंगीवास्तव मेंये दलील इस एहसास पर आधारित है कि पश्चिमी देशों की पाबंदियों में राहत और उनके साथ संबंधों में सुधार के बिना अमेरिका के दबदबे वाले अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग और वित्तीय सिस्टम के भीतर पर्याप्त रूप से ईरान के आर्थिक संकट का हल नहीं होगा

ईरान की विदेश नीति से जुड़े अधिकारियों ने कहा है कि उसकी ब्रिक्स सदस्यता ज्वाइंट कंप्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (JCPOA) को फिर से शुरू करने और पश्चिमी देशों के साथ इसी तरह की रियायतों को गैर-ज़रूरी बना देगी.

दूसरी जटिलता ये है कि ब्रिक्स नेटो या यूरोपियन यूनियन (EU) की तरह नहीं है क्योंकि इसका औपचारिक ढांचा नहीं है यानी एक उचित चार्टरसचिवालयसदस्यता के लिए निर्धारित शर्त और विस्तार की प्रक्रियायहां तक कि एक लंबे समय तक इसकी वेबसाइट भी काम नहीं कर रही थी

तीसरी जटिलता ये है कि 15 साल पहले शुरुआत के समय से ब्रिक्स के विकास के अनुभव को देखते हुए इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि इस संगठन की बुलंद हसरतें हकीकत में तब्दील होंगीचाहे ये भूआर्थिक और भूराजनीतिक शक्ति के फिर से बंटवारे को लेकर हो या ब्रिक्स (+) के भीतर व्यापार को लेकर

चौथी जटिलताईरान की विदेश नीति से जुड़े अधिकारियों ने कहा है कि उसकी ब्रिक्स सदस्यता ज्वाइंट कंप्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (JCPOA) को फिर से शुरू करने और पश्चिमी देशों के साथ इसी तरह की रियायतों को गैरज़रूरी बना देगी. फिर भी 20 अगस्त को चीन के विदेश मंत्री वांग यी के द्वारा ईरान के विदेश मंत्री को “JCPOA के पूर्ण और प्रभावी अमल” की कोशिश की सलाह को देखते हुए ईरान इस समझौते को आसानी से टाल नहीं सकता हैईरान के नेतृत्व ने अपने देश में JCOPA की बहाली की आवश्यकता को कम करने के सामरिक संकल्प का प्रदर्शन किया हैये संभावना इस बढ़ती सोच की वजह से विकसित हुई है कि पश्चिमी देशों के दबावख़ास तौर पर अमेरिकी पाबंदियोंमें वो क्षमता नहीं है कि वो ईरान के व्यवहार को बदल सकेतात्कालिक संदर्भ में ब्रिक्स में शामिल होना इस सोच को बढ़ावा दे सकता हैये इस बात का प्रतीक होगा कि इस्लामिक रिपब्लिक ने पश्चिमी देशों के द्वारा थोपे गए राजनीतिक और आर्थिक दबाव के प्रति अधिक प्रतिरोध की क्षमता हासिल कर ली है

देखने का नज़रिया और मतलब

कम समय के हिसाब से देखें तो ब्रिक्स की संभावित सदस्यता ईरान के शासन के लिए रूस और चीन के साथ अपने रिश्तों को बढ़ावा देने में प्रेरक का काम कर सकती हैइसकी वजह ये है कि ईरान ब्रिक्स की अपनी सदस्यता को अपनी “पूरब की तरफ देखो” रणनीति के एक नतीजे के तौर पर देख रहा है

चीन के मामले में ईरान की सदस्यता उसे ईरान के तेल पर ज़्यादा रियायत और छूट मुहैया करा सकती हैसाथ ही चीन के कारोबार के लिए ईरान के बाज़ार में भागीदारी और निवेश करने में लुभावना प्रोत्साहन हो सकती हैरूस के मामले में देखें तो ईरान रूस के साथ गहरे सैन्य सहयोग को लेकर अपनी बढ़ी हुई दिलचस्पी को ज़ाहिर कर सकता है और इस तरह की पहल का प्रस्ताव दे सकता है जो पश्चिमी देशों के द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से अलगथलग होने का मुकाबला करेइस तरह के वेंचर (उद्यमका एक उदाहरण है प्रस्तावित नॉर्थसाउथ कॉरिडोर जो कि ईरान के ज़रिए रूस को हिंद महासागर से जोड़ने वाला एक रेल रूट है

इस तरह कम समय में ईरान पश्चिमी देशों के हित की कीमत पर उल्लेखनीय राजनीतिक फायदे हासिल करेगालेकिन कम समय के आर्थिक फायदे ज़्यादा चुनौतीपूर्ण हैं क्योंकि प्रतिबंधों से पार पाना एक रुकावट बनी हुई हैकुल मिलाकर अल्प अवधि में ईरान की उपलब्धि इस बात पर निर्भर करती है कि अमेरिका किस हद तक ईरान के ख़िलाफ अपनी पाबंदियों को तेज़ करने और धमकाने वाले उपायों को बढ़ाने की इच्छा रखता हैबाइडेन प्रशासन के तहत मौजूदा रास्ता ईरान के पक्ष में लगता है. 

इसके अलावा, BRICS+ के सदस्यों की विविधता इस बात पर काफी असर डालेगी कि ये संगठन अपनी बड़ी आकांक्षाओं को पूरा करने में सफल होगा या नहींसबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि संगठन के भीतर भी संघर्ष शुरू हो सकता हैये संघर्ष उन सदस्य देशों के बीच हो सकता है जो पश्चिमी देशों के ख़िलाफ़ हैं जैसे कि रूसचीन और ईरान और वो देश जो पश्चिमी देशों के साथ मिलकर चलना चाहते हैं जैसे कि सऊदी अरब, UAE, मिस्र और अर्जेंटीना

लंबे समय में देखें तो ईरान ब्रिक्स की अपनी सदस्यता को उभरती विश्व व्यवस्था को आकार देने में एक प्रमुख भूमिका हासिल करने के माध्यम के रूप में देखता हैइस्लामिक रिपब्लिक पश्चिमी ताकतों के ख़िलाफ़ ब्रिक्स के सामूहिक विरोध को तेज़ करना चाहता है और इस तरह संगठन के भीतर एक बदलाव का रुख आगे बढ़ाना चाहता हैवैसे तो ब्रिक्स के बड़े सदस्य देश एक नए और फिर से परिभाषित विश्व व्यवस्था में दिलचस्पी दिखाते हैं लेकिन हाल के दिनों का विस्तार इस आकांक्षा को चुनौती देता हैसंगठन में अब अलगअलग किरदार शामिल हैं जिनके अलगअलग राजनीतिक और आर्थिक लक्ष्य हैंकुछ सदस्यों के बीच तो महत्वपूर्ण मुकाबला भी हैइन जटिलताओं को देखते हुए ब्रिक्स के लिए ये एक मुश्किल कोशिश हो जाती है कि विश्व व्यवस्था को नया आकार देने में एक केंद्रीय और जोड़ने वाली भूमिका स्थापित करेइसके नतीजतनईरान की सत्ता जिस तरह की विश्व व्यवस्था चाहती हैउसको एक ख़तरा है

इसके अलावामध्य पूर्व की भूराजनीति के उतारचढ़ाव को देखते हुए इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि बड़ी क्षेत्रीय ताकतों के बीच बड़ी दरार फिर से सामने  सकती हैमिसाल के तौर परईरान और सऊदी अरब के बीच की शांति कुछ ही समय तक बनी रह सकती हैइसका कारण ईरान के द्वारा अमेरिका के साथ समझौता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से क्षेत्रीय भूराजनीति को कम करने के लिए संभावित अल्प अवधि के हितों के आगे विस्तारवादी क्षेत्रीय “प्रतिरोध की धुरी” को बलपूर्वक फिर से शुरू करना हो सकता है. इराक के एक सूत्र के मुताबिक, 15 अगस्त को बग़दाद में आने के बाद IRGC के कमांडरइनचीफ इस्माइल क़ानी ने इस्लामिक प्रतिरोध की समन्वय समिति के भीतर नेताओं से अनुरोध किया कि “इस समय अमेरिका और वैश्विक गठबंधन के बलों के ख़िलाफ़ सभी सैन्य अभियानों को रोक दिया जाए”. इसके विपरीतईरान के नेतृत्व में “प्रतिरोध की धुरी” को मज़बूत करना ईरानी अहंकार की नई भावना से प्रेरित हो सकता हैइसकी वजह ऊपर बताई गई विदेश नीति की सफलताएं और अमेरिका के कमज़ोर होने की उसकी सोच हो सकती हैलेकिन ये वास्तव में सऊदी अरब के साथ शांति की कोशिशों को ख़तरे में डाल सकती हैसाथ ही चीन को भी अलग कर सकती है क्योंकि वो अपनी ऊर्जा की आपूर्ति की आवश्यकताओं की वजह से फारस की खाड़ी के क्षेत्र में स्थिरता में दिलचस्पी रखता है.


अली फतोल्लाहनेजाद सेंटर फॉर मिडिल ईस्ट एंड ग्लोबल ऑर्डर के फाउंडर और डायरेक्टर हैंवो बेहद चर्चित किताब ईरान इन एन एमर्जिंग न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के लेखक भी हैं

अमीन नईनी मेलबर्न की दीकिन यूनिवर्सिटी के अल्फ्रेड दीकिन इंस्टीट्यूट फॉर सिटीज़नशिप एंड ग्लोबलाइज़ेशन (ADI) में Ph.D. कैंडिडेट और रिसर्च असिस्टेंट हैंवो CMEG में फेलो भी हैं.

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