Author : Anshuman Behera

Expert Speak India Matters
Published on May 24, 2023 Updated 28 Days ago

मणिपुर में सदियों पुराने जनजातीय संघर्ष ने वर्तमान संकट को जन्म दिया है. इसे ख़त्म करने के लिए सभी हितधारकों को मिलकर काम करना होगा.

मणिपुर: जातीय संघर्ष की व्याख्या

मणिपुर में हाल ही में भड़की हिंसा की घटनाओं के मद्देनजर राज्य सरकार 8 जिलों में कर्फ्यू लगाने और इंटरनेट सेवाओं को बंद करने और केंद्र सरकार कानून-व्यवस्था की बहाली के लिए अर्धसैनिक बलों और सेना की तैनाती के लिए बाध्य हुई है, जिसे पूरी तरह अप्रत्याशित नहीं कहा जा सकता. उग्रवादी समूहों द्वारा दशकों से जारी हिंसा में आई कमी के संदर्भ में देखें, तो मणिपुर में बड़ी मुश्किलों के बाद स्थापित हुई शांति हाल ही में भड़की हिंसक घटनाओं के चलते अब ख़तरे में है. जबकि राज्य में जातीय विभाजन की जड़ें काफ़ी गहरी हैं (विशेष रूप से घाटी में रहने वाली बहुसंख्यक मेइती जनजाति और पहाड़ों पर बसी अल्पसंख्यक कुकी जनजाति के बीच), ऐसे में अगर विभिन्न नस्लीय समुदायों के बीच एक-दूसरे के प्रति अविश्वास, डर, चिंता और असुरक्षा आधारित राजनीति को पहचान कर उसका कोई तात्कालिक समाधान नहीं ढूंढ़ा गया, तो ये हिंसक घटनाएं राज्य में गृह युद्ध जैसे हालात पैदा होने के संकेत देती हैं.

मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के मुताबिक, हिंसक घटनाओं में अब तक 60 से अधिक लोग मारे गए हैं, 200 लोग घायल हुए हैं, 35,000 लोग विस्थापित हुए हैं और 1,700 घरों को जला दिया गया है.


मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के मुताबिक, हिंसक घटनाओं में अब तक 60 से अधिक लोग मारे गए हैं, 200 लोग घायल हुए हैं, 35,000 लोग विस्थापित हुए हैं और 1,700 घरों को जला दिया गया है. जबकि रिपोर्ट में उन कारणों (उपद्रवियों ने 28 अप्रैल को चुराचांदपुर में मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में तोड़फोड़ मचाई, उसके बाद 3 मई को एंग्लो-कूकी युद्ध शताब्दी गेट को आग के हवाले कर दिया गया, और उसी दिन ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) के नेतृत्व में 'ट्राइबल सालिडैरिटी मार्च' निकाला गया) पर रोशनी डाली गई है, जो हिंसक घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार थीं लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि मणिपुर में नस्लीय हिंसा के व्यापक इतिहास की पड़ताल की जाए. यह लेख उन मुद्दों पर विचार करता है जिन्हें मणिपुर में जातीय संघर्ष के मूल कारणों के रूप में देखा जाता है और ऐसा माना जाता है कि राज्य में संघर्ष के बरकरार रहने के पीछे यही मुद्दे ज़िम्मेदार हैं.

पहचान और स्थानीयता से जुड़ी लड़ाइयां


स्पष्ट रूप से, मेइती, नगा और कुकी जनजातियों के बीच मौजूद गहरे जातीय विभाजन ने मणिपुर में ज्यादातर संघर्षों में योगदान दिया है. सालों से, जातीय पहचान ही इन समूहों के आपसी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संबंधों (विवादास्पद) का आधार रही है, जिसने उसे आकार दिया है. मूल निवासी की पहचान को लेकर जारी प्रतिस्पर्धा को विभिन्न जातीय समूहों के बीच संघर्ष के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. 'जन्मभूमि' से जुड़ी भिन्न-भिन्न कल्पनाएं इन समूहों के बीच मौजूद जातीय विभाजन को और मज़बूत बनाती हैं. इसके अलावा, व्यक्तिगत समूहों ने जातीय पहचान के अपने दावे के साथ-साथ बहुसंख्यक मांगों को भी सामने रखा है, जिसने जातीय संघर्ष को बढ़ावा दिया है.

इसी तरह, 'मणिपुर' को लेकर अलग-अलग समूहों के अलग-अलग विचार हैं. मेइती जनजाति के लोग मुख्य रूप से इंफाल घाटी और उसके आसपास के इलाकों में बसे हैं, जिनमें से ज्य़ादातर स्वयं को  मणिपुर की अखंडता का संरक्षक और रक्षक के रूप में देखते हैं. मूल निवासी के रूप में अल्पसंख्यक जनजातीय समुदायों, ख़ासकर कुकी जनजाति की पहचान पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं और उन्हें ख़ारिज कर दिया जाता है. जबकि मेइती पर अक्सर बहुसंख्यकवाद का समर्थन करने का आरोप लगाया जाता है, और भले ही किसी भी राजनीतिक दल की सरकार हो, कुकी और नगा समुदायों की मांगों को भी मेइती  मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता के लिए ख़तरे के रूप में देखते हैं. यहां उल्लेख करना ज़रूरी है कि नगाओं की नगालिम की सदस्यता मणिपुर के कुछ हिस्से को छीन लेगी. ठीक इसी तरह, Zale’n-gam के रूप में एक कुकी देश की कल्पना भी वर्तमान मणिपुर राज्य के एक टुकड़े को अलग कर देगी. स्थानीयता और क्षेत्रीयता को लेकर अलग-अलग प्रतिस्पर्धी धारणाएं इन समूहों के बीच जातीय संघर्ष को और मज़बूत बनाने का काम करती हैं.

NRC का डर


मणिपुर में NRC (नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजंस) को लागू किए जाने की मांग राज्य में जातीय विभाजन को बढ़ावा देने वाले हालिया कारणों में से एक है. मुख्य रूप से मेइती संगठनों के नेतृत्व में यह मांग की जा रही है, जिसे मणिपुरी नगाओं का समर्थन प्राप्त है. 2022 के राज्य विधानसभा चुनावों में एन बीरेन सिंह सरकार के दुबारा चुने जाने के साथ ही NRC की मांग भी तेज़ हो गई है. इस साल मार्च में मेइती और नगा संगठनों द्वारा एनआरसी को तत्काल लागू करने की मांग को लेकर विशाल रैलियों का आयोजन किया गया था. NRC की मांग के लिए यह तर्क दिया जा सकता है कि मणिपुर में कथित रूप से 'अवैध अप्रवासियों' की आबादी बढ़ गई है. 'अवैध अप्रवासियों' के मुद्दे पर बात करते हुए कोई भी आसानी से यह तर्क दे सकता है कि NRC की मांग की सबसे बड़ी वजह यह शक है कि कुकी समुदाय पड़ोसी देश म्यांमार से आए चिन लोगों को संरक्षण दे रहा है और उन्हें मणिपुर में कुकी-बहुल इलाकों (पहाड़ियों) में बसने में मदद कर रहा है. राज्य में 'अवैध प्रवासियों' की बढ़ती आबादी में कुकी समुदाय की कथित भूमिका को लेकर मेइती और नगा समुदाय के लोग एकमत हैं. इसी तरह, मेइती और नगाओं के अवसरवादी गठबंधन ने राज्य की जनसांख्यिकी में बदलाव लाने और मणिपुर के लिए ख़तरा पैदा करने के लिए कुकी समुदाय को ज़िम्मेदार ठहराया है. इसके अलावा, कुकी समुदाय पर अफ़ीम की अवैध खेती करने और नशीली दवाओं के कारोबार में शामिल होने का भी आरोप लगाया गया है, जो राज्य के लिए गंभीर ख़तरा पैदा करता है.

जबकि कुकी समुदाय को बाहरी और विदेशी के रूप में देखा जाता है इसलिए NRC की बढ़ती हुई मांग ने समुदाय की आशंकाओं को बढ़ावा दिया है. हालांकि, 2021 में म्यांमार में सैन्य तानाशाही स्थापित होने के बाद, मणिपुर में चिन-ज़ोमी-कुकी-मिज़ो जनजातियों के प्रवेश से इंकार नहीं किया जा सकता है. फिर भी, क्या मणिपुर में चिन लोगों की संख्या स्थानीय आबादी से ज्यादा हो गई है (जैसा कि मेइती और नगा समुदायों का आरोप है), यह जांच का विषय है. जैसे-जैसे NRC की मांग ज़ोर पकड़ रही है, मणिपुर सरकार की प्रतिक्रिया कुकी समुदाय की आशंकाओं और डर में इज़ाफ़ा करने और राज्य में जातीय संघर्ष को आगे बढ़ाने का काम रही है.

मार्च 2023 में NRC की मांग पर प्रतिक्रिया देते हुए बीरेन सिंह ने घोषणा की कि मणिपुर राज्य जनसंख्या आयोग (MSPC) घर-घर जाकर सर्वेक्षण के माध्यम से अवैध प्रवासियों की पहचान करेगा.

मार्च 2023 में NRC की मांग पर प्रतिक्रिया देते हुए बीरेन सिंह ने घोषणा की कि मणिपुर राज्य जनसंख्या आयोग (MSPC) घर-घर जाकर सर्वेक्षण के माध्यम से अवैध प्रवासियों की पहचान करेगा. मणिपुर की पहाड़ियों में अफीम की खेती के खिलाफ़ राज्य सरकार के आक्रामक अभियान ने कुकी समुदाय के बीच अविश्वास को और गहरा किया है. कुकी समुदाय के कई परिवारों को बेदखली का सामना करना पड़ा है क्योंकि राज्य सरकार ने उनकी ज़मीन को संरक्षित/आरक्षित वन क्षेत्र घोषित कर दिया है. 11 अप्रैल 2023 की सुबह कुकी जनजाति से जुड़े एक चर्च और एक कॉलोनी को तहस-नहस कर दिया गया, जिसके कारण जनजातीय संघर्ष और ज्यादा तीव्र हो गए हैं.

राज्य सरकार द्वारा चलाया जा रहा तोड़-फोड़ और बेदखली अभियान, कुकी जनजाति को बाहरी और विदेशी घोषित करके उन्हें 'अलग-थलग' करने की कोशिश, अफ़ीम की खेती और म्यांमार से आए 'अवैध प्रवासियों' के लिए कुकी को ज़िम्मेदार ठहराने का आरोप, और आदिवासी के रूप में पहचान के लिए मेइती समुदाय द्वारा की जा रही मांग (जो जातीय संघर्ष के इतिहास से उपजी है) जैसे कारणों ने अशांत मणिपुर में हिंसक घटनाओं के उभार में सीधा योगदान दिया है.

निष्कर्ष



केंद्र के सक्रिय हस्तक्षेप के कारण हिंसक घटनाएं फिलहाल कम होती दिख रही हैं. हालांकि, संघर्षरत जातीय समूहों के आपसी संबंधों की नाजुक प्रकृति को देखते हुए, मणिपुर की स्थिति पर कोई भी निष्कर्ष निकालने से पहले बहुत सावधानी बरतने की ज़रूरत है. संघर्षरत जातीय समूह संसाधनों के न्यायपूर्ण वितरण के मसले पर किसी भी तरह के रचनात्मक बहस के लिए तैयार नहीं हैं, जिससे भविष्य में हिंसक घटनाओं का ख़तरा और ज्यादा बढ़ गया है.

इसके अलावा, म्यांमार में जारी संघर्ष का मणिपुर पर कुछ प्रभाव बना रहेगा. म्यांमार से अवैध प्रवासियों के आगमन ने मणिपुर में जातीय शांति के लिए बड़ा ख़तरा पैदा किया है. जबकि राजनीतिक रूप से आधुनिक राज्य की सीमाएं कठोर होती हैं, वहीं जनजातीय समुदायों में बंधुता और सामाजिकता के बंधन लचीले होते हैं, जो राजनीतिक सीमाओं से परे समुदायों को एकजुट करते हैं. ऐसे में इन दो विभिन्न स्थितियों के कारण होने वाले टकराव भी मणिपुर में जातीय संबंधों को नुकसान पहुंचाते हैं. जबकि ऐसा लग रहा है कि राज्य सरकार जातीय समुदायों की मांगों और शिकायतों के प्रति बहुसंख्यकवाद से प्रेरित है, ऐसे में परस्पर विरोधी समूहों के बीच शांति की स्थापना एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है. विभिन्न जातीय समूहों के बीच संवाद को लेकर मांग बढ़ती जा रही है, लेकिन ऐसे किसी संवाद से कुछ ख़ास फ़ायदा तब तक नहीं होगा जब तक मणिपुर की वर्तमान व्यवस्था विभिन्न जातीय समूहों के प्रति निष्पक्ष और तटस्थ नहीं हो जाती. इसलिए, मणिपुर में स्थायी शांति की स्थापना के लिए सभी प्रमुख हितधारकों को कड़ी मेहनत करनी होगी.

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