Author : Sameer Patil

Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

अगर पाकिस्तान अपनी भारत विरोधी नीतियों को बढ़ावा देना जारी रखता है, तो दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ़ पिघलने की उम्मीद बहुत कम है.

भारत-पाक संबंध: पाकिस्तान की भारत विरोधी सुरक्षा रणनीति से कैसे निपटें?
भारत-पाक संबंध: पाकिस्तान की भारत विरोधी सुरक्षा रणनीति से कैसे निपटें?

जनवरी महीने में पाकिस्तान ने अपनी नई राष्ट्रीय सुरक्षा नीति जारी की. ये सुरक्षा नीति, सुरक्षा के क्षेत्रीय वातावरण को लेकर पाकिस्तानी तंत्र की सोच और उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के ख़तरों का ख़ाका पेश करती है. इस दस्तावेज़ में भारत का ज़िक्र प्रमुखता से किया गया है- ये इस बात को दोहराता है कि पाकिस्तान को अपने ऊपर सबसे ज़्यादा ख़तरा भारत से ही महसूस होता है. इस दस्तावेज़ में ये भी कहा गया है कि भू-आर्थिक स्थितियां ही पाकिस्तान की भू-सामरिक झुकाव को तय करेंगी. हालांकि, अपनी लगातार घटती आर्थिक हैसियत, मध्य या दक्षिणी पूर्वी एशियाई बाज़ारों के साथ कोई संपर्क न होने और चीन से लिए गए क़र्ज़ के बढ़ते बोझ के चलते, पाकिस्तान की भू आर्थिक महत्वाकांक्षाएं परवान चढ़ने से पहले ही ढेर होती दिखती हैं. अब सवाल ये है कि भारत का राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र, पाकिस्तान की इस सुरक्षा रणनीति से कैसे निपटे?

सवाल ये है कि भारत का राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र, पाकिस्तान की इस सुरक्षा रणनीति से कैसे निपटे?

आज़ादी के बाद से ही, जम्मू और कश्मीर में पाकिस्तान की साज़िशों और सीमा पर उसकी हरकतों ने भारत के सुरक्षा तंत्र को उलझाकर रखा हुआ है. भारत ने पाकिस्तान की इस चुनौती से निर्णायक तरीक़े से निपटने के लिए, पारंपरिक सैन्य शक्ति में अपनी ज़्यादा ताक़त का इस्तेमाल किया है. हमने इसके नतीजे पहले 1965 और फिर 1971 के युद्धों में पाकिस्तान की हार के रूप में देखे हैं. यहां ध्यान देने वाली बात है कि पाकिस्तान से सैन्य तरीक़े से निपटने की भारत की इस कोशिश का असर, हमने 1950 और 60 के दशक में चीन के ख़तरे से संतुलन न बना पाने के रूप में देखा है [1] . इसक बावजूद, भारत के नीति निर्माताओं के ज़हन में हमेशा पाकिस्तान से मिलने वाली चुनौती अहम रही है. दोनों देशों द्वारा परमाणु हथियार हासिल करने के चलते, उनके बीच के सुरक्षा समीकरण और भी जटिल हो गए हैं.

सीमा पार आतंकवाद और कश्मीर

जब पाकिस्तान, पारंपरिक सैन्य ताक़त में भारत से पार नहीं पा सका, तो उसने भारत को ‘हज़ारों जख़्मों से लहूलुहान’ करने की ग़ैर-पारंपरिक युद्ध नीति पर अमल करना शुरू किया. जम्मू-कश्मीर और पंजाब में पाकिस्तान की सेना द्वारा अलगाववादी विद्रोह को सक्रियता से बढ़ावा दिया गया. इसके अलावा, बाद में पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों को भी बढ़ावा दिया. क्रिस्टीन सी. फेयर ने इसे ‘परमाणु सुरक्षा कवच की आड़ में जिहाद’ का नाम दिया है. अपनी इस नीति के चलते पाकिस्तान ने ये सुनिश्चित किया है कि भारत का सुरक्षा तंत्र आतंकवाद की समस्या से निपटने में ही उलझा रहे.

भारत की सबसे बड़ी चिंता ये रही है कि अगर वो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के ख़िलाफ़ पलटवार करता है, तो कहीं संघर्ष बढ़ न जाए और परमाणु युद्ध की नौबत न आ जाए. 

जब भी सीमा पार से पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद से निपटने की बाद आई है, तो भारत का सुरक्षा तंत्र, पारंपरिक रूप से कोई जोखिम लेने से बचता रहा है. भारत की सबसे बड़ी चिंता ये रही है कि अगर वो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के ख़िलाफ़ पलटवार करता है, तो कहीं संघर्ष बढ़ न जाए और परमाणु युद्ध की नौबत न आ जाए. 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद, भारत के नीति निर्माताओं ने सैन्य हमले के विकल्प पर गंभीरता से ग़ौर ज़रूर किया. लेकिन, जैसा कि पूर्व विदेश सचिव और बाद में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे शिवशंकर मेनन ने बताया है कि तत्कालीन सरकार ने आख़िरकार ऐसा क़दम न उठाने का फ़ैसला किया था.

लेकिन, जैसे जैसे हाल के दिनों में आतंकवादी घटनाओं की रफ़्तार में तेज़ी आई, तो भारत ने राजनीतिक इच्छाशक्ति के समर्थन से अपने रक्षात्मक रवैए को अलविदा कह दिया. किसी आतंकवादी हमले के बाद भारत के सुरक्षा तंत्र ने सैन्य अभियानों जैसे कि ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ (सितंबर 2016) और बालाकोट हवाई हमले (फ़रवरी 2019) के ज़रिए पलटवार किया और ये दिखा दिया कि वो पाकिस्तान की परमाणु युद्ध की धमकी की हवा निकालना भी जानता है. भारत की सैन्य कार्रवाई के जवाब में पाकिस्तान की तरफ़ से ठोस जवाब न मिलने से ये ज़ाहिर हो गया कि भारत ने बहुत सोच-समझकर जोखिम लिया था. अब इन कार्रवाइयों ने भविष्य में सीमा पार से होने वाले आतंकवादी हमलों के जवाब का तरीक़ा तय कर दिया है.

हो सकता है कि आतंकवादी हमलों के जवाब में भारत की सैन्य कार्रवाई ने भविष्य में पाकिस्तान की तरफ़ से ऐसी हरकतों पर लगाम लगा दी है. वैसे अब किसी भी स्थिति में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों को भविष्य में कोई साज़िश रचने से पहले इस बात का ध्यान भी रखना होगा कि भारत इसके बदले में सैन्य कार्रवाई भी कर सकता है. लेकिन, पाकिस्तान को अपनी आतंकवादी गतिविधियों को नया रंग-रूप देने और नए नुस्खे आज़माने का हुनर हासिल है. ये बात हमें कुछ मिसालों से साफ़ नज़र आती है. पहले जहां पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन भारत के अहम शहरों में बहुत सारे लोगों को शिकार बनाने वाले आतंकवादी हमले (2005 के दिल्ली सीरियल ब्लास्ट, 2006 के मुंबई ट्रेन धमाके, 2008 का मुंबई आतंकी हमला) करते थे. उसके बाद, पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन, पंजाब और जम्मू कश्मीर में सीमा के क़रीब भारत के सुरक्षा बलों और उनके ठिकानों (2015 में गुरदासपुर, 2016 में पठानकोट और उरी, 2019 में पुलवामा) को निशाना बनाने लगे.

अगस्त 2019 में जब भारत ने जम्मू और कश्मीर में प्रशासनिक और संवैधानिक बदलाव किए, तो उसके बाद पाकिस्तान की इस रणनीति में और भी बदलाव देखा जा रहा है. उसके बाद से पाकिस्तान के पाले हुए आतंकवादी, स्थानीय समर्थन के नेटवर्क का फ़ायदा उठाकर कश्मीर घाटी के अंदर बहुत छोटे छोटे आतंकवादी हमले कर रहे हैं. इन हमलों में सुरक्षा बलों, आम लोगों, धार्मिक अल्पसंख्यकों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है. ये घटनाएं इतने छोटे पैमाने पर अंजाम दी जा रही हैं कि सुरक्षा बलों को स्थानीय स्तर पर ही कार्रवाई करने को मजबूर होना पड़ रहा है और पाकिस्तान, ऐसे हमलों की कोई क़ीमत चुकाने से बच जाता है.

भारत के सुरक्षा तंत्र को कश्मीर घाटी के इन नए हालात के हिसाब से अपनी रणनीति बनानी होगी, वरना ऐसे हमलों से अगस्त 2019 में किए गए बदलावों से हुए ज़मीनी फ़ायदे, भारत के हाथ से निकल जाएंगे.

भारत के सुरक्षा तंत्र को कश्मीर घाटी के इन नए हालात के हिसाब से अपनी रणनीति बनानी होगी, वरना ऐसे हमलों से अगस्त 2019 में किए गए बदलावों से हुए ज़मीनी फ़ायदे, भारत के हाथ से निकल जाएंगे.

पाकिस्तान हमेशा दबाव में रहे और उसे भारत की ओर से कड़ी कार्रवाई का डर बना रहे, इसके लिए भारत को ये सुनिश्चित करना होगा कि पाकिस्तान, आतंकवाद को धन मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी से न बच निकले. ख़ास तौर से भारत को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (FATF) जैसे मंचों पर पाकिस्तान द्वारा हवाला के अवैध माध्यम से आतंकवादियों की वित्तीय मदद करने की करतूतों को उजागर करते रहना होगा. क्योंकि, पाकिस्तान इसी के ज़रिए लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों के विशाल नेटवर्क को पालता पोसता आया है. कश्मीर घाटी में आतंक के इसी हवाला नेटवर्क के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी द्वारा पिछले कुछ साल से की जा रही कार्रवाई बिल्कुल सही दिशा में उटा क़दम है. इसके अलावा, जैसा कि राजेश राजगोपालन ने कहा है कि भारत को, चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का भी लगातार विरोध करते रहना होगा, और दुनिया को ये बताते रहना होगा कि पाकिस्तान ने गिल्गित बाल्टिस्तान पर अवैध क़ब्ज़ा कर रखा है, जबकि वो भारत का हिस्सा है. ये मुद्दा उठाने से भारत, चीन पर भी पलटवार कर सकेगा.

हालांकि, पाकिस्तान के कायराना रवैये के ख़िलाफ़ सख़्त रवैया अपनाते हुए भी भारत के पास एक अवसर है कि वो कश्मीर में सुरक्षा बलों को राहत की सांस लेने का मौक़ा दे. अगस्त 2019 में उठाए गए क़दमों के बाद जो सियासी माहौल बना है, उसका फ़ायदा उठाकर भारत ऐसा कर सकता है और लंबी अवधि के लिए अपनी स्थिति मज़बूत कर सकता है.

साइबर दुनिया

सीमा पार आतंकवाद और कश्मीर के अलावा पाकिस्तान ने साइबर क्षेत्र के मोर्चे पर भारत के ख़िलाफ़ अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं. हाल के वर्षों में भारत के कंप्यूटर नेटवर्क पर साइबर हमलों की बढ़ती तादाद और सोशल मीडिया मंचों पर भारत के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार से ये बात बिल्कुल साफ़ हो जाती है. पाकिस्तान स्थित हैकर अब सिर्फ़ भारत की वेबसाइट हैक करके उस पर ऊल-जलूल बातें लिखने तक ही सीमित नहीं हैं. बल्कि, अब वो ‘रिवर्सरैट 2.0’ जैसे साइबर हमले भी कर रहे हैं, जिनके निशाने पर सरकारी अधिकारी और कंप्यूटर नेटवर्क होते हैं, और जिनकी मदद से गोपनीय डेटा चुराकर भारत की क्रिटिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर की सेवाओं में ख़लल डाला जा सके.

भारत ने डिफेंस साइबर एजेंसी जैसी संस्थाओं का गठन करके अपनी साइबर सुरक्षा को पहले से मज़बूत बनाया है, जिससे ऐसे हमलों का जवाब दिया जा सके. इसके साथ साथ भारत को पाकिस्तान की साइबर सुरक्षा नीति की तर्ज पर ख़ुद भी आक्रामक रणनीति बनानी होगी. पाकिस्तान ने अपनी साइबर सुरक्षा नीति में साफ़ तौर पर ये कहा है कि ‘पाकिस्तान के क्रिटिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर पर साइबर हमले को देश की संप्रभुता पर हमला माना जाएगा’. पाकिस्तान ने अपनी साइबर सुरक्षा नीति में ये भी कहा है कि अपने अहम साइबर ढांचे पर होने वाले हमले के ‘जवाब में पाकिस्तान भी आवश्यक क़दम उठाएगा’. अपनी जल्द ही सामने आने वाली राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति में भारत को भी अपनी आक्रामक साइबर क्षमता को केंद्र में रखना चाहिए.

पाकिस्तान स्थित हैकर अब सिर्फ़ भारत की वेबसाइट हैक करके उस पर ऊल-जलूल बातें लिखने तक ही सीमित नहीं हैं. बल्कि, अब वो ‘रिवर्सरैट 2.0’ जैसे साइबर हमले भी कर रहे हैं, जिनके निशाने पर सरकारी अधिकारी और कंप्यूटर नेटवर्क होते हैं, और जिनकी मदद से गोपनीय डेटा चुराकर भारत की क्रिटिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर की सेवाओं में ख़लल डाला जा सके.

इस वक़्त दुनिया में बड़ी ताक़तों के बीच जैसे तल्ख़ रिश्ते हैं, वैसे में हमें विश्व स्तर पर किसी साइबर समझौते या सहयोग की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. साइबर दुनिया की इस अराजकता के बीच तमाम देशों के पास बस एक ही विकल्प है कि वो आक्रामक रुख़ अपनाएं. इसीलिए, भारत को न सिर्फ़ अपने क्रिटिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर को और लचीला बनाना चाहिए, बल्कि ख़ुद को साइबर दुनिया में चीन और पाकिस्तान के गठजोड़ से निपटने के लिए भी तैयार करना चाहिए.

निष्कर्ष

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कई बार गंभीर प्रयास करने के बावजूद भारत, पाकिस्तान के साथ अपने ख़राब रिश्तों को दुरुस्त कर पाने में नाकाम रहा है. इसके बजाय, भारत के तमाम प्रयासों की नाकामी ने पाकिस्तान के साथ बातचीत करने और रिश्ते सुधारने को लेकर भारत के सुरक्षा तंत्र के नाउम्मीदी भरे नज़रिए को ही मज़बूती दी है.

इसके अलावा सुरक्षा के क्षेत्र में द्विपक्षीय होड़ और सैन्य, आर्थिक, तकनीकी और कूटनीतिक प्रभाव के मामले में दोनों देशों के बीच बढ़ते अंतर ने भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में बदलाव की उम्मीदों को भी काफ़ी सीमित कर दिया है. हो सकता है कि पाकिस्तान, जियोइकॉनमिक्स के पर्दे की आड़ में अपनी भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को छुपाना चाहे. लेकिन वो इस क्षेत्र को अस्थिर बनाने में अपनी नकारात्मक भूमिका पर पर्दा नहीं डाल सकता है. जब तक पाकिस्तान का शासक वर्ग और सैन्य तंत्र कश्मीर, आतंकवादी संगठनों को मदद और भारत विरोधी दुष्प्रचार की अपनी नीति में बुनियादी तौर पर बदलाव नहीं लाते हैं, तब तक भारत द्वारा अपने रुख़ में कोई बदलाव करने की कोई संभावना नहीं दिखती है.


[1] Underbalancing is a phenomenon in international relations, where a state is unable to recognise a clear and present danger, or even after recognising the danger responds in paltry and imprudent ways.

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