Author : Raj Kumar Sharma

Published on Dec 14, 2021 Updated 0 Hours ago

अमेरिका और भारत के बीच कई नीतिगत मुद्दों पर समान राय होने के बावजूद, हिंद प्रशांत क्षेत्र में रूस के पास अपनी भूमिका बढ़ाने के पर्याप्त अवसर मौजूद हैं.

Indo-Pacific Policy: भारत की हिंद प्रशांत नीति में रूस की भूमिका

भारत ने जब से हिंद प्रशांत क्षेत्र की सामरिक परिकल्पना में ख़ुद के शामिल होने की इच्छा जताई है, और इससे जुड़ी नीतियां विकसित करने के लिए कई क़दम उठाए हैं, तब से ही भारत और रूस के बीच हिंद प्रशांत क्षेत्र को लेकर गहरे मतभेद उभर रहे हैं. अब चूंकि भारत और रूस के बीच संवाद बढ़ रहा है. पहली बार दोनों देशों के बीच 2+2 डायलॉग हुआ और उसके बाद दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच शिखर सम्मेलन भी हुआ. ऐसे में भारत की हिंद प्रशांत नीति में रूस के किरदार की समीक्षा करना उचित होगा.

विश्लेषकों के बीच ये आम राय पनपी है कि चूंकि भारत और अमेरिका के बीच गहरे संबंध हैं, तो भारत की हिंद प्रशांत नीति भी अमेरिका के साथ तालमेल वाली ही होगी. 

विश्लेषकों के बीच ये आम राय पनपी है कि चूंकि भारत और अमेरिका के बीच गहरे संबंध हैं, तो भारत की हिंद प्रशांत नीति भी अमेरिका के साथ तालमेल वाली ही होगी. हालांकि, ये बात हक़ीक़त से बिल्कुल परे है; पहली बात तो यही है कि जहां अमेरिका के लिए हिंद प्रशांत क्षेत्र की पश्चिमी सीमा भारत के पश्चिमी तट के साथ समाप्त हो जाती है. वहीं भारत की नज़र में, पश्चिमी एशिया और पूर्वी अफ्रीका भी हिंद प्रशांत क्षेत्र में ही आते हैं. दूसरी बात ये है कि भारत महाद्वीपीय आयाम को भी पर्याप्त अहमियत देता है- क्योंकि भारत समुद्री ताक़त के साथ एक थल शक्ति भी है; हालांकि, अमेरिका ने इस मामले को लेकर भारत के प्रति पर्याप्त संवेदनशीलता नहीं दिखाई है. ये बात ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों और उसके बाद ईरान से संबंध सीमित करने के लिए, अमेरिका द्वारा भारत पर बनाए गए दबाव से साफ़ ज़ाहिर होती है. तीसरी बात ये कि अमेरिका प्रशांत महासागर को ज़्यादा अहमियत देता है. जबकि भारत की फ़ौरी प्राथमिकताएं हिंद महासागर से जुड़ी हुई हैं.

अमेरिका ने ऑकस गठबंधन के ज़रिए अपनी पूरी ताक़त ऑस्ट्रेलिया के समर्थन में लगा दी है, क्योंकि अमेरिका चाहता है कि परमाणु पनडुब्बी की तकनीक ऑस्ट्रेलिया को देकर वो प्रशांत महासागर क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया को और बड़ी भूमिका निभाने देकर, अपने ऊपर बढ़ रहे दबाव का कुछ बोझ तो कम कर सके. रूस के साथ भारत के नज़दीकी रक्षा सहयोग के चलते ही भारत क्वॉड सिक्योरिटी डायलॉग के तहत बड़े स्तर पर सैन्य गतिविधियां चलाने को लेकर इच्छुक नहीं था और ऐसा करने से बच रहा था. ऐसे में क्वॉड की तुलना एशियाई नैटो से करना एक बहुत बड़ी ग़लती थी. ये बात ऑकस गठबंधन बनने के बाद और भी साफ़ हो गई है. क्योंकि, क्वॉड अब असैन्य गठबंधन ही रहेगा और हिंद प्रशांत क्षेत्र से जुड़ी सैन्य ज़िम्मेदारी ऑकस गठबंधन (AUKUS) निभाने वाला है.

क्वॉड अब असैन्य गठबंधन ही रहेगा और हिंद प्रशांत क्षेत्र से जुड़ी सैन्य ज़िम्मेदारी ऑकस गठबंधन (AUKUS) निभाने वाला है.

रूस नहीं चीन से ख़तरा

न तो हिंद प्रशांत परिकल्पना और न ही क्वॉड का गठबंधन ही रूस के ख़िलाफ़ है. रूस की सुरक्षा पर इससे कोई ख़ास असर नहीं पड़ने वाला है. जनवरी 2021 में अमेरिका की हिंद प्रशांत रणनीति के जो गोपनीय दस्तावेज़ सामने आए थे, उसमें इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिए रूस को नहीं, चीन को ख़तरा बताया गया है. हालांकि, इस दस्तावेज़ में इस बात का ज़िक्र है अमेरिका, चीन और भारत के तुलना में हिंद प्रशांत क्षेत्र में रूस की भूमिका सीमित ही रहेगी. वहीं रूस क्वॉड और हिंद प्रशांत की परिकल्पना को अमेरिका के साथ अपने टकराव के मुद्दों के तौर पर देखता है और इनकी कड़ी आलोचना करता आया है. रूस के विदेश मंत्री सर्जेई लावरोव इन क़दमों की कई बार आलोचना कर चुके हैं. दिसंबर 2020 में रूस के विदेश मंत्री ने कहा था कि हिंद प्रशांत क्षेत्र और क्वॉड के ज़रिए पश्चिमी देश, अपनी ‘चीन विरोधी’ नीतियों में भारत पर को बड़ी भूमिका निभाने का दबाव बना रहे हैं; हालांकि, भारत को रूस जैसे सामरिक साझीदार से ऐसे बयानों की उम्मीद नहीं थी. रूस के विदेश मंत्री के इन बयानों के बारे में भारत में यही राय बनी थी कि रूस, चीन से भारत के ख़तरों को गंभीरता से नहीं देखना चाह रहा है. बाद में सर्जेई लावरोव ने भारत की चिंताएं ये कहकर दूर करने की कोशिश की थी कि रूस इस मसले पर भारत और इसकी जनता के साथ कोई ग़लतफ़हमी नहीं चाहता है. जबकि, भारत अपनी हिंद प्रशांत नीति में रूस को शामिल करने की कोशिशें लगातार करता आया है.

दिसंबर 2020 में रूस के विदेश मंत्री ने कहा था कि हिंद प्रशांत क्षेत्र और क्वॉड के ज़रिए पश्चिमी देश, अपनी ‘चीन विरोधी’ नीतियों में भारत पर को बड़ी भूमिका निभाने का दबाव बना रहे हैं

जुलाई 2021 में रूस के दौरे पर गए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ज़ोर देकर कहा था कि भारत चाहता है कि रूस हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपनी उपस्थिति और भागीदारी को और सक्रिय बनाए. ये एक ऐसी बात है जो अमेरिका की सार्वजनिक हुई हिंद प्रशांत की रणनीति के मक़सद से अलग है. इससे पहले अगस्त 2019 में वाल्दाई डिस्कशन क्लब में अपनी परिचर्चा में जयशंकर ने इस बात पर ज़ोर दिया था कि प्रशांत महासागर से भारत के हित जुड़े हुए हैं, जबकि रूस के हित हिंद महासागर से जुड़े हुए हैं. जयशंकर ने ये बात भी उठाई थी कि आर्कटिक महासागर में व्यापार के नए मार्ग कुल रहे हैं, और ऐसे में रूस के सुदूर पूर्व, साइबेरिया और आर्कटिक क्षेत्र में सहयोग की काफ़ी संभावनाएं हैं.

जयशंकर ने तो हिंद प्रशांत को भारत की एक्ट ईस्ट नीति का ही एक विस्तार बताया था. यहां पर इस बात का भी ज़िक्र किया जा सकता है कि भारत ने रूस के सुदूर पूर्व, एशियाई और प्रशांत महासागर वाले क्षेत्र से आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए एक्ट फार ईस्ट नीति की शुरुआत की थी. नीति आयोग और रूस के सुदूर पूर्व और आर्कटिक विकास मंत्रालय आपस में मिलकर, 2020 से 2025 के बीच रूस के सुदूर पूर्व और आर्कटिक क्षेत्र के विकास की योजना पर काम कर रहे हैं. चेन्नई से व्लादिवोस्टोक तक समुद्री व्यापार मार्ग का विकास भी इसी नीति का हिस्सा है. सितंबर 2021 में प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा था कि व्यापार और वाणिज्य के लिए उत्तरी सागर के मार्ग के विकास में भारत और रूस साझेदार बनेंगे. भारत, सुदूर पूर्व में रूस और जापान के साथ मिलकर त्रिपक्षीय सहयोग की संभावनाएं भी तलाश रहा है. भारत के ये प्रयास रूस की ‘पिवोट टू एशिया’ से काफ़ी मेल खाते हैं, जिसकी शुरुआत रूस ने 2014 में तब की थी, जब क्राइमिया के संकट के चलते अमेरिका और यूरोप के साथ रूस के रिश्ते बेहद ख़राब हो गए थे.

आपस में मेल खाता नज़रिया

एक कमज़ोर रूस भारत के हित में बिल्कुल नहीं हैं. इसीलिए, भारत चाहता है कि, हिंद प्रशांत क्षेत्र की परिकल्पना से रूस अलग न रह जाए. अगर रूस इस क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी निभाता है, तो इससे हिंद प्रशांत क्षेत्र बहुपक्षीय इलाक़ा बनकर उभरेगा. भारत यही चाहता है. हालांकि रूस, हिंद प्रशांत क्षेत्र की अमेरिकी कल्पना का लगातार विरोध करता आया है. हालांकि वो इस मामले में भारत की कोशिशों का समर्थन कर रहा है. ये बात रूस की एक्ट फार ईस्ट नीति से ज़ाहिर होती है. कुल मिलाकर, ये बात उल्लेखनीय है कि भारत की हिंद प्रशांत क्षेत्र की परिकल्पना, रूस की उस ग्रेटर यूरेशियन पार्टनरशिप (GEP) से काफ़ी मिलती जुलती है, जिसे रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने 2015 में शुरू किया था, और जिसके दायरे में पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन से लेकर व्लादिवोस्टोक बंदरगाह आ जाते हैं. 2016 में पुतिन ने तर्क दिया था कि GEP के तहत रूस ये चाहता है कि वो यूरेशिया के केंद्र के रूप में एक आदर्श जियोइकॉनमिक और जियोपॉलिकिटल केंद्र के रूप उभरे और चीन के दोस्ताना प्रतिद्वंदी की भूमिका में सामने आए. पुतिन का कहना था कि इससे चीन के बहुत मज़बूत होकर उभरने और दुनिया पर दादागीरी जमाने और पड़ोसियों को डराने की आशंकाएं कम होंगी. भारत की हिंद प्रशांत परिकल्पना का मक़सद भी यही है और रूस अगर सक्रिय भूमिका निभाता है तो भारत को अपने लक्ष्य हासिल करने में काफ़ी मदद मिलेगी.

1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान जब अमेरिका की नौ सेना ने भारत को धमकाने की कोशिश की थी, तब पूर्व सोवियत संघ ने प्रशांत महासागर के व्लादिवोस्टोक में तैनात अपने बेड़े से परमाणु हथियारों से लैस जहाज़ भारत के समर्थन में रवाना किए थे. 

रूस के सुदूर पूर्व का मुख्य शहर व्लादिवोस्टोक है. इसे लेकर चीन और भारत के जज़्बात बिल्कुल ही अलग हैं. भारत में इस शहर को रूस के साथ दोस्ती के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है. क्योंकि, 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान जब अमेरिका की नौ सेना ने भारत को धमकाने की कोशिश की थी, तब पूर्व सोवियत संघ ने प्रशांत महासागर के व्लादिवोस्टोक में तैनात अपने बेड़े से परमाणु हथियारों से लैस जहाज़ भारत के समर्थन में रवाना किए थे. 1971 में पाकिस्तान, चीन और अमेरिका के गठबंधन से निपटने के लिए भारत को सोवियत संघ से ऐसे सहयोग की सख़्त ज़रूरत थी. उस दौर को याद करते हुए हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत और रूस के बीच साझेदारी के नए दौर की शुरुआत की जा सकती है, जिसका एक सामरिक इतिहास भी रहा है. वहीं चीन की नज़र में व्लादिवोस्टोक उसके अपमान और राष्ट्रवाद का प्रतीक है क्योंकि 1860 से पहले व्लादिवोस्टोक, चीन के क़ब्ज़े में था और जब चीन, फ्रांस और ब्रिटेन से दूसरा अफ़ीम युद्ध हार गया था तो रूस के शासक ज़ार ने व्लादिवोस्टोक को चीन से छीनकर रूस में मिला लिया था. जुलाई 2020 में रूस के दूतावास ने चीन की माइक्रो ब्लॉगिंग साइट वीबो पर व्लादिवोस्टोक पर रूस की जीत की 160वीं वर्षगांठ मनाने का एक वीडियो पोस्ट किया था. हालांकि, चीन के राजनयिकों और पत्रकारों ने इस वीडियो को लेकर रूस पर सवाल उठाए थे और कहा था कि व्लादिवोस्टोक को चीन में हाइशेनवाइ कहा जाता है, और रूस को ये भी याद दिलाया था कि आने वाली नस्लें याद रखेंगी कि व्लादिवोस्टोक कभी चीन का हिस्सा था. कई यूज़र्स ने तो इस वीडियो पर ये कमेंट भी लिखा था कि भविष्य में कभी न कभी व्लादिवोस्टोक पर दोबारा चीन का क़ब्ज़ा होगा. इसकी तुलना में 2019 में पांचवें ईस्टर्न इकॉनमिक फ़ोरम की बैठक में अपने भाषण मे प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि भारत, व्लादिवोस्टोक में कॉन्सुलेट खोलने वाला पहला देश था और सोवियत संघ के दौर में भी इस शहर में भारतीय नागरिकों को इस शहर में आने जाने की आज़ादी थी, जब वहां अन्य देशों के नागरिकों की आवाजाही पर पाबंदियां लगी हुई थीं.

चेन्नई से व्लादिवोस्टोक के समुद्री रास्ते और आर्कटिक में सहयोग इसकी मिसाल हैं. इन कोशिशों के ज़रिए भारत रूस की एशियाई पहचान को उभारना चाहता है

हिंद प्रशांत की परिकल्पना के कई स्वरूप हैं, जो हर देश के हिसाब से अलग अलग हैं. भारत की नज़र में हिंद प्रशांत एक मुक्त और सबके लिए स्वतंत्र क्षेत्र है, जिसमें रूस की भागीदारी से ये बहुध्रुवीय इलाक़ा बन जाएगा. रूस का शासक वर्ग ख़ुद को पारंपरिक रूप से यूरोपीय मानता आया है. लेकिन, रूस के एशियाई और प्रशांत क्षेत्र के आयाम भी हैं. रूस के कुलीन वर्ग के लोग मॉस्को में रहते हैं, जो पारंपरिक रूप से रूस की सत्ता का केंद्र रहा है. हो सकता है कि रूस के कुलीन वर्ग के लोग अपने देश के उन लोगों के विरोध में हों, जो ये चाहते हैं कि रूस, व्लादिवोस्टोक बंदरगाह के ज़रिए प्रशांत क्षेत्र में और सक्रिय भूमिका निभाए. हिंद प्रशांत क्षेत्र केवल अमेरिका के बारे में नहीं है. बिना हिंद प्रशांत क्षेत्र में संवाद बढ़ाए, रूस की विश्व दृष्टि अधूरी रहने की संभावना है, क्योंकि ऐसा करके वो चीन पर अधिक निर्भर हो जाएगा. भारत और रूस ने अपने मतभेद सार्वजनिक रूप से उजागर किए हैं. लेकिन, दोनों ही देश एक्ट फार ईस्ट जैसी नीतियों के ज़रिए कई मुद्दों पर मिलकर काम करने की कोशिशें भी कर रहे हैं. चेन्नई से व्लादिवोस्टोक के समुद्री रास्ते और आर्कटिक में सहयोग इसकी मिसाल हैं. इन कोशिशों के ज़रिए भारत रूस की एशियाई पहचान को उभारना चाहता है, जिससे वो रूस की ‘पिवोट टू एशिया’ नीति के विकास में मदद कर सके. हिंद प्रशांत क्षेत्र और क्वॉड में भारत की साझेदारी से ये सुनिश्चित हो सकेगा कि इन गठबंधनों का निशाना रूस न बन पाए. भारत और रूस दोनों ही महासागरीय ताक़तों के साथ साथ महाद्वीपीय शक्तियां भी हैं. भारत की हिंद प्रशांत की परिकल्पना रूस की ग्रेट यूरेशियन पार्टनरशिप (GEP) से काफ़ी मिलती जुलती है. क्योंकि, दोनों ही देश किसी एक देश की दादागीरी नहीं चाहते हैं. फिर चाहे वो अमेरिका हो या चीन.

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