2023 में भी हिंद प्रशांत एक ऐसा केंद्रीय भौगोलिक क्षेत्र बना रहा, जो कई तरह से वैश्विक एजेंडा तय करता रहा. इस विविधता भरे और ऊर्जावान मगर जटिल क्षेत्र में भू-राजनीतिक तनाव, सुरक्षा संबंधी चुनौतियां, आर्थिक आयाम और पर्यावरण की चिंताएं आपस में मिलती रहीं. 2023 की घटनाएं हमें ये याद दिलाती हैं की ये इलाक़ा कितना जटिल है, और इसकी बहुआयामी चिंताओं से निपटने और अवसरों का लाभ उठाने के लिए बहुत सावधानी और सहयोग वाले तरीक़े अपनाने की ज़रूरत है. हिंद प्रशांत के भू-राजनीतिक बदलावों के क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक राजनीति पर दूरगामी नतीजे निकल सकते हैं और इनका असर अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और विकास संबंधी ढांचे पर भी पड़ने वाला है. सुरक्षा इन चुनौतियों में गहरी होती सैन्य चिंताएं, गंभीर होते इलाक़ाई विवाद, ग़ैर पारंपरिक ख़तरे और बड़ी ताक़तों के आपसी संघर्ष के व्यापक आयाम भी शामिल हैं.
हिंद प्रशांत के भू-राजनीतिक बदलावों के क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक राजनीति पर दूरगामी नतीजे निकल सकते हैं और इनका असर अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और विकास संबंधी ढांचे पर भी पड़ने वाला है.
सुरक्षा की बढ़ी हुई चुनौतियां
जैसी की अपेक्षा थी, अमेरिका और चीन के बीच बड़ी ताक़तों का संघर्ष ही हिंद प्रशांत क्षेत्र के सुरक्षा संबंधी आयाम को आकार दे रहा है. उत्तर कोरिया द्वारा बार-बार किए जाने वाले मिसाइल परीक्षण लगातार चिंता का विषय बने हुए हैं. इसके जवाब में संयुक्त राष्ट्र और क्षेत्रीय खिलाड़ियों को भी क़दम उठाने पड़े हैं. दक्षिणी चीन सागर में समुद्री सीमा का विवाद लगातार उबल रहा है, और दावेदार देशों के बीच अक्सर टकराव होने की ख़बरें आती रहती हैं और विदेशी जंगी जहाज़ों की मौजूदगी इस पेचीदगी को और बढ़ा रही है. इस साल चीन के तटरक्षक जहाज़ों द्वारा फिलीपींस के जहाज़ों के बेहद क़रीब पहुंचकर टकराने की धमकियां देने और फिलीपींस के विशेष आर्थिक क्षेत्र में घुसपैठ करने की वजह से दोनों देशों के रिश्ते और ख़राब होते दिखे.
ताइवान की जलसंधि भी लगातार एक संवेदनशील क्षेत्र बना हुआ है, चीन लगातार ताइवान के बेहद नज़दीक अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ाता जा रहा है और इसके साथ साथ चीन ने ताइवान को कूटनीतिक तौर पर भी अलग थलग करने की कोशिशें तेज़ कर दी हैं. घरेलू स्तर पर ताइवान का मसला, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की वैधानिकता के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण बना हुआ है, ख़ास तौर से तब और जब 2049 में चीन में कम्युनिस्ट की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने वाले हैं. अमेरिका ने ताइवान रिलेशंस एक्ट को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई और ताइवान की आत्मरक्षा की क्षमताएं बढ़ाने लिए रक्षात्मक हथियार और सहयोग देने का भी वादा किया है.
सुरक्षा संबंधी ग़ैर-पारंपरिक ख़तरे जैसे कि साइबर हमले और जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली आपदाएं भी क्षेत्रीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण ख़तरा बनी हुई हैं. अपने कमज़ोर तटीय समुदायों के साथ हिंद प्रशांत क्षेत्र, 2023 में जलवायु परिवर्तन के और गंभीर ख़तरों का सामना करता रहा. टाइफून, हरीकेन और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएं जन-जीवन और संपत्ति के लिए ख़तरा बनी रहीं और सरकारों द्वारा इनसे प्रभावी ढंग से निपटने की क्षमता पर दबाव डालती रहीं. जलवायु परिवर्तन की वजह से अप्रवास और संसाधनों की कमी ने सुरक्षा संबंधी चुनौतियों को और जटिल बना दिया है.
उत्तरी पूर्वी एशिया पर दोबारा ध्यान केंद्रित
पिछले पूरे साल के दौरान, उत्तर कोरिया द्वारा अपने मिसाइल कार्यक्रम को लगातार बढ़ाते जाने से क्षेत्र में तनाव और बढ़ गया और इससे उत्तरी पूर्वी एशिया की सुरक्षा और स्थिरता को लेकर चिंताएं खड़ी कर दीं, और उत्तर कोरिया के पड़ोसी देशों जापान और दक्षिण कोरिया, उत्तर कोरिया के ख़तरे को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सीधी चुनौती के तौर पर देख रहे हैं. बैलिस्टिक मिसाइल तकनीक़ के विकास में उत्तर कोरिया द्वारा काफ़ी ज़ोर दिया जा रहा है. उत्तर कोरिया ने अपनी मध्यम अवधि की मिसाइलों के लिए हाई थ्रस्ट वाले ठोस ईंधन के इंजनों का परीक्षण किया और कई बार जासूसी उपग्रह लॉन्च करने की भी कोशिश की. उत्तर कोरिया की इन हरकतों का सीधा असर पड़ा. इसकी वजह से जापान और दक्षिण कोरिया ने भी अपनी क्षमताओं और सैन्य तैयारियों को मज़बूत किया और, दोनों देश अमेरिका के साथ संवाद का माध्यम खुला रखते हुए उत्तर कोरिया के मसले पर आपसी तालमेल वाला नज़रिया सुनिश्चित कर रहे हैं.
बैलिस्टिक मिसाइल तकनीक़ के विकास में उत्तर कोरिया द्वारा काफ़ी ज़ोर दिया जा रहा है. उत्तर कोरिया ने अपनी मध्यम अवधि की मिसाइलों के लिए हाई थ्रस्ट वाले ठोस ईंधन के इंजनों का परीक्षण किया और कई बार जासूसी उपग्रह लॉन्च करने की भी कोशिश की.
2023 में उत्तरी पूर्वी एशिया की भू-राजनीति को आकार में वैसे तो उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम की अहम भूमिका रही. इस दौरान जापान और उत्तर कोरिया ने खुलकर इस बात का संकेत दिया कि वो आपसी संबंधों को फिर से बेहतर बनाना इरादा रखते हैं. द्विपक्षीय स्तर पर 12 साल के अंतराल के बाद दोनों देशों के शीर्ष नेताओं का साझा सम्मेलन हुआ और त्रिपक्षीय संबंध की बात करें तो अगस्त महीने में अमेरिका के कैंप डेविड में हुआ शिखर सम्मेलन, तीनों देशों के नेताओं के बीच बिल्कुल अलग से हुई बैठक बना गया.
उत्तरी पूर्वी एशिया में चीन के सामरिक प्रभाव, ऐतिहासिक रूप से जापान और दक्षिण कोरिया के बीच मतभेदों पर निर्भ रहे हैं. दोनों ही देश इस क्षेत्र में अमेरिका के सबसे अहम साझीदार हैं. हालांकि, कैंप डेविड में हुई बैठक ने इस आयाम में परिवर्तनकारी बदलाव की शुरुआत की और ये एक नए युग का संकेत है, जिसने जापान और दक्षिण कोरिया की आपस में सामरिक रूप से तालमेल बिठाने की क्षमता को लेकर किसी भी तरह की अनिश्चितता को दूर कर दिया.
साझेदारियों की मज़बूती
पिछले आधे दशक के दौरान हिंद प्रशांत क्षेत्र के भू-राजनीतिक आयाम में आता परिवर्तन साफ़ तौर पर दिख रहा है. इस बदलाव की सबसे महत्वपूर्ण बात देशों के बीच साझेदारियों को मज़बूती देना है. आज जब इस क्षेत्र के देश, शक्ति की उभरती संरचनाओं के कारण सामरिक रूप से बेहद जटिल समुद्री परिदृश्य से निपटने के लिए सामरिक क़दम उठा रहे हैं, तो ये बदलाव विशेष रूप से परिलक्षित हो रहा है. प्रेसिडेंट बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका लगातार हिंद प्रशांत को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताता रहा है और जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे पारंपरिक साझीदारों के साथ अपने गठबंधन को मज़बूत कर रहा है. इसके अलावा अमेरिका अन्य क्षेत्रीय भागीदारों के साथ साझीदारियां स्थापित करने या उनका विस्तार करने में भी सफल रहा है.
एक ओर तो, दक्षिणी पूर्वी एशिय और प्रशांत क्षेत्र के अन्य छोटे देश अक्सर अनिच्छा से चीन के साथ अपने आर्थिक संबंध और अमेरिका के साथ सुरक्षा संबंधी रिश्तों के बीच तालमेल बनाने की कोशिश करते रहे. वहीं दूसरी ओर, बहुत से देशों को ये समझ में आने लगा है और वो स्वीकार करने लगे हैं कि उनको चीन के साथ दोस्ती की भारी क़ीमत चुकानी पड़ रही है.
आपूर्ति श्रृंखलाओं का लचीलापन बढ़ाने और आपूर्ति के संसाधनों में विविधता लाने के प्रयास जारी रहे. विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के बाद से बहुत से देशों ने अपने उत्पादन के नेटवर्क की कमज़ोरियों को दूर करने के प्रयास तेज़ कर दिए हैं.
आपूर्ति श्रृंखलाओं का लचीलापन बढ़ाने और आपूर्ति के संसाधनों में विविधता लाने के प्रयास जारी रहे. विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के बाद से बहुत से देशों ने अपने उत्पादन के नेटवर्क की कमज़ोरियों को दूर करने के प्रयास तेज़ कर दिए हैं. भारत और जापान ने सेमीकंडक्टर्स के क्षेत्र में सहयोग करने पर सहमति जताई है और उनका मक़सद इस महत्वपूर्ण तकनीक़ के लिए अधिक मज़बूत आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करना, और आपस में मिलकर सेमीकंडक्टर के इकोसिस्टम के विकास की गति को तेज़ करना है. सबसे अहम बात, हिंद प्रशांत आर्थिक रूप-रेखा की सप्लाई चेन रेज़ीलियेंस एग्रीमेंट (स्तंभ 2) निश्चित रूप से सबसे तेज़ी से पूरा किया जाने वाला आर्थिक सहयोग का बहुसदस्यीय समझौता है. इसमें 14 देश शामिल हैं, जो दुनिया भर में आपूर्ति श्रृंखलाओं को मज़बूती देने और अपने लचीलेपन, मज़बूती और स्थायित्व लाने पर सहमत हुए हैं.
द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों ने भी अपना संवाद जारी रखा. चतुर्भुजी सुरक्षा संवाद (QUAD) लगातार एक सामरिक मंच के साथ साथ, क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटने में आपसी तालमेल की व्यवस्था बनाने वाले मंच के तौर पर उभर रहा है. ख़बरें तो ये भी बताती हैं कि दक्षिण कोरिया जैसे देश अब आने वाले समय में औपचारिक रूप से क्वाड के साथ जुड़ना चाह रहे हैं. आज जब जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव को कम करने और टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने के प्रयास गति पकड़ रहे हैं, तो हिंद प्रशांत क्षेत्र में नवीनीकरण योग्य ऊर्जा की परियोजनाओं, दलदली क्षेत्र को फिर से बहाल करने की पहलों और कार्बन उत्सर्जन कम करने के वादों का विस्तार होते दिख रहा है. आगे चलकर, 2024 में हिंद प्रशांत क्षेत्र के भू-राजनीतिक जोख़िमों पर बारीक़ी से नज़र रखी जाएगी, क्योंकि इनका क्षेत्र ही नहीं पूरे विश्व पर असर पड़ने की संभावना है.
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