16 सितंबर को, भारत ने शंघाई सहयोग संगठन की अध्यक्षता (यह पद चक्रीय ढंग से एक देश से दूसरे देश को मिलता है) संभाली. इस शिखर सम्मेलन के दौरान, सदस्य राष्ट्रों ने वैश्विक चुनौतियों और ख़तरों पर चर्चा की, जिनमें रूस-यूक्रेन संघर्ष, आर्थिक पुनरुद्धार की चुनौतियां, वैश्विक सप्लाई चेन्स में अवरोध, और ऊर्जा एवं खाद्य संकट शामिल हैं.
एससीओ भारत को वैश्विक व क्षेत्रीय आतंकवाद-निरोधक उपायों के साथ ही अवैध ड्रग कारोबार से मुक़ाबले के लिए क्षेत्रीय प्रयास शुरू करने का अवसर प्रदान करता है. वर्तमान में अवैध ड्रग कारोबार का इस्तेमाल भारत के शत्रुतापूर्ण पड़ोसियों द्वारा उसे सामाजिक क्षति पहुंचाने और उसके युवाओं का निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है.
2001 में, उज़्बेकिस्तान को शामिल किये जाने के साथ, चीन, कज़ाख़िस्तान, किर्गिज़िस्तान, रूस और ताजिकिस्तान से मिलकर बना ‘शंघाई फाइव’ एससीओ के रूप में विकसित हुआ. 2017 में भारत और पाकिस्तान के जुड़ने के साथ, एससीओ विस्तृत होकर दुनिया के बड़े अंतरराष्ट्रीय संगठनों में से एक बन गया. यह वैश्विक जीडीपी के लगभग 30 प्रतिशत का और दुनिया की आबादी के 40 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है. बीते 20 वर्षों में क्रमिक रूप से विकसित हुए एससीओ (जिसके दायरे में यूरेशिया, दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के भौगोलिक क्षेत्र आते हैं) को सामाजिक-आर्थिक विकास, व्यापार, और लोगों से लोगों के संपर्क के लिए क्षेत्रीय और पार-क्षेत्रीय कनेक्टिविटी की सख़्त ज़रूरत है.
भारत और एससीओ
एससीओ में अपने प्रवेश के बाद से, नयी दिल्ली ने क्षेत्रीय सुरक्षा, रक्षा, आतंकवाद से मुक़ाबले, अवैध ड्रग कारोबार इत्यादि से जुड़े मुद्दों पर सहयोग मज़बूत करने के लिए लगातार अभियान चलाया है. नयी दिल्ली के लिए एससीओ विभिन्न क्षेत्रीय, सुरक्षा और राजनीतिक मुद्दों पर अपने क्षेत्रीय समकक्षों के साथ समय-समय पर संलग्नता के लिए एक उपयोगी मंच है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में, भारत ने इन मुद्दों पर न सिर्फ़ अपने परिप्रेक्ष्य और दृष्टि को सामने रखा है, बल्कि अफ़ग़ानिस्तान में एक समावेशी सरकार के गठन को समर्थन देने और वहां शांति बहाली व आर्थिक पुनरुद्धार के लिए मदद के वास्ते दूसरे देशों को सफलतापूर्वक प्रेरित किया है. एससीओ भारत को वैश्विक व क्षेत्रीय आतंकवाद-निरोधक उपायों के साथ ही अवैध ड्रग कारोबार से मुक़ाबले के लिए क्षेत्रीय प्रयास शुरू करने का अवसर प्रदान करता है. वर्तमान में अवैध ड्रग कारोबार का इस्तेमाल भारत के शत्रुतापूर्ण पड़ोसियों द्वारा उसे सामाजिक क्षति पहुंचाने और उसके युवाओं का निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है. उदाहरण के लिए, नयी दिल्ली एससीओ के सदस्य देशों को न सिर्फ़ पाकिस्तान के नार्को-आतंकवाद पर, बल्कि यूरेशियाई क्षेत्र के विस्तारित पड़ोस में उसके द्वारा आतंकवाद के बुद्धिहीन इस्तेमाल पर भी सजग कर सकता है. इस संबंध में, नयी दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों से मुक़ाबले और सूचनाओं के संग्रहण व साझेदारी के वास्ते सहयोग एवं समन्वय बढ़ाने के लिए, एससीओ के ‘रीजनल एंटी-टेररिस्ट स्ट्रक्चर’ (रैट्स) का इस्तेमाल कर सकती है. रैट्स अपने सभी सदस्य देशों के आतंकवादियों और आतंकी संगठनों का डेटाबेस रखता है. इसके अलावा, रैट्स के तहत संयुक्त आतंकवाद-निरोधक अभ्यासों के ज़रिये, सदस्य देश सशस्त्र कर्मियों को आतंकवाद-निरोधक नेटवर्क मज़बूत करने और समूह के बीच तालमेल बढ़ाने के लिए प्रशिक्षित करते हैं. अलक़ायदा, इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रोविंस (आईएसकेपी), लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी), जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम), इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज़्बेकिस्तान (आईएमयू), और इस्लामिक जिहाद यूनियन (आईजेयू) जैसे ख़तरनाक वैश्विक एवं क्षेत्रीय आतंकी संगठनों की मौजूदगी, एससीओ के सदस्य देशों को आपस में जोड़ने वाले बल का काम कर सकती है. क्षेत्रीय शांति व सुरक्षा के वास्ते इन आतंकी संगठनों से मुक़ाबले के लिए एकजुटता हो सकती है.
नयी दिल्ली ‘इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर’ (आईएनएसटीसी) और चाबहार बंदरगाह परियोजना को बढ़ावा देने के लिए एससीओ का इस्तेमाल कर सकती है. चाबहार बंदरगाह और दूसरी कनेक्टिविटी पहलक़दमियों पर ज़्यादा क़रीबी सहयोग के लिए भारत, ईरान और उज़्बेकिस्तान ने एक त्रिपक्षीय कार्य समिति भी बनायी थी.
भारत ने शांति, समृद्धि और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए गंभीर प्रयास किये हैं – पूरे यूरेशियाई इलाक़े में सामान्य रूप से, और पूर्ण सदस्यता मिलने के बाद एससीओ सदस्यों के बीच विशेष रूप से क्षेत्रीय और पार-क्षेत्रीय (ट्रांसरीजनल) कनेक्टिविटी के मुखर पैरोकार के रूप में, नयी दिल्ली एससीओ का इस्तेमाल पाकिस्तान पर दबाव डालने के लिए कर सकती है, जिससे कि मध्य एशिया और दक्षिण एशिया को एकसाथ जोड़ने पर उसकी पोजीशन और रणनीति बदल सके. पाकिस्तान अपनी सीमाओं से तुर्कमेनिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान-इंडिया (तापी) पाइपलाइन जैसी कनेक्टिविटी और ऊर्जा परियोजनाओं को गुज़रने की अनुमति देने से इनक़ार कर भू-राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दायरों में भारत के हितों को पहले बाधित कर चुका है. इसके अलावा, नयी दिल्ली ‘इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर’ (आईएनएसटीसी) और चाबहार बंदरगाह परियोजना को बढ़ावा देने के लिए एससीओ का इस्तेमाल कर सकती है. चाबहार बंदरगाह और दूसरी कनेक्टिविटी पहलक़दमियों पर ज़्यादा क़रीबी सहयोग के लिए भारत, ईरान और उज़्बेकिस्तान ने एक त्रिपक्षीय कार्य समिति भी बनायी थी.
भारत का रचनात्मक दृष्टिकोण
बहुपक्षीय और बहु-दिशाओं वाली विदेश नीति के इस युग में, एससीओ का उपयोग भू-रणनीतिक चिंताओं और साझा चुनौतियों पर काम करने की ख़ातिर सदस्य देशों के बीच ज़्यादा सामंजस्य सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है. फ़िलहाल, रूस और चीन एससीओ की ड्राइवर सीट पर नज़र आते हैं; हालांकि, भारत को, अपने बढ़ते क्षेत्रीय व वैश्विक आर्थिक प्रभाव और मज़बूत बौद्धिक पूंजी के साथ, विकसित हो रहे एससीओ के एजेंडे और प्रगतिशील कार्यक्रम में अपनी कूटनीतिक पूंजी के निवेश के लिहाज़ से सोचना होगा.
फोरम के भीतर अपनी स्थिति मज़बूत करने के क्रम में, रूस, ईरान और मध्य एशियाई गणराज्यों (सीएआर) के साथ अपने दीर्घकालिक द्विपक्षीय संबंधों का लाभ भी भारत ले सकता है. भारत और पाकिस्तान के बीच बैर का इस्तेमाल करते हुए चीन ने साम्राज्यिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाया है. इसके अलावा, उसने अति-प्रचारित बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) का इस्तेमाल उस मध्य एशिया में अपनी वाणिज्यिक मौजूदगी बढ़ाने के लिए किया है, जो एशिया और यूरोप के मिलन बिंदु पर रणनीतिक रूप से स्थित है. एक महत्वपूर्ण बीआरआई पहल ने भारत की भू-रणनीतिक, भू-आर्थिक और सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाया है. पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से होकर सीपीईसी के गुज़रने से भारतीय संप्रभुता का उल्लंघन हुआ, जिसने भारत को बीआरआई से अलग-थलग रहने पर मजबूर किया.
भारत और यूरेशियाई क्षेत्र के बीच दीर्घकालिक सांस्कृतिक जुड़ाव रहे हैं. इसके अलावा, भारत का बढ़ता आर्थिक प्रभाव और उसकी युवा आबादी एससीओ में उसकी स्थिति मज़बूत बनाने में मदद कर सकते हैं.
चीन-पाकिस्तान धुरी से भिड़ने और उसे निष्प्रभावी बनाने के लिए ईरान, रूस और सीएआर के साथ अपने पुराने रिश्तों का इस्तेमाल भारत कर सकता है. भारत और यूरेशियाई क्षेत्र के बीच दीर्घकालिक सांस्कृतिक जुड़ाव रहे हैं. इसके अलावा, भारत का बढ़ता आर्थिक प्रभाव और उसकी युवा आबादी एससीओ में उसकी स्थिति मज़बूत बनाने में मदद कर सकते हैं. जहां तक भारत की बात है, तो अभी तक उसने ‘रचनात्मक’ दृष्टिकोण अपनाना चुना है, जिसका इस्तेमाल एससीओ को असहमतियों की जगह सहमतियों का मंच बनाने में किया जा सकता है.
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