Published on Apr 14, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत अतीत में नेपाल के जलविद्युत संसाधनों के दोहन से दूर रहा है, लेकिन इस स्थिति में अब बदलाव आ रहा है.

बिजली क्षेत्र में नेपाल के ‘सपनों’ की तरफ भारत की ख़ामोश बढ़त!

साल 2022 को ख़त्म हुए तीन महीने गुज़र चुके हैं. इसी बीच, नेपाली संसद में दो विश्वास प्रस्ताव भी पेश किए जा चुके हैं और एक नए राष्ट्रपति ने पदभार ग्रहण किया है. 2022 के बाद हुए चुनावों के तहत आखिरकार नेपाली सरकार ने आकार ले लिया है. माओवादी नेता पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' ने यूएमएल (यूनिफाइड मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) नेता के.पी.ओली के समर्थन से पिछले साल दिसंबर में प्रधानमंत्री के रूप में तीसरे कार्यकाल की शुरुआत की और उन्हें राजतंत्रवादी राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी जैसे अन्य कई दलों का साथ मिला जबकि चुनाव से उसने नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. यूएमएल-माओइस्ट गठबंधन शुरुआत से ही आंतरिक संकट का सामना कर रहा था, सबसे पहले ये तब सामने आई जब नेपाली कांग्रेस ने जनवरी में पहले विश्वास मत के दौरा दहल के पक्ष में वोट किया और फिर फरवरी में राष्ट्रपति पद के चुनाव के दौरान एक बार फिर गठबंधन के बीच आपसी मतभेद खुलकर बाहर आ गए. जहां दहल ने नेपाली कांग्रेस के नेता रामचंद्र पौडेल का समर्थन किया, वहीं ओली सरकार से बाहर आ गए लेकिन नेपाली कांग्रेस के समर्थन की बदौलत माओवादी नेता ने मार्च में दूसरे विश्वास मत को आसानी से जीत लिया.

बीजिंग ने चुनाव के बाद बने यूएमएल-माओइस्ट गठबंधन का स्वागत किया था, और उसने खुलकर इस बात के संकेत दिए थे कि वह नेपाल में एक वामपंथी सरकार का गठन होते देखना चाहता है. चीन ने बड़े उत्साह के साथ केरुंग-रसुवागढ़ी सीमा क्षेत्र को खोलने की घोषणा की; तिब्बत से आने वाली ट्रेन, जिसका पर लंबे समय से विचार किया जा रहा है, की व्यावहारिकता से जुड़े विस्तृत अध्ययन के लिए एक चीनी दल नेपाल पहुंचा; और यहां तक कि चीन ने नए पोखरा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (PIA) को बेल्ट रोड इनिशिएटिव से जुड़ी और 'चीन-नेपाल के आपसी सहयोग' पर आधारित प्रमुख परियोजना के रूप में चिन्हित किया. 

हालांकि, रिपोर्टों के अनुसार, दहल चीन द्वारा अपनी नई सरकार का ज़ोरदार स्वागत किए जाने से बहुत खुश नहीं थे. सरकारी अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया कि PIA परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा थी, और दहल ने न्यौते के बावजूद बोआओ फोरम में हिस्सा न लेकर चीन के उत्साह को कम करने की कोशिश की.

 

नेपाल में सरकारें अपनी अस्थिर प्रकृति के लिए बदनाम रही हैं, और गठबंधन राजनीति की पैंतरेबाज़ी का मतलब था कि दहल एक समय पर प्रधानमंत्री पद को छोड़कर 16 अलग-अलग मंत्रालयों का कार्यभार एक साथ संभाले हुए थे. लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल में जो एक चीज़ स्थिर रही है वह यह है कि दहल इस बात को लेकर अडिग हैं कि वह अपनी पहली विदेश यात्रा में भारत जाएंगे. शायद, यह नाज़ुक बाह्य परिस्थितियों को देखते हुए तय किया गया है, जहां एमसीसी समझौते के क्रियान्वयन के बाद वर्तमान में नेपाल में अमेरिका-चीन के बीच प्रभुत्व की लड़ाई चरम पर है. लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में भारत की जैसी नेपाल नीति रही है, उसे गौर से देखने के बाद यही पता चलता है कि दिल्ली ने संपर्क को बढ़ावा देने, ख़ासकर जलविद्युत विकास और व्यापार पर ध्यान केंद्रित करते हुए बड़ी ख़ामोशी से नेपाल में बढ़त बना ली है. नेपाल अपने जलविद्युत संसाधनों के बलबूते विकास के उस सपने को साकार करने की कगार पर है जिसके लिए उसने लंबे समय तक प्रतीक्षा की है; और प्रधानमंत्री दहल अप्रैल-मध्य में दिल्ली दौरे से पहले अपने एजेंडे में ऊर्जा व्यापार पर आपसी सहयोग को बढ़ाने और बांग्लादेश में थर्ड-कंट्री एक्सपोर्ट के मसले को प्रमुख जगह देंगे.

नेपाल के जलविद्युत क्षेत्र में भारत की मौजूदगी

ऐतिहासिक रूप से, भारत नेपाल के जलविद्युत संसाधनों के विकास से दूर रहा है. अतीत में, भारत ने इस क्षेत्र में केवल कुछ ही परियोजनाओं के साथ काम किया है, और उसने नेपाल में अन्य बुनियादी ढांचा क्षेत्रों को प्राथमिकता दी है. हालांकि, पिछले कुछ सालों में बदलाव आया है. 900 मेगावाट की अरुण III परियोजना का विकास सतलज जल विद्युत निगम (SJVN) की एक सहायक कंपनी द्वारा किया जा रहा है, जो बड़ी तीव्र गति से काम कर रही है. हालांकि, परियोजना के तहत बिहार के सीतामढ़ी में 253 किमी लंबी ट्रांसमिशन लाइन के निर्माण कार्य में भूमि अधिग्रहण से जुड़ी अड़चनों के कारण बाधाएं आई हैं. नेपाल ने दो जलविद्युत परियोजनाओं (750 मेगावाट की पश्चिम सेती परियोजना और 450 मेगावाट की सेती नदी-6 परियोजना) के विकास के लिए एनएचपीसी लिमिटेड के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है, जिसमें एक परियोजना (750 मेगावाट) से चीन के थ्री जॉर्ज कॉरपोरेशन ने यह कहकर अपने हाथ खींच लिए हैं कि यह परियोजना वित्तीय रूप से व्यवहार्य नहीं है. 900 मेगावाट वाली ऊपरी कर्णाली परियोजना के लिए भारत के जीएमआर समूह को लाइसेंस दिया गया है; हालांकि, कंपनी तय समयसीमा के भीतर वित्तीय समापन हासिल नहीं कर पाई, जिसके कारण इस परियोजना में अड़चनें आ रही हैं.

इसके अतिरिक्त, ऐसी रिपोर्टें सामने आई हैं कि संभावित रूप से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत आने वाली दो जलविद्युत परियोजनाओं; 480 मेगावाट वाली फुकोट कर्णाली परियोजना एवं 756 मेगावाट की तामूर नदी (स्टोरेज-टाइप) परियोजना के निर्माण का ठेका क्रमशः राष्ट्रीय जल विद्युत निगम (NHPC) और सतलज जल विद्युत निगम (SJVN) को दे दिया गया है. कई क्रॉस-बॉर्डर ट्रांसमिशन लाइनों पर काम जारी है, जहां फरवरी 2023 में संयुक्त संचालन समिति की बैठक में धालकेबार-मुजफ्फरपुर ट्रांसमिशन लाइन की क्षमता को मौजूदा 600 मेगावाट से बढ़ाकर 800 मेगावाट करने पर सहमति दे दी गई. मार्च में, बिहार में ट्रांसमिशन लाइनों की मदद से प्रति यूनिट 7.21 रुपए की दर से नेपाली बिजली के निर्यात के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए.

इस संदर्भ में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पिछले साल जून-दिसंबर के बीच नेपाल ने भारत 11 अरब नेपाली रुपए (6.8 अरब नेपाली रुपए) के मूल्य की बिजली का निर्यात किया, जो यही दर्शाता है कि नेपाल अपनी जलविद्युत क्षमता को साकार करने का सपना पूरा कर सकता है, जिसके लिए वह लंबे समय से प्रयासरत है. वर्तमान में नेपाल को यह अधिकार है कि वह 10 परियोजनाओं से पैदा होने वाली 452.6 मेगावाट बिजली को भारतीय बाजार में बेच सकता है. बिजली व्यापार को लेकर भारत और नेपाल के बीच एक 25 वर्षीय द्विपक्षीय समझौते का प्रस्ताव दहल की आगामी दिल्ली यात्रा से जुड़ा एक महत्त्वपूर्ण एजेंडा होगा, जो नेपाली अधिकारियों के अनुसार, वर्तमान में लागू वर्षीय अनुबंध व्यवस्था की जगह लेगा जिससे काफ़ी 'अनिश्चतताएं' पैदा हुई हैं. इस बात को लेकर चिंताएं जताई जा रही हैं कि भारत द्वारा अपनी घरेलू परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए इंटर-स्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम (ISTS) शुल्क को माफ़ करने का फ़ैसला नेपाली बिजली निर्यात के लिए घातक सिद्ध होगा, और काठमांडू अपने बिजली निर्यातकों को भी ऐसी ही छूट देने की मांग करेगा. इसी तरह, नेपाली निजी बिजली कंपनियां भी जल्द ही अपनी बिजली सीधे भारतीय खरीदारों को बेच सकेंगी.

विकास को गति प्रदान करना 

अगर भारतीय ट्रांसमिशन लाइनों के ज़रिए बांग्लादेश में नेपाली बिजली के निर्यात में तेज़ी लाई जाए तो भारत के क्षेत्रीय संपर्क को और अधिक बढ़ावा मिलेगा. ढाका और काठमांडू दोनों ही इस प्रस्ताव को लेकर काफ़ी उत्साहित हैं, और दिल्ली की सहमति मिलने के बाद यह विश्व स्तर पर त्रिपक्षीय सहयोग के कुछ उदाहरणों में से एक होगा. इससे व्यापक पैमाने पर बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल (BBIN) संपर्क और भारत की G20 से जुड़ी महत्त्वाकांक्षाओं को बढ़ावा मिलेगा, और साथ ही बिजली क्षेत्र में आपसी सहयोग को लेकर नेपाल-भारत द्वारा अप्रैल 2022 में दिए एक ज्वाइंट विजन स्टेटमेंट को गति मिलेगी.

लेकिन किसी भी क़रीबी संबंध के लिए ज़रूरी है कि कुछ आपसी मतभेदों को दूर किया जाए. नेपाल में भारत और चीन के बीच जारी प्रतिद्वंदिता जगजाहिर है, जहां भारत चीन द्वारा विकसित या वित्तपोषित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए अपनी बाज़ारों को बंद कर रहा है. इसके कारण नेपाली प्राइवेट बिजली निर्माता कंपनियों की चिंताएं बढ़ गई हैं जो भारत को संभावित निर्यात बाज़ार के तौर देख रहे हैं. बाज़ार तक पहुंच अवरुद्ध करने का यह फ़ैसला शायद नेपाल को चीन से गठजोड़ के प्रति हतोत्साहित करे, लेकिन इस नीति के कारण चीन उन नेपाली बाज़ारों तक पहुंच बनाने में सफ़ल हो गया है, जो पहले उसके लिए प्रतिबंधित थीं. उदाहरण के लिए, चीनी भागीदारी वाली परियोजनाओं में विस्फोटकों की आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिए भारत द्वारा एंड यूज़र प्रमाणपत्र की मांग का यह नतीज़ा हुआ कि अब नेपाल पिछले कई सालों में पहली बार वाणिज्यिक उपयोग के लिए चीन से विस्फोटकों की ख़रीद कर रहा है. भारत के इस फ़ैसले की जद में वे परियोजनाएं भी आती हैं, जिनसे भारत और चीन दोनों देशों की कंपनियां जुड़ी हुई हैं. जैसे: 456 मेगावाट वाली ऊपरी तामाकोशी परियोजना. साथ ही इसके दायरे में एशियाई विकास बैंक जैसी बहुपक्षीय संस्थानों द्वारा वित्तपोषित परियोजनाएं भी शामिल हैं. उदाहरण के लिए, भैरहवां में गौतम बुद्ध अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, जिसका निर्माण एक चीनी कंपनी ने किया था.

 

दहल की यात्रा के दौरान बाज़ार में पहुंच और बिजली क्षेत्र में त्रिपक्षीय सहयोग का मुद्दा एजेंडे में सबसे ऊपर होगा, जहां नेपाल के लिए अधिशेष बिजली के निर्यात, और भैरहवां और पोखरा में बने नए अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों के संचालन के लिए भारतीय बाज़ार बेहद ज़रूरी हैं. यात्रा के दौरान अतिरिक्त हवाई मार्गों से जुड़े सवाल पर जल्द ही किसी निर्णय पर पहुंचने की कोशिश की जानी चाहिए क्योंकि यह लंबे समय से अटका पड़ा है. आज से क़रीब 9 साल पहले भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके नेपाली समकक्ष सुशील कोईराला ने 2014 में दिए गए एक संयुक्त वक्तव्य में कहा था कि वे आने वाले छह महीनों में तीन अतिरिक्त हवाई मार्गों को स्थापित करने की नेपाल को मांगों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. कालापानी विवाद के बाद से ही नेपाल के नए राजनीतिक मानचित्र के चलते दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई है, लेकिन इस बात की पूरी संभावना है कि दहल अपने आगामी दौरे में इस मुद्दे को हल करने की कोशिश करेंगे.

दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय संपर्क से जुड़ी बातों को लंबे समय से महज़ एक सपने के तौर पर देखा जाता रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों में हुए विकास से उम्मीदें बढ़ी हैं कि सांस्कृतिक रूप से समरूप लेकिन आर्थिक रूप से भिन्न क्षेत्रों के बीच क्षेत्रीय संपर्क के लक्ष्य को साकार किया जा सकता है. द्विपक्षीय UPI भुगतान इंटरफ़ेस जैसे मुद्दे, जो अभी अपने प्रारंभिक चरण में हैं, इस संपर्क को बढ़ावा देंगे. लेकिन इसके लिए भारत को अपने पड़ोसियों को ये आश्वासन देना होगा कि G20 के राष्ट्रध्यक्ष के तौर पर दिल्ली वैश्विक दक्षिण के प्रति अपने सपने को साकार करने के प्रति प्रतिबद्ध है और वह दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय संपर्क से जुड़ी परियोजनाओं को और एक कदम आगे ले जाएगा.

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