Published on Jul 29, 2022 Updated 29 Days ago

प्रशिक्षण के अलावा भारतीय भारतीय सशस्त्र बलों को इंटरनेट केंद्रित मिशन के लिए छोटे उपग्रहों की ज़रूरत है.

अंतरिक्ष में छोटे सैटेलाइट समूह के लिए भारत की लंबी तलाश!

सिग्नल कोर (सीओएस) के अपने अधिकारियों को ट्रेनिंग देने के लिए भारतीय सेना के द्वारा छोटे सैटेलाइट की तलाश एक ज़रूरी क़दम है. सिग्नल कोर के अधिकारियों को मिलिट्री कॉलेज ऑफ टेलीकम्युनिकेशंस इंजीनियरिंग (एमसीटीई) में जो ट्रेनिंग मिली है, उसके सही इस्तेमाल के लिए ये आवश्यक है. पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के बहुत बड़े स्मॉल सैटेलाइट (एसएमसैट) समूह गुओवांग की तुलना में भारतीय थलसेना के साथ-साथ भारतीय वायुसेना और भारतीय नौसेना को एक विशेष स्मॉल सैटेलाइट (एसएमसैट) का समूह बनाने के लिए मोदी सरकार से अतिरिक्त समर्थन की ज़रूरत होगी. इसके अलावा भारतीय थलसेना की तरफ़ से अपने सिग्नल कोर के अधिकारियों को “सैटेलाइट डिज़ाइन, कम्युनिकेशन पेलोड डिज़ाइन, फैब्रिकेशन, असेंबली और सैटेलाइट के इलेक्ट्रिकल एवं मैकेनिकल सिस्टम की जांच” के क्षेत्र में पूरी मेहनत से ट्रेनिंग के लिए एसएमसैट के इस्तेमाल की प्रशंसनीय इच्छा पर ध्यान दिए बिना थलसेना, वायुसेना और नौसेना को आम तौर पर जिस चीज़ की विशेष रूप से ज़रूरत है, उसकी तुलना अमेरिका के मौजूदा ग्लोबल इन्फॉर्मेशन ग्रिड (जीआईजी) से की जा सकती है.

पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के बहुत बड़े स्मॉल सैटेलाइट (एसएमसैट) समूह गुओवांग की तुलना में भारतीय थलसेना के साथ-साथ भारतीय वायुसेना और भारतीय नौसेना को एक विशेष स्मॉल सैटेलाइट (एसएमसैट) का समूह बनाने के लिए मोदी सरकार से अतिरिक्त समर्थन की ज़रूरत होगी.

ट्रांसफॉर्मेशनल सैटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम (टीसैट) के साथ मिलकर जीआईजी सुरक्षित सैटेलाइट कम्युनिकेशन की इजाज़त देता है. साथ ही ये जियोस्टेशनरी ऑर्बिट (जीईओ) में सैटेलाइट को लो अर्थ ऑर्बिट (एलईओ) के एसएमसैट्स के साथ जोड़ता है जिनका टेरेस्ट्रियल नोड से संपर्क होता है. टीसैट अतीत की सैटेलाइट संरचना प्रणाली से इस मायने में अलग है कि इसमें “मिली-जुली हाइब्रिड स्विचिंग तकनीक (आरएफ सर्किट, ऑप्टिकल सर्किट और पैकेट स्विचिंग)” का इस्तेमाल होता है. ये अमेरिका के द्वारा हासिल की गई एक महत्वपूर्ण प्रगति है जो टीसैट की शुरुआत से पहले मौजूद सर्किट आधारित सैटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम के मुक़ाबले ज़्यादा इंटरफेस और सैन्य अभियानों की व्यापक श्रेणी के लिए समर्थन के योग्य बनाता है. अमेरिकी सेना के पहले के सैटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम से हटकर जीआईजी-टीसैट की क्षमता हासिल करने के कई फ़ायदे हैं. सैटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम किसी ख़ास या एक सैटेलाइट के द्वारा ही एक से ज़्यादा मिशन की इजाज़त देता था. वहीं टीसैट सिस्टम की तरह नेटवर्क से जुड़ी या संगठित क्षमता एक साथ कई मिशन को समर्थन देती है. एसएमसैट्स जीआईजी-टीसैट की तरह नेटवर्क केंद्रित कुशल और प्रभावी अभियान के लिए एक दुरुस्त सैटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम बनाने में एक प्रमुख भूमिका निभाएगा. 

चीन बनाम भारत 

वैसे तो वर्तमान में चीन को अमेरिका के इंटरनेशनल ट्रैफिक इन आर्म्स रेगुलेशंस (आईटीएआर) के परिणामस्वरूप बाध्यता का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन आईटीएआर ने चीन को एसएमसैट्स से बने अपने गुओवांग लो अर्थ ऑर्बिट सुपर सैटेलाइट समूह के विकास में कामचलाऊ तौर पर मज़बूत किरदार बनने में गतिरोध पैदा नहीं किया है. गुआवोंग के लो अर्थ ऑर्बिट में तैनात 13,000 सैटेलाइट का एक नेटवर्क बनने की उम्मीद है. हालांकि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के संचार से जुड़ी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गुआवोंग के अनुकूल और प्रभावी लो अर्थ ऑर्बिट नेटवर्क में तब्दील होने में समय लगेगा. वैसे तो सही अर्थों में जीआईजी-टीसैट समर्थित एक इंटरनेट केंद्रित बल के निर्माण में चीन के मुक़ाबले अमेरिका काफ़ी आगे है लेकिन इसके बावजूद भारत की तुलना में चीन ने महत्वपूर्ण शुरुआती बढ़त बना ली है क्योंकि उसने स्पेस ग्राउंड इंटीग्रेटेड इन्फॉर्मेशन नेटवर्क (एसजीआईआईएन) को शुरू किया है. एसजीआईआईएन चीन की 13वीं पंचवर्षीय योजना के तहत एक महत्वपूर्ण इंजीनियरिंग की कोशिश का हिस्सा है. लेकिन चीन के अंतरिक्ष से ज़मीन तक के नेटवर्क के लिए आगे काफ़ी चुनौतियां हैं क्योंकि अलग-अलग अंतरिक्ष यानों के जुड़े हुए नेटवर्क को बनाने, एक सैटेलाइट से दूसरे सैटेलाइट के बीच संपर्क में देरी को कम करने, सैटेलाइट से ज़मीन तक संपर्क और सैटेलाइट एवं ट्रांसमिशन लिंक के बीच सुरक्षा सुनिश्चित करने में उसे कई बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है. 

जीआईजी-टीसैट समर्थित एक इंटरनेट केंद्रित बल के निर्माण में चीन के मुक़ाबले अमेरिका काफ़ी आगे है लेकिन इसके बावजूद भारत की तुलना में चीन ने महत्वपूर्ण शुरुआती बढ़त बना ली है क्योंकि उसने स्पेस ग्राउंड इंटीग्रेटेड इन्फॉर्मेशन नेटवर्क (एसजीआईआईएन) को शुरू किया है.

इसके अलावा, चीन की एमएससैट उत्पादन क्षमता में काफ़ी विस्तार हुआ है. चाइना एकेडमी ऑफ स्पेस टेक्नोलॉजी (सीएएसटी) का उत्तरी चीन में स्थित तियानजिन उत्पादन केंद्र एक साल में 200 एसएमसैट्स के उत्पादन की क्षमता रखता है. चाइना एरोस्पेस साइंस एंड इंडस्ट्री कॉरपोरेशन (सीएएसआईसी), जो कि चीन की अग्रणी मिसाइल उत्पादन संस्था है, की भारी उत्पादकता के परिणामस्वरूप 240 और एसएमसैट्स का हर साल उत्पादन होने लगा है. इस कारण से चीन एक ऐसा सैटेलाइट नेटवर्क तैयार करने में सक्षम होगा जो जियोस्टेशनरी सैटेलाइट को लो अर्थ ऑर्बिट आधारित सैटेलाइट से जोड़ने में सक्षम होगा. ये नेटवर्क संभवत: अमेरिका का प्रतिद्वंदी होगा. तुरंत भले ही ये मुमकिन नहीं हो लेकिन मध्यम या लंबे समय में निश्चित रूप से ये होगा और भारत के मुक़ाबले तो चीन काफ़ी आगे चला जाएगा. वास्तव में एसजीआईआईएन के हिस्से के रूप में चीन की चाह सभी ऑर्बिट में मौजूद सैटेलाइट का ज़मीन वाले हिस्से के साथ संपर्क स्थापित करना है. ये एकमात्र तरीक़ा है जिसके ज़रिए चीन के रणनीतिकार पीएलए के सभी अंगों के लिए नेटवर्क केंद्रित अभियानों को जारी रख सकते हैं. 

चीन एक ऐसा सैटेलाइट नेटवर्क तैयार करने में सक्षम होगा जो जियोस्टेशनरी सैटेलाइट को लो अर्थ ऑर्बिट आधारित सैटेलाइट से जोड़ने में सक्षम होगा. ये नेटवर्क संभवत: अमेरिका का प्रतिद्वंदी होगा. तुरंत भले ही ये मुमकिन नहीं हो लेकिन मध्यम या लंबे समय में निश्चित रूप से ये होगा और भारत के मुक़ाबले तो चीन काफ़ी आगे चला जाएगा.

दूसरी तरफ़ भारत अपनी ओर से बेंगलुरु आधारित डिफेंस स्पेस एजेंसी (डीएसए) की स्थापना के साथ इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस (ईएलआईएनटी), कम्युनिकेशन इंटेलिजेंस (सीओएमएमआईएनटी) और अंतरिक्ष आधारित निगरानी के क्षेत्र में प्रगति कर रहा है. लेकिन तब भी ये प्रगति एक एसजीआईआईएन या जीआईजी-टीसैट प्रकार की इंटरनेट केंद्रित क्षमता को विकसित करने की ज़रूरत के आगे नहीं ठहरती. अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत के स्टार्ट-अप और मीडियम स्केल मैन्युफैक्चरिंग एंटरप्राइज़ेज़ (एमएसएमई) को मज़बूती मिली है. इसकी वजह से वो सारणी 1 में दिखाए गए अलग-अलग वज़न के एसएमसैट्स का निर्माण करने में सक्षम हैं. 

सारणी -1

भारत में सैटेलाइट, ख़ास तौर पर एसएमसैट की श्रेणी में, को विकसित करने और लॉन्च करने की लागत फिलहाल कम है. ये बात रक्षा मंत्रालय और सशस्त्र सेनाओं के लिए एक प्रोत्साहन की तरह काम करनी चाहिए ताकि सामूहिक रूप से भारत की एसएमसैट क्षमता के दोहन के लिए ख़ास रणनीति बनाई जा सके. इसको आगे बढ़ाना निश्चित रूप से एक व्यापक कोशिश होनी चाहिए जिससे कि एसजीआईआईएन की तरह क्षमता विकसित की जा सके जो भारतीय सेना के तीनों अंगों के द्वारा नेटवर्क केंद्रित अभियानों के सामर्थ्य को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाएगी. निश्चित तौर पर एसजीआईआईएन जैसी प्रणाली को साकार करने के लिए एसएमसैट्स इकलौते अंतरिक्ष यान नहीं हैं बल्कि अलग-अलग ऑर्बिट, सिर्फ़ लो अर्थ ऑर्बिट नहीं जो कि एसएमसैट्स का प्रमुख ऑर्बिट है, में मौजूद मध्यम और भारी सैटेलाइट भी हैं. इस कोशिश के लिए बजट में ज़्यादा समर्थन के साथ-साथ केंद्र सरकार के सीधे हस्तक्षेप की भी ज़रूरत पड़ेगी. इसके बिना सशस्त्र सेना के द्वारा इस ज़रूरी और असाधारण मेहनत वाले लक्ष्य को पूरा करने की संभावना कम है. 

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