स्थायी वित्तपोषण और अंतिम व्यक्ति तक वितरण, नवीन तंत्रों की शुरुआत करके जी20 में शामिल विभिन्न देशों में सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को कारगर बनाने में सहायक साबित हो सकता है.
जी20 राष्ट्रों में विभिन्न तरीके की सामाजिक सुरक्षा प्रणालियां मौजूद हैं. इनका चरित्र, लक्ष्य समूहों, डिज़ाइन के साथ-साथ वित्तपोषण से भी भिन्न हैं. ये प्रणालियां, जी20 देशों में दुनिया की लगभग 60 प्रतिशतआबादी को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने का काम करती है. उदाहरण के लिए, विकसित देशों में उनकी विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसे बेरोज़गारी लाभ और कार्यस्थल दुर्घटना बीमा आदि के लिए एक अंशदायी प्रणाली होती है. इस प्रणाली में, नियोक्ता और कर्मचारी दोनों एक निर्धारित अनुबंध के अनुसार अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हैं. यह भी देखने में आता है कि यूरोपीय संघ (ईयू) को छोड़कर, अन्य विकसित देशों में इन प्रणालियों में सरकार का योगदान बहुत कम होता है. दूसरी ओर, जब भारत जैसे विकासशील देशों की बात आती है, तो हम इसमें राज्य की महत्वपूर्ण भागीदारी देख सकते हैं.
डेटा की कमी और असंगठित क्षेत्र में रोज़गार की अनौपचारिकता के कारण सामाजिक सुरक्षा के प्रावधान अनुरूप योजनाएं तैयार करने का काम कठिन हो जाता है. असंगठित क्षेत्र में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का वित्त पोषण भी खासकर चुनौतीपूर्ण होता है.
भारत का अनुभव
सामाजिक सुरक्षा यद्यपि सभी के लिए, आजीविका सुरक्षा के अधिकार के रूप में कार्य करती है, लेकिन अधिकांश सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों का ध्यान संगठित क्षेत्र पर ही होता है. ऐसे में वैश्विक कार्यबल के 61 प्रतिशतसे अधिक को रोज़गार देने वाला असंगठित क्षेत्र, बेहतर कामकाजी परिस्थितियों सहित पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा पाने के दायरे से बाहर ही रह जाता है. डेटा की कमी और असंगठित क्षेत्र में रोज़गार की अनौपचारिकता के कारण सामाजिक सुरक्षा के प्रावधान अनुरूप योजनाएं तैयार करने का काम कठिन हो जाता है. असंगठित क्षेत्र में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का वित्त पोषण भी खासकर चुनौतीपूर्ण होता है. इसका कारण यह है कि इस क्षेत्र में न तो औपचारिक अनुबंध होता है और न यहां काम करने वाले श्रमिक, आर्थिक तंगी की वजह से सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में अपना हिस्सा दे पाते हैं. ऐसे में अंतिम व्यक्ति तक सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ पहुंचाना और भी मुश्किल हो जाता है. 86.8 प्रतिशतके साथ वैश्विक स्तर पर भारत के एक सबसे बड़ेअसंगठित क्षेत्र में काम करने वाला श्रमिक अपना वेतन अनौपचारिक रोज़गार से ही कमाता है. यह एक महत्वपूर्ण ग्रामीण-शहरी विभाजन की विशेषता को भी दर्शाता है. शहरी क्षेत्रों की 79 प्रतिशत नौकरियों की तुलना में कुल 96 प्रतिशत नौकरियां ग्रामीण इलाके के अनौपचारिक क्षेत्र में केंद्रित है.
चित्र1: भारत में अनौपचारिक रोज़गार ( 2022 के दौरान प्रतिशत में)
भारत में इसके अलावा लगभग 88 प्रतिशत महिलाओं को अनौपचारिक रोज़गार मिला हुआ है. भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में महिलाओं को औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्र में असंगठित श्रमिकों के रूप में ही काम मिलने की संभावना अधिक है. ऐसे में महिलाओं की आय-सृजित संपत्ति तक सीमित पहुंच, वेतन में भेदभाव, अवैतनिक देखभाल कार्य का अधिक बोझ डाले जाने और सामाजिक मानदंड जैसी पारंपरिक चिंताएं महिलाओं के रोज़गार को लेकर भारत की औपचारिक अर्थव्यवस्था में चुनौतियां बनी हुई हैं. इसके बावजूद भारत ने महिलाओं के लिए आजीविका सुरक्षा के वैकिल्पक स्त्रोतों को आसान और सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण काम किया है. महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने वाले वाले डिजिटल और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए व्यापक सामाजिक सुरक्षा उपायोंके माध्यम से भारत ने मौजूदा लिंग अंतर को पाटने और गरीबी उन्मूलन को आगे बढ़ाने की दिशा में अहम काम किया है.
भारत में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा महत्वपूर्ण सामाजिक सुरक्षा उपायों तक पहुंच से अब भी वंचित है. अत: जी20 की अध्यक्षता में भारत सभी के लिए सामाजिक सुरक्षा और आजीविका सुरक्षा के प्रावधान को अपनी प्राथमिकताओं में से एक के रूप में मान्यता देता है.
हाल ही में कोविड 19 महामारी ने आधे मिलियनके आसपास अनौपचारिक श्रमिकों को गहरी गरीबी में धकेला है. इस वजह से सामाजिक सुरक्षा उपायों के माध्यम से उन तक सहायता पहुंचाना आवश्यक हो गया है. इतने बड़े पैमाने पर सार्वजनिक व्यवस्था करते हुए सामाजिक सुरक्षा पहुंचाने में भारत के अनुभव का लाभ दुनिया के अन्य देश उठा सकते हैं. इस काम में हुई प्रगति के बावजूद, भारत में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा महत्वपूर्ण सामाजिक सुरक्षा उपायों तक पहुंच से अब भी वंचितहै. अत: जी20 की अध्यक्षता में भारत सभी के लिए सामाजिक सुरक्षा और आजीविका सुरक्षा के प्रावधान को अपनी प्राथमिकताओं में से एक के रूप में मान्यता देता है. जी20 में, मजबूत सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों में नवाचार व्यवस्थाओं के साथ दीर्घकालीन वित्त पोषण और अंतिम पंक्ति के असंगठित श्रमिक तक लाभ पहुंचाने के लिए इसके सदस्य देशों में मजबूत सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को विकसित करने की दिशा में योगदान करने की विशाल क्षमता मौजूद है.
असंगठित क्षेत्र में सामाजिक सुरक्षा को सक्षम बनाने के लिए सामाजिक सहायता और सामाजिक बीमा दोनों की ही ज़रूरत है. यहां सरकार की भूमिका को बढ़ाया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर एकजुटता से वित्तपोषण का दृष्टिकोण अपनाकर सरकारें बीमा प्रीमियम में सब्सिडी दे सकती हैं या असंगठित क्षेत्र पर डाले जाने वाले योगदान का बोझ उठाने की तैयारी दर्शा सकती है. एक और मॉडल यह हो सकता है कि सरकार भी असंगठित क्षेत्र के श्रमिक की ओर से दिए जाने वाले योगदान के बराबर का योगदान अपनी जेब से देना शुरू कर दें. इसका सफल उदाहरण भारत के बिल्डिंग एंड अदर कन्स्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड के तहत आने वाले कन्स्ट्रक्शन वर्कर्स अर्थात निर्माण श्रमिकों के मामले में देखा जा सकता है. भारत इसके अलावा प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन योजना (पीएमएसवाईएमवाई)भी चला रहा है. इसके तहत असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को वयोवृद्ध होने पर सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा दी जाती है. इसमें शामिल होने वाले नागरिक और सरकार दोनों का योगदान बराबरी का होता है.
एक शानदार अंदाज़ में काम करने वाली सामाजिक सुरक्षा योजना तैयार करने के लिए जी20 देशों को एक दीर्घकालीन फ्रेमवर्क अर्थात ढांचा बनाना होगा, जो उनके यहां की चुनौतियों को ध्यान में रखें.
अक्सर ऐसा होता है कि आर्थिक दृष्टिकोण से निम्न वित्तीय स्तर से संबंधित अनौपचारिक श्रमिकों में उपभोग करने की प्रवृत्ति अधिक होती हैं. अर्थात, उनकी आय से होने वाली बचत का अधिकांश हिस्सा एक अप्रत्याशित संकट के दौरान उनकी मदद करने में काम आने की बजाय अल्पकालिक आवश्यक उपभोग पर खर्च कर दिया जाता है. इसका मुक़ाबला करने के लिए सरकार को उन्हें बच्चों को शिक्षा की ओर प्रोत्साहित करने के लिए बच्चों की शिक्षा पर होने वाले खर्च में योगदान देने, स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाने और आवासीय सुविधाएं देनी चाहिए. इन्हीं चीजों पर असंगठित क्षेत्र का श्रमिक अपने जीवन निर्वाह के लिए की जाने वाली कमाई का अधिकांश हिस्सा खर्च करता है. कोविड के बाद उपजी स्थिति में तो यह और भी आवश्यक हो जाता है, क्योंकि महामारी के कारण बेरोज़गारी बढ़ने के साथ ही आय में भी गिरावट आयी है.
एक शानदार अंदाज़ में काम करने वाली सामाजिक सुरक्षा योजना तैयार करने के लिए जी20 देशों को एक दीर्घकालीन फ्रेमवर्क अर्थात ढांचा बनाना होगा, जो उनके यहां की चुनौतियों को ध्यान में रखें. असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के लिए क्रियाशील सामाजिक सुरक्षा मुहैया करवाना जी20 में शामिल देशों के सामने खड़ी एक बड़ी चुनौती है. इस चुनौती का सामना नियोजित तरीके से किया जाना चाहिए. इसके लिए जी20 देशों को ऐसे कुशल डिलीवरी सिस्टम अर्थात वितरण प्रणाली में निवेश करना होगा, जो सामाजिक सुरक्षा की सुविधाओं को उन लोगों तक आसानी से पहुंचा सकें, जिन्हें इसकी आवश्यकता है. इसके अलावा, इसके लिए एक स्थायी वित्तपोषण मॉडल बनाने में जी20 देशों को अन्य विकासशील देशों और अन्य बहुपक्षीय संस्थानों की सहायता लेनी चाहिए.
सामाजिक सुरक्षा वितरण प्रणाली
असंगठित श्रमिकों तक (मुख्य रूप से सार्वजनिक प्रावधान के माध्यम से) सामाजिक सुरक्षा के जाल का विस्तार करने के लिए तैयार देशों को इन प्रणालियों की वित्तीय स्थिरता पर दबाव डाले बगैर, लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए लाभों का सुरक्षित और सबसे प्रभावी वितरण सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक योजना बनाना महत्वपूर्ण साबित होगा. सामाजिक सुरक्षा की मजबूत वितरण प्रणाली की अहमियत कोविड-19 महामारी के दौरान ही स्पष्ट हो गई थी. जिन राष्ट्रों के पास एक सामाजिक रजिस्ट्री-संचालित, ऑनलाइन भुगतान-सक्षम सामाजिक सुरक्षा प्रणाली मौजूद थी, वहां जल्दी से कार्रवाई कर ज़रूरतमंदों तक सामाजिक सुरक्षा सेवाएं प्रदान की जा सकी थी. भारत में भी लाभार्थियों तक डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर (डीबीटी) सहायता पहुंचाने में आधार रजिस्ट्री ने अहम भूमिका अदा की थी. इसके अलावा यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) जैसे ऑनलाइन भुगतान सुविधा प्लेटफार्ट ने दूर दराज क्षेत्र के लाभार्थियों का पंजीयन करने और इसकी इंटरऑपरेटेबिलिटी में अहम भूमिका अदा करते हुए वक्त पर भुगतान को सुगम बनाया था.
भारत के प्रभावी डीबीटी तंत्र में अनुभव को देखते हुए भारत की जी20 की अध्यक्षता इससे निपटने के लिए एक सामान्य ढांचा विकसित करने में महत्वपूर्ण कारक साबित हो सकती है.
अंतिम श्रमिक तक सहायता पहुंचाने के लिए एक मजबूत वितरण प्रणाली विकसित करने से वैश्विक स्तर पर अरबों लोगों की आजीविका के विकास और सुरक्षा पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. समन्वय और समावेशन को मजबूत वितरण प्रणाली बनाने में मुख्य चुनौतियों के रूप में पहचानागया है. भारत के प्रभावी डीबीटी तंत्र में अनुभव को देखते हुए भारत की जी20 की अध्यक्षता इससे निपटने के लिए एक सामान्य ढांचा विकसित करने में महत्वपूर्ण कारक साबित हो सकती है. सामाजिक सुरक्षा वितरण श्रृंखला को निम्नलिखित फिगर में दर्शाया गया है, और जी20 देशों को इनमें से प्रत्येक चरण में उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.
सभी राष्ट्रों में सामाजिक सुरक्षा की निगरानी, उसका लक्ष्यीकरण और वितरण, सामाजिक सुरक्षा में परिचालन संबंधी भिन्नता से प्रभावित होता हैं. इसे रोकने के लिए सामाजिक सुरक्षा का एक सामान्य ढांचा विकसित करना पड़ेगा, जो वैश्विक आबादी के लिए, विशेष रूप से रोज़गार के असंगठित क्षेत्रों में समान अवसर प्रदान करें. सामाजिक सुरक्षा के न्यूनतम स्वीकार्य स्तर तक पहुंचने के लिए सभी जी20 देशों द्वारा सामाजिक सुरक्षा के लिए सामान्य अनुकूलीय संरचनात्मक ढांचे का उपयोग नीति को आर्थिक रूप से टिकाऊ रखते हुए देश विशेष संदर्भ-विशिष्ट आवश्यकताओंको ध्यान में रखते हुए किया जा सकता है. इसे सक्षम करने के लिए, देशों को यह निगरानी करनी चाहिए कि राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के डिजाइन में प्रचलित भिन्नताएं कहां पर हैं. संसाधन, प्रौद्योगिकी और सूचना-साझाकरण के माध्यम से इन मौजूदा विभाजनों को कम कर एक बहु-हितधारक साझेदारी के लिए अनुकूल वातावरण को सक्षम करना भी महत्वपूर्ण है.
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Debosmita Sarkar is an Associate Fellow with the SDGs and Inclusive Growth programme at the Centre for New Economic Diplomacy at Observer Research Foundation, India.
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Soumya Bhowmick is a Fellow and Lead, World Economies and Sustainability at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED) at Observer Research Foundation (ORF). He ...