1 दिसंबर 2022 से जी20 की भारत की अध्यक्षा (G20 presidency) को अंतरराष्ट्रीय मंच पर महज़ एक नियमित परिवर्तन के रूप में नहीं देखा जा रहा है.
ऐसा कई कारणों से है, जैसे :
- i) टाइमिंग: दुनिया रूस-यूक्रेन युद्ध और महामारी के बाद के बदलाव जैसे भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक तनाव के दौर से गुजर रही है.
- ii) बहुपक्षवाद को ख़तरा: जैसा कि दुनिया कई वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रही है, बहुपक्षवाद जो वैश्विक स्थिरता के लिए अब तक स्वीकृत नुस्ख़ा था, उस पर अब सवाल उठने लगे हैं.
iii) भारत का बढ़ता दबदबा और विश्वसनीयता: भारत के नेतृत्व का दम और दोनों ओर से पक्षपातपूर्ण दबावों का विरोध करने की इसकी क्षमता को लेकर अब दुनिया भर में सकारात्मक धारणा बढ़ती जा रही है.
- iv) G20 की संरचना: इसकी संरचना, समावेशी वैश्विक पहुंच, कार्यान्वयन पर ध्यान, नागरिक समाज संगठनों से ज़मीनी स्तर पर समर्थन और यह भरोसा कि दिसंबर 2023 के बाद भी, जब भारत कार्यभार छोड़ देगा, इसकी ज़िम्मेदारी एक और वर्ष तक संगठन के नए अध्यक्ष के साथ तत्काल इस पद को छोड़ने वाले भारत पर ही बनी रहेगी. भारत G20 के अगले अध्यक्ष और एक महत्वपूर्ण विकासशील देश ब्राज़ील के साथ काम करता रहेगा जहां के राष्ट्रपति अब लूला डा सिल्वा हैं, और जिन्हें भारत के बेहद करीब माना जाता है.
वास्तव में कोविड के बाद की दुनिया में G20 सहयोग का अलाइनमेंट बुरे हालात में गेम चेंजर साबित हो सकता है.
अंतर-सरकारी मंचों के बीच G20 के बराबर कोई नहीं है, जिसमें दुनिया की प्रमुख विकसित और साथ ही विकासशील अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं, इस प्रकार यह एक अनोखा मंच प्रदान करता है.इन सदस्यों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम (यूके), अमेरिका और यूरोपीय संघ शामिल हैं. G20 वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85 प्रतिशत, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का 75 प्रतिशत और विश्व जनसंख्या का दो-तिहाई हिस्सा है, जो इसे अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए एक अहम मंच बनाता है. वास्तव में कोविड के बाद की दुनिया में G20 सहयोग का अलाइनमेंट बुरे हालात में गेम चेंजर साबित हो सकता है.
भारत वर्तमान में जी20 तिकड़ी (वर्तमान, पिछली और आने वाली G20 प्रेसीडेंसी) का एक हिस्सा है जिसमें इंडोनेशिया, इटली और भारत शामिल हैं. भारत की अध्यक्षता के दौरान भारत, इंडोनेशिया और ब्राजील तिकड़ी का निर्माण करेंगे. यह पहली बार होगा जब इस तिकड़ी में तीन विकासशील देश और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं शामिल होंगी, जो उन्हें एक बहुत ही अहम मोड़ पर ताक़त प्रदान करेगी जब बुनियादी चीजें तेजी से ख़ुद को रीसेट करने के मोड में हों.
दिसंबर 2022 से शुरू होने वाले पूरे साल के लिए G20 शिखर सम्मेलन के अलावा, पहले और बाद में, अलग-अलग ट्रैक पर सैकड़ों बैठकें होंगी.
- i) फाइनेंस ट्रैक, आठ वर्कस्ट्रीम के साथ जिसमें (वैश्विक मैक्रोइकोनॉमिक नीतियां, इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसिंग, इंटरनेशनल फाइनेंशियल आर्किटेक्चर, सस्टेनेबल फाइनेंस, फाइनेंशियल इनक्लूजन, हेल्थ फाइनेंस, इंटरनेशनल टैक्सेशन और फाइनेंशियल सेक्टर रिफॉर्म्स) शामिल हैं.
- ii) 12 वर्कस्ट्रीम (भ्रष्टाचार-विरोधी, कृषि, संस्कृति, विकास, डिजिटल अर्थव्यवस्था, रोज़गार, पर्यावरण और जलवायु, शिक्षा, ऊर्जा ट्रांजिशन, स्वास्थ्य, व्यापार और निवेश, और पर्यटन) के साथ शेरपा ट्रैक.
iii) निजी क्षेत्र / नागरिक समाज / स्वतंत्र निकायों के दस इंगेजमेंट ग्रुप (व्यवसाय 20, सिविल 20, श्रम 20, संसद 20, विज्ञान 20, सर्वोच्च लेखापरीक्षा संस्थान 20, थिंक 20, शहरी 20, महिला 20, और युवा 20). सरकारी स्तर पर पेचीदगियों से भरे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को हल करने की कठिनाइयों को देखते हुए यह बेहद अहम है. हालांकि, यदि भारत सरकार द्वारा लीक से हटकर सोच की तलाश की जा रही है, तो उसे इंगेजमेंट ग्रुप को छोटे, स्वतंत्र सोच वाले थिंक टैंक और व्यावसायिक निकायों के लिए खोलने पर विचार करना चाहिए, जो हमेशा इस्टैबलिशमेंट लाइन की सोच को साथ नहीं ले सकते लेकिन दूसरों की तरह ही यह राष्ट्रहित के लिए पूरी तत्परता से प्रतिबद्ध होते हैं.
G20 अध्यक्षता की अहमियत
G20 अध्यक्षता की एक और अहमियत इसकी बैठकों और शिखर सम्मेलन में कुछ अतिथि देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को आमंत्रित करने की परंपरा है. इनमें अतिथि देश जैसे बांग्लादेश, मिस्र, मॉरीशस, नीदरलैंड, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ-साथ इंटरनेशनल सोलर एलायंस (आईएसए), कोलिजन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर (सीडीआरआई) शामिल हैं.
भारत को नेपाल जैसे अन्य पड़ोसियों को भरोसा दिलाने के लिए काम करना चाहिए कि एक बेहतर एशिया के लिए उपक्षेत्रीय और क्षेत्रीय मौक़ों को इसकी अध्यक्षता के तहत नज़रअंदाज़ नहीं किया जाएगा.
तथ्य यह है कि आमंत्रित किया जाने वाला एकमात्र दक्षिण एशियाई देश बांग्लादेश है, हालांकि अपने क्षेत्र में सहकारी ढ़ांचे को मज़बूत करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता के लिए यह सराहनीय नहीं है, और भारत को नेपाल जैसे अन्य पड़ोसियों को भरोसा दिलाने के लिए काम करना चाहिए कि एक बेहतर एशिया के लिए उपक्षेत्रीय और क्षेत्रीय मौक़ों को इसकी अध्यक्षता के तहत नज़रअंदाज़ नहीं किया जाएगा.
प्राथमिकताएं तय होने की प्रक्रिया G20
मौज़ूदा वक़्त में जी-20 की प्राथमिकताएं तय होने की प्रक्रिया में हैं. भारत के विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में यह स्पष्ट कर दिया है कि पर्यावरण, ऋण, आर्थिक विकास, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा के साथ-साथ बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों के शासन में सुधार जैसे प्रमुख मुद्दे इसकी “मुख्य प्राथमिकताएं” होंगी. विदेश मंत्रालय (एमईए) के प्रवक्ता के बयान में, थोड़ा और जोड़ दिया गया, “आगामी शिखर सम्मेलन की प्राथमिकताओं को” मज़बूती प्रदान किया जा रहा है और सभी सदस्य देशों के बीच चर्चा में महिला सशक्तिकरण, डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा, संस्कृति, पर्यटन, क्लाइमेट फाइनेंसिंग, सर्कुलर इकोनॉमी, ग्लोबल फूड सिक्योरिटी, एनर्जी सिक्युरिटी, ग्रीन हाइड्रोजन, डिजास्टर रिस्क रिडक्शन एंड रेजिलियेंस, आर्थिक अपराध के ख़िलाफ़ संघर्ष और बहुआयामी सुधार जैसे मुद्दे शामिल हैं.
भारत के सामने चुनौतियां
अब तक जो बात अनकही रह गई है, वह यह है कि ऐसे कई संवेदनशील और जटिल प्रश्न हैं जिनका सामना किया जाना चाहिए और एक देश जो संकट का अलार्म बजा सकता है, वह भारत ही है. उदाहरण के लिए, परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की आशंकाएं बढ़ती जा रही हैं और नॉन प्रॉलिफरेशन ऑफ न्यूक्लियर वेपन (एनपीटी) संधि की पहले से ही संदिग्ध उपयोगिता अब ख़त्म हो चुकी है. फिर भारत भी स्वयं एक परमाणु शक्ति है और एनपीटी का गैर-हस्ताक्षरकर्ता भी है. ऐसे में क्या भारत इस बारे में सोचने के लिए नैतिक समर्थन की कल्पना कर सकता है कि दुनिया को संभावित परमाणु तबाही से हमेशा के लिए कैसे बचाया जा सकता है? क्या हम आने वाले दशकों में वैश्विक संस्थानों के लिए ठोस विचारों को बढ़ावा दे सकते हैं, ख़ास तौर पर तब जबकि संयुक्त राष्ट्र से हमारा ख़ुद का मोहभंग हो चुका है और शांति और स्थिरता के लिए चुनौतियों से निपटने में सरकार की अक्षमता सामने आती रहती है.
परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की आशंकाएं बढ़ती जा रही हैं और नॉन प्रॉलिफरेशन ऑफ न्यूक्लियर वेपन (एनपीटी) संधि की पहले से ही संदिग्ध उपयोगिता अब ख़त्म हो चुकी है. फिर भारत भी स्वयं एक परमाणु शक्ति है और एनपीटी का गैर-हस्ताक्षरकर्ता भी है. ऐसे में क्या भारत इस बारे में सोचने के लिए नैतिक समर्थन की कल्पना कर सकता है कि दुनिया को संभावित परमाणु तबाही से हमेशा के लिए कैसे बचाया जा सकता है?
क्या हम दुनिया को अपनी मौज़ूदा आर्थिक व्यवस्था पर पुनर्विचार करने के लिए मज़बूर कर सकते हैं, जो केवल पूंजी के साथ-साथ ग़रीबी की भी सीमा को बढ़ा देगी; क्या हम प्राथमिकताओं को संतुलित करने और सैन्य सुरक्षा के बजाए मानव को अधिक महत्व देने के लिए अपनी प्राचीन परंपरा और गांधीवादी सोच के प्रति दुनिया को आकर्षित कर सकते हैं? सुपर पावर देशों के बीच तनाव और दुनिया में घटती लोकतांत्रिक परंपरा के इस दौर में क्या हम दुनिया को लोकतंत्र के सार पर पुनर्विचार करने के लिए मज़बूर कर सकते हैं? हम सभी यह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन सबसे ग़रीब और सबसे कमज़ोर देशों के लिए टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की दिशा की रफ्तार को कम कर देगा?
पिछले कुछ वर्षों में, बहुपक्षीय संगठनों की भूमिका और प्रासंगिकता पर काफी बहस हुई है. इस प्रकार, यह उनकी आवश्यकता और विश्वसनीयता को बढ़ाने के लिए नई संभावनाओं का वर्ष होना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक महत्वपूर्ण बहुपक्षीय निकाय जी20 विचार-विमर्श में हिस्सा लेंगे. अंतर्राष्ट्रीय विकास और सहयोग के लिए नए रोडमैप तैयार करने की संभावना बनी रहनी चाहिए.
भारत की नेतृत्व शक्ति पर पूरा भरोसा
भारत की जी20 अध्यक्षता एक अभूतपूर्व अवसर है जिसके ज़रिए भारत कार्बन फुटप्रिंट्स को कम करने और ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देने के साथ परिवर्तनकारी बदलावों का महत्वपूर्ण हिस्सा जो डिजिटलाइजेशन है, उसके ग्लोबल नैरेटिव को अपने पक्ष में कर सकता है. भारत की जी20 अध्यक्षता का उपयोग उसके विचारों के नेतृत्व की भूमिका और दुनिया भर में जारी ध्रुवीकरण को कम करने के व्यापक लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिए भी किया जाना चाहिए. संसाधनों को एक समावेशी तरीक़े से चैनलाइज़ करना और विकासात्मक प्राथमिकताओं के पक्ष में ऑप्टिक्स को भी मज़बूत करने की ज़रूरत है. हालांकि बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि इन विचारों को किस तरह अमल में लाया जाता है और अंततः दुनिया को यह कैसे प्रभावित करते हैं. इस संबंध में भारत की जी20 टीम की नेतृत्व शक्ति में पूरा भरोसा है, जिसमें नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत और भारत के पूर्व विदेश सचिव हर्ष वी श्रृंगला भी शामिल हैं.
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