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Published on Dec 17, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत के पास अभी G20 के व्यापक उद्देश्यों के साथ-साथ U20 के कार्रवाई से जुड़े विशिष्ट लक्ष्यों का खाका खींचने का अनोखा अवसर है.

भारत की G20 अध्यक्षता; शहरों के भविष्य में बदलाव मुमकिन

फ़िलहाल विश्व की कुल आबादी का 50 फ़ीसदी हिस्सा शहरी क्षेत्रों में निवास करता है. अनुमानों के मुताबिक ये तादाद डेढ़ गुणा बढ़कर 6 अरब तक पहुंच सकती है. बहरहाल तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या की तमाम ज़रूरतें पूरी करने में शहरों को ज़बरदस्त चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. अल्प-विकसित और विकासशील देशों को तो दोहरी चुनौतियां झेलनी पड़ रही हैं. उन्हें शहरी फैलाव के प्रबंधन के साथ-साथ अपने नागरिकों के लिए जीवन की बेहतर गुणवत्ता भी सुनिश्चित करनी है. 

भारत की जी20 की अध्यक्षता, वैश्विक बदलाव के उत्प्रेरक के तौर पर विश्व की कुल शहरी आबादी के आधे हिस्से के लिए क्या सहूलियतें मुहैया करा सकती है? बुनियादी सुविधाओं और इंफ़्रास्ट्रक्चर की उपलब्धता के साथ-साथ उनतक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए भारत विकासशील देशों के शहरी योजनाकारों के लिए कैसे मिसाल क़ायम कर सकता है? भारत की जी20 की अध्यक्षता शहरी इलाक़ों की इन ज्वलंत समस्याओं से निपटने में कैसे योगदान दे सकती है?

G20 और शहरों से जुड़ा सवाल

जी20 का सतत विकास एजेंडा, 2030 के एजेंडे से जुड़े लक्ष्यों को हासिल करने से जुड़ी टिकाऊ कार्रवाइयों के ज़रिए ख़ुद को जोड़ता है. दिसंबर 2017 में जी20 के इकोसिस्टम के भीतर "अर्बन 20" (U20) के नाम से शहरी कूटनीति से जुड़े कार्यक्रम का आग़ाज़ किया गया था. ये जी20 के भीतर के औपचारिक जुड़ाव समूहों में से एक है. U20 का मक़सद जी20 वार्ताओं के दौरान जी20 के शहरों से जुड़े अहम शहरी मुद्दों को सामूहिक रूप से उठाना है. 

शहरी नियोजन से जुड़े अंतर-संपर्कों और साझा मसलों की पड़ताल कर भारत शहरों की ताज़ातरीन ऊर्जा में वैश्विक सहमति लाने का रास्ता साफ़ कर सकता है.

U20 के शहरी शेरपा शहरों (जी20 और ग़ैर-जी20 देशों, दोनों में) की बढ़ती अहमियत पर ज़ोर देते रहे हैं. शहरों को नवाचार, आर्थिक वृद्धि और उत्पादकता का इंजन बताया जाता रहा है. U20 सतत विकास लक्ष्यों के संदर्भ में जलवायु परिवर्तन, टिकाऊ विकास और सामाजिक-आर्थिक मसलों पर ख़ासतौर से तवज्जो देता रहा है. C40 शहरों (C40) और संयुक्त शहरों और स्थानीय सरकारों (UCLG) के जमावड़े के तौर पर U20 सालाना चेयर सिटी की अगुवाई में काम करता है. ये शहर जी20 की मेज़बानी करने वाले देश में स्थित होता है. U20 का आख़िरी शिखर सम्मेलन 2022 में जकार्ता में हुआ. इसमें कोविड महामारी के बाद आर्थिक और सामाजिक रूप से दोबारा पटरी पर लौटने की क़वायद पर ध्यान दिया गया. सम्मेलन में कुल 96 शहरों के प्रतिनिधियों ने व्यक्तिगत तौर पर हिस्सा लिया जबकि 31 शहरों के मेयर वर्चुअल तौर पर इसमें शामिल हुए. सम्मेलन के बाद विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर भी किए गए. 

जी20 के समानांतर चलने के U20 के संगठित प्रयासों के बावजूद ये समूह शहरों की आकांक्षाओं और चिंताओं का प्रभावी रूप से निपटारा कर पाने में नाकाम रहा है. इसके लिए लिखित संविधान की अनुपस्थिति के साथ-साथ प्रक्रियाओं और औपचारिक क़रारों के अभाव को ज़िम्मेदार बताया जाता है. U20 व्यापक रूप से ख़ुद की बात कहने और सिफ़ाारिशें पेश करने का मंच बनकर रह गया है. शहरी योजनाओं और नीतिगत कार्यक्रमों के अमल पर प्रत्यक्ष रूप से असर डालने की क्षमता इसे नहीं मिल पाई है. 

इस ढांचे के भीतर U20 के विशिष्ट लक्ष्यों को साफ़-साफ़ दर्शाने और उसके हिसाब से कार्रवाई करने को लेकर भारत के पास अब एक अनोखा अवसर आया है. वो इस मोर्चे पर अपनी क़वायदों के ज़रिए दुनिया के सबसे प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय मंचों में से एक के व्यापक लक्ष्यों को जोड़ सकता है. शहरी नियोजन से जुड़े अंतर-संपर्कों और साझा मसलों की पड़ताल कर भारत शहरों की ताज़ातरीन ऊर्जा में वैश्विक सहमति लाने का रास्ता साफ़ कर सकता है. 

U20 2023 और भारत

भारत U20 के बैनर तले सार्थक नीति-निर्माण और निवेश को लेकर जुड़ाव कायम करने की दिशा में काम कर सकता है. इससे वैश्विक 2030 एजेंडे को पूरा करने में मदद मिलेगी. शहरी संसाधनों के आवंटन की होशियारी से योजना बनाकर और टिकाऊ बर्तावों को प्रेरित कर भारत इस दिशा में एक संतुलित तौर-तरीक़ा सामने रख सकता है. अच्छा नतीजा देने वाले चुनिंदा बेहतरीन शहरों से सबक़ लेते हुए भारत के पास वैश्विक स्तर पर समकालीन और ज्वलंत शहरी मसलों पर कार्रवाई शुरू करने का बेहतरीन मौक़ा है. 

  1. महामारी के बाद की दुनिया में U20 2023 शहरी मानसिक स्वास्थ्य की भूमिका को प्राथमिकता देते हुए प्रबल मानव-निर्मित वातावरण के नतीजे के तौर पर उसके प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ा सकता है. बहु-क्षेत्रीय रुख़ अपनाने से विभिन्न क्षेत्रों के वैश्विक विशेषज्ञों को एकजुट कर शहरी अवसादों के नज़रअंदाज़ किए गए पहलुओं पर मंथन की शुरुआत की जा सकती है. शहरी सुविधाओं में कुल मिलाकर जीवन की गुणवत्ता में सुधार और सामाजिक-भावनात्मक बेहतरी को निश्चित रूप से शामिल किया जाना चाहिए.
  2. U20 2023 समय पर आकलन या शहरी नियोजनों के लिए आंकड़ों के प्रभावी संग्रह, विश्लेषण, निगरानी और रिपोर्टिंग से जुड़े प्राथमिक दस्तावेज़ तैयार कर सकता है. इसे जी20 और राष्ट्रीय विषय सूचियों के साथ समन्वित किया जा सकता है. निश्चित तौर पर आगे चलकर भारत को डेटा के दक्ष प्रयोग और डेटा गवर्नेंस को सहारा देने के लिए नीतियों पर ज़ोर देना चाहिए. 
  3. एक अच्छी शुरुआत के लिए ये चर्चा भी शुरू की जा सकती है कि दरअसल 'शहरी क्षेत्र' के घटक तत्व क्या हैं. मिसाल के तौर पर 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई की 42 प्रतिशत आबादी झुग्गी बस्तियों में रहती है. स्मार्ट शहरों की व्याख्या के विस्तार का ये माकूल वक़्त हो सकता है और इसमें ना सिर्फ़ डिजिटल रूप से विकसित, बल्कि समावेशी शहरों को भी शामिल किया जाना चाहिए. सहभागी नियोजन रुख़ों में निवेश से हाशिए पर खड़े समुदायों पर शहरीकरण के सामाजिक प्रभावों का आकलन करने में मदद मिल सकती है. इनमें तटवर्ती 500 पहल भी शामिल है. साामाजिक प्रभाव आकलन से शहरी नियोजन में भरोसा दोबारा बहाल हो सकता है. साथ ही क्रियान्यवन पर भी इसका असर हो सकता है, जिसे अक्सर लचर और सुस्त क़वायद के तौर पर देखा जाता है.   
  4. सिस्को, गूगल और माइक्रोसॉफ़्ट जैसे बिग टेक क्षेत्र के खिलाड़ियों ने शहरी ई-गवर्नेंस में रफ़्तार भर दी है. हालांकि इसके समावेशी चरित्र और प्रभाव का नए सिरे से आकलन करना ज़रूरी हो गया है. इस कड़ी में हम राज्यों और स्थानीय निकायों के साथ साझेदारी के ज़रिए केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा संचालित राष्ट्रीय शहरी डिजिटल मिशन की मिसाल ले सकते हैं. इसका मक़सद शहरी इकोसिस्टम की कार्यकशुलता को बढ़ाते हुए विभिन्न प्रौद्योगिकीय नवाचारों के ज़रिए नागरिकों के जीवन में सहूलियत लाना है. बहरहाल, शहरी हिंदुस्तान में डिजिटल साक्षरता महज़ 61 फ़ीसदी है. ये सरकारी ई-सेवाओं को लेकर जनजागरूकता के अभाव का एक प्रमुख कारण है. इतना ही नहीं प्रौद्योगिकी और डिजिटल कौशल में लैंगिक पूर्वाग्रहों के चलते डिजिटल दुनिया में और ज़्यादा लैंगिक बंटवारे का जन्म होता है. ऐसे में डिजिटल सेवाओं तक पहुंच बनाने में भारी अंतर आ जाता है. इन खाइयों को पाटने के मक़सद से शोध और निवेश को प्रेरित करने के लिए नए नियामक ढांचों की दरकार है.
  5. U20 2023 लैंगिक रूप से समावेशी योजनाओं पर संवादों में शामिल होकर न्यायपूर्ण शहरों के विकास के लिए वैश्विक गठजोड़ का आह्वान कर सकता है. इससे ना सिर्फ़ महिलाओं और बच्चों को लाभ होगा बल्कि हाशिए पर पड़े विविधतापूर्ण लैंगिक समूहों और LGBTQ+ समुदायों की भी शहरी नियोजन प्रक्रिया में नुमाइंदगी सुनिश्चित हो सकेगी. विभिन्न किरदारों के साथ-साथ वैश्विक और स्थानीय गठजोड़ों के हाइब्रिड संस्करणों से वैश्विक सहयोग में सरकार, सिविल सोसाइटी, शिक्षा जगत और उद्योग के विचार शामिल किए जाएंगे. इससे शहरी संरचना की जवाबदेही और प्रभाव में बढ़ोतरी सनिश्चित हो सकेगी. 
  6. शहरी विकास योजनाओं की तमाम संवेदनशीलताओं और प्रभावों को समझना आवश्यक है. लिहाज़ा योजनाकारों और नागरिक सेवा कर्मचारियों के लिए क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण की अहमियत पर ज़ोर देना भी ज़रूरी है. मिसाल के तौर पर शहरी योजनाओं में रियल एस्टेट डेवलपर्स के लिए महज़ रिहाइशी फ़ायदों को जगह देने से परे, सस्ते आवास को भी ज़ेहन में रखा जाना ज़रूरी है. इसी तरह भारत शहरी स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं में निवेश बढ़ाने को लेकर वैश्विक साझा चर्चाओं को भी हवा दे सकता है
  7. पेरिस समझौता, न्यू अर्बन एजेंडा और 2030 एजेंडे की दिशा में काम करते हुए भारत टिकाऊ ऊर्जा और परिवहन के क्षेत्र में परिवर्तनकारी क़वायदों में प्रत्यक्ष निवेश पर भी ज़ोर दे सकता है. ऐसे कार्यक्रमों से शहरी क्षेत्र की मज़बूती और लोच को बढ़ावा दिया जा सकता है. इस सिलसिले में जलवायु कार्रवाई और रोकथाम की सामूहिक क़वायद अपनाई जा सकती है. मिसाल के तौर पर बदलते जलवायु के बीच शहरी क्षेत्रों में सैलाब से जुड़े जोख़िमों पर क़ाबू पाना अहम हो गया है. ये मसला आज वैश्विक रूप से नीति-निर्माताओं के ध्यान में आ गया है. 
  8. शहरों के फैलाव के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल में निवेश बेहद अहम हो गया है. भविष्य में सबके लिए कामकाज और रोज़गार के लिए बेहतर तैयारी के वास्ते ये क़वायद निहायत ज़रूरी है. इनमें समाज के सबसे कमज़ोर तबक़े भी शामिल हैं. चौथी औद्योगिक क्रांति से चारों ओर तेज़ रफ़्तार वाली और भारी परिवर्तनकारी क़वायदों को बढ़ावा मिलने के पूरे आसार हैं. तमाम क्षेत्रों से जुड़ी नीतियों में बेहतर कौशल और उद्यमिता के लिए प्रशिक्षण को सहारा देना आवश्यक है. मिसाल के तौर पर प्रधानमंत्री रोज़गार निर्माण कार्यक्रम और अन्य साख सहायता योजनाएं युवाओं को प्रशिक्षित करने और रोज़गार निर्माण के लिए MSMEs की सहायता करते हैं. हालांकि इनके प्रभाव और संपर्कों का असर दिखना अभी बाक़ी है. दूसरी ओर गिग इकॉनोमी के बढ़ते चलन के मद्देनज़र शहरी युवाओं की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए नवाचारयुक्त नीति-निर्माण की ज़रूरत होती है. 
  9. सबसे अहम बात ये है कि U20 2023, स्थानीय और क्षेत्रीय जुड़ावों की अहमियत को दोबारा केंद्र में ला सकता है. राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय सरकारी निकायों के स्तर पर परिप्रेक्ष्यों का एकीकरण ही आगे का रास्ता है. बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर की ज़रूरतों को बढ़ावा देने के लिए शहरी स्थानीय निकायों को और मज़बूत किया जा सकता है. साथ ही समावेशी प्रगति और न्यायपूर्ण विकास में भी रफ़्तार भरी जा सकती है. प्रभावी सार्वजनिक परिवहन और शहरी गतिशीलता, शहरी सुरक्षा, पर्यटन, मानव-प्रकृति टकरावों, वर्षाजल निकास प्रणालियों, कार्यकुशल और न्यायपूर्ण जल आपूर्ति नेटवर्कों के साथ-साथ स्वच्छता प्रबंधन और शहरी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए पर्याप्त प्रावधान और उपयोगी उपाय किए जाने ज़रूरी हैं. इन क़वायदों के योजना निर्माण के लिए क्षेत्रीय हिसाब से मुनासिब सुधार और स्थानीय स्तर पर तमाम तरह के हस्तक्षेप काफ़ी व्यावहारिक साबित हो सकते हैं. मिसाल के तौर पर शहरी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में वैश्विक स्तर पर कुछ बेहतरीन तौर-तरीक़ों के बावजूद इन प्रक्रियाओं के स्थानीय सामाजिक प्रभावों को समझने की दिशा में शायद ही कभी नीतिगत तौर पर ध्यान दिया गया है. इसके विपरीत स्थानीय स्तर पर कामयाबी से अपनाए गए तजुर्बों को वैश्विक हालातों में कारगर तरीके से आगे बढ़ाने और ढालने के लिए एक तौर-तरीक़ा ढूंढने की ज़रूरत है. मिसाल के तौर पर कोविड-19 महामारी के दौर में एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती धारावी में उठाए गए क़दमों से वायरस के प्रसार की रोकथाम हो सकी थी. इससे एक कामयाब मॉडल तैयार हुआ था. 
जी20 2023 को लेकर भारत के मज़मून में अंतर-संपर्कों की संभावनाएं भरी हुई हैं. इस कड़ी में मंथनों, सहभागिताओं, संवादों, सहयोग और ज्ञान-साझा करने की क़वायदों से व्यवहार में बदलाव लाए जा सकते हैं.

जी20 2023 को लेकर भारत के मज़मून में अंतर-संपर्कों की संभावनाएं भरी हुई हैं. इस कड़ी में मंथनों, सहभागिताओं, संवादों, सहयोग और ज्ञान-साझा करने की क़वायदों से व्यवहार में बदलाव लाए जा सकते हैं. भारत वैश्विक प्रतिक्रियाओं और कार्रवाई से जुड़ी क़वायदों की अगुवाई कर सकता है. इस कड़ी में वो नई साझेदारियों और समझौतों के लिए मंच स्थापित कर सकता है, जिससे स्थानीय और सामाजिक, दोनों स्तरों पर सामुदायिक सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय की प्रक्रिया को बढ़ावा मिल सकेगा. बराबरी, समावेशन, टिकाऊ और सतत विकास के साथ-साथ लोचदार प्रक्रियाओं पर ज़ोर देकर U20 2023 बेहतर शहरों की स्थापना से जुड़ी अपनी प्रतिबद्धता का मान रखने में कामयाब हो सकेगा. 

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Author

Anusha Kesarkar Gavankar

Anusha Kesarkar Gavankar

Anusha is Senior Fellow at ORF’s Centre for Economy and Growth. Her research interests span areas of Urban Transformation, Spaces and Habitats. Her work is centred ...

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