किसी राष्ट्र की यात्रा में ऐसे पल आते हैं, जब वैश्विक मंच पर उसका उभार कुछ इस तरह से होता है कि उसमें शक की कहीं कोई गुंजाइश नहीं होती. भारत की G20 की अध्यक्षता ऐसा ही ऐतिहासिक पल लेकर आई है. भारत G20 शिखर बैठक में संयुक्त वक्तव्य पर आम सहमति हासिल कर पाएगा या नहीं, इस सवाल को लेकर उदासी के सारे बादल तब अचानक छंट गए, जब बैठक समाप्त होने के काफी पहले ही सहमति का दस्तावेज सार्वजनिक कर दिया गया. भारत का औसत प्रदर्शन देखने के हम इस कदर आदी हो चुके हैं कि जब देश ने अपेक्षाओं की सारी हदें तोड़ते हुए अच्छा प्रदर्शन किया तो उस खबर को जज्ब करने में भी हमें थोड़ा वक्त लगा. यहां बात सिर्फ नई दिल्ली घोषणा पर बनी सहमति की नहीं, उस पूरे एटीट्यूड की है, जिससे G20 की यह पूरी प्रक्रिया संचालित की गई.
दो समानांतर संवाद
शिखर बैठक में भारत ने अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षा और मेगा डिप्लोमेसी की क्षमता को फिर से साबित किया. G20 की इस प्रक्रिया के दौरान समानांतर रूप से दो संवाद साथ-साथ चल रहे थे.
- एक तरफ देश के अंदर आम हिंदुस्तानी घरेलू और दूसरे देशों के बीच लगातार धुंधली पड़ती रेखा को देख रहा था और इस तरह देश के बाहरी प्रभाव को बेहतर ढंग से महसूस कर पा रहा था.
- दूसरा संवाद बाकी पूरी दुनिया से था, जो अतीत में अक्सर वैश्विक मंचों पर नेतृत्व करने की भारत की इच्छा और क्षमता पर सवाल उठाती रही थी.
सच पूछिए तो पिछले एक दशक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के वैश्विक व्यवहार में महत्वाकांक्षा की नई भावना भर दी है. उनकी द्विपक्षीय कूटनीति तो जगजाहिर रही ही है, G20 ने उन्हें और भारत को सीधे एक बड़े और व्यापक मंच पर ला दिया. इसमें नई दिल्ली को बड़ी ताकतों के आपसी संघर्ष से उपजे मौजूदा अंतरराष्ट्रीय माहौल से भी मदद मिली.
- तेजी से उभरते वैश्विक शक्ति संतुलन के दबाव के कारण मौजूदा बहुपक्षीय संस्थानों की कमजोरियां पूरी तरह उजागर हो चुकी हैं.
- यूक्रेन युद्ध के चलते वैश्विक विकास का वह अजेंडा खतरे में पड़ गया, जिसके लिए महामारी के बाद के समय में दुनिया का एक बड़ा हिस्सा बेकरार था.
- ऐसे में चीन और पश्चिम की बढ़ती आक्रामकता न केवल पूरी दुनिया में निराशा फैला रही थी, बल्कि नेतृत्व का एक शून्य भी पैदा कर रही थी.
भारत इस शून्य को भरने के लिए तेजी से आगे बढ़ा. अपने नेतृत्व का सिक्का जमाने के लिए उसने G20 की अपनी अध्यक्षता का बेहतरीन इस्तेमाल किया. इस बात से खास मतलब नहीं था कि G20 का मंच अतीत में खास प्रभावी नहीं रहा है. नई दिल्ली को अपनी भूमिका सही ढंग से निभानी थी और उसने निभाई. भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण को अच्छी तरह समझते हुए उसने वैश्विक विकास का एजेंडा ग्लोबल साउथ के नजरिए से बनाया. वैश्विक राजनीति की संरचनात्मक वास्तविकताएं कोई भारत की बनाई हुई नहीं हैं, न ही भारत एकतरफा तौर पर उन्हें बदल सकता है. लेकिन उसे ग्लोबल गवर्नेंस का अपना एजेंडा सामने रखने का कोई रास्ता तलाशना था. और, यह काम उसने पूरे भरोसे के साथ किया; टकराव और विकास के एजेंडे के बीच की कड़ी पर फोकस बढ़ाते हुए, सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDGs) हासिल करने में मिल रही नाकामियों को रेखांकित करते हुए, अपने डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPP) को वैश्विक जनकल्याण के साधन के रूप में पेश करते हुए, मल्टीलैटरल डेवलपमेंट बैंक में सुधार की प्रक्रिया को तेज करने पर जोर बढ़ाते हुए, कम और मध्य आय वाले देशों पर कर्ज के बोझ को रेखांकित करते हुए और ग्लोबल साउथ को अपनी ग्लोबल गवर्नेंस इनिशिएटिव के केंद्र में रखते हुए.
अब जब अफ्रीकन यूनियन ने G20 को G21 में तब्दील कर दिया है, नई दिल्ली इस वैश्विक मंच को ज्यादा इन्क्लूसिव और ज्यादा प्रासंगिक बनाने की अपनी उपलब्धि पर गर्व भरी नजर डाल सकती है. सौ फीसदी सहमति के साथ नई दिल्ली घोषणा को अपनाया जाना तो बस सोने पे सुहागा का काम कर रहा है.
इस बात को लेकर काफी सस्पेंस बना हुआ था कि यूक्रेन मसले पर बन चुकी खाई को भारत कैसे पाटेगा. लेकिन नई दिल्ली के अब तक के स्टैंड के अनुरूप ही G20 घोषणा ने सभी देशों से अंतरराष्ट्रीय कानूनों और बहुपक्षीय व्यवस्थाओं के मुताबिक शांति तथा स्थिरता बनाए रखने और क्षेत्रीय अखंडता तथा संप्रभुता का सम्मान करने की अपील की. इसके साथ ही मतभेदों को पाटने की भारत की क्षमता वैश्विक स्तर पर पूर्ण रूप में प्रदर्शित हो गई.
एक और चीज जो प्रदर्शित हुई वह थी ग्लोबल प्लेटफॉर्म को साझा चुनौतियों का हल देने लायक बनाने की नई दिल्ली की क्षमता. इस मामले में दो बातें खास तौर पर ध्यान देने लायक हैं.
- जीरो उत्सर्जन के टारगेट की दिशा में अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस लॉन्च किया जाना इंटरनेशनल सोलर अलायंस के गठन के बाद भारत का दूसरा इंस्टीट्यूशनल कमिटमेंट है.
- ग्लोबल इकॉनमिक ऑर्डर को ज्यादा इन्क्लूसिव बनाने की भावना के तहत भारत, अमेरिका, पश्चिम एशिया और यूरोपीय यूनियन को जोड़ने वाले एक व्यापक रेल और शिपिंग कनेक्टिविटी नेटवर्क की घोषणा की गई.
नतीजा नहीं, प्रक्रिया
आज जब दुनिया की बड़ी शक्तियों के बीच तनाव बढ़ा हुआ है, इस तरह की शिखर बैठक आयोजित करके और वैश्विक चुनौतियों से निपटने के तरीके पर व्यापक सहमति कायम कर के भारत ने एक बड़ी उपलब्धि अपने नाम की है. लेकिन नतीजे चाहे जितने भी आकर्षक लगते हों, वास्तव में पिछले कुछ महीनों में चली G20 की प्रक्रिया ही दरअसल वह चीज है जिसने वैश्विक मध्यस्थ के रूप में भारत की संभावनाओं को रेखांकित करने का काम किया है. भारत ने विश्व व्यवस्था में अपनी साख काफी बढ़ा ली है. G20 और भारतीय विदेश नीति दोनों का दर्जा ऊंचा उठ चुका है. उन्हें अब पहले वाली नजर से शायद ही देखा जा सके.
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