Author : Kabir Taneja

Published on Aug 16, 2023 Updated 0 Hours ago

गुटनिरपेक्ष आंदोलन और इसके इर्द-गिर्द बनी साझेदारी से लेकर महत्वपूर्ण बातों जैसे कि ऊर्जा सुरक्षा और प्रवासियों तक- भारत और पश्चिम एशिया के बीच रिश्तों में काफी बदलाव हुए हैं. 

भारत का 77वां स्वतंत्रता दिवस: भारत-पश्चिम एशिया के संबंधों की समीक्षा!

भारत की स्वतंत्रता के समय से पश्चिम एशिया (जिसे मध्य-पूर्व के नाम से भी जाना जाता है) के ज़्यादातर देशों के साथ भारत के संबंध ऐतिहासिक रूप से गहरे और सम-सामयिक तौर पर महत्वपूर्ण रहे हैं, विशेष रूप से अर्थव्यवस्था और लोगों के बीच आपसी रिश्तों के क्षेत्र में. गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) और इसके इर्द-गिर्द बनी साझेदारी से लेकर महत्वपूर्ण बातों जैसे कि ऊर्जा सुरक्षा और प्रवासियों तक- फारस की खाड़ी और इज़रायल के साथ भारत के रिश्तों में काफी बदलाव हुए हैं. 

अब भारत ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जहां अमेरिका और चीन के बाद UAE भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है. 2022-23 में UAE के साथ भारत का व्यापार 128 अरब अमेरिकी डॉलर के पार पहुंच गया.

80 और 90 के दशक में इस क्षेत्र, ख़ास तौर पर अरब देशों जैसे कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE), के साथ भारत के रिश्ते श्रम आवश्यकता से तय हुए थे लेकिन साल 2000 के बाद इसमें काफी बदलाव आया है. तब से भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ी है और टेक्नोलॉजी एवं सर्विस जैसे क्षेत्रों में उसकी सफलता की कहानी की तरफ तेज़ी से इस तरह ध्यान दिया जा रहा है कि ये दूसरी जगहों में भी दोहराया जाने वाला मॉडल है. इस समय के दौरान भारत ने एक बारीक विदेश नीति भी बनाये रखी है जिसके तहत भारत क्षेत्रीय संकट के दौरान न तो उसमें शामिल होता है और न ही किसी एक पक्ष के साथ खड़ा होता है. साथ ही इस दौरान भारत ने व्यापक भू-राजनीतिक गतिविधियों से हटकर अपने हितों को आगे बढ़ाया. भारत की इस तटस्थता की पूरी दुनिया में तारीफ की गई और पिछले दो दशकों के दौरान इसने भारत के एजेंडे को आगे बढ़ाया है. अब भारत ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जहां अमेरिका और चीन के बाद UAE भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है. 2022-23 में UAE के साथ भारत का व्यापार 128 अरब अमेरिकी डॉलर के पार पहुंच गया. 

दुनिया में भारत को पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (GDP के आकार के अनुसार) बनाने में सबसे अधिक योगदान वास्तव में ईंधन का है और इसका एक बड़ा हिस्सा पश्चिम एशिया से आता है. पिछले कई वर्षों से ईरान, सऊदी अरब, UAE और इराक़ ईंधन मुहैया कराने वाले प्रमुख देश बने हुए हैं. अरब सागर के पार अपेक्षाकृत कम दूरी की वजह से परिवहन की लागत कम है जबकि उपलब्धता तुलनात्मक रूप से आसान है. साथ ही ये संबंध इस तरह के व्यापार की लेन-देन वाली प्रकृति से परे है. इन कारणों ने भारतीय उप-महाद्वीप और पश्चिम एशियाई देशों के बीच आर्थिक सेतु बनाने में मदद की है.   

जुलाई में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांचवीं बार UAE की यात्रा पर पहुंचे. ये नेतृत्व के स्तर पर एक अभूतपूर्व पहल है जिसका फायदा दोनों देशों को हुआ है. इज़रायल के साथ भारत ने रक्षा और तकनीक़ के क्षेत्र में नई साझेदारी स्थापित की है.

ऊपर बताये गये लगातार विकास ने पिछले दशक के दौरान और भी ज़्यादा रफ्तार पकड़ी है और इसका नेतृत्व राजनेताओं के स्तर पर संबंध और वैश्विक अर्थव्यवस्था एवं भू-राजनीति में समान रूप से प्रणालीगत (सिस्टेमिक) बदलाव ने किया है. ‘एशियाई सदी’ के विचार या अधिक आसान शब्दों में कहें तो चीन और भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं की अगुवाई में वैश्विक आर्थिक केंद्र का पश्चिमी देशों से दूर होकर पूरब की तरफ जाना एक ऐसी कहानी है जिसे पश्चिम एशिया में पश्चिमी देशों के परंपरागत सहयोगी ज़्यादा अच्छा पाते हैं. इसे पूरब के देशों में ऊर्जा के लिए अत्यधिक आवश्यकता से और भी बढ़ावा मिलता है जो कि सऊदी अरब, UAE, ईरान समेत अन्य देशों के लिए एक मौलिक आवश्यकता है ताकि वो इन ऊर्जा की वस्तुओं (जैसे कि तेल और प्राकृतिक गैस) को बेचकर अपने आर्थिक निर्माण के लिए पैसा इकट्ठा कर सकें. साथ ही पश्चिमी देशों में परिवर्तन, जैसे कि यूरोप में ‘ग्रीन एनर्जी’ के तेज़ विकास और अमेरिका के एक बड़े ऊर्जा निर्यातक और उत्पादक बनने, से भी पश्चिम एशिया उससे दूर हुआ. 

भू-राजनीतिक बदलाव

अब्राहम अकॉर्ड- जो कि इज़रायल, UAE और अमेरिका के बीच संबंधों को सामान्य बनाने के लिए साझा समझौतों की एक श्रृंखला है- और पिछले दिनों चीन की मध्यस्थता में सऊदी अरब और ईरान के बीच शांति जैसी नई व्यवस्थाओं ने स्थिरता में और बढ़ोतरी की है. इसकी वजह से भारत जैसे साझेदारों के लिए आर्थिक और व्यापार के लक्ष्यों को बढ़ाना आसान हो गया है. उदाहरण के लिए, जुलाई में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांचवीं बार UAE की यात्रा पर पहुंचे. ये नेतृत्व के स्तर पर एक अभूतपूर्व पहल है जिसका फायदा दोनों देशों को हुआ है. इज़रायल के साथ भारत ने रक्षा और तकनीक़ के क्षेत्र में नई साझेदारी स्थापित की है. इसके लिए नई कूटनीतिक व्यवस्था जैसे कि I2U2– भारत, इज़रायल, UAE और अमेरिका का एक संगठन- का उपयोग किया गया. वहीं होर्मुज़ स्ट्रेट के दूसरी तरफ ईरान के साथ भारत ने चाबाहार पोर्ट जैसी विकास की परियोजनाओं के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को बरकरार रखा है. चाबाहार पोर्ट इस पुराने सहयोग के लिए बुनियाद के तौर पर काम कर रहा है. साथ ही ये आर्थिक रोडमैप बनाकर चुनौतीपूर्ण देशों जैसे कि अफगानिस्तान को जोड़ रहा है और मध्य एशिया के देशों के साथ दूरी कम कर रहा है. 

भारतीय दृष्टिकोण से देखें तो विविधताओं से भरा भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक छाप उसकी प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है. भारत और पश्चिम एशिया में उसके साझेदार- दोनों न केवल ऊपर बताये गये मानक पर सहयोग की तरफ देख रहे हैं बल्कि एक भू-राजनीतिक बदलाव के लिए भी एक-दूसरे की मदद करना चाहते हैं. ये बहुध्रुवीय विश्व की तरफ सोच और “सामरिक स्वायत्तता” जैसी धारणा डालने की तरह है. ये ऐसे शब्द हैं जिनके बारे में हम आजकल भारत में अक्सर सुनते हैं और जो तेज़ी से पश्चिम एशियाई राजनीतिक और कूटनीतिक शब्दकोश में भी शामिल हो गये हैं. इन नई तैयारियों में जिस ‘स्वाभाविक’ साझेदारी की परिकल्पना की जा रही है वो पश्चिम एशिया और भारत जैसे क्षेत्रों के बीच है ताकि एक-दूसरे के विकास में सहायता की जा सके और सहयोग के ज़रिये तेज़ी से बदलती वैश्विक व्यवस्था में एक-दूसरे को शक्ति का मज़बूत ध्रुव बनाने में मदद पहुंचाई जा सके. 

संघर्ष के वैश्विक नैरेटिव को किनारे रखकर भारत और पश्चिम एशिया में उसकी साझेदारी ज़्यादातर के मुकाबले साझा विकास एवं ख़ुशहाली के लिए बेहतर स्थिति में है.

आने वाले दशक इन क्षेत्रों और उनके बीच सहयोग के लिए महत्वपूर्ण होंगे. उनकी हसरतों भरी नौजवान आबादी अर्थव्यवस्था, व्यापार, विज्ञान, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सबसे महत्वपूर्ण तकनीक़ के क्षेत्र में दुनिया का नेतृत्व करने के लिए अहम स्थिति में होगी. संघर्ष के वैश्विक नैरेटिव को किनारे रखकर भारत और पश्चिम एशिया में उसकी साझेदारी ज़्यादातर के मुकाबले साझा विकास एवं ख़ुशहाली के लिए बेहतर स्थिति में है. साथ ही दोनों पक्ष जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों को हल करने में एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं और वैश्विक या अंतर्राष्ट्रीय नैरेटिव से बने समाधान की जगह तेज़ी से क्षेत्रीय या स्थानीय हल की ज़रूरत वाली चुनौतियों का समाधान करने में भी अच्छी स्थिति में है.

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