Published on Dec 28, 2022 Updated 0 Hours ago

भारतीय टेकफिन के उत्थान ने विनियामक चुनौतियां पेश की हैं, जिन्हें संबोधित किए जाने की आवश्यकता है.  

Indian TechFin: क्या हमारे पास उपलब्ध नियम-क़ायदे पर्याप्त हैं?
Indian TechFin: क्या हमारे पास उपलब्ध नियम-क़ायदे पर्याप्त हैं?

भारतीय बाज़ारों में चाहे हर किसी ने फिनटेक का उपयोग न किया हो, लेकिन हर व्यक्ति ने इसके बारे में सुना तो अवश्य ही होगा. यदि कोई फिनटेक का ग्राहक नहीं है तो भी उसने इसके विकास, इसकी चुनौतियों के स्तर, ग्राहकों से इसके जुड़ाव अथवा संबंध, ग्राहकों को होने वाली सुविधा और इसके संभावित दुरुपयोग को लेकर कुछ न कुछ तो सुना ही होगा.

यह महत्वपूर्ण है कि टेकफिन्स को फिनटेक के साथ भ्रमित न किया जाए. दरअसल, टेकफिन्स, फिनटेक्स से भिन्न हैं. जिस तरह से उनके व्यवसाय खड़े किए जाते हैं, व्यवसाय मॉडल, राजस्व मुद्रीकरण, तकनीकी क्षमताएं और इक्विटी पूंजी और मुख्य उपभोक्ता पेशकशों को बढ़ाने की क्षमता अलग-अलग होती हैं. अपने नेटवर्क, प्रौद्योगिकी और प्लेटफॉर्मीकृत उपभोक्ता पहुंच का उपयोग करते हुए, वे उपभोक्ताओं के बारे में भारी मात्रा में डेटा एकत्रित करते हैं, जो आमतौर पर एक गैर-वित्तीय संबंध से जमा किया जाता है. उनके पास इसका विश्लेषण करने के संसाधन और क्षमता मौजूद होती है. इसके आधार पर वे रियल टाइम में वित्तीय सेवाएं मुहैया करवाते हैं. सैद्धांतिक रूप से वे रुचि के अनुसार ‘सोल्यूशन फॉर वन’ अर्थात ‘एक के लिए समाधान’ भी बना सकते हैं, ताकि यह प्रस्ताव हर ग्राहक को पसंद आए. वैश्विक टेकफिन उदाहरणों में अलीबाबा, अमेजॉन, एप्पल, बाइडू, फेसबुक, गुगल और टेनसेंट शामिल हैं. टेकफिन्स ग्राहकों के डिजिटल फूटप्रिंट्स का उपयोग वित्तीय समाधान मुहैया करवाने के लिए किया जा सकता है.

यह महत्वपूर्ण है कि टेकफिन्स को फिनटेक के साथ भ्रमित न किया जाए. दरअसल, टेकफिन्स, फिनटेक्स से भिन्न हैं. जिस तरह से उनके व्यवसाय खड़े किए जाते हैं, व्यवसाय मॉडल, राजस्व मुद्रीकरण, तकनीकी क्षमताएं और इक्विटी पूंजी और मुख्य उपभोक्ता पेशकशों को बढ़ाने की क्षमता अलग-अलग होती हैं.

15 साल पहले जब वैश्विक वित्तीय संकट (जीएफसी) आया, तो निजी निवेशकों ने उपभोक्ताओं के वित्तीय मुद्दों को हल करने के नए तरीकों पर दांव लगाना शुरू कर दिया. यही वह दौर था जब फिनटेक स्पेस की उत्पत्ति और विकास को गति मिली और यह क्षेत्र तेज़ी से आगे बढ़ने लगा. इस क्षेत्र ने ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वित्तीय सेवाओं में प्रौद्योगिकी का उपयोग करना शुरू कर दिया. फिनटेक क्रांति के बाद हमने वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में अनेक सकारात्मक बातों को विकसित होते हुए देखा हैं, जो ग्राहकों की सुविधा का हल खोज निकालते हैं. इस क्षेत्र में अभी और भी अनेक बातें होनी हैं. अगर कोई यह सोचता है कि फिनटेक्स की निगरानी करने में वित्तीय नियामकों को परेशानी होगी, तो उसे पुन: एक बार इस पर विचार करना चाहिए. फिलहाल हम भारत की संभावित पहली टेकफिन इकाई जियो फाइनांशियल सर्विसेस (जेएफ़एस) को उभरता हुआ देख रहे हैं. रिलायंस इंडस्ट्रीज की ओर से की गई एक घोषणा ने संकेत दिया है कि वह अपनी सभी वित्तीय सेवाओं का संचालन एक नई इकाई के झंडे तले ही करने जा रही है.

एंबेडेड अर्थात अंतर्निहित वित्त

बाज़ार में उपलब्ध विभिन्न जटिल वित्तीय उत्पादों केबावजूद, ग्राहकों को केवल तीन ज़रूरतों के लिए वित्तीय उत्पादों की आवश्यकता होती है:

1) किसी कारण से उधार लें (ऋण उद्योग)

2) सरप्लस फंड अर्थात अधिशेष धन का निवेश (निवेश क्षेत्र)

3) अपने जीवन, संपत्ति, स्वास्थ्य आदि का बीमाकरण. (बीमा क्षेत्र)

उपरोक्त ज़रूरतों में से अन्य दो की तुलना में जब उधार लेने की बात आती है तो ग्राहक का व्यवहार बदल जाता है. वे धीरज के साथ प्रतीक्षा करने को तैयार रहते हैं. ग्राहक से नाममात्र की राशि का निवेश करवाना भी मुश्किल होता है. एक ओर जहां पारंपरिक फाइनांसर्स अर्थात वित्तदाताओं ने ऐसे लोग जिनकी बैंक तक पहुंच कम थी या फिर ऐसे लोग जिनकी बैंक तक पहुंच ही नहीं थी को सेवा प्रदान करने का मौका गंवा दिया. लेकिन दूसरी ओर फिनटेक ने उन उपभोक्ताओं तक सेवा पहुंचाने के लिए ग्राहक डिजिटल डेटा का उपयोग करते हुए नए क्रेडिट स्कोरिंग मॉडल का उपयोग कर लिया. यह एक ऐसा क्षेत्र है, विशेष रूप से प्रोप्रायटरी अथवा संपदा क्रेडिट स्कोरिंग एल्गोरिदम और विभिन्न डेटा स्त्रोतों का उपयोग, जो अभी भी नियामकों को चिंताजनक लगता है. ऐसा लगता है कि ठीक यही वह क्षेत्र है, जिसे जेएफ़एस अपने व्यवसाय के फोकस के रूप में केंद्रित है. उन्होंने हाल ही में अपने मीडिया रिलीज में जैसे कि घोषणा की थी: ‘‘पारंपरिक क्रेडिट ब्यूरो-आधारित अंडरराइिटंग को सहायता करने वाला और इसका पूरक ग्राहक और व्यापारी उधार कारोबार, जो प्रोप्रायटरी डेटा एनालिटिक्स पर आधारित होगा.’’ जेएफ़एस ने पहले ही संकेत दे दिया है कि वह भुगतान, बीमा, डिजिटल ब्रोकिंग और संपत्ति प्रबंधन में भी अपनी वित्तीय सेवाओं की पेशकशों को बढ़ाने का इरादा रखता है. इस परिदृश्य में, इन उपभोक्ता पेशकशों की विनियामक सीमाएं कई वित्तीय विनियामकों तक विस्तारित हो जाएंगी.

फिनटेक ने उन उपभोक्ताओं तक सेवा पहुंचाने के लिए ग्राहक डिजिटल डेटा का उपयोग करते हुए नए क्रेडिट स्कोरिंग मॉडल का उपयोग कर लिया. यह एक ऐसा क्षेत्र है, विशेष रूप से प्रोप्रायटरी अथवा संपदा क्रेडिट स्कोरिंग एल्गोरिदम और विभिन्न डेटा स्त्रोतों का उपयोग, जो अभी भी नियामकों को चिंताजनक लगता है.

एंबेडेड फाइनांस अर्थात अंतर्निहित वित्त, वित्तीय सेवाओं का एक गैर-वित्तीय प्लेटफॉर्म में एकीकरण है. यह संभवत: सेवा से वंचित अथवा नए कर्ज लेने वाले ग्राहकों तक औपचारिक वित्तीय सेवाओं की पेशकश को पहुंचा सकता है. इन उपभोक्ताओं के पास आम तौर पर पारंपरिक डेटा नहीं होता है, जिसका उपयोग बैंक क्रेडिट स्कोरिंग के लिए करते हैं. एंबेडेड वित्त अर्थात अंतर्निहित वित्त, वैकिल्पक डेटा-आधारित अंडरराइिटंग अर्थात जोखिम आकलन की अनुमति देकर इसे संबोधित करता है. यानी, उधारकर्ताओं का मूल्यांकन उनके पास वास्तव में मौजूद अथवा उपलब्ध डेटा के आधार पर किया जाता है, जैसे मोबाइल डिवाइस अर्थात उपकरण डेटा जिसमें ऐप्स, टेक्स्ट, डिवाइस लोकेशन, कॉल लॉग और संपर्क शामिल होते हैं. इसका उपयोग करते हुए सेवा प्रदान करने वाले उधारदाताओं को मजबूत निर्णय लेने वाली प्रणाली बनाने में मदद मिलती हैं. यहजानकारी अन्य प्रकार के डेटा जैसे लेन-देन, आदि के अलावा साख के लिए प्रतिनिधि के रूप में काम करती है. उदाहरण के लिए, एम्बेडेड बीमा अर्थात अंतर्निहित बीमा मूल रूप से एक बंडल अर्थात जुड़ा हुआ बीमा उत्पाद है, जो आपको किसी उत्पाद या सेवा की खरीद के साथ मुहैया करवाया जाता है. मसलन, जब कोई ग्राहक टीवी या वाशिंग मशीन खरीदाता है तो वह इसका बीमा नहीं करवाता, क्योंकि उसे इसकी आवश्यकता महसूस नहीं होती. लेकिन डिजिटल प्लेटफॉर्म आम तौर पर मूल उत्पाद की बिक्री के साथ-साथ बीमा उत्पादों को जोड़कर उसे ग्राहक को बेचने में आसानी से सफल हो जाते हैं.

भारत के सबसे बड़े रिटेलर रिलायंस समूह के पास कई उपभोक्ता और उत्पाद श्रेणियों में उसकी मौजूदगी उसे एक बड़ी शक्ति बनाती है. यह एक ऐसा एक डेटा बिंदु है जो उन्हें ग्रैन्यूलर अर्थात बारीकी से उपभोक्ता व्यवहार की जानकारी मुहैया करवाएगा. विशेषत: जब उन्होंने व्हाट्सएप्प जैसी प्लेटफॉर्म सेवाओं के साथ दैनिक खरीदारी को एकीकृत कर लिया है. इसके अलावा वे देश की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी के भी मालिक हैं. इससे भी ज्यादा अहम बात यह है कि इस समूह के पास वैश्विक मंच के कुछ दिग्गज हैं, जो इसके इंटरनेट कारोबार में इक्विटी निवेशक भी हैं.

वित्त बाज़ार में जेएफ़एस का आशय

परंपरागत रूप से कोई भी बड़ा खिलाड़ी, जो बाजार के पाइ अर्थात हिस्सेदारी में बड़ी पूंजी से लैस होकर उपभोक्ता पेशकशों को बढ़ाने में निवेश करने उतरता है, वह आमतौर पर इस क्षेत्र में सकारात्मकता ही लाता है.

  • फिनटेक के पास अभी तक नीति और राजनीति हलकों में अपना वजन बढ़ाकर अपनी उपस्थितिदर्जकरवाने के माद्दे की कमी देखी गई है. फिलहाल इनका उपयोग भारत के डिजिटल कौशल को दिखाने के लिए एक पोस्टर बॉय के रूप में किया गया है.मौजूदापारंपरिक फाइनेंसरों की लॉबी के मुकाबले वे अपने महत्व को रणनीतिक रूप से अब तक दुनिया तक पहुंचाने अथवा उजागर करने में सक्षम नहीं हुए हैं.डिजिटल फाइनांस स्पेस में आरआईएल जैसे दिग्गज के उतरने से इस स्थिति में परिवर्तन आने की संभावना है.अब डिजिटल फाइनांस के लिए ग्राहकों का बाज़ार चौड़ा और गहरा होगा. ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि इस तरह के दिग्गज के इस क्षेत्र में आने से नियामकों के दरवाजे खुलेंगे और यहां नए खिलाड़ियों को उतरने का मौका मिलेगा. ऐसे में ग्राहकों को वर्तमान में अब तक जो उत्पाद उपलब्ध हैं, उसमें भी नए उत्पादों का इज़ाफा होने की संभावना है. नियामकों के पास वर्तमान में डिजिटल फाइनांस के भविष्य की राह को लेकर कोई रोडमैप दिखाई नहीं देता. डिजिटल वित्त को लेकर वर्तमान नियम और शर्तो का उत्थान बेहद धीमा है. लोग इसकी ओर आशंका से भी देखते हैं. सवाल यह भी रह जाता है कि क्या नियामकों ने फिनटेक विचारधारा को अब तक जैसे संचालित किया है, उसमें भी बदलाव आएगा?
  • इस तरह के समूह से उपजने वाली भारी प्रतिस्पर्धा से उपभोक्ताओं को कम कीमत पर वित्तीय उत्पादों का लाभ उठाने में मदद मिल सकती है. ऐसे में इस उद्योग के अन्य खिलाड़ी भी इस तरह के उत्पादों को अपनाने और बेचने पर मजबूर हो जाएंगे. इसके साथ ही, इनकम्बंट अर्थात नए आने वाले खिलाड़ियों को अपनी अपनी सेवाओं की पेशकशों में सुधार करना होगा.
  • इस क्षेत्र में मौजूद फिनटेक को क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा की उच्च लागत का सामना करना पड़ेगा. इसी प्रकार एम्लाई एट्रीशन अर्थात संघर्षण बढ़ेगा और एक कंपनी के कर्मचारी को दूसरे कंपनी द्वारा अपने यहां काम का न्यौता देने के मामले बढ़ेंगे. इस कारण पुराने कर्मचारियों को अपनी ही कंपनी से जोड़े रखने का खर्च भी बढ़ जाएगा.
  • आरआईएल के प्रवेश के साथ, एक संभावना यह है कि वे वित्तीय सेवाओं के इस खेल के लिए अलग से इक्विटी फंडिंग जुटा सकते हैं. संभवत:, यह उच्च बेंचमार्क वैल्यूएशन अर्थात न्यूनतम मूल्यांकन पर होगा. ऐसे में सफल फिनटेक, अपने अगले दौर की फंडिंग या विनिवेश के लिए इस बेंचमार्क वैल्यूएशन का उपयोग करने से लाभान्वित हो सकते हैं. पारंपरिक फाइनांसर्स भी इस तरह के शेयरों के संभावित खरीदार हो सकते हैं, ताकि यह उन्हें बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रहने की अनुमति मुहैया करवाए. हालांकि, हम कमजोर या आम चलन वाली फिनटेक कंपनियों को बंद होते हुए या डिस्ट्रेस्ड अर्थात विपदग्रस्त मूल्यों पर बिकते हुए भी देख सकते हैं.
  • जेएफ़एस के पास एक बड़ी ऋण रेखा उपलब्ध होगी – या तो इक्विटी पूंजी आधार के रूप में या फंडिंग की सस्ती लागत तक पहुंच, अथवा दोनों के रूप में – क्योंकि इसके मालिकों की कॉर्पोरेट अथवा निगमित ताकत मौजूद है. यह समूह बाजार में कम उधार दरों की पेशकश भी कर सकता है. यह भी देखना होगा कि अगले तीन से पांच वर्षों में वे बाजार में कितनी हिस्सेदारी हासिल करने में सफल रहते हैं. क्योंकि इसी बात पर यह बात निर्भर करेगी कि वे इस बाजार को कैसे प्रभावित करने में सक्षम हो सकते हैं और उपभोक्ता ऋण बाज़ार का आकार इसकी वजह से कैसा तैयार होगा.
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई)/मशीन लर्निंग (एमएल) स्पेस में नई उभरती हुई तकनीकों का इस टेकफिन रन-अप में परीक्षण होगा और व्यापक उपयोग के लिए इसे व्यावसायिक रूप से तैनात भी किया जाएगा. ऐसे में वित्तीय नियामकों को पुराने नियमों को भूलाकर इस क्षेत्र को विनियमित करने और इसका पर्यवेक्षण करने के नए तरीके खोजने पर मजबूर होना पड़ेगा.

नियामकों को नियामक विकास मसलन एप्प के बारे में सोचना होगा, जो नियमित अपग्रेड अर्थात उन्नयन का मौका उपलब्ध करवाते हैं. वे प्रौद्योगिकी और वित्त के सम्मिलन के साथ गति बनाए रखने के लिए अपने विनियमों, दिशानिर्देशों और परिपत्रों को अपडेट अर्थात अद्यतन करना जारी रख सकते हैं.

टेकफिन्स का विनियमन

भारतीय वित्तीय नियामकों ने फिलहाल फिनटेक को बैंकिंग लाइसेंस से दूर रखा है. उसने वित्तीय मूल्य श्रृंखला के छोटे-छोटे हिस्सों तक ही इसे पहुंचने की अनुमति दी है. बैंकिंग नियामक, आरबीआई ने कॉर्पोरेट घरानों को सार्वभौमिक बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति अभी नहीं दी है.ऐसा बैंकों और अन्य वित्तीय और गैर-वित्तीय समूह संस्थाओं के बीच संबंधित उधार और जोखिम को रोकने के उद्देश्य से किया गया है. एक अन्य महत्वपूर्ण कारण बड़े समूह के लिए पर्यवेक्षी तंत्र को मजबूत करना है. इसमें उनके व्यवसाय संचालन में समेकित पर्यवेक्षण का भी समावेश है. वर्तमान मार्ग यह है कि दूरसंचार क्षेत्र में इस वक्त मौजूद कार्पोरेट घरानों की पहुंच भुगतान बैंक लाइसेंस तक हो जाए. दूरसंचार, वित्त और डेटा के वर्तमान कॉनर्वजंस अर्थात सम्मिलन के साथ, क्या हम कॉर्पोरेट घरानों द्वारा पूर्ण बैंकिंग परिचालन की अनुमति देने के लिए नियामक के रुख में कोई बदलाव देखेंगे?

सामान्य तौर पर भारतीय नियामक, उद्योग नवाचार को प्रोत्साहित करते रहे हैं. हालांकि, उन्हें खुद की, विशेष रूप से पर्यवेक्षी क्षेत्र और प्रणालियों और महत्वपूर्ण रूप से अन्य वित्तीय और अन्य नियामकों के साथ काम करने की तकनीकी उपयोग क्षमताओं में सुधार करना होगा. उनमें से अधिकांश ने अभी तक अपनी विनियमित संस्थाओं या बाजारों के रियल टाइम अर्थात वास्तविक समय के डिजिटलसुपरविजनके लिए डिजिटल संसाधनों अथवा उपकरणों का उपयोग नहीं किया है. नियामक एजेंसियां यदि उद्योग प्रतिभागियों को सलाह देने वाले तृतीय-पक्ष सलाहकारों को अपने प्रौद्योगिकी प्रयासों और डिजिटल विशेषज्ञता आउटसोर्स करने का विचार कर रहे हैं तो यह उनके लिए एक बुरा विचार ही कहा जाएगा. नियामकों को नियामक विकास मसलन एप्प के बारे में सोचना होगा, जो नियमित अपग्रेड अर्थात उन्नयन का मौका उपलब्ध करवाते हैं. वे प्रौद्योगिकी और वित्त के सम्मिलन के साथ गति बनाए रखने के लिए अपने विनियमों, दिशानिर्देशों और परिपत्रों को अपडेट अर्थात अद्यतन करना जारी रख सकते हैं; क्योंकि डिजिटल युग में कोई और कुछ भी सटीक और अंतिम अपडेट नहीं होता है.

टेकफिन का विनियमन वह होगा, जहां हमारी नीति और नियामक मंडलों को उनकी वास्तविक आजादी और डिजिटल वित्त से जुड़ी नियामक प्रणालियों को नियंत्रित करने की क्षमता को लेकर कड़े परीक्षण सेगुज़रनाहोगा. अगर जेएफ़एस, एक टेकफिन जैसा व्यवहार करता है, तो यह इस बात को उजागर करेगा कि आखिर नियामकों का उस पर कितना नियंत्रण रहेगा. बेशक, इस उदाहरण के साथ, अन्य कार्पोरेट घरानों अथवा दूरसंचार या प्रौद्योगिकी से जुड़ी बड़ी कंपनियों को वित्तीय सेवाओं के इस क्षेत्र में आने में ज्यादा वक्त नहीं लगने वाला है. ऐसे में क्या यह स्थिति डिजिटल-ओनली बैंकों के लिए अग्रदूत के रूप में नियामक के खुलेपन को उजागर करेगा? क्योंकि फिनटेक्स और टेकफिन्स डिजिटल टच प्वाइंट्स के माध्यम से उपभोक्ताओं की सेवा करते हैं. और वे ऐसे युवा उपभोक्ताओं को अपील करने वाले साबित हो सकते है, जो डिजिटल-फर्स्ट अर्थात डिजिटल-प्रथम या डिजिटल-ओनली अर्थात केवल-डिजिटल उपभोक्ता हैं.

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