Published on Jun 19, 2023 Updated 0 Hours ago
हिंद महासागर में केबल की सुरक्षा: भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच सहयोग की संभावनाएं

ये लेख हमारी सीरीज़, इंडिया ऑस्ट्रेलिया पार्टनरशिप: रक्षा का आयाम का हिस्सा है.


भूराजनीति के मौजूदा नाज़ुक माहौल में समुद्र के भीतर मूलभूत ढांचे की रक्षा करना सभी देशों के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा हैसमुद्र के भीतर बिछी तारेंदूरसंचार का बेहद महत्वपूर्ण माध्यम हैजिससे इंटरनेट कनेक्टिविटी मिलती हैऔर ये केबल इंटरनेट की धीमी गति को तेज़ करके और बैंडविड्थ बढ़ाकर बढ़ते साइबर मूलभूत ढांचे के विस्तार में भी सहयोग प्रदान करते हैंहालांकिहाल के दिनों में समुद्र के भीतर बिछी इन तारों में तोड़फोड़जासूसीहेराफेरी या फिर हादसों के कारण हुए नुक़सान ने समुद्र के भीतर के इस मूलभूत ढांचे की सुरक्षा के मुद्दे को रेखांकित किया हैकुल मिलाकरसमुद्री केबल भारत के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे का हिस्सा हैंजिन्हें हिंद महासागर क्षेत्र में क़ानूनी और ज़मीनी संरक्षण की ज़रूरत है.

समुद्र के भीतर बिछी तारेंभारत के डिजिटल इंडिया 2015 विज़न का आधार हैंक्योंकिइस विज़न का मक़सद समाज और प्रशासन को डिजिटल माध्यम से सशक्त बनाना हैभारतसमुद्र के भीतर बिछी तारों के मामले में एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभर रहा हैइस वक़्त दुनिया के अलग अलग हिस्सों से आने वाली 17 समुद्री केबल भारत तक पहुंचती हैंहालांकिइस समय भारत के पास इन महंगी और बेहद नाज़ुक समुद्री तारों के संरक्षण के लिए कोई क्षेत्राधिकार संबंधीक़ानूनी और ज़मीनी उपाय नहीं है.

ऑस्ट्रेलिया ने ये केबल संरक्षण क्षेत्र 2005 में जॉन हावर्ड की सरकार के दौरान स्थापित किए थे, जिससे वो अपनी समुद्री सीमा में बिछी अंडरवाटर केबल को सुरक्षित रख सके. ऑस्ट्रेलिया ने ये विशेष क्षेत्र अपने टेलीकम्युनिकेशन एक्ट की अनुसूची 3A के तहत स्थापित किए हैं.

हालांकिऑस्ट्रेलिया उन गिने चुने देशों में से एक हैजिसके पास समुद्र के भीतर बिछी केबल की सुरक्षा के लिए एक समर्पित व्यवस्था और घोषित क्षेत्र हैइसके लिए ऑस्ट्रेलिया ने दुनिया की अगुवाई करने वाला क़ानून बनाया हैजिससे सबक़ लेकर भारत भी हिंद महासागर में बिछी केबल की सुरक्षा के लिए विशेष क्षेत्र और घरेलू क़ानून बना सकता है.

ऑस्ट्रेलिया की ‘केबल संरक्षण क्षेत्र व्यवस्था’: कामयाबी की एक दास्तान

ऑस्ट्रेलिया ने समुद्र में अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ जो तट से क़रीब 200 समुद्री मील तक दूर जाते हैंमें ‘केबल संरक्षण क्षेत्र’ स्थापित किए हैंइसके लिए ऑस्ट्रेलिया ने संयुक्त राष्ट्र के समुद्र के क़ानून संबंधी संधि (UNCLOS) के तहत मिले अधिकारों का इस्तेमाल किया हैऑस्ट्रेलिया ने ये केबल संरक्षण क्षेत्र 2005 में जॉन हावर्ड की सरकार के दौरान स्थापित किए थेजिससे वो अपनी समुद्री सीमा में बिछी अंडरवाटर केबल को सुरक्षित रख सकेऑस्ट्रेलिया ने ये विशेष क्षेत्र अपने टेलीकम्युनिकेशन एक्ट की अनुसूची 3A के तहत स्थापित किए हैं. इन क़ानूनों के पूरे नाम– दि टेलीकम्युनिकेशन एंड अदर लेजिस्लेशन अमेंडमेंट (Protection of Submarine Cables and Other Measures) एक्ट 2005 औरदि टेलीकम्युनिकेशंस लेजिस्लेशन अमेंडमेंट (Submarine Cable Protection) एक्ट 2014 हैंऑस्ट्रेलिया की ये घरेलू संरक्षण व्यवस्थाइस उद्योग का नियमन करने वाले ऑस्ट्रेलियन कम्युनिकेशन ऐंड मीडिया अथॉरिटी (ACMA) को ये अधिकार देते हैं कि वो ऑस्ट्रेलिया आने वाली समुद्र के भीतर स्थित अपनी अंतरराष्ट्रीय केबल केबल की हिफ़ाज़त कर सके.

इस व्यवस्था के तहत ACMA ने 2007 में तीन संरक्षित क्षेत्र घोषित किए थे:  उत्तरी सिडनीदक्षिणी सिडनी और पर्थइस क़ानून के तहत ऑस्ट्रेलिया अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में समुद्र के भीतर कांटेदार जाल से मछली पकड़नेखुदाई करके बालू निकालनेजहाज़ों के लंगर डालनेसमुद्र के भीतर सफ़ाई करने और ऐसी गतिविधियों को प्रतिबंधित करता हैजिससे प्रतिबंधितसंरक्षित क्षेत्रों में समुद्र की तलहटी के लिए गंभीर ख़तरा पैदा होइन क्षेत्रों की स्थापना से ऑस्ट्रेलिया ने कुछ ख़ास तरह से मछली पकड़ने और मालवाहक जहाज़ों को अपने अधिकार क्षेत्र में आने से प्रतिबंधित कर रखा हैयही नहींअगर कोई दूरसंचार कंपनी ऑस्ट्रेलिया के इन विशेष क्षेत्रों में समुद्र के भीतर तार बिछाना चाहता हैतो उसे ऑस्ट्रेलिया की कम्युनिकेशन ऐंड मीडिया अथॉरिटी (ACMA) से इजाज़त लेनी पड़ेगी.

भारत के समुद्री क्षेत्र और दूसरे इलाक़ों में भी ऐसे ही ज़ोन की स्थापना 

भारत अपने ऑस्ट्रेलिया के समकक्षों के साथ मिलकर अपने यहां भी ऐसे ही क़ानून बना सकता हैभारत अपने 12 मील के क्षेत्र में बिछी समुद्री तारों के लिए क़ानून बना सकता हैइसके अलावाभारत अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए क़ानून बनाकर ‘समुद्र के भीतर केबल संरक्षण क्षेत्र’ की स्थापना कर सकता हैभारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र में सबमरीन केबल प्रोटेक्शन ज़ोन स्थापित करना, UNCLOS के तहत अंतरराष्ट्रीय समुद्री क़ानूनों के दायरे में आएगा.

भारत, समुद्र के भीतर बिछी तारों के मामले में एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभर रहा है. इस वक़्त दुनिया के अलग अलग हिस्सों से आने वाली 17 समुद्री केबल भारत तक पहुंचती हैं. हालांकि, इस समय भारत के पास इन महंगी और बेहद नाज़ुक समुद्री तारों के संरक्षण के लिए कोई क्षेत्राधिकार संबंधी, क़ानूनी और ज़मीनी उपाय नहीं है.

ऐसे क्षेत्र या तो केबल की सघनता के आधार परया फिर भारतीय समुद्री क्षेत्र की कमज़ोरियों के आधार पर स्थापित किए जा सकते हैंएक ठोस क़ानूनी ढांचा बनाकर भारत इन क्षेत्रों के भीतर अपने समुद्री क़ानून लागू कर सकता हैइन क़ानूनों से भारत को समुद्री केबल के साथ छेड़खानी करने या नुक़सान पहुंचाने वालों को गिरफ़्तार करने और उन पर मुक़दमा चलाने का अधिकार भी मिल जाएगा.

ज़मीनी स्तर पर संरक्षण की बात करेंतो समुद्र में टूटी हुई तारों की मरम्मत बहुत महंगा काम हैजिसे इसमें महारत रखने वाले लोग ही कर सकते हैंहिंद महासागर की समुद्री भौगोलिक स्थिति अनूठी मगर बेहद चुनौतीपूर्ण हैइसके पीछे समुद्र की गहराईउसके पानी में नमक की मात्रापानी का तापमान जैसी वजहें हैंइन कारणों से हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित कोई भी देश अपने इलाक़े में अपने हितों और संपत्तियों की अकेले सुरक्षा नहीं कर सकताये बात समुद्र के भीतर बिछी तारों पर ख़ास तौर से लागू होती हैहिंद महासागर क्षेत्र में आम तौर पर कम विकसित और विकासशील देश ही आबाद हैइसलिएउनके पास हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित अपने संसाधनों की रक्षा करने लायक़ क्षमता और ताक़त नहीं है.

हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्र के भीतर मौजूद संसाधनों की निगरानी और उनके संरक्षण का काम बेहद मुश्किल है और इसके लिए  केवल तकनीकी विशेषज्ञता की ज़रूरत हैबल्कि एक ऐसा नीतिगत ढांचा भी चाहिएजिससे इन संसाधनों की हिफ़ाज़त के लिए क़ानूनी कवच मौजूद हो.

भारत और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाएं और तटरक्षक बल, इस क्षेत्र के देशों को भी अपनी समुद्री तारों की हिफ़ाज़त में मदद दे सकते हैं. समुद्र के भीतर मौजूद संसाधनों की रक्षा के लिए एक बार हर देश का क़ानून बन जाने के बाद, अधिकार क्षेत्र और लागू करने के मसले हल किए जा सकते हैं.

केबल संरक्षण क्षेत्रों की स्थापना के विचार को और आगे बढ़ाते हुएऑस्ट्रेलिया के मॉडल को पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में अपनाया जा सकता हैये काम इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) के तहत हो सकता हैजहां ऑस्ट्रेलिया और भारत मिलकर इस मामले में अगुवाई कर सकते हैंऐसे क़ानून बनने का मतलब होगा कि हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित देश समुद्र के क़ानून के प्रति अपनी जवाबदेही निभाते हुए अपनी समुद्री तारों की रक्षा कर सकेंगेइसके अलावाचूंकि ये मामला संप्रभु अधिकारों का हैतो समुद्र के भीतर बिछी तारों के मुद्दे को क्वाड के एजेंडे में भी शामिल किया गया हैजिससे इस मुद्दे को आवश्यक राजनीतिक समर्थन भी मिल गया है.

लागू करने के लिहाज़ से ये एजेंडाराष्ट्रीय एजेंसियों जैसे कि क्वाड और हिंद महासागर क्षेत्र में समान विचारधारा वाले देशों की नौसेनाएं आपस में तालमेल के ज़रिए समुद्र में उन इलाक़ों की निगरानी कर सकती हैंजहां से होकर कई तार गुज़रती हैंअपने संसाधनों और अधिकार क्षेत्र के तहतभारत और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाएं और तटरक्षक बलइस क्षेत्र के देशों को भी अपनी समुद्री तारों की हिफ़ाज़त में मदद दे सकते हैंसमुद्र के भीतर मौजूद संसाधनों की रक्षा के लिए एक बार हर देश का क़ानून बन जाने के बादअधिकार क्षेत्र और लागू करने के मसले हल किए जा सकते हैं. हिंद महासागर में बिछी तारों को नुक़सान और तोड़फोड़ से बचाने के लिए ये पहल एक व्यावहारिक और प्रभावी तरीक़ा साबित हो सकती हैफिर चाहे केबल को किसी जहाज़ की टक्कर से नुक़सान पहुंचे या फिर विरोधी ताक़तें उनके साथ जानबूझकर तोड़फोड़ करें.


पूजा भट्ट नई दिल्ली स्थित समुद्री सुरक्षा और प्रशासन के मुद्दों में एक शोधकर्ता हैं. वर्तमान में, वह विदेश मंत्रालय, भारत में सलाहकार हैं.

यह लेख ऑस्ट्रेलियाई रक्षा विभाग के समर्थन से चलाए गए ऑस्ट्रेलिया इंडिया इंस्टीट्यूट के रक्षा कार्यक्रम के हिस्से के रूप में लिखा गया था.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.