-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
ये लेख हमारी सीरीज़, इंडिया ऑस्ट्रेलिया पार्टनरशिप: रक्षा का आयाम का हिस्सा है.
भू–राजनीति के मौजूदा नाज़ुक माहौल में समुद्र के भीतर मूलभूत ढांचे की रक्षा करना सभी देशों के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है. समुद्र के भीतर बिछी तारें, दूरसंचार का बेहद महत्वपूर्ण माध्यम है, जिससे इंटरनेट कनेक्टिविटी मिलती है, और ये केबल इंटरनेट की धीमी गति को तेज़ करके और बैंडविड्थ बढ़ाकर बढ़ते साइबर मूलभूत ढांचे के विस्तार में भी सहयोग प्रदान करते हैं. हालांकि, हाल के दिनों में समुद्र के भीतर बिछी इन तारों में तोड़–फोड़, जासूसी, हेरा–फेरी या फिर हादसों के कारण हुए नुक़सान ने समुद्र के भीतर के इस मूलभूत ढांचे की सुरक्षा के मुद्दे को रेखांकित किया है. कुल मिलाकर, समुद्री केबल भारत के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे का हिस्सा हैं, जिन्हें हिंद महासागर क्षेत्र में क़ानूनी और ज़मीनी संरक्षण की ज़रूरत है.
समुद्र के भीतर बिछी तारें, भारत के डिजिटल इंडिया 2015 विज़न का आधार हैं. क्योंकि, इस विज़न का मक़सद समाज और प्रशासन को डिजिटल माध्यम से सशक्त बनाना है. भारत, समुद्र के भीतर बिछी तारों के मामले में एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभर रहा है. इस वक़्त दुनिया के अलग अलग हिस्सों से आने वाली 17 समुद्री केबल भारत तक पहुंचती हैं. हालांकि, इस समय भारत के पास इन महंगी और बेहद नाज़ुक समुद्री तारों के संरक्षण के लिए कोई क्षेत्राधिकार संबंधी, क़ानूनी और ज़मीनी उपाय नहीं है.
ऑस्ट्रेलिया ने ये केबल संरक्षण क्षेत्र 2005 में जॉन हावर्ड की सरकार के दौरान स्थापित किए थे, जिससे वो अपनी समुद्री सीमा में बिछी अंडरवाटर केबल को सुरक्षित रख सके. ऑस्ट्रेलिया ने ये विशेष क्षेत्र अपने टेलीकम्युनिकेशन एक्ट की अनुसूची 3A के तहत स्थापित किए हैं.
हालांकि, ऑस्ट्रेलिया उन गिने चुने देशों में से एक है, जिसके पास समुद्र के भीतर बिछी केबल की सुरक्षा के लिए एक समर्पित व्यवस्था और घोषित क्षेत्र है. इसके लिए ऑस्ट्रेलिया ने दुनिया की अगुवाई करने वाला क़ानून बनाया है, जिससे सबक़ लेकर भारत भी हिंद महासागर में बिछी केबल की सुरक्षा के लिए विशेष क्षेत्र और घरेलू क़ानून बना सकता है.
ऑस्ट्रेलिया ने समुद्र में अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ जो तट से क़रीब 200 समुद्री मील तक दूर जाते हैं) में ‘केबल संरक्षण क्षेत्र’ स्थापित किए हैं. इसके लिए ऑस्ट्रेलिया ने संयुक्त राष्ट्र के समुद्र के क़ानून संबंधी संधि (UNCLOS) के तहत मिले अधिकारों का इस्तेमाल किया है. ऑस्ट्रेलिया ने ये केबल संरक्षण क्षेत्र 2005 में जॉन हावर्ड की सरकार के दौरान स्थापित किए थे, जिससे वो अपनी समुद्री सीमा में बिछी अंडरवाटर केबल को सुरक्षित रख सके. ऑस्ट्रेलिया ने ये विशेष क्षेत्र अपने टेलीकम्युनिकेशन एक्ट की अनुसूची 3A के तहत स्थापित किए हैं. इन क़ानूनों के पूरे नाम– दि टेलीकम्युनिकेशन एंड अदर लेजिस्लेशन अमेंडमेंट (Protection of Submarine Cables and Other Measures) एक्ट 2005 और, दि टेलीकम्युनिकेशंस लेजिस्लेशन अमेंडमेंट (Submarine Cable Protection) एक्ट 2014 हैं. ऑस्ट्रेलिया की ये घरेलू संरक्षण व्यवस्था, इस उद्योग का नियमन करने वाले ऑस्ट्रेलियन कम्युनिकेशन ऐंड मीडिया अथॉरिटी (ACMA) को ये अधिकार देते हैं कि वो ऑस्ट्रेलिया आने वाली समुद्र के भीतर स्थित अपनी अंतरराष्ट्रीय केबल केबल की हिफ़ाज़त कर सके.
इस व्यवस्था के तहत ACMA ने 2007 में तीन संरक्षित क्षेत्र घोषित किए थे: उत्तरी सिडनी, दक्षिणी सिडनी और पर्थ. इस क़ानून के तहत ऑस्ट्रेलिया अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में समुद्र के भीतर कांटेदार जाल से मछली पकड़ने, खुदाई करके बालू निकालने, जहाज़ों के लंगर डालने, समुद्र के भीतर सफ़ाई करने और ऐसी गतिविधियों को प्रतिबंधित करता है, जिससे प्रतिबंधित/ संरक्षित क्षेत्रों में समुद्र की तलहटी के लिए गंभीर ख़तरा पैदा हो. इन क्षेत्रों की स्थापना से ऑस्ट्रेलिया ने कुछ ख़ास तरह से मछली पकड़ने और मालवाहक जहाज़ों को अपने अधिकार क्षेत्र में आने से प्रतिबंधित कर रखा है. यही नहीं, अगर कोई दूरसंचार कंपनी ऑस्ट्रेलिया के इन विशेष क्षेत्रों में समुद्र के भीतर तार बिछाना चाहता है, तो उसे ऑस्ट्रेलिया की कम्युनिकेशन ऐंड मीडिया अथॉरिटी (ACMA) से इजाज़त लेनी पड़ेगी.
भारत अपने ऑस्ट्रेलिया के समकक्षों के साथ मिलकर अपने यहां भी ऐसे ही क़ानून बना सकता है. भारत अपने 12 मील के क्षेत्र में बिछी समुद्री तारों के लिए क़ानून बना सकता है. इसके अलावा, भारत अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए क़ानून बनाकर ‘समुद्र के भीतर केबल संरक्षण क्षेत्र’ की स्थापना कर सकता है. भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र में सबमरीन केबल प्रोटेक्शन ज़ोन स्थापित करना, UNCLOS के तहत अंतरराष्ट्रीय समुद्री क़ानूनों के दायरे में आएगा.
भारत, समुद्र के भीतर बिछी तारों के मामले में एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभर रहा है. इस वक़्त दुनिया के अलग अलग हिस्सों से आने वाली 17 समुद्री केबल भारत तक पहुंचती हैं. हालांकि, इस समय भारत के पास इन महंगी और बेहद नाज़ुक समुद्री तारों के संरक्षण के लिए कोई क्षेत्राधिकार संबंधी, क़ानूनी और ज़मीनी उपाय नहीं है.
ऐसे क्षेत्र या तो केबल की सघनता के आधार पर, या फिर भारतीय समुद्री क्षेत्र की कमज़ोरियों के आधार पर स्थापित किए जा सकते हैं. एक ठोस क़ानूनी ढांचा बनाकर भारत इन क्षेत्रों के भीतर अपने समुद्री क़ानून लागू कर सकता है. इन क़ानूनों से भारत को समुद्री केबल के साथ छेड़खानी करने या नुक़सान पहुंचाने वालों को गिरफ़्तार करने और उन पर मुक़दमा चलाने का अधिकार भी मिल जाएगा.
ज़मीनी स्तर पर संरक्षण की बात करें, तो समुद्र में टूटी हुई तारों की मरम्मत बहुत महंगा काम है, जिसे इसमें महारत रखने वाले लोग ही कर सकते हैं. हिंद महासागर की समुद्री भौगोलिक स्थिति अनूठी मगर बेहद चुनौतीपूर्ण है. इसके पीछे समुद्र की गहराई, उसके पानी में नमक की मात्रा, पानी का तापमान जैसी वजहें हैं. इन कारणों से हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित कोई भी देश अपने इलाक़े में अपने हितों और संपत्तियों की अकेले सुरक्षा नहीं कर सकता. ये बात समुद्र के भीतर बिछी तारों पर ख़ास तौर से लागू होती है. हिंद महासागर क्षेत्र में आम तौर पर कम विकसित और विकासशील देश ही आबाद है; इसलिए, उनके पास हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित अपने संसाधनों की रक्षा करने लायक़ क्षमता और ताक़त नहीं है.
हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्र के भीतर मौजूद संसाधनों की निगरानी और उनके संरक्षण का काम बेहद मुश्किल है और इसके लिए न केवल तकनीकी विशेषज्ञता की ज़रूरत है, बल्कि एक ऐसा नीतिगत ढांचा भी चाहिए, जिससे इन संसाधनों की हिफ़ाज़त के लिए क़ानूनी कवच मौजूद हो.
भारत और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाएं और तटरक्षक बल, इस क्षेत्र के देशों को भी अपनी समुद्री तारों की हिफ़ाज़त में मदद दे सकते हैं. समुद्र के भीतर मौजूद संसाधनों की रक्षा के लिए एक बार हर देश का क़ानून बन जाने के बाद, अधिकार क्षेत्र और लागू करने के मसले हल किए जा सकते हैं.
केबल संरक्षण क्षेत्रों की स्थापना के विचार को और आगे बढ़ाते हुए, ऑस्ट्रेलिया के मॉडल को पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में अपनाया जा सकता है. ये काम इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) के तहत हो सकता है, जहां ऑस्ट्रेलिया और भारत मिलकर इस मामले में अगुवाई कर सकते हैं. ऐसे क़ानून बनने का मतलब होगा कि हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित देश समुद्र के क़ानून के प्रति अपनी जवाबदेही निभाते हुए अपनी समुद्री तारों की रक्षा कर सकेंगे. इसके अलावा, चूंकि ये मामला संप्रभु अधिकारों का है, तो समुद्र के भीतर बिछी तारों के मुद्दे को क्वाड के एजेंडे में भी शामिल किया गया है, जिससे इस मुद्दे को आवश्यक राजनीतिक समर्थन भी मिल गया है.
लागू करने के लिहाज़ से ये एजेंडा, राष्ट्रीय एजेंसियों जैसे कि क्वाड और हिंद महासागर क्षेत्र में समान विचारधारा वाले देशों की नौसेनाएं आपस में तालमेल के ज़रिए समुद्र में उन इलाक़ों की निगरानी कर सकती हैं, जहां से होकर कई तार गुज़रती हैं. अपने संसाधनों और अधिकार क्षेत्र के तहत, भारत और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाएं और तटरक्षक बल, इस क्षेत्र के देशों को भी अपनी समुद्री तारों की हिफ़ाज़त में मदद दे सकते हैं. समुद्र के भीतर मौजूद संसाधनों की रक्षा के लिए एक बार हर देश का क़ानून बन जाने के बाद, अधिकार क्षेत्र और लागू करने के मसले हल किए जा सकते हैं. हिंद महासागर में बिछी तारों को नुक़सान और तोड़–फोड़ से बचाने के लिए ये पहल एक व्यावहारिक और प्रभावी तरीक़ा साबित हो सकती है. फिर चाहे केबल को किसी जहाज़ की टक्कर से नुक़सान पहुंचे या फिर विरोधी ताक़तें उनके साथ जानबूझकर तोड़–फोड़ करें.
पूजा भट्ट नई दिल्ली स्थित समुद्री सुरक्षा और प्रशासन के मुद्दों में एक शोधकर्ता हैं. वर्तमान में, वह विदेश मंत्रालय, भारत में सलाहकार हैं.
यह लेख ऑस्ट्रेलियाई रक्षा विभाग के समर्थन से चलाए गए ऑस्ट्रेलिया इंडिया इंस्टीट्यूट के रक्षा कार्यक्रम के हिस्से के रूप में लिखा गया था.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.