ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में क्वॉड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक के एक दिन बाद 12 फरवरी 2022 को बाइडेन प्रशासन ने अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति पेश की. ये साफ़ तौर पर बताता है कि इंडो-पैसिफिक में अमेरिका के उद्देश्यों और रणनीति को बढ़ाने में क्वॉड को सबसे ज़्यादा संभावनाओं वाला मंच माना जाता है. इंडो-पैसिफिक अमेरिका के अलग-अलग राष्ट्रपतियों के लिए विशेष नीतिगत ध्यान देने वाला क्षेत्र रहा है जैसे अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के काल में ‘एशिया का केंद्र बिंदु’ या ‘फिर से संतुलन’ की रणनीति और ट्रंप युग में ‘इंडो-पैसिफिक के लिए सामरिक रूप-रेखा’. इसलिए बाइडेन की इंडो-पैसिफिक नीति इस क्षेत्र में स्थायी हित और प्राथमिकता को दिखाती है. यूरोप की सुरक्षा के दृष्टिकोण से अमेरिका का ये दस्तावेज़ एक महत्वपूर्ण समय पर आया. ये इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक दीर्घकालीन क्षेत्रीय रणनीति की आवश्यकता को रेखांकित करता है. इस दस्तावेज़ में ज़ोर देकर कहा गया है कि अमेरिका ‘इस क्षेत्र के हर कोने- पूर्वोत्तर एशिया से दक्षिण-पूर्व एशिया और दक्षिण एशिया से लेकर ओशीएनिआ तक जिसमें पैसिफिक द्वीप भी शामिल हैं- पर ध्यान केंद्रित करेगा’. अमेरिका के ऐसा कहने का उद्देश्य ट्रंप के राष्ट्रपति रहने के दौरान उसके सहयोगियों के कमज़ोर पड़ चुके भरोसे को मज़बूत करना है. इसके अलावा ये संकेत देना भी है कि इस विशाल क्षेत्र के एक हिस्से पर अमेरिका का ध्यान दूसरे को नज़रअंदाज़ करने की क़ीमत पर नहीं होगा.
इस दस्तावेज़ में ज़ोर देकर कहा गया है कि अमेरिका ‘इस क्षेत्र के हर कोने- पूर्वोत्तर एशिया से दक्षिण-पूर्व एशिया और दक्षिण एशिया से लेकर ओशीएनिआ तक जिसमें पैसिफिक द्वीप भी शामिल हैं- पर ध्यान केंद्रित करेगा’.
आश्चर्य की बात नहीं है कि अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति में साफ़ तौर पर बताया गया है कि इस क्षेत्र में उसका ध्यान बढ़ने की एक प्रमुख वजह चीन का ख़तरा है. मोटे तौर पर अमेरिकी दस्तावेज़ में चीन की चुनौतियों और आर्थिक, कूटनीतिक, सैन्य एवं तकनीकी ताक़त के क्षेत्र में चीन से ज़ोरदार मुक़ाबले का ज़िक्र नहीं किया गया है. चीन के साथ ऑस्ट्रेलिया का कूटनीतिक तनाव, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत के साथ चीन का मौजूदा गतिरोध, पूर्वी एवं दक्षिणी चीन सागर में संप्रभुता को लेकर तनाव और ताइवान के ऊपर लगातार मंडराते ख़तरे का ज़िक्र विशेष तौर पर चीन की आक्रामक, दादागीरी और ज़ोर-ज़बरदस्ती वाली रणनीति के तहत किया गया है. समुद्र में जहाज़ के चलने की स्वतंत्रता समेत मानवाधिकार और अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के लिए सम्मान जैसे विषयों पर अमेरिका के दस्तावेज़ में संतुलित रूप से ज़ोर दिया गया है. इसके साथ-साथ जलवायु परिवर्तन, अप्रसार जैसे मुद्दों पर चीन के साथ मिलकर काम करने पर भी विशेष ध्यान दिया गया है. ये दस्तावेज़ चीन के साथ सहयोग के लिए काफ़ी गुंजाइश छोड़ते हुए इस क्षेत्र के अपने साझेदारों और सहयोगियों को मिलाकर चीन के ख़िलाफ़ प्रतिस्पर्धा की नीति के मामले में बेहद साफ़ है. वैसे तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इंडो-पैसिफिक में अमेरिका के ज़्यादातर सहयोगियों और साझेदारों जैसे कि फिलीपींस, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत को चीन के ‘अशांत उदय’ के बारे में पता है और वो अमेरिका के साथ सहयोग को मज़बूत करना चाहते हैं लेकिन इसके साथ-साथ थाईलैंड, दक्षिण कोरिया, न्यूज़ीलैंड, आसियान के कुछ सदस्य देश जैसे कि इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर और यहां तक कि यूरोपीय संघ (ईयू) भी हैं जो अमेरिका-चीन की प्रतिस्पर्धा के बीच सावधानी से क़दम बढ़ा रहे हैं और अभी भी खुलकर चीन के ख़िलाफ़ नहीं हैं. इसलिए, चीन के उदय के ख़िलाफ़ अमेरिका के सभी साझेदारों के साथ मिलकर काम करने की उम्मीद दूर की कौड़ी की तरह लग सकता है. अमेरिका की तरह ये देश भी चीन को लेकर अपनी नीतियों में प्रतिस्पर्धा और सहयोग का मिश्रण चाहेंगे.
रणनीतिक तौर पर दो बातें हैं जो बाइडेन की इंडो-पैसिफिक नीति को सहारा देते हैं. पहला, सभी इंडो-पैसिफिक साझेदारों की सामूहिक कोशिशों को इंडो-पैसिफिक के क्षेत्रीय रणनीतिक माहौल को बदलने की कोशिशों के केंद्र में रखा गया है. ये वही रणनीतिक माहौल है जिसमें चीन काम करेगा. इस तरह इंडो-पैसिफिक में समान विचारधारा वाले साझेदारों और सहयोगियों के साथ प्रभाव का क्षेत्रीय संतुलन दूसरे इंडो-पैसिफिक साझेदारों के लिए गतिशीलता का व्यापक विस्तार करता है. दूसरा, अमेरिका इंडो-पैसिफिक में प्रभाव का क्षेत्रीय संतुलन अपने और अपने साझेदारों के पक्ष में करना चाहता है. इसके लिए वो अपने दृष्टिकोण को इस क्षेत्र के अपने सहयोगियों और साझेदारों के साथ मिलाना चाहता है. इंडो-पैसिफिक के लिए अमेरिकी रणनीति में उन देशों और क्षेत्रीय संगठनों का खाका खींचा गया है जिन्हें अमेरिका इंडो-पैसिफिक की सुरक्षा संरचना में भागीदार बनाना चाहता है. इन देशों और क्षेत्रीय संगठनों में ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, न्यूज़ीलैंड, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, ईयू, आसियान और पैसिफिक द्वीप के देश शामिल हैं.
चीन के उदय के ख़िलाफ़ अमेरिका के सभी साझेदारों के साथ मिलकर काम करने की उम्मीद दूर की कौड़ी की तरह लग सकता है. अमेरिका की तरह ये देश भी चीन को लेकर अपनी नीतियों में प्रतिस्पर्धा और सहयोग का मिश्रण चाहेंगे.
भारत की भूमिका
आर्थिक और तकनीकी सहयोग को और बढ़ाने के लिए भारत के साथ काम करने की ज़रूरत पर बार-बार ज़ोर दिया गया है और अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति की कार्य योजना में इसको चिन्हित किया गया है ताकि ‘इस क्षेत्रीय परिकल्पना में साझेदार के तौर पर एक मज़बूत भारत को समर्थन’ दिया जाए और नये क्षेत्रों जैसे कि स्वास्थ्य, अंतरिक्ष और साइबर स्पेस में इस द्विपक्षीय गठबंधन को और मज़बूत किया जाए. दक्षिण एशिया में भारत को एक नेतृत्व करने वाले देश की मान्यता मिली हुई है. भारत हिंद महासागर में सुरक्षा मुहैया कराने वाला देश है जिसका आसियान में एक मज़बूत असर है. इसके साथ ही भारत क्वॉड का एक महत्वपूर्ण सदस्य है. अमेरिका का ध्यान पश्चिमी प्रशांत पर ज़्यादा रहा है और ये वो इलाक़ा है जहां चीन का ख़तरा मंडरा रहा है. ये देखते हुए भारत इस इलाक़े में अमेरिका के साथ किस तरह की भूमिका निभाने की उम्मीद करता है, इसकी रूप-रेखा भी खींची जा सकती है.
अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति में एक कार्य योजना भी है जिसमें उन तरीक़ों और रास्तों के बारे में बताया गया है जिन्हें लागू कर के इस क्षेत्र में अमेरिका अपने उद्देश्यों को हासिल कर सकता है. एक मुक्त और खुले इंडो-पैसिफिक को आगे बढ़ाने का पहला सामरिक उद्देश्य मानकीकरण की प्रक्रिया के ज़रिए तीन महत्वपूर्ण पहलुओं को जोड़ना है: शासन व्यवस्था का मानक, महत्वपूर्ण और उभरती तकनीकों पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय नियमों और साझेदारी के साथ सामंजस्य, और अंतरिक्ष और साइबर क्षेत्र. इंडो-पैसिफिक के देशों के भीतर आंतरिक रूप से मुक्त और खुला बनने की आकांक्षा सूचना, अभिव्यक्ति और शासन व्यवस्था के क्षेत्रों में होगी. इन्हें हासिल करने की कोशिश में अमेरिका के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी वित्तीय पारदर्शिता को हासिल करना, भ्रष्टाचार को उजागर करना और इंडो-पैसिफिक के देशों में आर्थिक सुधार को बढ़ावा देना. दूसरा पहलू दक्षिणी और पूर्वी चीन सागर में विशेष ध्यान के साथ इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में नियम आधारित व्यवस्था में सामंजस्य की कोशिश करना है. इसलिए पैसिफिक डिटरंस इनिशिएटिव और मैरिटाइम पॉलिसी इनिशिएटिव को फंड देने के लिए अमेरिकी कांग्रेस के साथ काम करने की ज़रूरत के बारे में बताया गया है. तीसरा, ध्यान देने योग्य पहलू महत्वपूर्ण और उभरती तकनीकों में एक साझा दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है. ये आंतरिक और बाहरी रूप से इस क्षेत्र में बाइडेन प्रशासन के ध्यान के साथ तालमेल खाता है. अंतर्राष्ट्रीय रूप से हाल के समय में महत्वपूर्ण और उभरती तकनीकों पर ध्यान देने में तेज़ी आई है. इस काम में क्वॉड के संशोधित उद्देश्य के ज़रिए भी तेज़ी लाई गई है. आंतरिक रूप से भी राष्ट्रीय विज्ञान और तकनीकी परिषद के तहत महत्वपूर्ण और उभरती तकनीकों पर फास्ट ट्रैक एक्शन कमेटी ने इस क्षेत्र में हाल के दिनों में अपने अधिकार का विस्तार किया है.
इंडो-पैसिफिक के देशों के भीतर आंतरिक रूप से मुक्त और खुला बनने की आकांक्षा सूचना, अभिव्यक्ति और शासन व्यवस्था के क्षेत्रों में होगी. इन्हें हासिल करने की कोशिश में अमेरिका के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी वित्तीय पारदर्शिता को हासिल करना, भ्रष्टाचार को उजागर करना और इंडो-पैसिफिक के देशों में आर्थिक सुधार को बढ़ावा देना.
बाइडेन की इंडो-पैसिफिक नीति का एक हिस्सा उन देशों के बीच मौजूदा आंतरिक संघर्षों के समाधान पर ध्यान देता है जिन्हें अमेरिका एक साथ लाना चाहता है. साथ ही इसके ज़रिए अमेरिका उन देशों के बीच भविष्य में किसी तरह के द्विपक्षीय मतभेद को भी रोकना चाहता है. जापान और दक्षिण कोरिया के बीच संबंधों की मौजूदा स्थिति को स्पष्ट रूप से बताकर बाइडेन की नीति साफ़ करती है कि द्विपक्षीय मतभेदों के ऊपर अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को प्राथमिकता देना इस क्षेत्र में हितों को जोड़ने के लिए ज़रूरी है.
अमेरिका की प्रतिबद्धता
इंडो-पैसिफिक रणनीति की कार्य योजना वाला हिस्सा विशेष तौर पर “सशक्त और एकीकृत आसियान” में अमेरिकी निवेश की प्रतिबद्धता का ज़िक्र करती है. आसियान के कुछ देशों ने पैसिफिक साझेदारी से ट्रंप के बाहर निकलने के बाद इस क्षेत्र में अमेरिका की दीर्घकालीन प्रतिबद्धता पर संदेह जताया था. इसलिए इस टूट चुकी साझेदारी की समीक्षा करने की ज़रूरत है. वॉशिंगटन डीसी में पहली अमेरिका-आसियान शिखर वार्ता की मेज़बानी करने से लेकर नई अमेरिका-आसियान पहल में 100 मिलियन डॉलर के निवेश को प्राथमिकता देने का ज़िक्र भी कार्य योजना में है.
मुक्त और खुले इंडो-पैसिफिक का लक्ष्य पाने के लिए वैश्विक स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन, महत्वपूर्ण एवं उभरती तकनीक, बुनियादी ढांचा, साइबर, शिक्षा और स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्रों में क्वॉड के सदस्य देशों के बीच सहयोग ज़रूरी है. ऐसे में नीतियों की कोशिश के साझा क्षेत्रों को अलग करके अमेरिका की इंडो-पैसिफिक नीति में क्वॉड का घोषित एकीकरण ट्रंप प्रशासन के मुक़ाबले बाइडेन प्रशासन की नीति को स्पष्ट बनाता है.बाइडेन प्रशासन की इंडो-पैसिफिक नीति विशेष रूप से इस क्षेत्र में साझा उद्देश्यों की खातिर यूरो और नेटो के लिए बड़ी भूमिका के साथ यूरो-अटलांटिक और इंडो-पैसिफिक के बीच की ‘दूरी’ भी पाटना चाहती है. वैसे तो ईयू के अलावा फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड्स और यूके के लिए इंडो-पैसिफिक में बढ़ती सामरिक भूमिका एक वास्तविकता है लेकिन नेटो के ज़िक्र का समय कुछ देशों को हैरान कर सकता है.
इस मामले में अतीत में अमेरिका की तरफ़ से की गई पहल जैसे कि ब्लू डॉट बहुत ज़्यादा योगदान नहीं दे सकी. इसलिए बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड इनिशिएटिव के ज़रिए ख़ास तौर पर दक्षिण-पूर्व एशिया और पैसिफिक के द्वीपों में कुछ परियोजनाओं को शुरू करना मददगार साबित होता.
इंडो-पैसिफिक में समृद्धि लाने का उद्देश्य दो प्रमुख लक्ष्यों पर टिका है: एक इंडो-पैसिफिक आर्थिक रूप-रेखा को बनाना एवं उसे मज़बूत करना और बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड इनिशिएटिव (B3W) के ज़रिए जी7 साझेदारों की मदद से इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे को मज़बूत करना. विकासशील एशिया में बुनियादी ढांचे की ज़रूरत बहुत ज़्यादा है; एशियाई विकास बैंक के अनुमान के मुताबिक़, वर्ष 2030 तक 26 ट्रिलियन डॉलर की ज़रूरत होगी. इस मामले में अतीत में अमेरिका की तरफ़ से की गई पहल जैसे कि ब्लू डॉट बहुत ज़्यादा योगदान नहीं दे सकी. इसलिए बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड इनिशिएटिव के ज़रिए ख़ास तौर पर दक्षिण-पूर्व एशिया और पैसिफिक के द्वीपों में कुछ परियोजनाओं को शुरू करना मददगार साबित होता. सुरक्षित वैश्विक दूरसंचार, अलग-अलग 5जी वेंडर और ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क (ओ-आरएएन) तकनीक पर ध्यान का उद्देश्य संदिग्ध प्रतिस्पर्धियों जैसे हुआवेई को बाहर रखना और उस स्थिति में भी इन क्षेत्रों में एक पसंदीदा और प्रतिस्पर्धी माहौल तैयार करना है.
अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति की मज़बूती उतनी ही है जितना अमेरिका का सुरक्षा गठबंधन और साझेदारी जिसे अमेरिका अपनी ‘सबसे बड़ी शक्ति’ बताता है. ऐसे में इस क्षेत्र के अपने सहयोगियों के अलावा साझेदारों के साथ पारस्परिकता अमेरिका के इंडो-पैसिफिक सुरक्षा दृष्टिकोण के केंद्र में बना हुआ है. ताइवान स्ट्रेट की सुरक्षा, कोरियाई प्रायद्वीप को पूरी तरह परमाणु मुक्त करना, ऑकस के ज़रिए नई बढ़त हासिल करना, भारत के साथ बड़ी रक्षा साझेदारी को आगे बढ़ाना, आसियान में निवेश, आतंकवाद का मुक़ाबला, जैविक ख़तरा और साइबर सुरक्षा इस क्षेत्र में अमेरिका के लिए ऐसे मुख्य सुरक्षा उद्देश्य बने हुए हैं जिनका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है. बड़ी रणनीति के स्तर पर बाइडेन प्रशासन की इंडो-पैसिफिक रणनीति ने अमेरिका के घरेलू उद्देश्यों को उसके अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ बिना किसी बाधा के मिलाने की कोशिश की है. चाहे जलवायु संकट हो या फिर स्वच्छ ऊर्जा की तकनीक में निवेश, ऊर्जा सुरक्षा, स्वास्थ्य और बहुपक्षीय संस्थानों के साथ काम करना हो- सभी उद्देश्यों के लिए एक संतुलित तालमेल की ज़रूरत पड़ती है.
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