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भारत का नया 'महासागर' दृष्टिकोण हिंद महासागर में रणनीतिक निरंतरता का संकेत देता है. इससे पहले भारत ने ‘सागर’ दृष्टिकोण की परिकल्पना की थी - महासागर इसके दायरे को बढ़ाकर इसमें व्यापार, विकास और सुरक्षा को भी शामिल करता है.
Image Source: Getty
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2025 में मॉरीशस के राष्ट्रीय दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में इस देश का दो दिवसीय राजकीय दौरा किया. समय के साथ मॉरीशस हिंद महासागर में भारत का एक अहम रणनीतिक साझेदार के रूप में उभरा है. वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने सागर (SAGAR - Security and Growth for All in the Region, या, क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) की परिकल्पना उजागर की थी. तब से ही हिंद महासागर के प्रति भारत का दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए ये दृष्टिकोण इसका रणनीतिक आधार बनाती रही है. वहीं साल 2024 में भारत और मॉरीशस ने मिलकर अगालेगा द्वीप पर हवाई पट्टी का नवीनीकरण किया था, जिसे पश्चिमी हिंद महासागर में भारतीय नेवी के लिए अहम रणनीतिक ठिकाना माना जाता है.
वहीं साल 2024 में भारत और मॉरीशस ने मिलकर अगालेगा द्वीप पर हवाई पट्टी का नवीनीकरण किया था, जिसे पश्चिमी हिंद महासागर में भारतीय नेवी के लिए अहम रणनीतिक ठिकाना माना जाता है.
जिस तरह से हिंद महासागर में समुद्री सुरक्षा को लेकर भारत और मॉरीशस के बीच आपसी तालमेल बढ़ता जा रहा है, प्रधानमंत्री मोदी के मार्च के दौरे को इस क्षेत्र में भारत के सहयोग को बढ़ाने का एक मौका के रूप में देखा गया.
जैसा की उम्मीद थी, इस दौरे पर उन्होंने एक नए विज़न की बात की जिसे ‘महासागर’ कहा गया (MAHASAGAR - Mutual and Holistic Advancement for Security and Growth Across Regions, या, क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास के लिए परस्पर और समग्र उन्नति). अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने विकास के लिए व्यापार, सतत विकास के लिए क्षमता निर्माण और साझा भविष्य के लिए आपसी सुरक्षा के प्रति सहयोग को बढ़ाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया. वैसे तो ‘महासागर’ भारत के पिछले ‘सागर’ दृष्टिकोण का एक उन्नत रूप नज़र आता है, लेकिन इसमें इस दृष्टि की निरंतरता भी ज़ाहिर होती है कि हिंद महासागर में क्षेत्र के साझा हितों के प्रति आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए भारत लगातार कोशिश करता रहेगा.
दूसरे शब्दों में कहे तो महासागर को सिर्फ सागर का एक अपडेट नहीं मानना चाहिए बल्कि इसे एक दीर्घकालिक रणनीतिक दृष्टिकोण की निरंतरता के रूप में देखा जाना चाहिए.हिंद महासागर में समुद्री सुरक्षा के मामले में एक अहम किरदार के तौर पर भारत के लिए ज़रूरी हो जाता है कि इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता बरकरार रहे. इसके अलावा भारत का इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा के प्रति दृष्टिकोण में सुरक्षा के पारंपरिक आयामों से बढ़कर तटीय राज्यों वाले देशों के विकास की चुनौतियों से निपटने के लिए सहयोग भी शामिल है. ये दृष्टिकोण विकासात्मक अनिवार्यताओं के पहलुओं को भी शामिल करता है और हिंद महासागर के तटीय राज्यों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों और मजबूरियों की जटिलता को सही ढंग से दर्शाता है. वैसे तो क्षेत्र में सहयोग की रणनीतियाँ बनाने में सुरक्षा वाकई एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, क्षेत्रीय स्तर पर सहयोगात्मक सोच भी उतनी ही अहम है.
भारत का इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा के प्रति दृष्टिकोण में सुरक्षा के पारंपरिक आयामों से बढ़कर तटीय राज्यों वाले देशों के विकास की चुनौतियों से निपटने के लिए सहयोग भी शामिल है.
आज के दौर में हिंद महासागर में कोई भी बड़ा और पारंपरिक नौ-सेना का सैन्य संघर्ष मौजूद नहीं है इसकी वजह से समुद्री सुरक्षा के एजेंडे का फ़ोकस गैर-पारंपरिक मुद्दों पर चला जाता है. खास तौर से जलवायु परिवर्तन से पैदा हुई प्राकृतिक आपदाओं में मानवीय सहायता और आपदा राहत के प्रयासों को लेकर एक साझा-सोच विकसित हुई है. इस नए एजेंडे में भारत की भूमिका अत्यंत अहम रही है.इसके अलावा भारतीय महासागर क्षेत्र में सुरक्षा के एक सहभागी के तौर पर भारत ने अपनी भूमिका को ‘प्रथम प्रतिक्रिया देने वाले’ देश के रूप में सामने रखा है, जो कि उसकी पहले की रणनीतिक दृष्टि—‘नेट सुरक्षा प्रदाता’ - से एक बड़े परिवर्तन को दिखाता है. इस बदलाव से नज़र आता है कि भारत इस क्षेत्र में अपनी भूमिका को किस तरह देखता है.भारतीय महासागर में प्रभाव क्षेत्र बनाने के लिए भारत और चीन के बीच प्रतिद्वंद भी नज़र आ रहा है. एक ओर जहां इस महासागर में भारत की भूमिका भौगोलिक रूप से केंद्रित है, वहीं, चीन इस क्षेत्र में अपना राजनीतिक प्रभाव बढ़ा रहा है, हालांकि इसका स्वरूप अभी लेन-देन पर ही आधारित है.
इसकी वजह से क्षेत्र में भारत और चीन के द्वारा अपनाई जा रही रणनीतियां और जुड़ाव के तरीकों में प्रतिस्पर्धा तेज हुई है. हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति उसके राजनीतिक प्रभाव की ओर इशारा करती है, भले ही वो लेन-देन पर आधारित हो. वहीं भारत ने क्षेत्र में स्वयं को एक हितैषी के रूप में प्रस्तुत किया है जो साझा चुनौतियों और एक साझे भविष्य की बात करता है.भारत एक ऐसे सुरक्षा के भागीदार के रूप में खुद को प्रस्तुत कर रहा है जो किसी स्थिति में पहली प्रक्रिया देने में काबिल है. ये ‘नेट सुरक्षा प्रदाता’ की उस छवि से हटकर है जिसमें दूसरे देश शायद उस पर किसी क्लाइंट की तरह आश्रित नज़र आते थे.
‘महासागर’ दृष्टिकोण की मदद से इलाके में सहयोग को बढ़ावा देने की भारत की भूमिका और ज्यादा मजबूत हो जाएगी. यह दो मोर्चों पर अहम भूमिका निभाने की भारत की बढ़ती आकांक्षा को भी दर्शाता है. पहला, यह हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा की संरचना को आकार देने की भारत की इच्छा शक्ति को दर्शाता है; और दूसरा, यह ग्लोबल साउथ के साथ साझा हितों वाले मुद्दों पर सहयोग बनाने की भारत की प्रतिबद्धता को भी ज़ाहिर करता है.
इस प्रकार, "महासागर" दृष्टिकोण भारत की समुद्री सुरक्षा पर सोच और ग्लोबल साउथ के प्रति उसके दृष्टिकोण — दोनों को एक धागे में पिरोता है. क्या महासागर का ये दृष्टिकोण हिंद महासागर में बहुआयामी मुद्दों पर विचार करने की भारत की रणनीतिक मंशा को मज़बूत बना रहा है, इस पर मंथन करना आवश्यक है. इस नए विज़न से तीन मुख्य लक्ष्य हासिल होते हैं. पहला, ये सहयोग के नए मुकाम, जैसे समुद्री व्यापार, की संभावनाओं को प्रबल करता है.
‘महासागर’ दृष्टिकोण की मदद से इलाके में सहयोग को बढ़ावा देने की भारत की भूमिका और ज्यादा मजबूत हो जाएगी. यह दो मोर्चों पर अहम भूमिका निभाने की भारत की बढ़ती आकांक्षा को भी दर्शाता है.
दूसरा, भारत जिन इलाकों में सहयोग दे रहा है उसके भौगोलिक दायरे में विस्तार दिखाई दे रहा है ताकि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत एक अहम भूमिका निभा सके. तीसरा, इससे समुद्री क्षेत्र में सहयोग की ज़रूरत को व्यापक ग्लोबल साउथ के साथ जोड़ने का एक प्रयास भी नज़र आ रहा है अगर भारत की समुद्री सुरक्षा सोच के साथ भारतीय महासागर क्षेत्र में उसकी रणनीतिक भागीदारी पर नज़र डाली जाए तो ‘महासागर’ को क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की भारत की कोशिशों में स्वाभाविक निरंतरता के रूप में देखा जा सकता है.जहां सागर की पहल ने समुद्री सुरक्षा के मामले में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक ढांचा प्रदान किया था, वहीं महासागर विस्तार की रणनीति की रचना करता है और एक ऐसी समग्र दृष्टि की तरफ़ ले जाता है जो साझा हितों के आधार पर संचालित है.
सायन्तन हलदर ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ कार्यक्रम में एक शोध सहायक हैं.
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Sayantan Haldar is a Research Assistant at ORF’s Strategic Studies Programme. At ORF, Sayantan’s research focuses on Maritime Studies. He is interested in questions of ...
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