भारतीय वायु सेना वर्तमान में बेहद गंभीर समस्या से जूझ रही है. यह समस्या है फाइटर स्कॉवड्रनों की कम होती ताक़त और कमज़ोर होता हेलीकॉप्टर बेड़ा. ज़ाहिर है कि भारतीय वायु सेना (IAF) की स्कॉवड्रन संख्या घटकर 32 हो गई है, जो कि ज़रूरी संख्या 42 से काफ़ी कम है. इतना ही नहीं वायुसेना का हेलीकॉप्टर बेड़ा भी हाल के दिनों भारी परेशानियों का सामना कर रहा है, इनमें तकनीक़ी दिक़्क़तें, दुर्घटनाएं एवं आपातकालीन लैंडिंग जैसी विभिन्न मुश्किलें शामिल हैं.
वायुसेना के बेड़े में मिग-21 और मिराज 2000 जैसे पुराने लड़ाकू विमान भी शामिल हैं और अब इन्हें धीरे-धीरे सेवामुक्त किया जा रहा है. मिग-21 लड़ाकू विमानों को वर्ष 2025 तक चरणबद्ध तरीके से सेवामुक्त किया जाना है.
परेशानी के इन हालात को वायु सेना के तमाम पुराने फाइटर स्कॉवड्रन ने और भी पेचीदा बना दिया है. उल्लेखनीय है कि वायुसेना के बेड़े में मिग-21 और मिराज 2000 जैसे पुराने लड़ाकू विमान भी शामिल हैं और अब इन्हें धीरे-धीरे सेवामुक्त किया जा रहा है. मिग-21 लड़ाकू विमानों को वर्ष 2025 तक चरणबद्ध तरीके से सेवामुक्त किया जाना है, जबकि जगुआर और मिराज 2000 लड़ाकू विमानों को इस दशक के आख़िर तक सेवा से हटाने की योजना है. जहां तक वायुसेना के हेलीकॉप्टर बेड़े की बात है, तो अत्याधुनिक हल्के हेलीकॉप्टर ध्रुव में डिजाइन एवं धातु संबंधी ख़ामियां सामने आई हैं, जबकि तीन दशक से ज़्यादा पुराने चीता और चेतक हेलिकॉप्टर के बेड़े का सेवाकाल समाप्त होने के क़रीब है.
दक्षिण एशिया क्षेत्र में सुरक्षा के वर्तमान वातावरण एवं भारत की संवेदनशील उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं के सुरक्षा हालातों को देखते हुए, देश के नीति निर्माताओं को वायु सेना की इन दिक़्क़तों को दूर करने के लिए दोगुनी गति से अपनी कोशिशों को आगे बढ़ाना चाहिए.
फाइटर स्कॉवड्रन को लेकर असमंजस की स्थिति
भारत में फाइटर स्कॉवड्रन को लेकर असमंजस की स्थिति कोई आज पैदा नहीं हुई है, बल्कि पिछले डेढ़ दशक से अधिक समय से आहिस्ता-आहिस्ता ये परेशानियां पैदा हो रही हैं. फाइटर स्कॉवड्रन को लेकर संकट का यह माहौल मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (MRCA) सौदे के दौरान उत्पन्न हुआ था. MRCA सौदे के प्रस्ताव का अनुरोध यानी योग्य कंपनियों से बोलियां मागंने की शुरुआत रक्षा मंत्रालय द्वारा वर्ष 2007 में की गई थी. इसको लेकर वर्षों तक चली जांच-परख, बातचीत और सोच-विचार के पश्चात MRCA का वर्ष 2018 में मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (MRFA) कार्यक्रम के रूप में दोबारा से नामकरण किया गया और नए तरीक़े से पेश किया गया. निसंदेह तौर पर इन दोनों कार्यक्रमों का उद्देश्य वायु सेना के फाइटर स्कॉवड्रन की शक्ति को बढ़ाना था, यानी उन्नत लड़ाकू विमानों को वायु सेना के बेड़े में जोड़ना था. यह निश्चित था कि जब भविष्य में पुराने लड़ाकू विमानों को चरणबद्ध तरीक़े से सेवामुक्त किया जाएगा, तो वायुसेना के बेड़े में फाइटर प्लेन की कमी होगी.
इस मामले में सरकार के अनिश्चित और दुविधापूर्ण रवैये ने MRFA या MRCA को मुकम्मल होने में रुकावट पैदा की है. ज़ाहिर है कि सरकार के इसी रवैये ने कहीं न कहीं देश के लड़ाकू विमान बेड़े में विमानों की कमी जैसे वर्तमान हालात पैदा किए हैं.
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों के दौरान ऐसी तमाम ख़बरें सामने आईं, जिनमें विदेश में बने लड़ाकू विमानों की ख़रीद के अलग-अलग सौदे होने की बात प्रमुखता से कही गई थी. लेकिन सच्चाई यह है कि भारत ने अभी तक इस माध्यम से कोई लड़ाकू विमान नहीं ख़रीदा है. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि इस मामले में सरकार के अनिश्चित और दुविधापूर्ण रवैये ने MRFA या MRCA को मुकम्मल होने में रुकावट पैदा की है. ज़ाहिर है कि सरकार के इसी रवैये ने कहीं न कहीं देश के लड़ाकू विमान बेड़े में विमानों की कमी जैसे वर्तमान हालात पैदा किए हैं.
ऐसे में जब मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (MRFA) कार्यक्रम में कोई प्रगति नहीं हुई है, तब सरकार की ओर से हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा निर्मित स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस पर भरोसा जताते हुए लड़ाकू विमान के बेड़े की क्षमता बढ़ाने का प्रयास किया गया है. सरकार ने वर्ष 2021 में 83 तेजस MK1A विमान का ऑर्डर दिया था और इन विमानों की आपूर्ति फरवरी 2024 से होनी है. इसके अतिरिक्त, 30 नवंबर 2023 को रक्षा अधिग्रहण परिषद (Defence Acquisition Council) ने 97 और MK1A तेजस की ख़रीद को स्वीकृति दे दी. जिस प्रकार से स्वदेशी तेजस की ख़रीद की जा रही है, उससे यह स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में तेजस लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना का सबसे प्रमुख फाइटर प्लेन बन जाएगा.
इन दोनों सौदौं के ज़रिए 180 तेजस लड़ाकू विमानों की आपूर्ति सुनिश्चित होने की उम्मीद है, ज़ाहिर है कि इससे आने वाले दिनों में भारतीय वायुसेना को अपने पुराने लड़ाकू विमानों के बेड़े को चरणबद्ध तरीक़े से हटाने में मदद मिलेगी, साथ ही घटती स्कॉवड्रन शक्ति को बढ़ाने में भी सहायता मिलेगी. इतना ही नहीं, वायुसेना के बेड़े में तेजस विमानों के शामिल करने का सरकार का निर्णय सैन्य उपकरणों के स्वदेशीकरण को भी प्रोत्साहित करने वाला है. अनुमान है कि नए तेजस लड़ाकू विमान और सुखोई-30 के शामिल होने से वर्ष 2040 तक भारतीय वायु सेना में फाइटर स्कॉवड्रन की संख्या 35 से 36 तक पहुंच जाएगी, ज़ाहिर है कि सुखोई-30 विमानों की ख़रीद के लिए भी हाल ही में ऑर्डर दिया गया है.
हालांकि, इन सारी गतिविधियों से यह तो स्पष्ट हो गया है कि सरकार के MRFA कार्यक्रम का भविष्य अधर में है. तमाम रिपोर्टों के मुताबिक़ तेजस सौदे के बावज़ूद, सरकार MRFA कार्यक्रम के माध्यम से भी लड़ाकू विमानों की ख़रीद पर विचार करेगी. दूसरे देशों में निर्मित लड़ाकू विमानों की ख़रीद के पीछे यह कारण हो सकता है कि वर्तमान समय में सरकार ज़ल्द से ज़ल्द फाइटर स्कॉवड्रन की कमी को पूरा करना चाहती है. क्योंकि जिस प्रकार से स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस के निर्माण और ख़रीद में काफ़ी समय लग रहा है, उसके चलते फाइटर विमान के बेड़ों में कमी आना लाज़िमी है.
भारतीय वायुसेना के फाइटर स्कॉवड्रन की ताक़त को लेकर वर्तमान में जिस प्रकार की घबराहट फैली हुई है, उसके पीछे कई सारी वजहें हैं. जैसे कि MRCA या MRFA सौदे को लेकर दुविधा से भरा नज़रिया, स्वदेशीकरण की दिशा में मज़बूती से क़दम उठाने में की गई देरी और लड़ाकू विमानों के निर्माण एवं ख़रीद प्रक्रिया की लंबी समय सीमा . हालांकि, अब ऐसा लग रहा है कि इन सभी समस्याओं का समाधान तलाशने की दिशा में तेज़ी से कोशिशें की जा रही हैं.
हेलीकॉप्टर से जुड़ी दिक़्क़तें और भविष्य
इसी प्रकार से अगर भारत के हेलीकॉप्टर बेड़े की बात करें, तो इसे दो प्रमुख समस्याओं का सामना करना पड़ता है. पहली हैं, तकनीक़ी समस्याएं और दूसरी, पुराने हेलीकॉप्टरों के कारण होने वाली परेशानियां. भारतीय सैन्य बलों में चीता और चेतक हेलिकॉप्टर का महत्वपूर्ण स्थान है और ऊंचाई वाले अभियानों के लिए यह दोनों हेलीकॉप्टर बेहद कारगर साबित हुए हैं. लेकिन अब इन हेलिकॉप्टरों का 3 दशक से ज़्यादा का सेवाकाल लगभग समाप्त होने की ओर है. ऐसे में इन हेलिकॉप्टरों को ज़ल्द से ज़ल्द बदले जाने की ज़रूरत है. उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर ध्रुव पर भारतीय सशस्त्र बलों की निर्भरता बहुत अधिक है, लेकिन हाल ही में सामने आए डिजाइन एवं धातु से जुड़े मुद्दे इस हेलीकॉप्टर के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन गए हैं. ख़ास तौर पर इस हेलीकॉप्टर में साइक्लिकल एवं कलेक्टिव पिच रॉड्स से जुड़ी समस्या पाई गई है, जो रोटर्स की ताक़त को नियंत्रित करने के लिए बहुत ज़रूरी है.
इस पूरे विश्लेषण से अब यह साफ है कि भारतीय वायु सेना फाइटर स्कॉवड्रन एवं हेलीकॉप्टर फ्लीट, दोनों की ही संख्या, शक्ति एवं प्रबंधन से जुड़ी तमाम दिक़्क़तों से जूझ रही है.
देखा जाए तो इन्हीं सब वजहों के चलते हाल ही में व्यापक स्तर पर भारत के हेलीकॉप्टर बेड़े में एक के बाद एक तमाम परेशानियां पैदा हुई हैं, साथ ही क्रैश लैंडिंग के मामले भी बढ़े हैं. सरकार 150 से अधिक लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (LCH) की आवश्यकता को पूरा करने के लिए तमाम अड़चनों को दूर करते हुए स्वदेश में निर्मित हेलिकॉप्टरों को ख़रीदने की ओर तेज़ी से अग्रसर है. हालांकि देश में निर्मित हेलीकॉप्टरों की आपूर्ति में लगने वाला लंबा समय फिर से एक बड़ी समस्या होगी, जिसका नीति निर्माताओं को समाधान तलाशना होगा.
इस पूरे विश्लेषण से अब यह साफ है कि भारतीय वायु सेना फाइटर स्कॉवड्रन एवं हेलीकॉप्टर फ्लीट, दोनों की ही संख्या, शक्ति एवं प्रबंधन से जुड़ी तमाम दिक़्क़तों से जूझ रही है. ज़ाहिर है कि दूसरे देशों से इनकी ख़रीद या फिर स्वदेश निर्मित फाइटर प्लेन और हेलीकॉप्टर की ख़रीद में आने वाली मुश्किलों के चलते समस्या का कोई त्वरित समाधान नहीं दिखाई दे रहा है. ऐसे में सैन्य योजनाकारों के लिए यह ज़रूरी हो जाता है कि वे जो भी उपलब्ध संसाधन हैं, उनका समझदारी और तर्कसंगत तरीक़े के साथ उपयोग करते हुए दोनों ही मोर्चों पर पैदा होने वाली परेशानियों का ठोस समाधान तलाश करें.
जिस प्रकार से लाइक कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस और लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर प्रचंड की ख़रीद के लिए नए आर्डर दिए गए हैं, वो यह साफ ज़ाहिर करते हैं कि भारतीय सैन्य प्रतिष्ठान ने दोनों ही बेड़ों में होने वाली कमी को पूरा करने के दीर्घकालिक समाधान के तौर पर स्वदेशी हेलिकॉप्टरों एवं लड़ाकू विमानों की संख्या दोगुनी कर दी है. स्वदेशी हेलीकॉप्टर्स एवं लड़ाकू विमानों को ख़रीदने का नज़रिया, देखा जाए तो बेहद दूरदर्शी एवं समझदारी भरा है, हालांकि इनकी आपूर्ति और उत्पादन में लगने वाला लंबा वक़्त ज़रूर एक समस्या है. ऐसी परिस्थितियों में, जबकि फाइटर स्कॉवड्रन की संख्या कम हो गई है, तब इस कमी को पूरा करने और इसमें तेज़ी लाने में निस्संदेह रूप से अधिक समय लगेगा. यह देरी बड़ी समस्या की वजह है, क्योंकि लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों की कमी से सुरक्षा और सैन्य प्रतिष्ठानों के लिए हालात बेहद विकट हो जाते हैं.
कुल मिलाकर यह कहना उचित होगा कि इस समस्या का समाधान आसान नहीं है, लेकिन यह भी ज़रूरी है कि लड़ाकू विमान और चॉपर की संख्या को लेकर भविष्य में कोई भी फैसला लेते वक़्त, उपरोक्त दोनों परिदृश्यों को अवश्य ध्यान में ज़रूर रखना चाहिए. ऐसा इसलिए है, क्योंकि लड़ाकू विमानों एवं हेलिकॉप्टरों की पर्याप्त संख्या न केवल भारत की वायु सेना के लिए, बल्कि पूरे क्षेत्र में शक्ति संतुलन और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है.
सुचेत वीर सिंह ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो हैं.
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