Author : Kajari Kamal

Expert Speak Raisina Debates
Published on May 05, 2025 Updated 0 Hours ago

पाकिस्तान की दुश्मनी और आंतरिक मिलीभगत का खुलासा करने वाला पहलगाम हमला भारत के लिए एक निर्णायक क्षण साबित हो सकता है. कौटिल्य का अर्थशास्त्र इस 'स्वाभाविक दुश्मन' के प्रति मज़बूती से जवाब को सही ठहराता है. 

चाणक्य की राजनीति से समझें भारत-पाक तनाव के संकेत

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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकवादी हमला, जिसमें कई पर्यटक मारे गए और गंभीर रूप से घायल हो गए, भारत के ‘स्वाभाविक दुश्मन’ के द्वारा उत्पन्न लगातार ख़तरे की सबसे ताज़ा याद के रूप में काम करता है. ये ख़तरा उस स्थानीय समर्थन से और बढ़ जाता है जो पाकिस्तान के द्वारा समर्थित आतंकवाद सीमा के पार से हासिल करने में सफल रहा है. पहलगाम के हमलावरों में छह में से दो कथित तौर पर स्थानीय कश्मीरी हैं. बाहरी और अंदरूनी- दोनों दुश्मनों से निपटने के लिए बारीक रणनीति और अनुमान की आवश्यकता है. शायद इसके लिए तार्किक और परिष्कृत दृष्टिकोण का पालन करने की आवश्यकता है जिसके बारे में शासन कला को लेकर कौटिल्य का प्राचीन भारतीय ग्रंथ अर्थशास्त्र बताता है. 

पाकिस्तान और कश्मीर में आतंकवाद की पुरानी समस्या का समाधान करने के लिए कौटिल्य कई सबक सिखा सकते हैं.

पाकिस्तान और कश्मीर में आतंकवाद की पुरानी समस्या का समाधान करने के लिए कौटिल्य कई सबक सिखा सकते हैं. अन्य बातों के अलावा राजधर्म के कर्तव्य, आन्वीक्षिकी (अच्छी खुफिया जानकारी और विश्लेषण के आधार पर निर्णय लेना), योगक्षेम (लोगों का कल्याण और सुरक्षा), दंडनीति (ताकत का उचित उपयोग), उपाय (राजनीति की चार पद्धतियों का इस्तेमाल) और सदगुणयास (विदेश नीति के छह उपाय) जैसे विषय समग्र रूप से समस्या को समझने में मदद कर सकते हैं. ये लेख विशेष रूप से दुश्मन की प्रकृति और उससे जुड़ी आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों पर चर्चा करेगा. 

स्वाभाविक दुश्मन और उपायों का प्रयोग

राजमंडल (अगल-बगल के देशों के दायरे या अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र) में अलग-अलग श्रेणियों के देशों के बीच वो पड़ोसी जो किसी ‘दुश्मन’ का स्वभाव प्रदर्शित करते हैं, सबसे महत्वपूर्ण हैं. भारत के लिए पाकिस्तान एक स्वाभाविक दुश्मन है क्योंकि उसका भूभाग उससे सटा हुआ है. कौटिल्य ने किसी दुश्मन की जो विशेषताएं बताई थीं, पाकिस्तान उससे पूरी तरह मेल खाता है. कौटिल्य ने कहा था, “राजशी वंश का नहीं होने वाला, लालची, छोटी सोच वाले मंत्रियों के परिषद के साथ, असंतुष्ट प्रजा के साथ, अन्यायी आचरण वाला, अपने कर्तव्यों का पालन न करने वाला, दुष्ट, ऊर्जा के बिना, भाग्य में विश्वास करने वाला, जो चाहे वो करने वाला, बिना आश्रय के, जिसका कोई अनुसरण नहीं करता हो, नपुंसक, हमेशा दूसरों को हानि पहुंचाने वाला- इस तरह के शत्रु का नाश करना आसान हो जाता है” (कौटिल्य अर्थशास्त्र, VI, 1, 13-14)

यकीनन भारत ने पाकिस्तान की चुनौती को उपाय के दृष्टिकोण- साम (सुलह), दाम (उपहार देना), दंड (ताकत का उपयोग) और भेद (फूट डालना)- के माध्यम से संबोधित किया है. भारत ने सभी तरीकों से उपायों का इस्तेमाल किया है- विशेष (एक बार में एक पद्धति); बारी-बारी से (साम-दाम के बाद दंड-भेद) और एक साथ सभी चारों का उपयोग. 

भारत की तरफ से सुलह (साम) की पहल का केवल अल्पकालीन और मामूली परिणाम ही निकला है, जिसके बाद लगभग हर बार पाकिस्तान ने विश्वास को तोड़ा है. पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने अपनी किताब ‘हाउ इंडिया सीज़ द वर्ल्ड: फ्रॉम कौटिल्या टू द ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी’ में जिस ‘संवाद-व्यवधान-संवाद’ के चक्र का उल्लेख किया है, वो पाकिस्तान के साथ किसी बड़े समझौते की बहुत कम संभावना की स्वीकारोक्ति है. पहलगाम हमले के जवाब में भारत ने सिंधु जल समझौते को ‘निलंबित’ किया है. ये दाम या उपहार देने का उपाय है. संभवत: भारत ने अलग-अलग ‘दबाव के बिंदुओं’ (भेद) का इस्तेमाल किया और जब दूसरे सभी तरीके इच्छा के अनुसार परिणाम लाने में विफल रहे तो ताकत (दंड) का भी सहारा लिया. 

भारत को सही मिश्रण का पता लगाने में संघर्ष करना पड़ा है और इसका आंशिक कारण पाकिस्तान का दृढ़ निश्चय और आचरण में तर्क का अभाव है.

भारत को सही मिश्रण का पता लगाने में संघर्ष करना पड़ा है और इसका आंशिक कारण पाकिस्तान का दृढ़ निश्चय और आचरण में तर्क का अभाव है. यूनिवर्सिटी ऑफ हेइडेलबर्ग के पूर्व फेलो डॉ. माइकल लीबिग भारत में उग्रवाद विरोधी संघर्ष के समाधान के अपने दिलचस्प विश्लेषण में कहते हैं कि आंतरिक संघर्ष के समाधान का एक ‘भारतीय तरीका’ है जिसमें सुधार और दमनकारी उपाय का मिला-जुला दृष्टिकोण शामिल है. हर ठोस परिस्थिति के लिए तरीकों का एक विशेष विन्यास अपनाया जाता है और इससे उत्पन्न होने वाली क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं के बीच एक द्वंद्वात्मक अंतर्संबंध मौजूद होता है. इसके परिणामस्वरूप जब चारों पद्धतियों के सापेक्ष भार में बदलाव होता है तो ये ‘चरण परिवर्तन’ को प्रभावित करता है. बार-बार चरण परिवर्तन के बाद एक निर्णायक बदलाव (टिपिंग प्वाइंट) तक पहुंचा जाता है. उस समय ‘गुणात्मक नीति परिवर्तन एक अपरिहार्य आवश्यकता बन जाता है क्योंकि देश की क्षमता में अस्वीकार्य हानि का एक स्पष्ट और सामने मौजूद ख़तरा है.” ये सैद्धांतिक ढांचा विदेश नीति के क्षेत्र में भी समान रूप से लागू होता है. पिछले दिनों पहलगाम हमले के बाद लगता है कि पाकिस्तान के साथ रिश्तों में एक ‘टिपिंग प्वाइंट’ आ गया है. कौटिल्य ने किसी स्वाभाविक, ज़िद्दी शत्रु के ख़िलाफ़ बल प्रयोग करने की सलाह दी थी, भले ही इसके लिए जान और माल का नुकसान क्यों न उठाना पड़े. 

भीतर का विश्वासघात 

कौटिल्य अर्थशास्त्र में सभी आंतरिक सुरक्षा समस्याओं पर चर्चा ‘बाहरी’ और ‘अंदरूनी’- दोनों क्षेत्रों में उकसाने वाले और जवाब देने वाले के बीच संबंधों के प्रारूप में की गई है और हर अनूठी स्थिति से निपटने के लिए सटीक उपाय सुझाए गए हैं. बिना जवाब के कोई उकसावा नहीं हो सकता. 

ये कहना भी महत्वपूर्ण है कि कौटिल्य के अनुसार किसी भी तरह की आंतरिक सुरक्षा अव्यवस्था गलत नीतिगत उपाय का परिणाम है. निर्धारित नियमों के विपरीत शांति समझौता और इसी तरह के उपायों का इस्तेमाल एक ख़राब नीति है जिससे ख़तरे बढ़ जाते हैं. 

जब प्रजा दरित्र हो जाती है तो वो लोभी बन जाती है; लोभी होने पर वो असंतुष्ट बन जाती है; असंतुष्ट होने पर या तो वो शत्रु के खेमे में चली जाती है या स्वयं शासक को मार देती है. इसलिए शासक को प्रजा में पतन, लोभ और असंतोष बढ़ने की अनुमति नहीं देनी चाहिए और अगर ये बढ़ जाए तो उसके विरुद्ध तुरंत जवाबी कदम उठाना चाहिए.” (कौटिल्य अर्थशास्त्र VII, 5, 27-28)

जम्मू-कश्मीर में समस्या दशकों पुरानी है और ज़मीनी परिस्थिति को ठीक करने के प्रयास ज़ोर-शोर से चल रहे हैं. हालांकि ये कहना सही होगा कि दोष (यानी देशद्रोह की ओर ले जाने वाली ज़मीनी परिस्थिति में मूलभूत दोष) को पूरी तरह ख़त्म करने में अभी काफी समय लगेगा. इस संदर्भ में दुष्य (देशद्रोही) और दुष्यति (देशद्रोह के लिए उकसाना) जारी रहेगा. लेकिन सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति में सुधार के साथ इसकी तीव्रता और व्यापकता कम हो जाएगी. 

कौटिल्य की रणनीति में अंदर के ख़तरों से निपटने के लिए अत्यंत बारीक सलाह दी गई है और आज के भारत के लिए इसमें महत्वपूर्ण सीख हो सकती है.

कौटिल्य की रणनीति में अंदर के ख़तरों से निपटने के लिए अत्यंत बारीक सलाह दी गई है और आज के भारत के लिए इसमें महत्वपूर्ण सीख हो सकती है. अर्थशास्त्र से लिया गया निम्नलिखित उदाहरण उपाय के प्रयोग में सही अनुमान के महत्व का प्रदर्शन करता है, 

पूरी तरह विद्रोह के ख़तरे के मामले में शासक को नागरिकों और अपने देश के लोगों के विरुद्ध अलग-अलग तरीकों (सुलह, उपहार और मतभेद) का प्रयोग करना चाहिए लेकिन बल का नहीं क्योंकि बल का प्रयोग बहुत अधिक लोगों के ख़िलाफ़ नहीं किया जा सकता. यदि इसका प्रयोग किया भी जाता है तो शायद ये अपना उद्देश्य पूरा नहीं करेगा और इसके कारण एक और आपदा आ सकती है. लेकिन विद्रोहियों के नेताओं को “गुप्त दंड” देने का काम शासक को करना चाहिए.”

घरेलू-अंतर्राष्ट्रीय आपसी संबंध

शत्रुता और विश्वासघात के दो छोरों के बीच ‘संबंध’ के लिए बहुआयामी प्रतिक्रिया की आवश्यकता है. पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कोई भी घातक कार्रवाई भारत के उद्देश्य के लिए तब तक कारगर नहीं होगी, जब तक कि उसके साथ विद्रोही नेताओं को खदेड़ने और कश्मीर में आतंकवाद को सीमा पार से मिल रहे समर्थन की बुनियाद को ख़त्म करने का प्रयास नहीं किया जाए. कौटिल्य ने स्पष्ट रूप से कहा है कि युद्ध शुरू करने से पहले अपने देश को व्यवस्थित कर लेना चाहिए. राजमंडल में राजनीतिक वैधता, घरेलू व्यवस्था और अपेक्षाकृत ताकत के बीच महत्वपूर्ण संबंध है. आख़िरकार, कौटिल्य अर्थशास्त्र के अंतिम राजनीतिक लक्ष्य (योगक्षेम) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा किसी देश के द्वारा अपनी मौजूदा सीमा के भीतर सुरक्षा सुनिश्चित करके उसका कल्याण करना है. 


कजरी कमल तक्षशिला इंस्टीट्यूशन में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. 

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