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जैसे-जैसे सीमा पर तनाव बढ़ रहा है वैसे वैसे शांति बनाए रखने की संभावना घटती जा रही है
भारत और पाकिस्तान की सेनाओं द्वारा 2003 में हुए युद्ध विराम के समझौते पर दोबारा मुहर लगाने के कुछ महीनों के भीतर ही जम्मू और कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर क़ायम हुई शांति बेहद नाज़ुक मोड़ पर है. हालांकि, सीमा पर रहने वाली आबादी ने फ़रवरी 2021 में हुए इस युद्ध विराम समझौते का खुलकर स्वागत किया था. लेकिन, दोनों ही पक्षों द्वारा धैर्य बनाए रखने और निगरानी के चलते ही सीमा पर तोपों की दहाड़ रुकी हुई है. पर सवाल ये है कि ये सब्र कितने दिनों तक क़ायम रहेगा?
इसी महीने श्रीनगर में भारतीय सेना की पंद्रहवीं कोर के जनरल ऑफ़िसर कमांडिंग ने बड़े आत्मविश्वास से कहा कि फ़रवरी 2021 में भारत और पाकिस्तान द्वारा नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम के समझौते पर फिर से मुहर लगाने के बाद से सरहद पर शांति है. 20 सितंबर 2021 को जनरल ने मीडिया को जानकारी दी कि, ‘युद्ध विराम के उल्लंघन के मामले बढ़े नहीं है. इस साल एक बार भी युद्ध विराम नहीं तोड़ा गया है. कम से कम कश्मीर घाटी में इसकी संख्या शून्य रही है.’ जनरल के कहने का मतलब बिल्कुल साफ़ था, ‘इस साल सीमा के उस पार से उकसाने वाली कोई कार्रवाई नहीं हुई है.’
जनरल का ये बयान आने के कुछ ही घंटों के भीतर नियंत्रण रेखा पर उरी के इलाक़े में गतिविधियां अचानक तेज़ हो गईं. सीमा के उस पार से घुसपैठ की कोशिश के चलते इंटरनेट और मोबाइल सेवाओं पर रोक लगा दी गई.
लेकिन, जनरल का ये बयान आने के कुछ ही घंटों के भीतर नियंत्रण रेखा पर उरी के इलाक़े में गतिविधियां अचानक तेज़ हो गईं. सीमा के उस पार से घुसपैठ की कोशिश के चलते इंटरनेट और मोबाइल सेवाओं पर रोक लगा दी गई. इसके बाद तीन से चार दिन तक चलाए गए तलाशी अभियान में चार घुसपैठिए मारे गए और उनके पास से 5 एके 47 राइफलें, आठ पिस्तल और 70 हैंड ग्रेनेड बरामद हुए. उरी सेक्टर में एक हफ़्ते में घुसपैठ की ये दूसरी कोशिश थी. नियंत्रण रेखा पार करके भारतीय सीमा में घुसे आतंकवादियों की तलाश में 19 सितंबर को एक तलाशी अभियान शुरू किया गया था.
सेना के उच्च अधिकारियों ने घुसपैठ की इन घटनाओं को पाकिस्तान के बदले हुए बर्ताव का सुबूत बताया. 23 सितंबर को जब जनरल पांडे मीडिया से बात कर रहे थे, तो ऐसा लगा कि उन्होंने अपने पहले के आकलन में संशोधन किया है. उन्होंने कहा कि ‘सीमा पर जिस तरह की गतिविधियां हो रही हैं वो पाकिस्तानी सेना के स्थानीय कमांडरों की जानकारी और उनके शामिल हुए बिना संभव नहीं हैं.’ उन्होंने आगे कहा कि, ‘इस समय कश्मीर में जो शांति और स्थिरता है, सैलानियों की आमद बढ़ी है और बड़ी संख्या में मंत्रियों ने भी कश्मीर का दौरा किया है….इससे सीमा के उस पार खलबली मची हुई है…पिस्तौल और ग्रेनेड जैसे छोटे हथियारों से लैस आतंकवादियों को भेजने के पीछे का मक़सद यही है कि आप हाइब्रिड आतंकवादियों को हथियारबंद कर रहे हो. हाइब्रिड आतंकवादी यानी वो युवा जो दिन में तो पढ़ाई करते हैं. लेकिन रात में उन्हें हमला करने की ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है.’
फरवरी में हुए युद्ध विराम समझौते के बाद, पहली बार 26 सितंबर को नियंत्रण रेखा पर टिटवाल सेक्टर में तोपें अचानक गरज उठीं. मीडिया की ख़बरों के मुताबिक़, इस सेक्टर में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच हल्की फुल्की गोलीबारी हुई. आरपीजी, 60 मिलीमीटर के मोर्टार गोले, पीका और भारी मशीनगनों से क़रीब 10 मिनट तक गोलीबारी होती रही, जिसके चलते सीमा पर पिछले सात महीनों से क़ायम शांति भंग हुई. गृह मंत्रालय के मुताबिक़ वर्ष 2010 से फ़रवरी 2021 तक भारत और पाकिस्तान के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी और युद्ध विराम तोड़ने की लगभग 14 हज़ार घटनाएं हुई थीं. इस साल युद्ध विराम उल्लंघन की घटनाओं में भारी कमी आई थी. पिछले वर्ष जहां युद्ध विराम के उल्लंघन की 4,645 घटनाएं हुई थीं. वहीं, इस साल इनकी संख्या 592 थी. इससे सीमा पर तैनात सैनिकों के साथ साथ सरहद के दोनों तरफ़ रहने वाले आम लोगों को भी काफ़ी राहत मिली थी.
जब फरवरी 2021 में भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर युद्ध विराम का समझौता हुआ था, तो देश में ही नहीं, बहुत से अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को ये लगा था कि ये दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने के लिए उठाए जाने वाले तमाम क़दमों में से पहला प्रयास है. ख़बरों में कहा गया कि दोनों देश अपने कूटनीतिक संबंधों को भी बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं और जल्द ही भारत और पाकिस्तान एक दूसरे के यहां दोबारा उच्चायुक्त भेजेंगे, पाकिस्तान में सार्क की बैठक होगी और दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते भी बहाल होंगे, जिससे दोनों देशों के संबंध कुछ सामान्य होंगे. लेकिन, घरेलू दबाव के चलते पाकिस्तान की सरकार और वहां की फौज ने इसके लिए कुछ शर्तें रख दीं. इनमें से मुख्य बात थी कि भारत, आपसी संबंध सुधारने के लिए 5 अगस्त 2019 को लिए गए कुछ फ़ैसले वापस ले. इससे भी ज़्यादा अहम बात तो ये थी कि पाकिस्तान की सरकार में भारत के साथ कारोबारी रिश्ते बहाल करने को लेकर आम सहमति का अभाव दिखा. भारत से कपास और चीनी आयात करने के प्रस्ताव को पाकिस्तान की कैबिनेट ने ख़ारिज कर दिया. इस पहल की मंज़ूरी वाणिज्य मंत्री के तौर पर ख़ुद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने दी थी. लेकिन कैबिनेट में विरोध के बाद ये फ़ैसला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.
दोनों ही देश फ़रवरी 2021 में हुए सीमा पर युद्ध विराम के समझौते से आगे बढ़ने में नाकाम रहे. जहां तक जम्मू-कश्मीर की बात है तो वहां भारत काफ़ी मज़बूत स्थिति में है. ऐसे में उसके लिए पाकिस्तान की मांग पूरी करने की कोई मजबूरी नहीं दिखती. समीकरणों में मज़बूत स्थिति को देखते हुए मोटे तौर पर हम ये कह सकते हैं कि भारत के पास पाकिस्तान को देने के लिए कोई रियायत है नहीं. इसी तरह, घरेलू दबाव और ख़ास तौर से आम जनता के दबाव के चलते पाकिस्तान को भी पर्दे के पीछे चल रही कूटनीति को जारी रखने में तब तक कोई फ़ायदा नहीं दिख रहा है, जब तक भारत से उसे कुछ रियायतें न मिल जाएं.
जब फरवरी 2021 में भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर युद्ध विराम का समझौता हुआ था, तो देश में ही नहीं, बहुत से अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को ये लगा था कि ये दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने के लिए उठाए जाने वाले तमाम क़दमों में से पहला प्रयास है.
हालांकि, सीमा पर शांति बहाली से दोनों ही मुल्कों को फ़ायदा हुआ. लेकिन, नियंत्रण रेखा पर हाल ही में हुई घटनाएं ये इशारा कर रही हैं कि युद्ध विराम से हुए लाभ की उपयोगिता अब ख़त्म होती जा रही है. भारत के लिए तो फ़ायदा ये था कि पश्चिमी सीमा पर तनाव कम करने से उसे पूरब में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ पैदा हुए संकट से निपटने पर ध्यान केंद्रित करने का मौक़ा मिला. इसी वजह से भारत ने पाकिस्तान से युद्ध विराम का समझौता किया. इसी तरह अफ़ग़ानिस्तान के बदलते हालात को देखते हुए नियंत्रण रेखा पर शांति, पाकिस्तान की फौज के लिए भी कारगर साबित हुई थी.
अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा स्थिति पाकिस्तान के लिए मुफ़ीद है और अमेरिकी सेना के वापस जाने के बाद काबुल में अराजकता की आशंकाएं लगभग ख़त्म हो चुकी हैं. इसका नतीजा ये हुआ है कि तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान की वजह से पैदा हुए ख़तरे को छोड़ दें, तो आज पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर दबाव कम हो चुका है. लेकिन, भारत की चिंताएं और ख़ास तौर से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ तनाव बरक़रार है. इससे भी बढ़कर बात ये है कि अफ़ग़ानिस्तान में बदले हुए हालात ने सुरक्षा के आयाम को और भी जटिल बना दिया है. इससे सीमा पार से आतंकवाद का ख़तरा भारत के लिए और बढ़ गया है.
भारत के लिए सीमा पर युद्ध विराम को नियंत्रण रेखा के उस पार से घुसपैठ, हथियारों और ड्रग्स की तस्करी की छूट देकर जारी नहीं रखा जा सकता है. ऐसे में सीमा पर गोलीबारी से घुसपैठ करने वालों को चेतावनी देने में मदद मिलती है. इसके अलावा वास्तविक सीमा पर घुसपैठ कराने वाली पाकिस्तानी फौज की चौकियों के लिए भी भारत की गोलीबारी से जोखिम बढ़ जाता है.
हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने संयुक्त राष्ट्र में जो भाषण दिया, उससे ये संकेत मिलता है कि वो पश्चिमी देशों को ये संदेश देना चाहते हैं कि पाकिस्तान को भारत के साथ द्विपक्षीय रिश्ते में बेहतरी की कोई उम्मीद नहीं दिखती है.
हालांकि, सितंबर 2021 में हुई घटनाओं ने दोबारा किए गए युद्ध विराम के समझौते को जारी रखने को टूट के कगार पर ला खड़ा किया है. सैद्धांतिक तौर पर कहें, तो अगर सीमा के उस पार से घुसपैठ की कोशिशें जारी रहती हैं, तो इससे भारतीय सेना का सब्र टूट सकता है. ऐसे में तय रणनीति के तहत भारत के सैनिक उन इलाक़ों में पाकिस्तान की चौकियों को निशाना बनाकर गोलीबारी करेंगे जहां पर घुसपैठ की कोशिश की जा रही हो.
हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने संयुक्त राष्ट्र में जो भाषण दिया, उससे ये संकेत मिलता है कि वो पश्चिमी देशों को ये संदेश देना चाहते हैं कि पाकिस्तान को भारत के साथ द्विपक्षीय रिश्ते में बेहतरी की कोई उम्मीद नहीं दिखती है. संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में इमरान ख़ान ने कहा था कि, ‘पिछली फरवरी में हमने नियंत्रण रेखा पर 2003 के युद्ध विराम समझौते पर दोबारा सहमति जताई थी. हमें उम्मीद थी कि इससे भारत अपनी रणनीति के बारे में नए सिरे से विचार करेगा. अफ़सोस की बात ये है कि बीजेपी सरकार ने कश्मीर पर ज़ुल्म के सिलसिले को और भी तेज़ कर दिया है और अपनी बर्बर हरकतों से माहौल को लगातार ख़राब कर रही है. अब ये ज़िम्मेदारी भारत की है कि वो पाकिस्तान के साथ किसी अर्थपूर्ण और नतीजे देने वाले संवाद के लिए उचित माहौल तैयार करे.’
सीमा पर घुसपैठ की हालिया कोशिशें और गोलीबारी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के बयानों में एक सिलसिला साफ़ तौर पर दिख रहा है. ऐसा लग रहा है कि नियंत्रण रेखा पर किसी भी वक़्त तोपें फिर से गरजना शुरू कर सकती हैं, और इससे स्थानीय जनता की उम्मीदें एक बार फिर चूर-चूर हो जाएंगी.
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Khalid Shah was an Associate Fellow at ORF. His research focuses on Kashmir conflict Pakistan and terrorism.
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