Published on Jul 29, 2023 Updated 0 Hours ago

भू-राजनीतिक और सुरक्षा हितों को देखते हुए, भारत म्यांमार की पूरी तरह से उपेक्षा या उसे अलग-थलग करने का जोखिम नहीं उठा सकता है.

म्यांमार: तख़्तापलट के बाद भारतीय विदेश सचिव की दो दिवसीय कूटनीतिक यात्रा
म्यांमार: तख़्तापलट के बाद भारतीय विदेश सचिव की दो दिवसीय कूटनीतिक यात्रा

भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने हाल ही में म्यांमार की दो दिवसीय यात्रा की, जो म्यांमार में फरवरी में हुए तख़्तापलट के बाद उनकी पहली यात्रा थी. भारत और म्यांमार दो देशों के बीच लगभग 1,700 किलोमीटर की साझा सीमा है और यही वजह है कि, “म्यांमार में शांति और स्थिरता” भारत के लिए महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से भारत के निकटवर्ती इलाक़ों यानी पूर्वोत्तर भारत के लिए. इस मौके पर भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में इस पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि “उस देश के किसी भी घटनाक्रम का भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों पर सीधा प्रभाव पड़ता है.”

श्रृंगला ने राज्य प्रशासनिक परिषद के अध्यक्ष जनरल मिन आंग हलिंग और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ-साथ नागरिक समाज और नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी, एनएलडी जैसे राजनीतिक दलों के साथ बैठकें कीं. 

श्रृंगला ने राज्य प्रशासनिक परिषद के अध्यक्ष जनरल मिन आंग हलिंग और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ-साथ नागरिक समाज और नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी, एनएलडी (National League for Democracy, NLD) जैसे राजनीतिक दलों के साथ बैठकें कीं. नई दिल्ली का दावा है कि इन बैठकों में, श्रृंगला ने “म्यांमार की जल्द से जल्द लोकतंत्र में वापसी” से संबंधित भारत की रुचि को दोहराया. साथ ही बंदियों और कैदियों की रिहाई; बातचीत के माध्यम से मुद्दों का समाधान; और सभी प्रकार की हिंसा को पूर्ण रूप से समाप्त करना.”

हालांकि, म्यांमार में स्थिरता भारत के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इस मामले में नई दिल्ली का रुख़ व्यापक रूप से आसियान द्वारा समर्थित ही है. अप्रैल 2021 में जकार्ता में आसियान नेताओं की बैठक में म्यांमार के संबंध में पांच बिंदुओं पर एक समझौता किया गया: हिंसा को समाप्त करना, सभी पक्षों के बीच एक रचनात्मक संवाद, वार्ता की सुविधा के लिए एक विशेष आसियान दूत का चयन, सहायता की स्वीकृति और इस दूत द्वारा म्यांमार की यात्रा. भारतीय विदेश मंत्रालय ने बैठक मेंसामने आए इन बिंदुओं के जवाब में कहा कि “म्यांमार पर आसियान इस पहल का वह स्वागत करता है, म्यांमार के साथ हमारे राजनयिक जुड़ाव का उद्देश्य इन प्रयासों को मज़बूत करना होगा.” साथ ही सितंबर के महीने में ऑस्ट्रेलिया, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका के नेताओं के साथ क्वाड बैठक में भी आसियान पहल का समर्थन किया गया और उसे लागू करने का आह्वान किया गया और कहा गया कि “आसियान की पांच सूत्री सहमति पर तत्काल कार्यान्वयन” किया जाए.

आईएलपी क्षेत्र में यात्रा करने वाले गैर-स्थानीय लोगों पर भारत सरकार के प्रतिबंध हैं; पड़ोसी भारतीय राज्यों जैसे नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में आईएलपी संबंधी प्रतिबंध हैं. ऐसे आईएलपी की मांग मणिपुर में भी समय-समय पर उठती रही है

नागालैंड, अरूणाचल में आतंकी गतिविधियां

इस बीच, भारत ने म्यांमार के लिए मानवीय सहायता और समर्थन जारी रखा है, जिसमें कोविड-19 की महामारी के खिलाफ़ लड़ाई भी शामिल है. अपनी यात्रा के दौरान, श्रृंगला ने म्यांमार रेड क्रॉस सोसाइटी को “मेड इन इंडिया” टीकों की 10 लाख खुराक़ें सौंपीं. भारत ने म्यांमार को 10,000 टन चावल और गेहूं देने की भी घोषणा भी की है.

इस बीच श्रृंगला ने उन मुद्दों को भी उठाया जो भारत की सुरक्षा से अधिकाधिक तौर पर सीधे संबंधित हैं. भारतीय राज्य मणिपुर के चुराचांदपुर ज़िले में हालिया आतंकवादी हमले के संबंध में म्यांमार की भूमिका महत्वपूर्ण है, जो हाल के दौर में सबसे गंभीर हमला रहा है. घात लगाकर किए गए इस हमले में असम राइफल्स (एआर) के एक कमांडिंग ऑफिसर, साथ ही उनकी पत्नी और छोटे बेटे सहित चार अन्य एआर कर्मियों की मौत हो गई. इसके अलावा इस इलाक़े में और भी समस्याएं सामने आई हैं. इनर लाइन परमिट, आईएलपी (Inner Line Permits, ILPs) की मांग को लेकर स्थानीय विरोध प्रदर्शनों में भीड़ द्वारा की गई हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई और एक दर्जन से अधिक घायल हो गए. आईएलपी क्षेत्र में यात्रा करने वाले गैर-स्थानीय लोगों पर भारत सरकार के प्रतिबंध हैं; पड़ोसी भारतीय राज्यों जैसे नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में आईएलपी संबंधी प्रतिबंध हैं. ऐसे आईएलपी की मांग मणिपुर में भी समय-समय पर उठती रही है. यह सभी गतिविधियां नई दिल्ली के लिए चिंता का विषय रही हैं. भारत और म्यांमार दोनों ने “यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई कि उनसे संबंधित क्षेत्रों को दूसरे के लिए शत्रुतापूर्ण गतिविधियों के लिए उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.”

सू ची इस वक्त चार साल कारावास की सज़ा काट रही हैं और एक और उन पर एक अन्य मुक़दमे की कार्रवाई की तैयारी की जा रही है जिस के तहत उन्हें और अधिक कठोर सज़ा दी जा सकती है. भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जिसे सू ची के साथ बैठक की अनुमति न दी गई हो – जापान और चीन के साथ-साथ आसियान और संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूतों को भी सू ची से मिलने की अनुमति से वंचित कर दिया गया था. 

भले ही श्रृंगला इस यात्रा से संतुष्ट हो कर लौटे और उन्होंने भारत की इच्छा सूची – जैसे कि लोकतंत्र में लौटने की म्यांमार की ज़रूरत को साफ़ तौर पर सामने रखा, लेकिन फिर भी यह स्पष्ट नहीं है कि जनरल मिन आंग हलिंग के अधीन सत्तारूढ़ शासन भारत के इस विचार से सहमत है और समान भावनाएं साझा करता है. उदाहरण के लिए, लोकतंत्र की वापसी को लेकर भारत की याचिका पर, म्यांमार के आधिकारिक मीडिया ने कथित तौर पर कहा कि दोनों नेताओं ने 2020 के सामान्य मतदान में धोखाधड़ी के कारण, संविधान (2008) के तहत क्षेत्रीय म्यांमार सशस्त्र बलों ‘तत्माडॉ’ द्वारा राज्य की ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करने की बात की. इसके अलावा मीडिया में उठाए गए मुद्दों में दोनों नेताओं के बीच चुनाव, देश में आतंकवादी समूहों की आतंकवादी गतिविधियों, आतंकवाद के खिलाफ़ प्रयास, शिक्षा व स्वास्थ्य कर्मचारियों के ख़िलाफ़ आतंकवादी गतिविधियों पर शासन तंत्र की प्रतिक्रिया और दोनों देशों के सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति व स्थिरता सुनिश्चित करने के प्रयास का ज़िक्र ही रहा.

 

म्यामांर को लेकर भारत का दोहरा ट्रैक

आंग सान सू ची की एनएलडी पार्टी ने साल 2020 के आम चुनाव जीतकर एक और कार्यकाल हासिल किया था, लेकिन सैन्य बलों ने इन चुनाव परिणामों को फर्जी बताते हुए कहा कि, “यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं था,” हालांकि इस आरोप की पुष्टि होनी बाक़ी है. इस बीच, सू ची से मिलने के भारतीय प्रतिनिधिमंडल के अनुरोध को म्यांमार के अधिकारियों ने ख़ारिज कर दिया. सू ची इस वक्त चार साल कारावास की सज़ा काट रही हैं और एक और उन पर एक अन्य मुक़दमे की कार्रवाई की तैयारी की जा रही है जिस के तहत उन्हें और अधिक कठोर सज़ा दी जा सकती है. भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जिसे सू ची के साथ बैठक की अनुमति न दी गई हो – जापान और चीन के साथ-साथ आसियान और संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूतों को भी सू ची से मिलने की अनुमति से वंचित कर दिया गया था. भारत के सामने अब विकल्प सीमित हैं, और बाकी अंतरराष्ट्रीय समुदाय की तुलना में भारत के लिए इस के परिणाम कुछ हद तक गंभीर हैं. म्यामांर में पिछले साल के सैन्य अधिग्रहण के बाद जहां एक ओर पश्चिमी देशों ने म्यांमार को अलग-थलग कर दिया है, वहीं नई दिल्ली खुद को अधिक विवश महसूस करती है. भारत के लिए म्यांमार एक ऐसा पड़ोसी देश है जिसके साथ एक लंबी सीमा साझा करता है. इसके अलावा, भारत इस बात से भी चिंतित है कि अगर म्यांमार को और अलग-थलग कर दिया गया तो चीन इस स्थिति का फायदा उठा सकता है. इस के चलते, नई दिल्ली को लगता है कि उसके पास म्यांमार को पूरी तरह से नकारने और अलग-थलग करने का विकल्प नहीं है, जैसा कि पश्चिम ने किया है.

एक प्रमुख भारतीय विदेश नीति संवाददाता, इंद्राणी बागची ने अपने हालिया कॉलम में उल्लेख किया है कि भारत एक “दोहरे- ट्रैक” वाला दृष्टिकोण अपना रहा है. उन्होंने लिखा कि भारत “लोकतंत्र की बहाली की दिशा में आगे बढ़ते हुए अपने पूर्वी पड़ोसी को बातचीत में शामिल करने के बीच एक बेहतर संतुलन बना कर चल रहा है.” उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों में, भारत ने प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ अपनी बात रखी है, भले ही वह म्यांमार के घटनाक्रम पर लगातार चिंता व्यक्त करता रहा हो. कुलमिलाकर भू-राजनीतिक और सुरक्षा हितों को देखते हुए, भारत म्यांमार की उपेक्षा या उसे अलग-थलग करने का जोखिम नहीं उठा सकता है. इन दबावों के कारण, भारत ने सावधानीपूर्वक सैन्य सत्ता के साथ कुछ संबंध बनाए रखा है और इस बात की पूरी संभावना है कि ऐसा करना जारी रहे.


यह टिप्पणी मूल रूप से द डिप्लोमैट में छपी थी.

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