Published on Nov 16, 2023 Updated 0 Hours ago

भूटान और चीन के बीच औपचारिक रिश्तों के इस नए गर्मजोशी भरे दौर के बाद, भारत और उसके हिमालयी पड़ोसियों के बीच नये सिरे से सीमाओं को निर्धारित करने की ज़रूरत है.

भारत-भूटान सामरिक संबंध: भारत के लिए उभरती नई चुनौतियां

अक्टूबर महीने में, टानडी दोरजी, चीन की यात्रा करने वाले भूटान के पहले विदेश मंत्री बन गए. डॉक्टर दोरजी की यात्रा ने दो वजहों से पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा: पहला, हाल में सफलतपूर्वक  संपन्न हुई 25वीं सीमा वार्ता के कारण, भूटान और चीन अपने दशकों पुराने लंबित सीमा विवाद के समाधान के काफी नज़दीक पहुंच गये हैं. इस यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने, विवादित सीमा रेखा से संबंधित, एक ‘सहयोग समझौते’ पर भी हस्ताक्षर किये, जिसमें एक संयुक्त तकनीक़ी टीम (जेटीटी) की ज़िम्मेदारियों और उसके कार्यप्रणाली के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है. इस जेटीटी तकनीक़ी टीम का उद्देश्य दोनों देशों के बीच की विवादित भूमि को रेखांकित कर, उसकी सीमा निर्धारित कर उसके बीच एक विभाजन रेखा तय करना है.  

इस यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने, विवादित सीमा रेखा से संबंधित, एक ‘सहयोग समझौते’ पर भी हस्ताक्षर किये, जिसमें एक संयुक्त तकनीक़ी टीम (जेटीटी) की ज़िम्मेदारियों और उसके कार्यप्रणाली के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है.

दूसरी बात, हालांकि विभिन्न अवसरों पर, दोनों देशों के बीच के कूटनीतिक संबंधों को लेकर चिंता ज़ाहिर करती हुई बातचीत होती रही है, लेकिन हाल ही संपन्न हुई यात्रा के बाद, दोनों देशों के बीच सामान्य होते संबंधों के लक्षण साफ़ तौर पर नज़र आने लगे हैं. आपसी संबंधों में आये इन सकारात्मक बदलावों के साथ, नई दिल्ली ने ये कहते हुए एक रणनीतिक चुप्पी साध रखी है कि, वो भूटान की स्थिति को भली भांति  समझता है और ऐसा मानता है कि, उसके और चीन के बीच सामान्य होते संबंधों का असर, उसके हित को कोई भी हानि नहीं पहुंचायेगा. परंतु, चीन के साथ भूटान के  सामान्य होते कूटनीतिक संबंधों की वजहों से, भारत को चुनौतियों की एक नई शृंखला का सामना करने को तैयार रहना पड़ेगा. 

भूटान के लिए भारत का रुख़

भूटान की चीन के साथ के संबंध लंबे अरसे इस बात पर निर्धारित होती आयी है कि वह दुनिया के सामने खुलकर अपनी चिंताओं को लेकर नहीं आना चाहता है. वह नहीं चाहता है कि वो दुनिया की बड़ी ताकतों के बीच के पॉवर पॉलिटिक्स या शक्ति संतुलन के खेल में उलझ कर रहा जाये. उसकी इस उदासीनता और चिंता की वजह कहीं न कहीं उस वक्त और गहरी हो गई जब 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा करने के बाद भूटान के आठ परिक्षेत्रों पर भी कब्ज़ा जमा लिया था. इसके परिणामस्वरूप, भूटान ने अपने नए पड़ोसी देश चीन के साथ अपने सभी प्रकार के कूटनीतिक संबंधों का विच्छेद कर लिया था. इतना ही नहीं भूटान ने पी-5 देशों के साथ भी कूटनीतिक संबंधों को लेकर दुविधा में रहा, और इस वजह से भारत के साथ उसके संबंध जोश और आशापूर्ण बने रहे. भूटान को भारत के प्रति उन्मुख होने अथवा भारत की ओर रुख़ करने के पीछे एक अन्य वजह यह रही कि, चीन के मन में भूटान को लेकर ये धारणा बनी हुई थी कि वो तिब्बत की पाँच उंगलियों में से एक है, जो एक महत्वपूर्ण वजह बना. ये तो 1984 में शुरू हुई द्विपक्षीय वार्ता के बाद ही संभव हो पाया है जब चीन ने इस विवादित क्षेत्र को स्पष्ट तौर पर दो भागों: उत्तर में, पसमलुंग और जकरलुंग घाटी; और पश्चिम में, द्रमान और शखटोये, सिनछुलुंगपा, और लंगमर पो घाटी, यक छु और चरिथांग घाटियों, और डोकलाम पठार में परिभाषित कर दिया. 

चीन के लिए, एशियाई ताक़त के तौर पर खुद को स्थापित करने के लिये, एक छोटे से, तराई में बसे हुए देश भूटान के साथ के तमाम कूटनीतिक संबंधों और मतभेदों का समाधान ज़रूरी है क्योंकि ऐसा करने से वह इस इलाके में भारत के साथ के समकक्ष अपनी आक्रामक स्थिति में भी सुधार ला पाएगा, जो उसके लिये काफी अहमियत रखता है. चीन ने, भूटान को समय-समय पर डराने और शांत करने की नीति को भी बदस्तुर जारी रखा है. इन लडाईयों ने ही भूटान को बातचीत की मेज़ पर बैठने को विवश किया है –  भूटान और चीन ने वर्ष 1988 में एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे, 1998 में समझौते को मूर्त रूप दिया और वर्ष 2016 तक कुल 24 बार वार्ता की. हालांकि, हाल के वर्षों में, इस समाधान को और भी गति प्रदान करने के उद्देश्य से, चीन अब सकतेंग क्षेत्र के पूर्वी सेक्टर में नए दावे कर रहा है, और सीमा पर बसे विवादित क्षेत्रों में अवैध बस्तियों को बसाने में जुटा हुआ है. इसलिए, ऐसे समय में जब भारत-चीन के रिश्ते लगातार बिगड़ते चले जा रहे हैं तब भूटान ने बीजिंग की सलामी – कटाई की नीति से खुद को बचाये रखने के लिये उसके साथ वार्ता करने के लिये तैयार हो गया है. 

बातचीत के सिलसिले में और तेज़ी लाने के लिये भूटान के भीतर की घरेलू अर्थव्यवस्था ने भी अतिरिक्त दबाव बनाने का काम किया है. अतीत की तरह, जब भूटान चीन की किसी भी तरह की कोशिशों को दरकिनार करने की हैसियत रखता था, वो अब वैसा नही कर सकता है. इसकी वजह ये है कि अब वो चीन को नई विश्व व्यवस्था में एक कभी विभाजित न होने वाला महत्वपूर्ण देश मानता है. जिसके परिणामस्वरूप, चीन द्वारा भूटान को किया जाने वाला निर्यात वर्ष 2022 के 2 बिलियन से बढ़कर 2022 में 15 बिलियन तक पहुंच चुका है. संरचनात्मक मुद्दों और अवसरों की कमी के कारण देश के युवा वहां से पलायन करने को मजबूर हो गये हैं, जिसके परिणामस्वरूप वहां व्यवस्थागत सुधार की ज़रूरत पर लगातार बात हो रही है. यही वो क्षेत्र है जहां, भूटान अपने देश के भीतर लाये जाने वाले सुधारों की आवश्यकता के लिये चीन को अपने एक अभिन्न साझेदार के रूप में देखता है. चीन से पूंजी और मशीनों के कल-पुर्ज़े, टिकाऊ वस्तु, और रोज़मर्रा के इस्तेमाल योग्य सामानों के निर्यात की गंभीरता इस बात की तस्दीक करती है कि, ये हिमालय की तलहटी में बसे इस छोटे से पर्वतीय देश भूटान का चीन के ऊपर निर्भरता किस कदर बढ़ चुकी है. जो इस बीत की ओर इशारा करती है कि भूटान जितना आगे बढ़ेगा उसे उतनी ज़्यादा चीन की ज़रूरत होगी. इस वजह से ही भूटान, चीन के साथ अपने मतभेदों को भुलाने और हाल के वर्षों में बीजिंग के साथ के अपने कूटनीतिक संबंधों को प्रगाढ़ करने की इच्छा का पुरज़ोर संकेत देता आ रहा है.   

चीन के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करके भूटान, भारत और चीन के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बनने वाला दक्षिण एशिया का सबसे नया और आखिरी देश बन जाएगा.

इन सभी गतिविधियों के बावजूद, नई दिल्ली ने भूटान की सुरक्षा और उसकी आर्थिक चुनौतियों को समझते हुए, और उसके प्रति अपने विश्वास और विशेष संबंधों के आधार पर, अब तक कोई सार्वजनिक वक्तव्य जारी नहीं किया है. अब तक, भारत और भूटान ने एक बहुआयामी संबंधों का आनंद उठाया है. भारत, भूटान द्वारा निर्यात किए जाने वाले कुल सामानों का 70 प्रतिशत सामान अपने देश में आयात करता है, और उनका व्यापार 2020 के 94 बिलियन से बढ़कर 2022 में 134 बिलियन तक हो चुका है. भूटान की पनबिजली परियोजना में भारत की ओर से दिए जाने वाला सहयोग और भूटान की पनबिजली परियोजना, इस सुनिश्चित जीत वाले द्विपक्षीय संबंधों का एक महत्वपूर्ण कारक है. ठीक उसी तरह से, भारत ने भूटान को उसके पंचवर्षीय योजना के तहत, लगभग 4,500 करोड़ रुपये के सहयोग राशि की पेशकश की है. दोनों देश सुरक्षा सहयोग के क्षेत्र में भी घनिष्ट सहयोगी हैं. भारतीय सैन्य ट्रेनिंग टीम द्वारा भूटान के सैनिकों को निरंतर प्रशिक्षित किया जाना जारी है, और 2007 के समझौते के अंतर्गत, दोनों देश एक दूसरे के हितों की रक्षा के प्रति वचनबद्ध है. इस कारण, ऐसी उम्मीद की जाती है कि भूटान द्वारा चीन के साथ की जा रही कोई भी वार्ता, भारत के हितों को किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं करेगी. 

निष्कर्ष

हालांकि, हो सकता है कि ये घनिष्ट संबंध, भूटान को भारतीय हितों का ध्यान रखने को विवश करेगी, परंतु इसके साथ ही नई चुनौतियों को सामने आने से रोकना मुश्किल होगा. इसमें पहला है, भारत का बीजिंग और थिंपू के हर चाल, चाहे सीमा निर्धारण से लेकर सीमा विवाद संबंधी विवाद का निपटारा ही क्यों न हो, उसकी हर प्रकार की गतिविधि पर नज़र रखना ज़रूरी होगा. डोकलाम जैसे अनसुलझे, संवेदनशील क्षेत्र और सकतेंग क्षेत्र को लेकर किये जा रहे नये दावों को लेकर, बीजिंग की यथास्थिति को बदलने की क्षमता और इरादों के संदर्भ में, भारत को हर हाल में सतर्क रहना पड़ेगा. दूसरा, चीन के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करके भूटान, भारत और चीन के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बनने वाला दक्षिण एशिया का सबसे नया और आखिरी देश बन जाएगा. और भूटान के साथ के कूटनीतिक संबंधों की स्थापना के साथ ही, चीन ने पहले से दोनों देशों के बीच नये आर्थिक, सांस्कृतिक और पीपल टू पीपल तक पहुँचने वाले सहयोग के बारे में संकेत दे दिया है. उसी तरह से, चीनी मीडिया सूत्रों ने पहले ही भूटान को उसके तीन वैश्विक प्रयासों के लिए बीजिंग की पहचान करने और उसको सहयोग प्रदान करने के प्रयासों की सराहना की है. इससे ये ज़ाहिर होता है कि इस उभरते नए संबंधों के बनते समीकरण, भारत और भूटान के बीच नए सिरे से संबंधों की व्याख्या की ज़रूरत पर आने वाले दिनों में ज़ोर देगा.   

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