Author : Mohammed Soliman

Published on Dec 10, 2022 Updated 0 Hours ago

वर्तमान समय की जियोपॉलिटिक्स ने भारत और मिस्र दोनों को एक ऐसा विशेष अवसर उपलब्ध कराया है, जिसमें वे अपने संबंधों को नई ऊंचाई प्रदान कर सकते हैं. 

भारत-मिस्र संबंध: क़ाहिरा और दिल्ली के संबंधों में नई जान फूंकने की कोशिश!

गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर हिस्सा लेने के लिए भारत ने इस बार मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी को आमंत्रित किया है. ज़ाहिर है कि दोनों देशों के राजनयिक, आर्थिक और सैन्य संबंध मज़बूत हो रहे हैं. दिल्ली में दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मुलाक़ात क़ाहिरा-दिल्ली के संबंधों को नए सिरे से मज़बूती देने और पारंपरिक द्विपक्षीय संबंधों से अलग हटकर कई दूसरे मसलों पर बेहतर सामंजस्य स्थापित करने का एक विशेष अवसर होगा. इसमें शामिल हैं: पश्चिम एशिया की एकजुटता (I2U2 या नए तंत्र के माध्यम से) और वैश्विक राजनीति में तीसरे ध्रुव का गठन.

बेहतरीन दौर में भारत-अब्राहम गठबंधन

मिडिल ईस्ट के इतिहास के मद्देनज़र सिसी-मोदी समिट एक ऐसे अभूतपूर्व समय में हो रही है, जब यह पूरा क्षेत्र ना सिर्फ़ दक्षिण एशिया के साथ मेल-मिलाप कर रहा है, बल्कि पश्चिम एशियाई सिस्टम का निर्माण करने के लिए एक साथ आ रहा है. इस एकजुटता की बड़ी वजह इज़राइल, भारत और सुन्नी अरब देशों के बीच पारस्परिक हितों का जुड़ाव है, जिसने इंडो-अब्राहमिक अलायंस के उभार का रास्ता तैयार किया है. इंडो-अब्राहमिक अलायंस I2U2से बाहर निकला है, जहां भारत, इज़राइल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने उन मुद्दों को हल करने के लिए एक चतुर्भुजीयफ्रेमवर्क का निर्माण किया है. देखा जाए तो यह फ्रेमवर्क सतही तौर पर आर्थिक विषयों पर ज़्यादा केंद्रित है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि उसमें सुरक्षा का मुद्दा भी अंतर्निहित है.I2U2 ने अब्राहम समझौते और नेगेव फोरम का समर्थन किया है, इसमें यह उल्लेख किया गया है कि इज़राइल और भारत मिलकर यूएई को बराक-8 एयर डिफेंस सिस्टम की आपूर्ति करेंगे, जिसे दोनों देशों ने संयुक्त रूप से बनाया है. इसका उद्देश्य अमीरात को इरानी क्रूज मिसाइलों, बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोन्स से सुरक्षित करना है.

मिडिल ईस्ट के इतिहास के मद्देनज़र सिसी-मोदी समिट एक ऐसे अभूतपूर्व समय में हो रही है, जब यह पूरा क्षेत्र ना सिर्फ़ दक्षिण एशिया के साथ मेल-मिलाप कर रहा है. 

इंडो-अब्राहमिक गठन के केंद्र में मिस्र

लाल सागर के पश्चिमी किनारे पर स्थित मिस्र की स्वेज नहर ने भू-मध्य सागर, लाल सागर और इंडो-पैसिफिक क्षेत्रों के बीच एक भू-राजनीतिक और आर्थिक जुड़ाव के केंद्र के रूप में अपनी भूमिका को मज़बूत किया है.रूढ़िवाद वाली यानी कभी ना बदलने वाली रणनीति के अपने पारंपरिक इतिहास के उलट क़ाहिरा ने अब्राहम एकॉर्ड का समर्थन करने से लेकर नेगेव फोरम का सदस्य बनने तक और क़ाहिरा स्थित पूर्वी भूमध्यगैस फोरम में इज़ारइल को शामिल करने से लेकर इज़राइल के साथ अपने पारंपरिकद्विपक्षीय संबंधों से परे जाकर, उसके साथ काम करने तक, पश्चिम एशिया में बनने वाले नए रणनीतिक माहौल को सचेत रहते हुए अपनाया है.मिस्र का यह नया रणनीतिक दांवपेंच ऐसे वक़्त में सामने आया है, जब क़ाहिरा “अपनी क्षेत्रीय [और वैश्विक] पहचान को बदलने के उपायों को तलाशरहा है. सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात का भले ही इस क्षेत्र पर अधिक दबदबा है और उन्हें दूसरों की तुलना में अधिक वित्तीय स्वतंत्रता भी हासिल है.लेकिन यहां मिस्र को कुछ दूसरे लाभ मिले हुए हैं, जैसे कि अफ्रीका और मध्य पूर्व दोनों में अपने क्षेत्रीय हितों के साथ-साथ एक अफ्रीकी-अरब राष्ट्र के रूप में इसकी दोहरी पहचान जैसा लाभ.

मिस्र और भारत के लिए अवसर

इज़रायल और यूएई के साथ भारत द्विपक्षीय रूप से अपनी रणनीतिक साझेदारी को बनाता है. इसके साथ ही भारतI2U2 जैसे लघुपक्षीय फॉर्मेट के माध्यम सेऔर फ्रांस-यूएई-भारत जैसे त्रिपक्षीय फॉर्मेट के ज़रिए भी संबंधों को विकसित करने में जुटाहुआ है. इतना ही नहीं सऊदी अरब के साथ भी भारत द्विपक्षीय संबंधों को स्थापित करने में तत्पर है.पश्चिम एशिया एवं अफ्रीका में मिस्र, भारत के चौथे मुख्य स्तंभ के रूप में उभरा है. मिस्र चार रणनीतिक स्थानों यानी भूमध्य सागर, लाल सागर, अफ्रीका और पश्चिम एशिया में एक सक्रिय भागीदार है, जो क़ाहिरा को दिल्ली के लिए एक अनमोल हिस्सेदार बनाता है. गैस भू-राजनीति में अपनी केंद्रीय और प्रमुख भूमिका की वजह से मिस्र एक भूमध्य ताक़त के रूप में तेज़ी से उभर रहा है. इसके साथ ही स्वेज़ नहर क़ाहिरा को लाल सागर की एक बड़ी शक्ति के रूप में स्थापित करती है और उसकी मज़बूत स्थित को प्रदर्शित करती है. “भूमध्य सागर से भारत-प्रशांत क्षेत्र तक ट्रांस-समुद्री क्षेत्र को प्रभावित करने वाली अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों को संबोधित करने” के लिए क़ाहिरा भूमध्य क्षेत्र में दिल्ली और पेरिस के साथ भागीदार हो सकता है. जहां तक अफ्रीका की बात है, तो अफ्रीका में सैन्य और आर्थिक मोर्चों पर अपनी आकांक्षाओं और अफ्रीका के प्रवेश द्वार के रूप में अपनी बेहतर भौगोलिक स्थिति के साथ मिस्र की एक उभरती ताक़त के रूप में मिलीजुली पहचान है.चारों क्षेत्रों में मिस्र की मज़बूत स्थित और बेहतर मौज़ूदगी, दिल्ली के लिए उसके साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ करने के लिए प्राथमिकता में रखता है. ज़ाहिर है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में “थर्ड पोल” बनाने की अपनी मुहिम को परवान चढ़ाने के लिए अधिक से अधिक भागीदारों और सहयोगियों को आकर्षित करने में संलग्न है.

पश्चिम एशिया एवं अफ्रीका में मिस्र, भारत के चौथे मुख्य स्तंभ के रूप में उभरा है. मिस्र चार रणनीतिक स्थानों यानी भूमध्य सागर, लाल सागर, अफ्रीका और पश्चिम एशिया में एक सक्रिय भागीदार है, जो क़ाहिरा को दिल्ली के लिए एक अनमोल हिस्सेदार बनाता है.

वैश्विक राजनीति में तीसरा ध्रुव

वैश्विक मंच पर थर्ड पोल यानी तीसरा ध्रुव बनाने की अपनी मंशा को लेकर भारत की सोच एकदम स्पष्ट है. यानी भारत महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा के इस युग में किसी एक पक्ष को चुनने को तैयार नहीं है. ज़ाहिर है कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण और ताइवान को लेकर बढ़ते तनाव के बाद महाशक्तियों की यह होड़ और तेज़ हो गई है.भारत द्वारा संचालित यह तीसरा ध्रुव रीजनल और मध्यम शक्तियों का गठबंधन हो सकता है, जो महाशक्तियों की होड़ और आर्थिक अनिश्चितता के इस युग में अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें सुरक्षित करना चाहते हैं. दिल्ली और क़ाहिरा के लिए इस तरह का वैश्विक वातावरण कोई नया नहीं है.1950 और 1960 के दशक में शीत युद्ध के दौरान भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर ने यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप टीटो के साथ मिलकरगुटनिरपेक्ष आंदोलन की अगुवाई की थी. आज के समय मेंक़ाहिरा और दिल्ली ठीक उसी प्रकार के शीत युद्ध के माहौल का सामना कर रहे हैं, जिसमें एक ओर वाशिंगटन और ब्रसेल्स हैं, जबकि दूसरी तरफ बीजिंग और मास्को हैं. ये बड़े देश इस समय महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता में फंसे हुए हैं और यह स्थित दुनिया के बाक़ी देशों के साथ उनके द्विपक्षीय संबंध स्थापित करने के लिए एक पैमाना बन गई है. ऐसे में शीत युद्ध के दौरान क़ाहिरा और दिल्ली के बीच बना सहयोग, आज इस नए शीत युद्ध के दौर में भी इस उभरते हुए तीसरे ध्रुव को मज़बूतीदेने की उनकी कोशिशों का आधार है.

गणतंत्र दिवस

प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ष 2014 में जब से अपना पदभार संभाला है, भारत ने गणतंत्र दिवस की परेड पर मुख्य अतिथ के तौर पर कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया है. भारत 2014 के बाद से अमेरिका (2015 में बराक ओबामा), फ्रांस (2016 में फ्रांस्वा ओलांद), संयुक्त अरब अमीरात (2017 में मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान), आसियान देशों के नेताओं (2018 में), दक्षिण अफ्रीका (2019 में सिरिल रामाफोसा) और ब्राज़ील (वर्ष 2020 में जायर बोल्सोनारो) के राष्ट्राध्यक्षों को गणतंत्र दिवस समारोह के लिए आमंत्रित कर चुका है.गणतंत्र दिवस का राजनीतिक और कूटनीतिक महत्त्व मिस्र के राष्ट्रपति सिसी के निमंत्रण को दोनों देशों के लिए द्विपक्षीय संबंधों के एक नए युग की शुरुआत करने का बेहतरीन मौक़ा उपलब्ध कराने वाला है. हाल ही में दो भारतीय मंत्रियों द्वारा क़ाहिरा की उच्च स्तरीय यात्राएं की गई थीं, ऐसे में क़ाहिरा और दिल्ली कोइन यात्राओं से निर्मित सकारात्मक माहौल को और आगे बढ़ाना  का प्रयास करना चाहिए.रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सितंबर में सैन्य और सुरक्षा संबंधों पर चर्चा करने के लिए मिस्र का दौरा किया था.राजनाथ सिंह की क़ाहिरा यात्रा के बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर की मिस्र की पहली यात्रा हुई, जहां उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों, व्यापार, जलवायु परिवर्तन और साझा हितों से जुड़े तमाम दूसरे मुद्दों पर चर्चा की.

मिस्र और भारत को राष्ट्रपति सिसी की दिल्ली यात्रा के दौरान भारत द्वारा क़ाहिरा को 70 तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट की प्रस्तावित बिक्री को अंतिम रूप देना चाहिए. इस सौदे के तहत हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) मिस्र में उत्पादन और मैन्युफैक्चरिंग सुविधाएं भी स्थापित करेगा. दूसरा, दोनों नेताओं को एक वार्षिक 3+3 फॉर्मेट स्थापित करना चाहिए, जिसमें चीफ इंटेलिजेंस ऑफिसर, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री शामिल हों, जो पश्चिम एशिया एवं यूक्रेन युद्ध में समुद्री सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और सिक्योरिटी आर्किटेक्चर से संबंधित मुद्दों पर दोनों देशों की स्थिति का समन्वय करें. तीसरा, मिस्र और भारत को मिलकरफ्रांस-मिस्र-भारत त्रिपक्षीय प्रारूप की संभावना तलाशने पर भी काम करना चाहिए. ऐसा इसलिए, क्योंकि “फ्रांस, मिस्र और भारत को एक साथ लाने वाला एक यह विशिष्टगठबंधनभूमध्यसागर से इंडो-पैसिफिक तक ट्रांस-समुद्री क्षेत्र पर असर डालने वाली तमाम अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक बेहतर एवं प्रेरक क़दम होगा.” फ्रांस, मिस्र और भारत कायह प्रस्तावित त्रिपक्षीय फॉर्मेट “इज़राइल-भारत-संयुक्त अरब अमीरात-संयुक्त राज्य अमेरिका और क्वॉड जैसे अन्य विशेष मुद्दों पर आधारित अंतर-क्षेत्रीय समूहों के साथ बेहतर समन्वय स्थापित करके वैश्विक स्तर पर ज़्यादा से ज़्यादा मेलजोल बढ़ाने की काबीलियत रखने वाले फॉर्मेट में विकसित हो सकता है.”

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