क्या वर्ष 2022 बनेगा भारत और नेपाल के रिश्तों का नया साल: बिम्सटेक से आ पाएगी रिश्तों में गर्मजोशी?
भारत और नेपाल के द्विपक्षीय रिश्तों के लिहाज़ से 2022 की शुरुआत एक दोस्ताना फ़ोन कॉल के ज़रिए हुई. 6 जनवरी को नेपाल के विदेश मंत्री नारायण खड़का ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ फ़ोन पर बातचीत की. इसे दोनों देशों के बीच सहयोग की संभावनाओं में नई जान फूंकने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. ज़ाहिर है कि दोनों ही देश पहले से चली आ रही और नई परियोजनाओं के ज़रिए अपने द्विपक्षीय रिश्तों के बेहतर आयाम की तलाश कर रहे हैं. पिछले कुछ अर्से से (ख़ासतौर से 2019 के बाद से) दोनों ही देशों के रिश्तों पर बर्फ़ सी जम गई थी. रिश्तों में ठंडक लाने के पीछे सीमा को लेकर जारी विवादों के अलावा भारत से कोविड-19 के टीकों की आपूर्ति में हुई देरी तक के मुद्दे शामिल रहे. सबसे अहम बात ये है कि 2021 में नेपाल की घरेलू राजनीति में भारी अस्थिरता और उथल-पुथल का दौर रहा. आगे चलकर शेर बहादुर देउबा की अगुवाई में नई सरकार का गठन हुआ. अब ये देखना होगा कि आने वाले वक़्त में दोनों देशों की सरकारों के बीच के रिश्ते किस तरह से पटरी पर आते हैं. ग़ौरतलब है कि देउबा और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले भी साथ काम कर चुके हैं. बहरहाल दोनों पड़ोसी देशों के बीच के समीकरण और हालात बिल्कुल बदल चुके हैं. अब दोनों के सामने नई-नई चुनौतियां खड़ी हैं.
देउबा और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले भी साथ काम कर चुके हैं. बहरहाल दोनों पड़ोसी देशों के बीच के समीकरण और हालात बिल्कुल बदल चुके हैं. अब दोनों के सामने नई-नई चुनौतियां खड़ी हैं.
क्या बिम्सटेक रिश्तों की डोर बन सकता है?
नेपाल ने बंगाल की खाड़ी में बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (बिम्सटेक) जैसे बहुपक्षीय मंच द्वारा मुहैया कराए जा रहे अवसरों का लाभ उठाना शुरू कर दिया है. अभी हाल ही में बिम्सटेक के महासचिव तेंज़िन लेक्फेल ने दूसरे आला अधिकारियों के साथ-साथ नेपाली विदेश मंत्री से मुलाक़ात की थी. उन्होंने बिम्सटेक में नेपाल के योगदान को रेखांकित करते हुए मार्च में होने वाले पांचवें शिखर सम्मेलन को लेकर चर्चा की. साथ ही भविष्य में मिलकर काम करने के अवसरों पर भी बातचीत हुई.
बिम्सटेक के भीतर नेपाल मुख्य रूप से जनता के स्तर पर संपर्कों की अगुवाई करता है. इनमें संस्कृति, पर्यटन और लोगों के बीच के जु़ड़ावों से जुड़े मंचों वाले उप-समूह शामिल हैं. बिम्सटेक का पहला मंत्रिस्तरीय सम्मेलन 2004 में बैंकॉक में हुआ था. उस सम्मेलन में क्षेत्रीय एकीकरण की स्थापना के लक्ष्य में ज़मीनी स्तर पर लोगों का जुड़ाव एक अहम स्तंभ बनकर उभरा था. तबसे ये क़वायद बिम्सटेक का अखंड हिस्सा बन गई है. उस वक़्त से ही नेपाल तमाम उप-समूहों में ख़ासा सक्रिय रहा है. नेपाल ख़ुद को पर्यटन के केंद्र के तौर पर स्थापित करना चाहता है. लिहाज़ा पर्यटन से जुड़े उपसमूह में वो ख़ास तौर से सक्रिय रहा है. माउंट एवरेस्ट की मौजूदगी के चलते एक पर्यटन केंद्र के तौर पर नेपाल पहले से ही जाना जाता रहा है. इस वजह से वो पर्वतारोहियों और ट्रेकर्स को आकर्षित करता रहा है. इसके अलावा वहां बौद्ध टूरिस्ट सर्किट, इको टूरिज़्म और मेडिकल टूरिज़्म भी फल फूल रहा है. पर्यटन के इन तमाम आकर्षणों के योगदान के चलते पिछले कुछ वर्षों से नेपाल को अपनी जीडीपी को बढ़ाने (2019 में 7.9 प्रतिशत) में भी मदद मिली है. इस संदर्भ में नेपाली सरकार ने “विज़िट नेपाल ईयर 2020” अभियान काफ़ी धूमधाम से मनाया. इसका मकसद पर्यटन से जुड़े बुनियादी ढांचे की मज़बूती और बेहतर कनेक्टिविटी के लिए घरेलू हवाई अड्डों को और आधुनिक बनाना था. इसके अलावा बिम्सटेक के भीतर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भी नेपाल तमाम सदस्य देशों के बीच आवागमन की बेहतर सुविधाएं विकसित करने की पहल करता रहा है. इस सिलसिले में “बिम्सटेक क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने और विकास के लिए कार्ययोजना” को आगे बढ़ाया गया है. ये क़वायद दोनों पक्षों के लिए फ़ायदेमंद साबित हो सकती है.
बिम्सटेक के भीतर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भी नेपाल तमाम सदस्य देशों के बीच आवागमन की बेहतर सुविधाएं विकसित करने की पहल करता रहा है. इस सिलसिले में “बिम्सटेक क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने और विकास के लिए कार्ययोजना” को आगे बढ़ाया गया है.
पर्यटन पर ज़ोर दिए जाने के चलते आसानी से वीज़ा जारी किए जाने की प्रक्रिया में भी तेज़ी लाने की कोशिशें हुई हैं. इसके लिए बिम्सटेक बिज़नेस कार्ड/वीज़ा का प्रावधान सामने आया है. बिम्सटेक के तीसरे सम्मेलन में इस पहलू पर ख़ासा ज़ोर दिया गया था. उसके बाद बिम्सटेक बिज़नेस वीज़ा स्कीम और बिम्सटेक वीज़ा छूट योजना के ज़रिए लोगों से लोगों के जुड़ाव को बढ़ावा दिया गया. ऐसी योजनाएं प्रमुख रूप से संसद सदस्यों, शिक्षा जगत से जुड़े लोगों, युवाओं, उद्यमियों, शोध संस्थानों, सांस्कृतिक संगठनों और मीडिया संस्थाओं के लिए मंच तैयार करने के मकसद से शुरू की गई थी. बिम्सटेक के इलाक़े में इन तमाम क्षेत्रों में एक-दूसरे के साथ क़रीबी जुड़ाव लाने और साझा परियोजनाएं शुरू करने के मकसद से ये पहल की गई थी. बिम्सटेक का दूसरा सम्मेलन 2008 में दिल्ली में आयोजित किया गया था. उस सम्मेलन में बिम्सटेक नेटवर्क ऑफ़ पॉलिसी थिंक टैंक्स (BNPTT) की स्थापना की गई थी. ये संस्था बिम्सटेक देशों में नज़दीकी लाने में ख़ासतौर से कारगर साबित हुई. इसके दायरे में बिम्सटेक देशों के संसद सदस्यों और पीठासीन अधिकारियों का संगठन भी खड़ा किया गया. इससे सभी बिम्सटेक देशों की संसद के प्रतिनिधियों के बीच क़रीबी लाई जा सकी. साथ ही स्वस्थ परिचर्चाओं, संवादों, प्रक्रियाओं और तौर-तरीक़ों और मुनासिब प्रतिनिधित्व को प्रोत्साहित किया जा सका है. ग़ौरतलब है कि ये तमाम योजनाएं और कार्यक्रम नेपाल के झंडे तले आते हैं. नेपाल बिम्सटेक के ज़िम्मेदार सदस्य की भूमिका निभाने का हर संभव प्रयास कर रहा है. काठमांडू में हुए बिम्सटेक के पिछले शिखर सम्मेलन से ये बात साफ़ ज़ाहिर भी हुई है. उस सम्मेलन में 18 सूत्रीय काठमांडू घोषणापत्र को अंजाम तक पहुंचाया गया था. इसके तहत बहुआयामी संपर्क, आतंक के ख़िलाफ़ जंग, ग़रीबी उन्मूलन, कारोबार और निवेश में बढ़ोतरी और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर बहुमुखी विकास को लक्ष्य बनाया गया था.
रिश्तों में उथल-पुथल
दिलचस्प बात ये है कि इस मंच पर भारत और नेपाल कंधे से कंधा मिलाकर काम करते रहे हैं. ग़ौरतलब है कि 2015 में भारत-नेपाल के बीच नाकेबंदी (blockade) के बाद से ही नेपाल की भावनाएं नकारात्मक हो गई थीं. पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच के रिश्तों में उथलपुथल के बावजूद बिम्सटेक में दोनों साथ बने रहे. हालांकि, बिम्सटेक के भीतर दोनों देशों के बीच का संवाद उतार-चढ़ावों से भरा रहा है. इसी कड़ी में 2018 एक बड़ी असहमति दिखाई दी थी. तब नेपाल की सरकार ने बिम्सटेक देशों के पहले साझा सैनिक अभ्यास में नेपाली सेना की हिस्सेदारी से साफ़ मना कर दिया था. दरअसल नेपाली सेना के प्रमुख पूर्ण चंद्र थापा को पुणे में 6 दिवसीय आतंकवाद विरोधी अभ्यास के समापन समारोह में हिस्सा लेना था. हालांकि, नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के सख़्त निर्देशों के चलते नेपाल की ओर से किसी भी तरह की हिस्सेदारी को रद्द कर दिया गया. ठीक उसी वक़्त नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल उर्फ़ प्रचंड प्रधानमंत्री मोदी से मुलाक़ात के लिए भारत में मौजूद थे. इस अभ्यास का आयोजन मुख्य रूप से भारतीय सेना की ओर से किया गया था. उस वक़्त दलीलें दी जा रही थीं कि बिम्सटेक के साझा अभ्यास के बहाने ऐसे आयोजन के पीछे भारत का निहित स्वार्थ छिपा है. कुछ अन्य आलोचकों का मानना था कि ये आयोजन भारत की ओर से बिम्सटेक को दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) की जगह बढ़ावा देने की क़वायद थी. दरअसल, भारत-पाकिस्तान के बीच की रस्साकशी की वजह से सार्क निष्क्रिय पड़ा हुआ है. आलोचकों का विचार था कि इन प्रयासों का इस इलाक़े और नेपाल जैसी छोटी ताक़तों पर प्रभाव पड़ना तय है. दरअसल, नेपाल की चीन के साथ क़रीबी है. चीन के भारत के साथ रिश्ते कुछ ख़ास अच्छे नहीं हैं. ऐसे में हो सकता है कि नेपाल ने ऐसे सामरिक अभ्यास के नतीजों को भांप लिया हो और वो भारत के साथ सैनिक स्तर पर किसी तरह के जुड़ाव का प्रदर्शन न करना चाहता हो.
नेपाल बिम्सटेक के ज़िम्मेदार सदस्य की भूमिका निभाने का हर संभव प्रयास कर रहा है. काठमांडू में हुए बिम्सटेक के पिछले शिखर सम्मेलन से ये बात साफ़ ज़ाहिर भी हुई है.
बहरहाल नेपाल को बंगाल की खाड़ी की भूराजनीतिक अहमियत और भारत के समर्थन से हासिल होने वाले फ़ायदे समझने होंगे. मिसाल के तौर पर बिम्सटेक ऊर्जा केंद्र (22 जनवरी 2011 को स्थापित) के ज़रिए भारत पनबिजली उत्पादन की क्षमताओं को साकार करने के लिए नेपाल को बड़े पैमाने पर निवेश और लंबी अवधि की सहायता मुहैया करा सकता है. इसके साथ ही सीमा के आर-पार नदियों में बड़े मोटर-चालित जहाज़ों के ज़रिए आवागमन की संभावनाएं भी तलाशी जा सकती हैं. गंडकी (चितवन नेशनल पार्क के पास) से गंगा के किनारे पटना तक और बिराटनगर के पश्चिम से भारत की ओर बांधों के दक्षिण में कोसी नदी के बहाव के साथ-साथ नदी में आवागमन के अवसर तलाशे जा सकते हैं. हालांकि, मोटरयुक्त यातायात के लिहाज़ से नेपाल की इन तमाम नदियों को ‘नामुनासिब’ करार दिया गया था, लेकिन 2018 में नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री ओली ने भारतीय प्रधानमंत्री के साथ मिलकर इन नदियों के सर्वेक्षण की प्रक्रिया शुरू करवाई थी. जहाज़ों की गोदियों (docks) और बंदरगाहों को तैयार करने, नदियों पर कस्टम केंद्र बनाने, इमिग्रेशन दफ़्तर खोलने और क्वारंटीन से जुड़ी सुविधाएं खड़ी करने की संभावनओं को देखते हुए ये क़वायद शुरू की गई थी. बहरहाल इस मोर्चे पर कुछ ख़ास तरक़्क़ी नहीं हो पाई है. इससे बिम्सटेक के दायरे में दोनों देशों के लिए शोध और विकास के नए दरवाज़े खुलते हैं. भविष्य में सुखद परिणाम हासिल करने के लिए द्विपक्षीय वार्ताओं को आगे बढ़ाने में दोनों ही देश इसी तरह से बहुपक्षीय मंच का इस्तेमाल कर सकते हैं.
द्विपक्षीय रिश्तों के लिहाज़ से 2022 उम्मीदों भरा साल लग रहा है, लेकिन मतभेदों की कड़वी यादों को मिटाने के लिए अभी और प्रयास करने होंगे. इसके लिए उन क्षेत्रों पर ज़ोर देना होगा जिनमें आगे बढ़ना आसान हो.
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