Author : Gurjit Singh

Published on Jul 12, 2021 Updated 0 Hours ago

अफ्रीका के साथ भागीदारी के पहलुओं को फिर से तैयार करने के पर्याप्त कारणों में अफ्रीका के विकास में योगदान देने वाले एक समान विचार के देशों के बीच त्रिपक्षीय सहयोग और चीन से जो स्थान खोया है उसे हासिल करना शामिल है.

अफ्रीका के संपूर्ण विकास के लिए भारत और फ्रांस ने सहयोग की संभावना का विस्तार किया

भारत और फ्रांस- दोनों देशों की अफ्रीका में अच्छी भागीदारी है. जहां फ्रांस ने उपनिवेशवाद के बाद के अपने संबंधों को बरकरार रखा है, वहीं भारत ने सहयोग के एक अच्छी तरह से सम्मानित मॉडल के ज़रिए अफ्रीका में भागीदारी बनाई है. महामारी की वजह से कर्ज़ और आर्थिक संकट के मुद्दे ज़्यादा असर के साथ सामने आए हैं. 

अफ्रीका के साथ भागीदारी के पहलुओं को फिर से तैयार करने के पर्याप्त कारण हैं. इनमें अफ्रीका के विकास में योगदान देने वाले एक समान विचार के देशों के बीच त्रिपक्षीय सहयोग और चीन से जो स्थान खोया है संभवत: वो हासिल करना शामिल है. त्रिपक्षीय सहयोग के विचार को वर्तमान में व्यापक स्वीकार्यता हासिल है, लेकिन इसके किर्यान्वयन के लिए विशेष द्विपक्षीय समझौतों और विकास एजेंसी, कंपनी को शामिल करना और दोनों तरफ़ फंड की ज़रूरत है. इस विश्लेषण में कुछ विचारों के बारे में बताया गया है जो संभवत: अफ्रीका के विकास के लिए भारत-फ्रांस की मज़बूत साझेदारी के विकास में योगदान दे सकता है. 

अफ्रीका को लेकर भारत और फ्रांस का संवाद जून 2017 से चल रहा है. दूसरी बातचीत दिसंबर 2018 में हुई. तीसरी बातचीत इस साल हो सकती है. इस संवाद का लक्ष्य भारत और फ्रांस के बीच सहयोग की भावना विकसित करके एक उन्नतिशील समझौता बनाना है जिसमें अफ्रीका की प्राथमिकता का ध्यान रखा जाए. 

अफ्रीका को लेकर भारत और फ्रांस का संवाद जून 2017 से चल रहा है. दूसरी बातचीत दिसंबर 2018 में हुई. तीसरी बातचीत इस साल हो सकती है. इस संवाद का लक्ष्य भारत और फ्रांस के बीच सहयोग की भावना विकसित करके एक उन्नतिशील समझौता बनाना है जिसमें अफ्रीका की प्राथमिकता का ध्यान रखा जाए. 

अफ्रीका के देशों के साथ फ्रांस का सबसे विविध सामाजिक-आर्थिक, सामरिक, अकादमिक, सांस्कृतिक और तकनीकी संबंध है. अफ्रीका के 29 देशों में फ्रेंच भाषा बोली जाती है और इन देशों का अफ्रीकी यूनियन में दबदबा है. अफ्रीका के क़रीब 10 करोड़ लोग फ्रेंच बोलते हैं. 

अपने पूर्व उपनिवेशों के साथ फ्रांस की भागीदारी बहुत ज़्यादा है, हालांकि इसमें कई समस्याएं भी हैं. राष्ट्रमंडल वाला संबंध फ्रैंकोफोनी (वो देश जहां फ्रेंच भाषा बोली जाती है) के ज़रिए स्थापित संबंध से कम सशक्त है. फ्रैंकोफोनी के 88 सदस्य देशों में से 29 देश अफ्रीका के हैं. फ्रांस अफ्रीका में 8 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) मुहैया कराता है और अफ्रीका के साथ 55 अरब अमेरिकी डॉलर का उसका व्यापार यूरोपियन यूनियन में सबसे ज़्यादा है. फ्रेंच आधिकारिक विकास सहायता (ओडीए) का लक्ष्य 18 देशों को मदद मुहैया कराना है. 2020 में फ्रांस के द्विपक्षीय ओडीए का 39 प्रतिशत भाग अफ्रीकी देशों को मिला (3.6 अरब यूरो) और इसमें से 80 प्रतिशत हिस्सा (2.9 अरब यूरो) सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में बसे देशों को मिला.  

राष्ट्रपति मैक्रों की अगुवाई में अफ्रीका पर ज़्यादा ध्यान दिया जा रहा है. उन्होंने फ्रांस के असर वाले इलाक़े के बाहर भी पहुंचने की कोशिश की है. हाल फिलहाल में उनका रवांडा और दक्षिण अफ्रीका का दौरा महत्वपूर्ण है. अफ्रीका में फ्रांस बड़ी भूमिका निभा रहा है. फ्रांस भी समझता है कि अफ्रीका के देशों में भी, जहां वो परंपरागत तौर पर मुख्य साझेदार रहा है, चीन आर्थिक साझेदार के रूप में उससे आगे निकल गया है. फ्रांस को अफ्रीका महाद्वीप के साथ अपनी बहुपक्षीय साझेदारी में मज़बूती का प्रदर्शन करने की ज़रूरत है. भारत अपनी मांग आधारित, बिना शर्त और मानव संसाधन विकास पर आधारित दृष्टिकोण के साथ अफ्रीका पर ध्यान दे रहा है. 

अफ्रीका के विकास में अपने असर को गहरा करने के लिए भारत और फ्रांस सहयोग कर सकते हैं. उनकी साझेदारी विकास परियोजनाओं और कारोबार करने की लागत को कम कर सकती है. इस तरह दोनों देश चीन के बढ़ते दखल का व्यावहारिक विकल्प मुहैया करा सकते हैं. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि दोनों साझेदार देश ज़्यादा उदारवादी, लोकतांत्रिक और बहुलवादी विशेषता वाले हैं. विकास की प्राथमिकता का सामंजस्य संभव है क्योंकि फ्रांस शिक्षा और पेशेवर प्रशिक्षण, हेल्थकेयर और जलवायु परिवर्तन की ज़रूरत का ध्यान रखता है. भारत का व्यापक सहयोग इन क्षेत्रों को प्राथमिकता देता है. 

अफ्रीका से सलाह लेकर भारत और फ्रांस को समर्थन के मुख्य तरीक़े के तौर पर ओडीए अनुदान और एफडीआई का इस्तेमाल करके कम भारी कार्यक्रम चलाने की ज़रूरत है. 

लेटर ऑफ क्रेडिट के ज़रिए अफ्रीका के 41 देशों में भारत की गहरी पहुंच है. लेकिन भारत की विकास परियोजनाएं अक्सर फ्रेंच बोलने वाले देशों में लागू नहीं हो पाती हैं. इसकी वजह से उन देशों के लिए फ्रांस के साथ सहयोग एक मौक़ा मुहैया कराता है. ये 18 देश हैं बेनिन, बुर्किना फासो, बुरुंडी, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, चाड, कोमरोस, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, जिबूती, इथियोपिया, गाम्बिया, गिनी, लाइबेरिया, मैडागास्कर, माली, मॉरितानिया, नाइजर, सेनेगल और टोगो. इथियोपिया और सेनेगल सरकारी और निजी स्तर पर भारत के अच्छे साझेदार रहे हैं. कोमरोस, जिबूती और मैडागास्कर भारत की इंडो-पैसिफिक नीति के साथ मिलते हैं. बाक़ी ज़्यादातर वो देश हैं जहां भारतीय कोशिश धीरे-धीरे नतीजे दे रही है. उन देशों में साझेदार के तौर पर फ्रांस के साथ काम करने से अफ्रीका के देशों के फ़ायदे के लिए त्रिपक्षीय सहयोग का असर बढ़ सकता है. 

कर्ज़ का तनाव कम करना 

अफ्रीका के विकास में साझेदारों को वहां की तेज़ी से बढ़ती युवा आबादी, महामारी, शहरीकरण और विकास से सरोकार की ज़रूरत है. इस बात की आशंका है कि महामारी सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में बसे अफ्रीका के देशों में 4 करोड़ लोगों को ग़रीबी के जाल में धकेल सकती है. इसकी वजह से आमदनी की असमानता हो जाएगी जो अफ्रीका महाद्वीप मुक्य व्यापार क्षेत्र (एएफसीएफटीए) से होने वाले संभावित फ़ायदों को ख़त्म कर देगी. महामारी का सामना कर रहे ज़्यादातर अफ्रीकी देशों में राजकोषीय प्रोत्साहन देने की क्षमता नहीं है. वो चाहते हैं कि कर्ज़ का बोझ ख़त्म नहीं हो तो कम-से-कम कर्ज़ चुकाने के लिए  समय बढ़ाया जाए. कर्ज़ का बढ़ता स्तर अफ्रीकी अर्थव्यवस्थाओं को तनाव में डाल रहा है. 

भारत और फ्रांस के बीच एक ज़्यादा जोड़ने वाले बिज़नेस टू बिज़नेस दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की ज़रूरत है. त्रिपक्षीय सहयोग का ये सबसे मुश्किल हिस्सा है और इस विचार को आगे ले जाने के लिए भारत और फ्रांस को कंपनियों के बीच इस संपर्क को स्थापित करने की ज़रूरत है. 

अफ्रीका के देशों की इन चिंताओं का समाधान भारत और फ्रांस जी-20 की कोशिशों के ज़रिये कर रहे हैं. भारत ने कुछ कर्ज़ के भुगतान का समय बढ़ा दिया है और अफ्रीका के देशों को 11 अरब डॉलर के अपने कर्ज़ के भुगतान के समय में बदलाव कर रहा है. फ्रांस ने 18 मई को अफ्रीकी अर्थव्यवस्थाओं को वित्तीय सहायता को लेकर एक शिखर वार्ता का आयोजन किया. इस दौरान फ्रांस ने सूडान को दिए 5 अरब अमेरिकी डॉलर का कर्ज़ माफ़ कर दिया और अफ्रीका के विकास में वित्तीय योगदान के लिए नये तरीक़ों पर ज़ोर दिया. हेल्थकेयर, कर्ज़ में राहत और आर्थिक कायाकल्प का समर्थन किया गया. शिखर वार्ता में इस बात की चर्चा की गई कि अफ्रीका की योजनाओं और दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रम बनाए जाएं. इस चीज़ में भारत ने भी अच्छा किया है. अफ्रीका से सलाह लेकर भारत और फ्रांस को समर्थन के मुख्य तरीक़े के तौर पर ओडीए अनुदान और एफडीआई का इस्तेमाल करके कम भारी कार्यक्रम चलाने की ज़रूरत है. 

विकास के लिए त्रिपक्षीय सहयोग

अफ्रीका में त्रिपक्षीय सहयोग को लेकर भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की एक रिपोर्ट में प्रस्ताव दिया गया है कि जिन क्षेत्रों में भारत बहुत मज़बूत नहीं है, वहां इच्छुक साझेदारों के साथ उनकी अलग-अलग परियोजनाओं के तहत भारत सहयोग कर सकता है. भारत और फ्रांस के विकास संगठन साझा तौर पर अफ्रीका के देशों में अनुदान परियोजनाओं पर काम कर सकते हैं. ऐसा होने से फ्रेंच बोलने वाले अफ्रीका के देशों, जिनके साथ भारत की भागीदारी सीमित है, की प्राथमिकताओं को पूरा किया जा सकता है. इनमें चाड, गिनी, टोगो, बेनिन और माली प्राथमिकता वाले देशों में शामिल हो सकते हैं. हिंद महासागर क्षेत्र में कोमरोस और मैडागास्कर भी महत्वपूर्ण हैं. अफ्रीका के देशों, चैंबर ऑफ़ कॉमर्स और स्थानीय विकास साझेदारों के साथ साझा चर्चा के ज़रिए भारत और फ्रांस इस तरह के संस्थान बना सकते हैं. 

क्षमता निर्माण

क्षमता निर्माण करने वाले संस्थानों, जिनकी शुरुआत भारत ने इंडिया अफ्रीका फोरम समिट (आईएएफएस) के तहत की थी, को लेकर सहमति 2018 में मैक्रों की भारत यात्रा के दौरान बनी थी. एंटरप्रेन्योरशिप विकास के लिए संस्थान, वोकेशनल ट्रेनिंग और सूचना, संचार और तकनीक (आईसीटी) (जिनमें से कुछ को भारत ने अफ्रीका के अलग-अलग हिस्सों में सफ़लतापूर्वक लागू किया है) को साझा तौर पर लागू किया जा सकता है. फ्रांस बजट और इंफ्रास्ट्रक्चर की लागत मुहैया करा सकता है जिसके बारे में भारत उम्मीद कर रहा था कि मेज़बान देश देगा. भारत सॉफ्ट इंफ्रास्ट्रक्चर (सड़क, पुल जैसे भौतिक इंफ्रास्ट्रक्चर से अलग लोगों के लिए ज़रूरी सेवाएं), उपकरण और ट्रेनिंग के नियम मुहैया करा सकता है. इनकी सफ़लता सुनिश्चित करेगी कि क्या इनको मौजूदा उद्योगों के साथ जोड़ा जा सकता है या नहीं, उसके लिए ये संस्थान मानव संसाधन की ट्रेनिंग दे सकते हैं. सफ़ल परियोजनाओं के लिए ऐसे अतीत से जुड़े एकीकरण और व्यावसायिक योजनाएं ज़रूरी हैं और ये भारतीय कोशिशों में कमज़ोर कड़ी हैं. अफ्रीका में मौजूदा फ्रांस की कंपनियां ऐसी निरंतरता मुहैया करा सकती हैं. 

प्राइवेट सेक्टर की कोशिशें

सरकारी स्तर की कोशिशों के आगे त्रिपक्षीय साझेदारी तभी कामयाब होगी जब कारोबारी संबंध की वजह से सफलता मिलेगी. भारत-यूरोपीय यूनियन संपर्क साझेदारी में अफ्रीका मूल्य आधारित दृष्टिकोण के साथ सहयोग के एक क्षेत्र के रूप में शामिल है, जो अफ्रीका  को ख़र्च किए गए पैसे का बेहतर नतीजा देगा. भारत और फ्रांस इसको उचित संपर्क परियोजना के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं और चीन की सोच का मुक़ाबला कर सकते हैं. 

भारत और फ्रांस टिकाऊ विकास लक्ष्य की कोशिश में एक साथ अच्छा काम कर सकते हैं, ख़ास तौर पर अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) के ज़रिए.

बड़ी परियोजनाओं में शामिल फ्रांस की कंपनियां भारत की कंपनियों के साथ सहयोग कर फ़ायदा उठा सकती हैं क्योंकि भारतीय कंपनियां कम लागत की सेवा देकर परियोजना का ख़र्च कम कर सकती हैं. भारतीय कंपनियों द्वारा कम लागत पर ट्रांसमिशन लाइन से एक पावर प्लांट को फ़ायदा हो सकता है. इसके लिए कॉन्ट्रैक्टर-सब कॉन्ट्रैक्टर संबंधों की ज़रूरत होगी. चूंकि ख़रीद की प्रणाली अलग-अलग हैं और उन्हें जोड़ना मुश्किल है, ऐसे में परियोजनाओं को अलग-अलग भागों में बांटा जा सकता है. ईबीआईडी के ज़रिए दो चरणों वाले कर्ज़ के लिए भारत 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर की पेशकश कर रहा है. ये पश्चिम अफ्रीका की परियोजनाओं के लिए है. इस तरह पश्चिम अफ्रीका में अफ्रीका और फ्रांस की कंपनियों के साथ साझा उपक्रम के लिए ये भारतीय वित्तीय पेशकश है. 

अफ्रीका के लिए बोझ वाले कर्ज़ की जगह कोशिश ज़्यादा-से-ज्यादा पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) की अगुवाई वाली परियोजनाओं की होनी चाहिए. उदाहरण के लिए, ईपीआई और क्रॉम्पटन ग्रीव्स ने 2016 में भारत में परियोजनाओं के लिए फ्रांस की कंपनियों के साथ साझा उपक्रम पर हस्ताक्षर किए. इन्हें अफ्रीका भी ले जाया जा सकता है. भारत और फ्रांस के बीच एक ज़्यादा जोड़ने वाले बिज़नेस टू बिज़नेस दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की ज़रूरत है. त्रिपक्षीय सहयोग का ये सबसे मुश्किल हिस्सा है और इस विचार को आगे ले जाने के लिए भारत और फ्रांस को कंपनियों के बीच इस संपर्क को स्थापित करने की ज़रूरत है. 

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के ज़रिए टिकाऊ विकास के लक्ष्य को बढ़ावा

भारत और फ्रांस टिकाऊ विकास लक्ष्य की कोशिश में एक साथ अच्छा काम कर सकते हैं, ख़ास तौर पर अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) के ज़रिए. स्वच्छ और हरित ऊर्जा को अफ्रीका के देशों में लाने से कई सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का समाधान हो सकता है. भारत में मुख्यालय वाले आईएसए को भारत और फ्रांस ने साझा तौर पर बढ़ावा दिया. इस गठबंधन के क़रीब 45 प्रतिशत सदस्य अफ्रीका से हैं. भारत ने अफ्रीका में सौर परियोजनाओं के लिए 2 अरब डॉलर के अपने लेटर ऑफ क्रेडिट का प्रावधान किया. आईएसए के लक्ष्य को बढ़ावा देने के लिए वैकल्पिक वित्तपोषण के मॉडल की स्थापना के मक़सद से भारत और फ्रांस स्थायी पब्लिक प्राइवेट एग्रीमेंट (पीपीए) के साथ एक मिश्रित अनुदान और कर्ज़ मॉडल की स्थापना कर सकते हैं. इसका असर अफ्रीका के साथ सहयोग पर पड़ेगा.  

विश्व बैंक, फ्रेंच डेवलपमेंट एजेंसी (एएफडी) और आईएसए जैसे संगठनों के साझेदारों के रूप में होने के साथ 2018 से टिकाऊ नवीकरणीय जोखिम राहत पहल (एसआरएमआई) का अस्तित्व है. इस पहल ने अफ्रीका में हरित परियोजनाओं के लिए 350 मिलियन अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा जुटाया. यद्यपि भारत के साथ फ्रांस आईएसए का सह-संस्थापक है, लेकिन उसकी प्रतिबद्धता संतोषजनक होने से ज़्यादा मुखर रही है. छह साल के बाद फ्रांस ने हाल में 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान किया. हरित जलवायु फंड में उसका योगदान ज़्यादा है. माली के सौर पार्क में आईएसए की गतिविधियों को फ्रांस का ज़्यादा समर्थन नहीं मिला. लेकिन एएफडी ने 650 मेगावॉट की क्षमता वाले सौर प्लांट को स्थापित करने के लिए अफ्रीका में 380 मिलियन यूरो का निवेश किया. वैसे फ्रांस की ऊर्जा कंपनियां नवीकरणीय ऊर्जा को लेकर अपना संदेह दूर कर रही हैं. टोटल ने शेयरधारकों के दबाव में ख़ुद को टोटल एनर्जी के रूप में बदला है. ये ज़रूरी है कि आईएसए को लेकर भारत-फ्रांस का दृष्टिकोण अफ्रीका में व्यापक तौर पर लागू हो. 

आगे के लिए एक अच्छा रास्ता होगा चैंबर ऑफ कॉमर्स और विकास एजेंसियों को व्यावहारिक रूप में चर्चा में शामिल करके भारत-फ्रांस संवाद को बढ़ाना. 

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