हाल के वर्षों में, वैश्विक स्तर पर गरीबी कम करने, विकास और समृद्धि बढ़ाने के लिहाज से फाइनेंशियल इन्कलूज़न यानी वित्तीय समावेश या अधिक से अधिक लोगों को बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं के दायरे में लाने को महत्वपूर्ण भूमिका दी जा रही है. भारत और अफ्रीका के लिए यूनिवर्सल फाइनेंशियल इन्कलूज़न (UFI) बड़ा लक्ष्य है. विकासशील देशों में इसकी ख़ास अहमियत है, जहां अर्थव्यवस्था में असंगठित क्षेत्र का योगदान काफी अधिक है. इन देशों में वित्तीय समावेश से अर्थव्यवस्था में संगठित क्षेत्र का योगदान बढ़ सकता है, जिससे पारदर्शिता और एफिशिएंसी बढ़ेगी. अगर लोगों को फाइनेंशियल प्रॉडक्ट्स और कर्ज, बीमा और बचत करने का ज़रिया मिले तो वित्तीय स्थिरता का मकसद भी हासिल होगा. दोनों ही देश यूनिवर्सल फाइनेंशियल इन्कलूज़न को हासिल करना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए भारत और अफ्रीका ने अलग-अलग रास्ते चुने हैं. अफ्रीकी महादेश में केन्या, युगांडा और तंज़ानिया जैसे पूर्वी अफ्रीकी देश करीब एक दशक से मोबाइल मनी के जरिये फाइनेंशियल इन्कलूज़न की अगुवाई कर रहे हैं. उन्होंने नए जमाने की फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी को अपनाने में भी तत्परता दिखाई है.
पूर्वी अफ्रीका में फाइनेंशियल इन्कलूज़न को ख़ासतौर पर निजी क्षेत्र आगे बढ़ा रहा है. यहां कथित ‘पुरातन तकनीक’ को पीछे छोड़कर इन देशों ने अत्याधुनिक मोबाइल टेक्नोलॉजी और डिजिटल पेमेंट्स प्लेटफॉर्म को तेज छलांग लगाते हुए अपनाया है. दूसरी तरफ, भारत में बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं का दायरा बढ़ाने में सरकार की प्रमुख भूमिका रही है. यहां सरकार अपने बैंकों के जरिये इस लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश कर रही है. इस सिलसिले में 2014 में शुरू हुई प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) का ज़िक्र करना होगा, जिसे दुनिया में इस तरह की सबसे बड़ी पहल माना जाता है.
भारत और पूर्वी अफ्रीका में फाइनेंशियल इन्कलूज़न का स्तर
देश |
% में खाता रखने वाले |
% में वित्तीय संस्थानों में खाता रखने वाले |
% में मोबाइल खाता रखने वाले |
भारत |
79.9 |
79.8 |
2.0 |
तंज़ानिया |
46.8 |
21.0 |
38.5 |
रवांडा |
50.0 |
36.7 |
31.1 |
युगांडा |
59.2 |
32.8 |
50.6 |
मोजाम्बिक |
41.7 |
33.0 |
21.9 |
केन्या |
55.3 |
28.2 |
48.6 |
स्रोत: ग्लोबल फाइंडेक्स रिपोर्ट, 2017 के डेटा
दोनों ही रास्तों से वित्तीय समावेश का एक हद तक लक्ष्य हासिल करने में सफलता मिली है, लेकिन इनमें से एक, दूसरे की मदद के बिना पूरी तरह सफल नहीं हो सकता. 2017 की ग्लोबल फिनडेक्स रिपोर्ट से भी यह बात साबित होती है. इसमें बताया गया है कि भारतीय उपमहाद्वीप में बैंक खाता रखने वाला 79.9 प्रतिशत में से सिर्फ 2 प्रतिशत के पास मोबाइल एकाउंट्स थे. दूसरी तरफ, पूर्वी अफ्रीकी देशों में मोबाइल एकाउंट्स रखने वालों की संख्या बैंक खाता रखने वालों से कहीं अधिक थी. पूर्वी अफ्रीकी देशों के फाइनेंशियल इन्कलूज़न को ख़ासतौर पर केन्या, युगांडा और तंज़ानिया में काफी सफलता मिली है, लेकिन यही कमाल मोजाम्बिक और रवांडा में नहीं हुआ है. पूर्वी अफ्रीकी देशों में इसमें ख़ासतौर पर वोडाकॉम और सफारी के एम-पेसा मोबाइल मनी एकाउंट्स ने बड़ी भूमिका निभाई है. मोजाम्बिक और तंज़ानिया में इस मॉडल के सफल न होने की वजह इसे लागू करने में देरी और मोबाइल मनी के क्षेत्र में सीमित इंटर-ऑपरेबिलिटी कैपेसिटी है. एक बात यह भी है कि इन देशों में फाइनेंशियल इन्कलूज़न में बढ़ोतरी सीमित बेस से हुई है क्योंकि यहां की बड़ी आबादी की अभी तक बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच नहीं है. इसलिए बैंकिंग सेक्टर के दायरे में इन्हें लाना इस पहल का महत्वपूर्ण हिस्सा है.
दूसरी तरफ, भारत में 2014 में PMJDY के लॉन्च के साथ फाइनेंशियल इन्कलूज़न के स्तर पर सुधार हुआ है. ग्लोबल फिनडेक्स रिपोर्ट, 207 के मुताबिक, 2014 में देश के 52.8 प्रतिशत लोगों के वित्तीय संस्थानों में बैंक खाते थे, जिनकी संख्या 2017 के आखिर तक बढ़कर 79.9 प्रतिशत हो गई थी. हालांकि, मोबाइल मनी तक एक्सेस रखने वाले लोगों की संख्या यहां काफी कम है. उसकी एक वजह तो डिजिटल माध्यमों को लेकर जागरूकता का अभाव है, दूसरे यहां लोगों को बैंक ब्रांच जाकर वित्तीय लेनदेन की आदत पड़ी हुई है. ऐसे में भले ही औपचारिक बैंकिंग क्षेत्र का इस्तेमाल करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी की उपलब्धि से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन हम इसके साथ मोबाइल मनी और दूसरी फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी और इनोवेशन की भी अनदेखी नहीं कर सकते क्योंकि आज डिजिटल रोज़मर्रा के जीवन का अनिवार्य पहले बन गया है.
अगर व्यापक वित्तीय समावेश की बात करें तो उसमें भारत और पूर्वी अफ्रीका दोनों जगहों पर अपनाए जाने वाले तौर-तरीकों का इस्तेमाल होना चाहिए. इसी को लेकर दोनों के बीच सहयोग की ज़रूरत दिखती है.
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी से बैंकिंग की लागत कम करने में मदद मिलती है. इससे पारदर्शिता और कामकाज के स्तर में भी सुधार होता है. अगर व्यापक वित्तीय समावेश की बात करें तो उसमें भारत और पूर्वी अफ्रीका दोनों जगहों पर अपनाए जाने वाले तौर-तरीकों का इस्तेमाल होना चाहिए. इसी को लेकर दोनों के बीच सहयोग की ज़रूरत दिखती है. पूर्वी अफ्रीका डिजिटल फाइनेंशियल इन्कलूज़न के क्षेत्र में काफी आगे है. इसलिए वह भारत की ख़ातिर सही सहयोगी हो सकता है. इसके अलावा, यूंगाडा की संसद को जुलाई 2018 में संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत और अफ्रीका के बीच सहयोग को निर्देशित करने वाले 10 सिद्धांतों का जिक्र किया था. इनमें से एक में उन्होंने डिजिटल क्रांति को लेकर भारत के तजुर्बों का इस्तेमाल अफ्रीका के विकास के लिए करने की बात भी कही थी. उन्होंने बताया था कि किस तरह से इसकी मदद से सरकारी सेवाओं की डिलीवरी बेहतर की जा सकती है. शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में इनका कैसे इस्तेमाल हो सकता है. डिजिटल साक्षरता बढ़ाई जा सकती है. वित्तीय समावेश को बढ़ावा दिया जा सकता है और हाशिये पर पड़े लोगों को मुख्यधारा में लाया जा सकता है.
फाइनेंशियल इन्कलूज़न के क्षेत्र में सहयोग से भारत और अफ्रीका दोनों को फायदा होगा. इससे दोनों को एक दूसरे से सीखने का मौका मिलेगा. वे जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, इसकी मदद से उनसे उबर पाएंगे. भारत सरकार इस क्षेत्र में पूर्वी अफ्रीकी देशों के साथ सहयोग करके उन्हें PMJDY का अपना-अपना वर्जन तैयार करने में मदद कर सकती है. इससे औपचारिक वित्तीय सेवा क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा और उस वर्ग के लोगों को बैंकिंग सेवाओं के दायरे में लाने में मदद मिलेगी, जो अब तक इससे बाहर रहे हैं. PMJDY को फाइनेंशियल इन्कलूज़न बढ़ाने के ख़ास मकसद के साथ तैयार किया गया है. इससे लोगों की पहुंच बचत खातों, बीमा और पेंशन योजनाओं तक बढ़ती है. इसलिए इससे औपचारिक वित्तीय सेवा क्षेत्र में आने वाली समस्याओं को दूर करने में मदद मिलती है. इन चुनौतियों में बचत खाता खोलने के लिए पर्याप्त पैसे न होना, औपचारिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों पर अविश्वास और उनसे जुड़ी ऊंची लागत शामिल हैं. मिसाल के लिए, PMJDY की सबसे बड़ी ख़ूबी ‘जीरो बैलेंस’ खाते हैं. इन्हें बेसिक सेविंग्स बैंक डिपॉजिट एकाउंट भी कहा जाता है. इसमें एक रुपया भी न हो या मामूली रकम हो तो भी खाता निष्क्रिय नहीं होता. इसके लिए बहुत कम शुल्क तय किया गया है और इसे बड़ी आसानी से नो योर कस्टमर्स नॉर्म्स का पालन करके खोला जा सकता है. इन नॉर्म्स यानी नियमों को भी काफी सरल बनाया गया है. इससे पैसों के अभाव में बैंक खाता न खोलने की मुश्किल दूर हो जाती है.
किसी भी देश के व्यापक विकास में आज वैश्विक स्तर पर फाइनेंशियल इन्कलूज़न की अहमियत बढ़ती जा रही है. इसके लिए यूनिवर्सल फाइनेंशियल इन्कलूज़न का लक्ष्य हासिल करना बेहद ज़रूरी हो गया है.
भारत सरकार भी पूर्वी अफ्रीका के देशों से बहुत कुछ सीख सकती है. वह अनस्ट्रक्चर्ड सप्लीमेंटरी सर्विस डेटा यानी USSD के आधार पर बैंकिंग सेवाएं देने की शुरुआत कर सकती है, जिसके लिए इंटरनेट सेवा की ज़रूरत नहीं पड़ती. यह काम फ़ीचरफोन के जरिये भी हो सकता है. इसकी मदद से कम आय वर्ग वालों को बैंकिंग सेवा के दायरे में लाया जा सकता है. इसका इस्तेमाल डिजिटल और वित्तीय निरक्षता को दूर करने में किया जा सकता है. लोगों की बैंकिंग सेवाओं के इस्तेमाल के लिए ब्रांच जाने की आदत फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी की मदद से छुड़वाई जा सकती है. इसके लिए ख़ासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल फाइनेंशियल प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके लिए भारत में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) और रूपे का प्रयोग हो रहा है, जो सही दिशा में उठाया गया कदम है. हालांकि, जिन ग्रामीण क्षेत्रों में लोग बैंकिंग सेवाओं का धड़ल्ले से इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, वहां इनका सीमित असर हुआ है. इस समस्या से उबरने के लिए सरकार नॉलेज शेयरिंग प्लेटफ़ॉर्म क्रिएट कर सकती है. इस क्षेत्र में वह पूर्वी अफ्रीकी मॉडल से सीख सकती है. इसके अलावा, भारत सरकार UPI और रूपे जैसे डिजिटल स्ट्रक्चर के पूर्वी अफ्रीका में इस्तेमाल की ख़ातिर सहयोग की पेशकश कर सकती है. इससे वहां बढ़िया डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार होगा. अगर ऐसा हुआ तो औपचारिक बैंकिंग सेवाओं को हासिल करने की लागत घटेगी. इससे भारत को पूर्वी अफ्रीका में अपनी जड़ें जमाने का भी अवसर मिलेगा, जिसकी बड़ी रणनीतिक अहमियत है. यहां और वहां की सरकारें दोनों ही क्षेत्रों में वित्तीय और डिजिटल सारक्षता कैंप लगाने और जागरूकता बढ़ाने में भी सहयोग कर सकती हैं. इससे वे अपने नागरिकों को फाइनेंशियल इन्कलूज़न के बारे में शिक्षित करने का मौका मुहैया करा सकती हैं. किसी भी देश के व्यापक विकास में आज वैश्विक स्तर पर फाइनेंशियल इन्कलूज़न की अहमियत बढ़ती जा रही है. इसके लिए यूनिवर्सल फाइनेंशियल इन्कलूज़न का लक्ष्य हासिल करना बेहद ज़रूरी हो गया है. इस क्षेत्र में आगे चलकर भारत और पूर्वी अफ्रीका को सहयोग करना होगा ताकि व्यापक वित्तीय समावेश के जरिये औपचारिक बैंकिंग क्षेत्र को बढ़ावा दिया जा सके. दोनों ही क्षेत्रों को यह भी समझना होगा कि इसमें फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी कितनी मददगार साबित हो सकती है. दोनों को इस मामले में एक दूसरे से सीखने की ज़रूरत है. उन्हें एक दूसरे की ग़लतियों से भी सीखना होगा ताकि वे बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकें.
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