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Published on May 29, 2024 Updated 0 Hours ago

चूंकि अफ्रीका कई चुनौतियों से जूझते हुए अपनी युवा आबादी को शिक्षित करने और उन्हें हुनरमंद बनाने की कोशिश कर रहा है, ऐसे में भारत एक अच्छा साझेदार साबित हो सकता है. 

शिक्षा के क्षेत्र में भारत-अफ्रीका साझेदारी का दोनों देशों के समृद्ध भविष्य में बड़ा योगदान!

अफ्रीका की आबादी तेज़ी से बढ़कर मौजूदा 1.4 अरब से 2050 तक 2.5 अरब होने की संभावना है. इस महाद्वीप को अक्सर ‘सबसे युवा महाद्वीप’ भी कहा जाता है क्योंकि इसकी लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या 25 वर्ष से कम उम्र के लोगों की है. इस उम्रदराज होती दुनिया में अफ्रीका की युवा जनसंख्या आर्थिक विकास के लिए बड़े अवसर पेश करती है. हालांकि, अफ्रीका की युवा आबादी के अच्छे उपयोग के लिए आज शिक्षा और कौशल में काफी निवेश की आवश्यकता है. शिक्षा और कौशल के मामले में अफ्रीका की दूरी को ध्यान में रखते हुए अफ्रीकन यूनियन के द्वारा शिक्षा और कौशल को साल 2024 की थीम के रूप में चुनने का फैसला सही है. 

वैसे अफ्रीका के शिक्षा क्षेत्र पर एक नज़र डालने से अच्छी तस्वीर नहीं उभरती है. कोविड-19 महामारी ने अचानक लॉकडाउन और स्कूलों के बंद होने की वजह से अफ्रीका के पहले से कमज़ोर शिक्षा क्षेत्र को बाधित किया है. हज़ारों बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया और पढ़ाई-लिखाई के मामले में काफी नुकसान हुआ. मौजूदा समय में सब-सहारन अफ्रीका (सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित अफ्रीकी देश) में प्राइमरी स्कूल की उम्र के लगभग 20 प्रतिशत बच्चे और अपर प्राइमरी स्कूल की उम्र के 58 प्रतिशत बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं. प्राइमरी स्कूल की उम्र में स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की दर दक्षिण सूडान (62 प्रतिशत), जिबूती (42 प्रतिशत), सूडान (41 प्रतिशत), इरिट्रिया (39 प्रतिशत), माली (38 प्रतिशत) और नाइजर (36 प्रतिशत) में विशेष रूप से अधिक है.  

वैसे अफ्रीका के शिक्षा क्षेत्र पर एक नज़र डालने से अच्छी तस्वीर नहीं उभरती है. कोविड-19 महामारी ने अचानक लॉकडाउन और स्कूलों के बंद होने की वजह से अफ्रीका के पहले से कमज़ोर शिक्षा क्षेत्र को बाधित किया है. हज़ारों बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया और पढ़ाई-लिखाई के मामले में काफी नुकसान हुआ.

शिक्षा में असमानता के मामले में भी गंभीर चिंताएं हैं. यूनिसेफ के अनुमानों के अनुसार सबसे ग़रीब परिवारों के बच्चों के ऊपर शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय का 10 प्रतिशत से भी कम खर्च किया गया. माली, गिनी और चाड जैसे देशों में अमीर घरों के बच्चों की शिक्षा पर ग़रीब घरों से आने वाले बच्चों पर सार्वजनिक खर्च की तुलना में क्रमश: 8.4, 7.9 और 6.8 गुना खर्च किया गया. समाज में लैंगिक (जेंडर) असमानता के होने की वजह से शिक्षा तक पहुंच के मामले में बहुत ज़्यादा लैंगिक गैर-बराबरी है. वैसे तो अलग-अलग देशों में काफी अंतर है लेकिन आम तौर पर उच्च शिक्षा में बहुत कम लड़कियां हैं और माध्यमिक (सेकेंडरी) स्तर पर लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर (ड्रॉप-आउट रेट) अधिक है. 

शिक्षा तक पहुंच के अलावा उसकी गुणवत्ता गंभीर चिंता का एक और क्षेत्र है क्योंकि छात्रों का एक बड़ा हिस्सा बुनियादी पढ़ाई और जोड़-घटाव का कौशल सीखने में नाकाम रहता है. उदाहरण के लिए, गाम्बिया, घाना, मेडागास्कर, लेसोथो और सियरा लियोन जैसे देशों में ग्रेड 2 और 3 के 10% से कम बच्चे गणित में न्यूनतम योग्यता हासिल कर पाते हैं. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की एक हालिया रिपोर्ट से पता चलता है कि अफ्रीका में ख़राब पढ़ाई की वजह काफी हद तक स्कूलों में प्रशिक्षित शिक्षकों को नियुक्त करने में आने वाली चुनौती है क्योंकि साल 2000 से शिक्षकों की ट्रेनिंग दर में लगातार गिरावट आई है. 

कर्ज़ के बहुत ज़्यादा बोझ की वजह से सिकुड़ते सरकारी बजट के साथ अफ्रीका की सरकारों के लिए हर किसी तक क्वॉलिटी शिक्षा प्रदान करने के SDG (सतत विकास लक्ष्य) 4 के लक्ष्य को हासिल करने में मुश्किल होगी. IMF के अनुमानों के अनुसार सार्वभौमिक प्राथमिक और माध्यमिक (यूनिवर्सल प्राइमरी एंड सेकेंडरी) नामांकन के SDG के उद्देश्य को हासिल करने के लिए 2030 तक शिक्षा पर सार्वजनिक और निजी खर्च दोगुना करना होगा. दक्षिण अफ्रीका, जो अपनी GDP का 6.1 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करता है, जैसे अपवादों को छोड़कर सब-सहारन अफ्रीका का शिक्षा पर सार्वजनिक खर्च (3.2 प्रतिशत) विश्व के लगभग 4 प्रतिशत के औसत से कम है. दूसरी तरफ किसी समाज के कल्याण में शिक्षा के महत्व के बावजूद आधिकारिक विकास सहायता (ODA) में शिक्षा का हिस्सा पिछले कुछ वर्षों के दौरान कम और स्थिर बना हुआ है. महामारी के दौरान सबसे कम विकसित देशों को सुनिश्चित शिक्षा सहायता में भी 10 प्रतिशत की गिरावट आई है और ये 2019 के 4.3 अरब अमेरिकी डॉलर से गिरकर 3.9 अरब अमेरिकी डॉलर हो गई है. 

मददगार ‘भारत’

चूंकि अफ्रीका ख़राब विकास की संभावनाओं, अधिक कर्ज़, कम होते बजट और कम विदेशी सहायता जैसी कई चुनौतियों से जूझते हुए अपनी युवा जनसंख्या को शिक्षित और हुनरमंद बनाने की कोशिश कर रहा है, ऐसे में भारत एक अच्छा साझेदार साबित हो सकता है. दूसरे दान देने वाले देशों से हटकर भारत की विकास साझेदारी के कार्यक्रम 50 के दशक में अपनी शुरुआत के बाद से ही साझा समृद्धि, शिक्षा और क्षमता निर्माण के सिद्धांतों पर बने हुए हैं. 50 के दशक में नए स्वतंत्र देश के रूप में भारत ने मानव संसाधनों में निवेश के महत्व को समझा और देश के विकास सहयोग कार्यक्रम के प्रमुख स्तंभ के रूप में क्षमता निर्माण उसकी विशेषता है. भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम (ITEC) की शुरुआत 1964 में की गई और विकासशील देशों के छात्रों के लिए कई स्कॉलरशिप की घोषणा की गई. शिक्षा और क्षमता निर्माण अफ्रीका के साथ भारत के संबंधों का एक महत्वपूर्ण स्तंभ रहा है क्योंकि अफ्रीका के लोग भारतीय स्कॉलरशिप और ITEC कार्यक्रम के बड़े लाभार्थी रहे है. इथियोपिया जैसे अफ्रीकी देशों में भारतीय शिक्षकों ने स्कूल की शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है.  

शिक्षा और क्षमता निर्माण अफ्रीका के साथ भारत के संबंधों का एक महत्वपूर्ण स्तंभ रहा है क्योंकि अफ्रीका के लोग भारतीय स्कॉलरशिप और ITEC कार्यक्रम के बड़े लाभार्थी रहे है. इथियोपिया जैसे अफ्रीकी देशों में भारतीय शिक्षकों ने स्कूल की शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है. 

पिछले कुछ वर्षों में भारत के क्षमता निर्माण कार्यक्रम का नाटकीय ढंग से विस्तार हुआ है. भारत ने बड़े IT प्रोजेक्ट जैसे कि पैन-अफ्रीकन ई-नेटवर्क और उसके बाद के ई-विद्याभारती आरोग्यभारती (e-VBAB) को समर्थन दिया है. भारत में अफ्रीकी छात्रों की संख्या में भी लगातार बढ़ोतरी हुई है. युगांडा की संसद में अपने संबोधन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफ्रीका के विकास को लेकर भारत की प्रतिबद्धता को उजागर किया और कहा “हम अफ्रीका की प्रतिभा और कौशल पर भरोसा करेंगे. हम ज़्यादा-से-ज़्यादा स्थानीय क्षमता का निर्माण करेंगे और यथासंभव स्थानीय अवसर पैदा करेंगे”. अफ्रीकी देशों में भारत IIT मद्रास और नेशनल फॉरेंसिक साइंसेज़ यूनिवर्सिटी जैसे उच्च शिक्षा के संस्थान भी बना रहा है. सरकारी स्तर पर पहल के अलावा भारत के गैर-लाभकारी संस्थान भी अफ्रीका में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. उदाहरण के लिए, भारतीय संस्थान प्रथम के टीचिंग एट द राइट लेवल (TaRL) दृष्टिकोण, जो कि हर बच्चे के हिसाब से मज़ेदार गतिविधियों के ज़रिए बुनियादी साक्षरता और गिनती पर ज़ोर देता है, ने ज़ाम्बिया और बोत्सवाना में पढ़ाई-लिखाई के नतीजों में सुधार लाने में मदद की.  

भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कई नीतिगत प्रस्ताव, जैसे कि अलग-अलग उच्च शिक्षा का क्षेत्र, अलग-अलग स्तरों पर डिग्री लेकर एकेडमिक कार्यक्रम से बाहर होने की अनुमति, डिजिटल एवं ऑनलाइन शिक्षा, अफ्रीका के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि भारत और अफ्रीका में उच्च शिक्षा के क्षेत्र की रूप-रेखा लगभग एक जैसी है.

वैसे तो भारत की मौजूदा पहल, विशेष रूप से सरकारी स्तर की पहल, प्रशंसनीय हैं लेकिन प्राथमिक, माध्यमिक और यूनिवर्सिटी/उच्च स्तर, जिसने अभी तक भारत के विकास सहयोग का कम ध्यान खींचा है, पर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए शिक्षकों की ट्रेनिंग, शिक्षा विज्ञान और पाठ्यक्रम विकास जैसे अन्य क्षेत्रों में तालमेल का विस्तार करने की काफी गुंजाइश है. भारतीय संस्थान अफ्रीका के संस्थानों को शिक्षकों की ट्रेनिंग में समर्थन देकर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकते हैं क्योंकि इस महाद्वीप को प्रशिक्षित शिक्षकों की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है. इथियोपिया में भारतीय शिक्षकों की सफलता को ध्यान में रखते हुए दूसरे अफ्रीकी देशों में भी और ज़्यादा भारतीय शिक्षकों को तैनात किया जा सकता है. भारत का अनुभव अफ्रीका के लिए अधिक उपयोगी हो सकता है क्योंकि भारतीय और अफ्रीकी शिक्षा प्रणाली अक्सर समान चुनौतियों का सामना करती हैं. गुलाम मोहम्मदभाई जैसे विशेषज्ञ ज़ोर देकर कहते हैं कि भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कई नीतिगत प्रस्ताव, जैसे कि अलग-अलग उच्च शिक्षा का क्षेत्र, अलग-अलग स्तरों पर डिग्री लेकर एकेडमिक कार्यक्रम से बाहर होने की अनुमति, डिजिटल एवं ऑनलाइन शिक्षा, अफ्रीका के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि भारत और अफ्रीका में उच्च शिक्षा के क्षेत्र की रूप-रेखा लगभग एक जैसी है. मिड-डे मील कार्यक्रम और समग्र शिक्षा अभियान जैसी भारतीय योजनाएं भी अफ्रीकी देशों को महत्वपूर्ण नीतिगत सीख दे सकती हैं. ये कहने की ज़रूरत नहीं है कि भारत का अपना शिक्षा क्षेत्र भी आदर्श स्थिति से कोसों दूर है. इसलिए भारत और अफ्रीका के बीच साझेदारी दोतरफा होनी चाहिए और अफ्रीका से हासिल जानकारी भी भारत की शिक्षा प्रणाली में सार्थक योगदान दे. 


मलांचा चक्रबर्ती ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो और डिप्टी डायरेक्टर (रिसर्च) हैं.

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