Published on Feb 10, 2021 Updated 0 Hours ago

अगर भारत अपनी सैन्य सेवाओं की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाता है तो देश की रक्षा-शक्ति को नई धार देने दे पाने की देश की काबिलियत बस एक शिगूफ़ा बनकर रह जाएगी.

चीन के मोर्चे पर चिंताओं के बीच भारत का बढ़ता ‘रक्षा बजट’

भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में 2021-22 का बजट पेश किया. जहां तक रक्षा बजट का सवाल है तो बजट घोषणाओं में उसमें सीमित बढ़ोतरी का एलान किया गया. वैसे तो रक्षा बजट आवंटन में 1.4 प्रतिशत का मामूली इज़ाफ़ा (2020-21 के 4.71 लाख करोड़ से 2021-22 में 4.78 लाख करोड़ रु) ही किया गया है लेकिन पूंजीगत व्यय में तकरीबन 18.8 फ़ीसदी की बढ़ोतरी बेहद अहम है. आर्थिक मोर्चे पर महामारी के ज़बरदस्त नकारात्मक प्रभाव के बावजूद ये आवंटन सरकार की बदलती प्राथमिकताओं के बारे में बहुत कुछ बयान करती है. पिछले साल के पुनरीक्षित अनुमानों से पता चलता है कि भारतीय सेना को पूंजीगत व्यय के मद में 207.7 अरब रुपए का अतिरिक्त आवंटन मिला है. संभवत: ये बढ़ोतरी गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद सैन्य साजो-सामान के आपातकालीन अर्जन के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की गई.

रक्षा बजट में किए गए इज़ाफ़े पर टिप्पणी करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने ट्वीट में लिखा, “2021-22 में रक्षा बजट को बढ़ाकर 4.78 लाख करोड़ कर दिया गया है. रक्षा क्षेत्र में पूंजीगत व्यय को 19 फ़ीसदी बढ़ाकर 1.35 लाख करोड़ रु कर दिया गया है. इसके लिए मैं विशेष रूप से प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री का धन्यवाद देता हूं. पिछले 15 वर्षों में रक्षा के लिए पूंजीगत व्यय में ये सबसे बड़ी बढ़ोतरी है.”

पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी और सरहदी इलाक़ों में बुनियादी ढांचे का विकास

जैसा कि भारत सरकार ने स्पष्ट किया है, पूंजीगत खर्चों का संबंध “सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास से है.” 2020-21 के बजट अनुमानों में पूंजीगत व्यय आवंटन 1.3 लाख करोड़ रु था जिसमें 213.2 अरब रु की बढ़ोतरी की गई. 2021-22 के बजट अनुमानों में ये आंकड़ा बढ़कर 1.35 लाख करोड़ रु हो गया है.

पिछले साल के पुनरीक्षित अनुमानों से पता चलता है कि भारतीय सेना को पूंजीगत व्यय के मद में 207.7 अरब रुपए का अतिरिक्त आवंटन मिला है. संभवत: ये बढ़ोतरी गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद सैन्य साजो-सामान के आपातकालीन अर्जन के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की गई.

एक और अहम बदलाव सरहदी इलाक़ों में बुनियादी ढांचे के विकास पर होने वाले आवंटन में बढ़ोतरी से जुड़ा है. सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) को 60 अरब रु का आवंटन मिला है जो इसके पिछले साल के मुकाबले 7.5 फ़ीसदी ज़्यादा है. पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी और सरहदी इलाक़ों में बुनियादी ढांचे के विकास पर होने वाले आवंटन में वृद्धि के ज़रिए चीन के मोर्चे पर सरकार की सोच उभर कर सामने आती है.

बहरहाल, भारत के रक्षा बजट में 1.4 फ़ीसदी की बढ़ोतरी को 2020 में करीब 5 फ़ीसदी की महंगाई दर के संदर्भ में देखने की ज़रूरत है. यहां ये भी ग़ौर करने लायक है कि पूंजीगत बजट आवंटन में भी 18.8 फ़ीसदी की सीधी बढ़ोतरी नहीं हुई है. मिसाल के तौर पर 2020-21 के बजट में पूंजीगत व्यय का बजट अनुमान 1.13 लाख करोड़ रुपए था लेकिन 2020 के पुनरीक्षित अनुमानों में इसे बढ़ाकर 1.345 लाख करोड़ रु कर दिया गया. इस आंकड़े के सापेक्षिक देखें तो 2021-22 के बजट में पूंजीगत व्यय का अनुमान 1.35 लाख करोड़ रु है, ऐसे में 2020 के पुनरीक्षित अनुमानों से वित्त वर्ष 2021-22 में वास्तविक रूप से 5.5 अरब रु की मामूली बढ़ोतरी ही हुई है.

रक्षा बजट से जुड़ा एक दिलचस्प प्रस्ताव एक समर्पित और निश्चित समयसीमा से परे समाप्त न होने वाले कोष के गठन को लेकर है. इस कोष का नाम रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के आधुनिकीकरण से जुड़ा कोष (एमएफडीआईएस) रखने का प्रस्ताव किया गया है. इस कोष के गठन का सुझाव 15वें वित्त आयोग ने दिया था. इसका उद्देश्य “रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के लिए बजट संबंधी ज़रूरतों और पूंजीगत व्यय के लिए किए गए आवंटन के बीच के अंतर को पाटना है.” ख़बरों के हिसाब से 2021-26 के पांच वर्षों के दौरान एमएफडीआईएस 2.38 लाख करोड़ रु का होगा और इस कालखंड में इस कोष में हर वर्ष अधिकतम 510 अरब रु जमा किए जा सकेंगे. इस फंड के लिए ज़रूरी रकम की व्यवस्था अलग-अलग स्रोतों से की जाएगी. इनमें रक्षा क्षेत्र से जुड़े सार्वजनिक प्रतिष्ठानों का विनिवेश और रक्षा मंत्रालय की ज़मीनों के मौद्रीकरण जैसे उपाय शामिल हैं. इस कोष की कुल धनराशि में से 1.53 लाख करोड़ भारत की संचित निधि से आएंगे. (संचित निधि की एक ख़ास बात ये है कि इस निधि में से बिना भारतीय संसद की मंज़ूरी के धन नहीं निकाला जा सकता है.)

यहां एक अनोखी बात ये है कि पूंजीगत ख़र्चों के लिए रक्षा और गृह मंत्रालय को नियमित रूप से होने वाले सालाना बजट आवंटन में से उपयोग नहीं की गई रकम इस बहुवर्षीय कोष का हिस्सा नहीं होगी. रक्षा मंत्रालय द्वारा काफ़ी लंबे समय से एक असमाप्य बहुवर्षीय रक्षा आधुनिकीकरण कोष के गठन की मांग उठाई जा रही थी और साल दर साल वित्त मंत्रालय कोई न कोई तर्क देकर इस मांग को ख़ारिज करता आ रहा था. अतीत में वित्त मंत्रालय की दलील थी कि “रक्षा सेवाओं की पूंजीगत आवश्यकताओं के लिए ज़रूरी रकम मुहैया कराने के मकसद से रक्षा मंत्रालय के लिए पर्याप्त बजटीय प्रावधान किए जा रहे हैं.” हालांकि, सेना द्वारा बार-बार ये बात कही जाती रही कि पूंजीगत व्यय की मंज़ूरी में नौकरशाही द्वारा की जाने वाली लेटलतीफ़ी के चलते आवंटित धनराशि का एक बड़ा हिस्सा बिना किसी उपयोग में आए वापस लौटता रहा है. इससे फ़ौज के आधुनिकीकरण और अर्जन की योजनाओं पर बुरा असर पड़ता रहा है. अबतक फ़ौज की इस समस्या और इससे जुड़े तथ्यों की लगातार अनदेखी होती रही है.

एमएफडीआईएस का गठन

रक्षा मंत्रालय द्वारा अपने वार्षिक आवंटन से एक बहुवर्षीय असमाप्य कोष के गठन की सिफ़ारिश पर वित्त मंत्रालय की ओर से कार्रवाई किए जाने की ज़रूरत है.

दिवंगत ब्रिगेडियर गुरमीत कंवल ने लगभग एक दशक पहले लिखा था, “ये बात समझ से परे है कि सैन्य बलों के आधुनिकीकरण के लिए पूंजीगत खाते में किया गया बजटीय आवंटन साल-दर-साल किस प्रकार बिना किसी जवाबदेही के वापस लौटता रहा है.” हर सरकार ने इस समस्या पर अपने-अपने स्तर से ध्यान दिया लेकिन फिर भी इसका ठोस समाधान नहीं निकल सका. ऐसे में निश्चित तौर पर एमएफडीआईएस का गठन एक स्वागत योग्य कदम है लेकिन इसे अभी और आगे ले जाने की ज़रूरत है. रक्षा मंत्रालय द्वारा अपने वार्षिक आवंटन से एक बहुवर्षीय असमाप्य कोष के गठन की सिफ़ारिश पर वित्त मंत्रालय की ओर से कार्रवाई किए जाने की ज़रूरत है.

कुल मिलाकर, सैन्य सेवाओं के आधुनिकीकरण की ख़ास और फ़ौरी ज़रूरतों के लिए पूंजीगत व्यय में की गई करीब 19 फ़ीसदी की बढ़ोतरी भी पर्याप्त नहीं है. अगर भारत अपनी सैन्य सेवाओं की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाता है तो देश की रक्षा-शक्ति को नई धार देने दे पाने की देश की काबिलियत बस एक शिगूफ़ा बनकर रह जाएगी. हालांकि यहां इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत की अपेक्षाकृत कमज़ोर आर्थिक स्थिति इस रास्ते की एक बड़ी बाधा है. सोचने की बात है कि अगर देश के पास पर्याप्त आर्थिक संसाधन नहीं होंगे तो वो खर्च कैसे कर पाएगा.


यह लेख मूल रूप से द डिप्लोमेट में प्रकाशित हो चुका है.

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