Published on Apr 01, 2019 Updated 0 Hours ago

भारत एक लम्बा रास्ता तय कर चुका है।

भारत का एएसएटी परीक्षण: आगे के कदम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की — भारत ने 300 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक लाइव सेटेलाइट को निशाना बनाते हुए एक एंटी-सेटेलाइट (एएसएटी) मिसाइल परीक्षण किया है। इस कदम के साथ ही भारत-अमेरिका,रूस और चीन के बाद ऐसी क्षमता प्रदर्शित कर पाने में सक्षम चौथा देश बन गया। इस्राइल एकमात्र ऐसा देश है, जिसे इस क्षमता से लैस समझा जाता है, लेकिन उसने अब तक इसका प्रदर्शन नहीं किया है।

भारत का एएसएटी परीक्षण कुछ सवाल खड़े कर सकता है, क्योंकि इसे हथियारों की होड़ के रूप में देखे जाने की संभावना है, लेकिन मोदी ने तर्क दिया है कि यह एक “रक्षात्मक” कदम है, जिसका उद्देश्य अपने उपग्रहों की रक्षा करना है। उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य शांति बनाए रखना है, न कि युद्ध का माहौल बनाना। हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम का लक्ष्य शान्ति, भारत की आर्थिक और प्रौद्योगिकीय प्रगति है।” भारत के लिए अंतरिक्ष की प्रमुखता पर रोशनी डालते हुए मोदी ने दावा किया, “आज हम कृषि, रक्षा, आपदा प्रबंधन, संचार, मनोरंजन, मौसम, नेविगेशन, शिक्षा, चिकित्सा उपयोगों और अन्य कार्यों सहित अपने सभी तरह के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उपग्रहों का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में, इन उपग्रहों की सुरक्षा बेहद महत्वपूर्ण है।”

भारत का एएसएटी परीक्षण हैरानी की बात नहीं हैबल्कि इसको करने का समय हैरतंगेज है। 2007 में चीन के सफल एएसएटी परीक्षण के बाद पिछले दशक में भारत ने अपनी एएसएटी क्षमताओं को विकसित करना शुरू कर दिया था।

दरअसल, डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख डॉ. वी के सारस्वत ने कई बार दावा किया कि भारत दुश्मन के सेटेलाइट को मार गिराने के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियां विकसित कर रहा है। असल में, 6 मार्च 2011 को किए गए भारत की पहली एंटी-बेलिस्टिक मिसाइल के सफल परीक्षण को भारत की एएसएटी क्षमता के विकास की दिशा में उठाए गए कदम के तौर पर देखा गया।

बहुत से लोग सवाल उठाएंगे कि जब भारत विकास समझी चुनौतियों के दलदल में उलझा हुआ है, तो ऐसे दौर में भारत द्वारा ऐसी क्षमताओं का विकास और उनका परीक्षण करने की क्या आवश्यकता है, लेकिन हकीकत यह है कि भारत का आस-पड़ोस ज्यादा उदार नहीं है और ऐसे में वह अंतरिक्ष के क्षेत्र में क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर किसी भी नई वास्तविकता की अनदेखी नहीं कर सकता। इसलिए, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के मोटे तौर पर असैन्य होने के बावजूद, उसे राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं पर थोड़ा ज्यादा ध्यान देना पड़ रहा है। हालांकि भारत अभी तक यही सुनिश्चित करना चाहता है कि बाह्य अंतरिक्ष हथियारों से मुक्त रह कर शांति और स्थायित्व का क्षेत्र बना रहे, लेकिन यकीनन यह सुनिश्चित करना अकेले भारत की जिम्मेदारी नहीं है। भारत बाह्य अंतरिक्ष के बढ़ते सैन्यीकरण को टाल नहीं सकता और इस वास्तविकता की अनदेखी करने से केवल भारत के सुरक्षा हितों को ही चोट पहुंचेगी। इतना ही नहीं, ये घटनाएं ऐसे समय में हो रही हैं, जब एशिया और उससे परे सत्ता में व्यापक बदलाव हो रहे हैं। आक्रामक चीन के साथ भारत की मुश्किले भी उसे इस रास्ते पर चलने के लिए विवश कर रही हैं।

जहां तक एएसएटी का सवाल है, भारत एक लम्बा रास्ता तय कर चुका है। 1970 और 1980 के दशकों में अमेरिका और सोवियत संघ के एएसएटी परीक्षणों के कड़े विरोध से लेकर, अब भारत इन क्षमताओं और ऐसे प्रदर्शनों की सामरिक उपयोगिता की सराहना करने लगा है। जहां एक ओर 2000 के दशक के आरंभ से ही अप्रसार संबंधी मामलों और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्थाओं के प्रति भारत का रुख बदलता रहा है, वहीं जनवरी 2007 में चीन द्वारा एएसएटी परीक्षण किए जाने के बाद अंतरिक्ष के बारे में भारत का रुख जाहिर होना शुरू हो गया। चीन की ओर से किया गया यह परीक्षण भारत के नीति निर्माताओं के लिए खतरे की घंटी था, जिन्होंने इस खतरे से निपटने के लिए भारत सरकार के भीतर कुछ नौकरशाही और अंतर-विभागीय अवरोधों को तोड़ने का आह्वान किया। डीआरडीओ के तत्कालीन प्रमुख एम.नटराजन ने सुझाव दिया था कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ)और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)के बीच व्यापक समन्वय होना चाहिए। इसरो के डॉ. के. कस्तूरीरंगन जैसे पूर्व प्रमुखों द्वारा भी इसी तरह के विचार प्रकट किए जाते रहे हैं, जिन्होंने कहा था कि भारत ने उपग्रहों के विकास और अंतरिक्ष में उन्हें रखने के लिए बड़े पैमाने पर संसाधनों को खर्च किया है और इसलिए “उनको शत्रुओं से बचाना” हमारी जिम्मेदारी है।

जाहिर तौर पर अब अन्य देश भी ऐसा ही करेंगे और एएसटीएस बनाएंगे। लेकिन एएसएटी के संबंध में चीन ने पहल की थी और भारत को यह फैसला करने में दर्जनों साल लग गए कि क्या वह यह क्षमता प्रदर्शित करना चाहता है या नहीं। 

भारत ने चीन के परीक्षणों के जवाब में आनन-फानन में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी, लेकिन सुरक्षा संबंधी प्रतिस्पर्धा के विकृत रूप धारण करने के कारण, भारत के पास अपनी प्रतिरोधक क्षमता सुनिश्चित करने के हक में फैसला करने के सिवा और कोई विकल्प ही नहीं बचा था। लेकिन सभी पक्ष इस बेलगाम मुकाबले में उतर जाएंगे, क्योंकि वे सभी अंतरिक्ष पर निर्भर हैं।

अब जबकि भारत ने अपना अंतिम फैसला कर लिया है और वह अपनी एएसएटी क्षमता का प्रदर्शन कर चुका है, ऐसी स्थिति में भारत को ऐसे नियम बनाने में सहायता करने के गंभीर प्रयास करने चाहिए, जिनसे बाह्य अंतरिक्ष की गतिविधियों पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सके। मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक वातावरण में, इस बात की कल्पना करना अव्यवहारिक होगा कि पृथ्वी के वातावरण के बाहर यात्रा करने वाले प्रमुख देश किसी वैश्विक संधि के लिए सर्वसम्मति कायम करेंगे, लेकिन भारत को ऐसे प्रयास करने के अवसर हाथ से नहीं जाने देने चाहिए। कम से कम, भारत को ग्लोबल गवर्नेंस प्रबंधों के बारे में कुछ सर्वसम्मत भाषा तैयार करने के लिए सभी प्रमुख देशों के साथ तालमेल कायम करना चाहिए, जिसे निरस्त्रीकरण संबंधी सम्मेलन, संयुक्त राष्ट्र प्रथम समिति और संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण आयोग सहित विविध मंचों पर उठाया जा सके।

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