Published on May 31, 2021 Updated 0 Hours ago
भारत की 3 ट्रिलियन डॉलर वाली इंडस्ट्री, दुनिया के लिए बनाई गई तानाशाही

शेयर बाज़ार पर जितना समाज का अधिकार है उतना ही नागरिकों का भी, जितना किसी संगठन की अभिव्यक्ति है उतनी किसी व्यक्ति की भी, जितना आमदनी का संकेत है उतना ही अटकलबाज़ी का और जितना विरोधाभासी है उतना ही सूचक भी. इसलिए जब आप बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) के बाज़ार पूंजीकरण- यानी सभी लिस्टेड कंपनियों की संयुक्त मार्केट वैल्यू- के पहली बार 24 मई 2021 को 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर पार करने की तरफ़ देखते है तो इस घटना का आकलन करते समय इन सभी घटकों की जांच-पड़ताल करनी चाहिए. 

बीएसई के सीईओ आशीष चौहान पूरे आंकड़े के बारे में बताते हुए लिखते हैं: 6 करोड़ 90 लाख रजिस्टर्ड निवेशक, 1,400 ब्रोकर, 69,000 म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर और 4,700 कंपनियों ने एकजुट होकर 219 लाख करोड़ रुपये इकट्ठा किए हैं. आपको पता होना चाहिए कि भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद जिसकी परिभाषा इस तरह दी जाती है “अर्थव्यवस्था में मौजूद सभी निवासियों के द्वारा जोड़े गए ग्रॉस वैल्यू में उत्पाद टैक्स जोड़कर उत्पाद के मूल्य में नहीं शामिल सब्सिडी घटाइए”) 196 लाख करोड़ होने का अनुमान लगाया जाता है. इस तरह शेयर बाज़ार के पूंजीकरण और जीडीपी का अनुपात 112 प्रतिशत है. 

2010 के 97 प्रतिशत उछाल को छोड़ दें तो शेयर बाज़ार का पूंजीकरण 15 वर्षों से नियमित रूप से बढ़ रहा है. शेयर बाज़ार के पूंजीकरण और जीडीपी का अनुपात 70 प्रतिशत के इर्द-गिर्द घटता-बढ़ता रहा है. इस दौरान अर्थव्यवस्था और बाज़ार- दोनों अपनी-अपनी रफ़्तार से नियमित रूप से बढ़े हैं. 112 प्रतिशत पर ये आंकड़ा अभी तक सबसे ज़्यादा है. दुनिया का औसत 129 प्रतिशत है वहीं अमेरिका का 222 प्रतिशत, कनाडा का 180 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया का 136 प्रतिशत, जापान का 133 प्रतिशत और यूनाइटेड किंगडम का 131 प्रतिशत. वैसे भारत इस मामले में चीन के 79 प्रतिशत के आंकड़े से आगे है. 

निश्चित रूप से इन सभी बाज़ारों ने पिछले एक वर्ष के दौरान अपने उच्चतम स्तर को छुआ है. भारत में 12 महीनों के दौरान 85 प्रतिशत मुनाफ़ा (करेंसी के लिए समायोजित नहीं) दुनिया में सबसे ज़्यादा है. इसके बाद दक्षिण कोरिया (81 प्रतिशत), कनाडा (63 प्रतिशत), अमेरिका (51 प्रतिशत), यूनाइटेड किंगडम (48 प्रतिशत) और जर्मनी (46 प्रतिशत) जैसे देश हैं. लेकिन आम तौर पर किसी बाज़ार का आकलन या विश्लेषण इन अल्पकालीन गतिविधियो के आधार पर नहीं किया जाता. पिछले दो दशकों के दौरान भारतीय बाज़ारों का पूंजीकरण 18.2 प्रतिशत की संयोजित सालाना वृद्धि दर (सीएजीआर) के हिसाब से बढ़ा है. 

इस बढ़ोतरी को कई तरीक़ों से देखा जा सकता है. सबसे पहले जीडीपी बढ़ोतरी बताता है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक से लेकर दूसरे अंतर्राष्ट्रीय संस्थान और बड़े प्राइवेट ब्रोकरेज के मुताबिक़ भारत सबसे ज़्यादा तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था में से एक है (अगर सबसे ज़्यादा नहीं तो). आईएमएफ का अप्रैल 2021 का विश्व आर्थिक दृष्टिकोण अनुमान लगाता है कि भारत 2021 में 12.5 प्रतिशत और 2022 में 6.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करेगा जो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज़्यादा है. एशियाई विकास बैंक का अप्रैल 2021 दृष्टिकोण अनुमान लगाता है कि भारत 2021 में 11 प्रतिशत और 2022 में 7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करेगा. ये भी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज़्यादा है. अगर बुनियादी विकास ज़्यादा है तो शेयर बाज़ार भी उसी राह पर बढ़ेगा. फिलहाल शेयर बाज़ार में बढ़ोतरी अर्थव्यवस्था से ज़्यादा है, इसलिए बाज़ार पूंजीकरण और जीडीपी का अनुपात 100 के पार चला गया है. 

दूसरा तरीक़ा है प्वाइंट टू प्वाइंट मुनाफ़ा. पिछले 30 वर्षों के दौरान सेंसेक्स 1,000 से कम की स्थिति से बढ़कर 50,000 के पार चला गया है यानी 14.9 प्रतिशत की संयोजित सालाना वृद्धि दर (सीएजीआर). ये आंकड़ा पिछले 20 वर्षों के लिए 13.4 प्रतिशत है, पिछले 10 वर्षों के लिए 11.9 प्रतिशत और पिछले पांच वर्षों के लिए 14.6 प्रतिशत. ये मुनाफ़ा 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के मौजूदा पूंजीकरण वाले बाज़ारों में सबसे ज़्यादा में से है. अमेरिका से तुलना करें तो 30, 20, 10 और 5 वर्षों में वहां के बाज़ार से क्रमश: 8.6 प्रतिशत, 6.1 प्रतिशत, 11.2 प्रतिशत और 14.6 प्रतिशत मुनाफ़ा दर्ज किया गया है. वहीं हॉन्ग कॉन्ग के लिए ये मुनाफ़ा क्रमश: 7 प्रतिशत, 4.8 प्रतिशत, 4 प्रतिशत और 11.7 प्रतिशत है. बाज़ार में ज़रूरत से ज़्यादा मुद्रा की उपलब्धता वैश्विक रूप से शेयर की क़ीमत बढ़ा रही है. भारत में इक्विटी म्युचुअल फंड में निवेश करने वाले घरेलू निवेशक शेयर की क़ीमत बढ़ा रहे हैं. 

तीसरा तरीक़ा है- शेयर की क़ीमत और बाज़ार पूंजीकरण में बढ़ोतरी के साथ मूल्यांकन में आनुपातिक बढ़ोतरी होती है. इसकी वजह से कुछ विश्लेषक कहने लगे हैं कि दूसरे कई और बाज़ारों की तरह भारतीय बाज़ार का मूल्यांकन भी ज़रूरत से ज़्यादा किया गया है. 31 गुना के साथ भारत का प्राइस टू अर्निंग मल्टीपल (कंपनी के शेयर की क़ीमत और प्रति शेयर कंपनी की कमाई का अनुपात) सबसे ज़्यादा में से एक है. एक बार ज़्यादा होने में दिक़्क़त नहीं है लेकिन लगातार ज़्यादा प्राइस टू अर्निंग मल्टीपल समस्या बन सकता है. लेकिन ज़्यादा प्राइस टू अर्निंग मल्टीपल आजकल संभवत: आर्थिक बढ़ोतरी के पुराने ट्रैक रिकॉर्ड और भविष्य में विकास जारी रहने की उम्मीदों को शामिल करने की वजह से है. इसका नतीजा ये होता है कि देश और इसके ज़रिए अर्थव्यवस्था से तेज़ गति से बढ़ने वाली आधारभूत कंपनियों को फ़ायदा होता है. हालांकि ये रातों-रात बदल सकता है.

बढ़ोतरी को देखने का चौथा तरीक़ा है उपभोक्ताओं की एक बड़ी संख्या के साथ-साथ औद्योगिक और सेवा गतिविधियों के अलावा बढ़ता कारोबारी जोश. क्या भारतीय कारोबार उड़ने के लिए तैयार है? हम पूरी तरह निश्चिंत नहीं हो सकते- 2.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. इस दशक के दौरान भारत के दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद है. जीडीपी कंपनियों के कंधे की सवारी करेगी. चीन में बने कोविड-19 वायरस के बावजूद वैश्विक और भारतीय निवेशक इस हालात को बनते हुए देख रहे हैं. 

भारतीय कंपनियों का 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का बाज़ार पूंजीकरण यहां के संस्थानों की बड़ी मात्रा को दिखाता है. बड़ी संख्या में सीधे निवेशक के अलावा मध्यवर्ती संस्थाओं जैसे म्युचुअल फंड, बीमा और यहां तक कि भविष्य निधि के ज़रिए भी निवेशक शेयर बाज़ार में प्रवेश कर रहे हैं. अगर किसी भी तरह का विरोधाभास है भी तो वो इन निवेशकों की ताक़त नहीं है जिसने बाज़ार का मूल्यांकन बढ़ा दिया है बल्कि आधारभूत कंपनियों का मज़बूत होना है जो मूल्यांकन के साथ मेल खाएगा. एक थ्योरी कहती है कि शेयर बाज़ार अल्पकाल में ऊपर-नीचे होगा लेकिन दीर्घकाल में ये वापस अपनी पुरानी स्थिति पर लौट जाएगा. ये हालात अगले दशक में बन सकते हैं. लेकिन ये बदलाव भी दीर्घकाल में कंपनियों की आमदनी की वजह से ज़्यादा होगा जो उन कंपनियों के बाज़ार मूल्य गिरने से ज़्यादा बढ़ेगा.

अल्पकाल में बाज़ार चिड़चिड़ा प्राणी है लेकिन दीर्घकाल में लगातार मुनाफ़ा देता है. अच्छी तरह बढ़ने के बावजूद चीज़ें ख़राब हो सकती हैं. इस वक़्त हर पल में वो ज़रूरत से ज़्यादा वैल्यू वाले लग सकते हैं. बाज़ार ने कई बार विश्लेषकों को ग़लत साबित किया है. अगर आप एक भारतीय निवेशक हैं तो आपको बाज़ार में निवेश जारी रखना चाहिए. लेकिन अगर आप विदेशी हैं तो याद रखें कि सेंसेक्स के 50,000 स्तर पर पहुंचने के साथ भारत ऐसे मुकाम पर पहुंच गया है जहां आपके कुल निवेश में 10 प्रतिशत शेयर में निवेश ज़रूरी है. किसी उभरते बाज़ार या एशियाई बाज़ार में नहीं बल्कि भारतीय बाज़ार में. बेशक आप इस पर राज़ी होने से पहले बाज़ार के 60,000 या 75,000 छूने का इंतज़ार कर सकते हैं! 

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