Author : K. V. Kesavan

Published on Feb 06, 2021 Updated 0 Hours ago

जापान, ऑस्ट्रेलिया का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है और देश के बड़े निवेशकों में से एक है. दोनों के आर्थिक संबंधों को द्विपक्षीय साझीदारी के समझौते से और मज़बूती मिलती है.

जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच बढ़ता सुरक्षा सहयोग

नवंबर 2020 में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने दो दिनों का जापान दौरा किया था. 17-18 नवंबर को मॉरिसन का जापान दौरा कोई दस्तूर निभाने वाला कार्यक्रम नहीं था. मॉरिसन का जापान जाना न सिर्फ़ ऑस्ट्रेलिया और जापान के द्विपक्षीय संबंधों की दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि 4 देशों के समूह, क्वाड (QUAD) की तेज़ी से बढ़ती प्रासंगिकता के लिहाज़ से भी बेहद अहम था. इसकी अहमियत आप ऐसे समझ सकते हैं कि स्कॉट मॉरिसन ने दुनिया भर में फैली कोविड-19 महामारी के दौरान, जापान का दौरा किया. उन्होंने इस जोखिम की भी अनदेखी कर दी कि जापान दौरे से ऑस्ट्रेलिया वापस आने के बाद उन्हें 14 दिनों के क्वारंटीन का भी सामना करना पड़ सकता है. स्कॉट मॉरिसन किसी भी देश के पहले राजनेता थे, जिनकी मेज़बानी जापान के नए प्रधानमंत्री योशिहिडे सुगा कर रहे थे. कोविड-19 की महामारी शुरू होने के बाद, स्कॉट मॉरिसन का ये पहला विदेश दौरा था.

स्कॉट मॉरिसन ने दुनिया भर में फैली कोविड-19 महामारी के दौरान, जापान का दौरा किया. उन्होंने इस जोखिम की भी अनदेखी कर दी कि जापान दौरे से ऑस्ट्रेलिया वापस आने के बाद उन्हें 14 दिनों के क्वारंटीन का भी सामना करना पड़ सकता है. 

जापान और ऑस्ट्रेलिया, दोनों ही अमेरिका के बड़े पुराने सहयोगी देश रहे हैं. हाल के कुछ वर्षों से दोनों देशों ने आपसी रक्षा सहयोग को भी मज़बूत बनाना शुरू कर दिया है. जापान, ऑस्ट्रेलिया का प्रमुख आर्थिक सहयोगी भी है; जापान, ऑस्ट्रेलिया का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है और देश के बड़े निवेशकों में से एक है. दोनों के आर्थिक संबंधों को द्विपक्षीय साझीदारी के समझौते से और मज़बूती मिलती है. असल में ये जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे थे, जिन्होंने अमेरिका के साथ गठबंधन को जापान की कूटनीति के केंद्र में रखने के साथ-साथ, मध्यम वर्ग की ताक़तों जैसे ऑस्ट्रेलिया, भारत, वियतनाम और इंडोनेशिया के साथ मज़बूत सामरिक साझेदारी विकसित करने में दिलचस्पी दिखाई थी. शिंजो आबे को लगता था कि ये देश, उनके स्वतंत्र एवं मुक्त हिंद प्रशांत (FOIP) क्षेत्र के सपने को साकार करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं.

साल 2007 से बेहतर संबंधों पर ज़ोर

हम अगर याद करें, तो जापान और ऑस्ट्रेलिया, 2007 से ही बड़े संस्थागत तरीक़े से अपने सुरक्षा संबंधों में गहराई लाने का प्रयास करते आए हैं. उस साल दोनों देशों ने पहली बार सुरक्षा सहयोग के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे. इसके बाद, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने 2012 में सूचना सुरक्षा समझौता किया, जिसके तहत दोनों देश आपस में गोपनीय सूचनाएं साझा कर सकते हैं. 2014 में जापान और ऑस्ट्रेलिया ने रक्षा तकनीक और उपकरणों के आदान-प्रदान का बेहद महत्वपूर्ण समझौता किया. इसके साथ साथ दोनों देशों ने अपने संबंधों को एक पायदान और ऊंचे ले जाकर इसे विशेष सामरिक साझीदारी का दर्ज़ा दिया.

दोनों देश, अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के हाथों से राष्ट्रपति जो बाइडेन को सत्ता हस्तांतरण की पेचीदा प्रक्रिया से पैदा हुई अनिश्चितता का लाभ उठाने से चीन को रोकना चाहते थे. मॉरिसन, जापान के साथ एक ऐसा समझौता करने को लेकर उत्सुक थे, जिससे दोनों देशों के बीच साझा सैन्य अभ्यास हो सके और दोनों देशों की सेनाएं आपस में मिलकर काम कर सकें. 

हाल के वर्षों में चीन के उभार ने जापान और ऑस्ट्रेलिया को एक दूसरे के क़रीब लाने का काम किया है. दोनों देश, अमेरिका और भारत के साथ मिलकर मुक्त एवं स्वतंत्र हिंद प्रशांत (FOIP) रणनीति को बढ़ावा देते रहे हैं, जिससे कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामक आर्थिक और सैन्य गतिविधियों से निपटते हुए, वहां शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा दे सकें. योशिहिडे सुगा ने शिंजो आबे से विरासत में सत्ता हासिल करने के साथ-साथ उनका मुक्त एवं स्वतंत्र हिंद-प्रशांत (FOIP) का विज़न भी अपनाया है. इसीलिए, हिंद प्रशांत की सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए सुगा ने सत्ता में आने के एक महीने बाद ही, अक्टूबर 2020 में बड़े उत्साह से क्वॉड (Quad) की दूसरी मंत्रिस्तरीय बैठक की मेज़बानी की थी. इसके बाद उन्होंने अपने पहले विदेश दौरे के लिए वियतनाम और इंडोनेशिया को चुना था. ये दोनों ही देश आसियान (ASEAN) के प्रमुख सदस्य हैं. जापान के मुक्त एवं स्वतंत्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र का विज़न साकार करने में, इन दोनों देशों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण साबित होगी.

हमें, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन के जापान दौरे की अहमियत को इसी पृष्ठभूमि में समझना होगा. मॉरिसन, जापान के साथ द्विपक्षीय सुरक्षा साझेदारी मज़बूत करने के लिए आपसी मदद के समझौते (Reciprocal Assistance Agreement RAA) पर दस्तख़त के लिए जापान गए थे. कुछ विश्लेषक मानते हैं कि, जापान और ऑस्ट्रेलिया द्वारा ये समझौता करने में जल्दबाज़ी का एक प्रमुख कारण ये था कि दोनों देश, अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के हाथों से राष्ट्रपति जो बाइडेन को सत्ता हस्तांतरण की पेचीदा प्रक्रिया से पैदा हुई अनिश्चितता का लाभ उठाने से चीन को रोकना चाहते थे. मॉरिसन, जापान के साथ एक ऐसा समझौता करने को लेकर उत्सुक थे, जिससे दोनों देशों के बीच साझा सैन्य अभ्यास हो सके और दोनों देशों की सेनाएं आपस में मिलकर काम कर सकें. इसके लिए वो जापान के आत्म-रक्षक बलों और ऑस्ट्रेलिया के सैन्य बलों के ऊपर, एक दूसरे के क्षेत्र में रहने के दौरान लगने वाली बंदिशों को हटाना चाहते थे. इस समझौते से दोनों देशों में ये सहमति बन गई है कि दोनों में से कोई भी देश, दूसरे के यहां अपनी सेनाओं को अभ्यास करने भेज सकता है. इसके लिए उन्हें किसी प्रशासनिक औपचारिकता को निभाने की ज़रूरत नहीं होगी. इस समझौते के बाद, दोनों देशों द्वारा एक दूसरे के यहां हथियार और अन्य संसाधन लाने ले जाने की प्रक्रिया भी आसान हो जाएगी. इससे जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच सैनिक क्षेत्र में आपसी सहयोग की राह सुगम होगी. RAA संधि से जापान की थल सेना और ऑस्ट्रेलिया की थल सेना के बीच सहयोग के नए अवसर खुलेंगे.

जापान – ऑस्ट्रेलिया के बीच रेसिप्रोकल असिस्टेंस एग्रीमेंट

यहां ध्यान देने वाली सबसे अहम बात ये है कि इस समझौते के लिए जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच पिछले कई वर्षों से बातचीत चल रही थी. मगर बात जापान में मृत्यु दंड के क़ानून को लेकर ऑस्ट्रेलिया की संवेदनशीलता की वजह से अटकी हुई थी. सवाल ये था कि अगर, जापान में तैनात ऑस्ट्रेलिया का कोई सैनिक अपनी आधिकारिक ज़िम्मेदारियों से इतर अगर कोई गंभीर अपराध करने के आरोप में पकड़ा जाता है, तो उसका क्या होगा? चूंकि, जापान में अभी भी मृत्यु दंड की सज़ा है, तो ऑस्ट्रेलिया को चिंता इस बात की थी कि कहीं उसके किसी नागरिक को जापान में मौत की सज़ा न दे दी जाए. पर, अब इस क्षेत्र की सुरक्षा के व्यापक हित को देखते हुए, दोनों देशों ने एक ऐसा तरीक़ा ढूंढ़ निकाला है, जिससे वो ऐसे मामलों से उनकी गंभीरता के हिसाब से निपटेंगे. हालांकि, अभी इस बात की घोषणा नहीं की गई है कि ये व्यवस्था क्या होगी.

ये समझौता लागू होने के लिए ज़रूरी ये है कि जापान और ऑस्ट्रेलिया इस पर औपचारिक रूप से दस्तख़त करें. दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने अपने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वो इस समझौते पर हस्ताक्षर की प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा करें. ये समझौता लागू करने के लिए जापान को इसे अपनी संसद (Diet) से भी पास कराना होगा.

दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने अपने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वो इस समझौते पर हस्ताक्षर की प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा करें. ये समझौता लागू करने के लिए जापान को इसे अपनी संसद (Diet) से भी पास कराना होगा.

1960 के बाद ये पहली बार है, जब जापान किसी भी देश के साथ इस तरह का सामरिक समझौता कर रहा है. 1960 में जापान ने अमेरिका के साथ स्टेटस ऑफ़ फोर्सेज एग्रीमेंट (SOFA) पर हस्ताक्षर किए थे. तभी से ये समझौता दोनों देशों के संबंधों में बार-बार तनाव पैदा होने का कारण बना है. लेकिन, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच रेसिप्रोकल असिस्टेंस एग्रीमेंट यानी RAA, अमेरिका के साथ हुए SOFA से बिल्कुल अलग है. SOFA के तहत जहां, जापान ने अमेरिका को स्थायी तौर पर अपने यहां सैनिक तैनात करने की इजाज़त दी है. वहीं, RAA के अंतर्गत जापान और ऑस्ट्रेलिया को एक दूसरे के यहां अस्थायी तौर पर सैनिक भेजने की इजाज़त होगी.

RAA को अंतिम रूप देने के साथ साथ, मॉरिसन और योशिहिडे सुगा ने हिंद प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को भी दोहराया. दोनों नेताओं ने विशेष तौर पर, ‘दक्षिणी चीन सागर के मौजूदा हालात में ज़बरदस्ती और इकतरफ़ा तरीक़े से बदलाव की किसी भी कोशिश का कड़ा विरोध किया’. दोनों नेताओं ने सभी देशों से अपील की कि वो दक्षिणी चीन सागर में आवाजाही की स्वतंत्रता और इसके ऊपर उड़ान भरने की आज़ादी का सम्मान करें. जापान और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्रियों ने इस क्षेत्र में व्यवहार के लिए एक कोड ऑफ़ कंडक्ट की ज़रूरत भी दोहराई, जो संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ़ द सीज़ (UNCLOS) के अंतरराष्ट्रीय क़ानून की भावना के अनुरूप हो. चीन के जहाज़ नियमित रूप से सेनकाकू द्वीपों के आस-पास के जापानी समुद्री क्षेत्र में घुसपैठ करते आए हैं. योशिहिडे सुगा और स्कॉट मॉरिसन ने पूर्वी चीन सागर में चीन की ऐसी आक्रामक गतिविधियों की भी आलोचना की.

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