प्रस्तावना: रायसीना डायलॉग 2024- बदलाव का एक समागम
समावेशी स्वास्थ्य के समाधान प्राप्त करने के लिए तकनीक, नीति निर्माण और ज़मीनी स्तर पर की जा रही पहलों के बीच मेल की परिचर्चा के लिए रायसीना डायलॉग 2024 ने एक अहम मंच उपलब्ध कराया था. आज जब दुनिया स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच के मामले में असमानताओं, सस्ती और अच्छी स्वास्थ्य सेवा की दिक़्क़तों का सामना कर रही है, ऐसे में रायसीना डायलॉग ने तमाम क्षेत्रों के बीच आपसी सहयोग के प्रयासों से स्वास्थ्य के क्षेत्र की इन खाइयों को पाटने की ज़रूरत को रेखांकित किया है.
इस लेख में पैनल की परिचर्चाओं से निकले कुछ अहम सबक़ों का विश्लेषण किया गया है, जिनमें स्वास्थ्य के क्षेत्र में तरक़्क़ी को समावेशी और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील होना सुनिश्चित करने के लिए विशेष स्थानीय परिस्थितियों को समझने, पूरे उत्तरदायित्व से तकनीक का इस्तेमाल करने और तमाम सेक्टरों के बीच तालमेल की महत्वपूर्ण भूमिका पर काफ़ी ज़ोर दिया गया था.
कोविड-19 महामारी ने वैश्विक स्वास्थ्य सेवाओं के बीच के बड़े फ़ासलों को बड़े भयावह तरीक़े से उजागर किया है. इस महामारी की वजह ही हमें स्वास्थ्य सेवा के कवरेज, कुशलता और सेवा उपलब्ध कराने में सटीक लक्ष्य प्राप्त करने की राह में अहम असमानताओं की जानकारी मिल सकी. इस परिदृश्य में रायसीना डायलॉग 2024 में ‘नैविगेटिंग हेल्थ फ्यूचर्स: इक्विटी ऐंड इनक्लूज़न इन ए डायनामिक वर्ल्ड’ के नाम से एक पैनल परिचर्चा आयोजित की. इसमें तमाम क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने मिल बैठकर इन चुनौतियों से निपटने के तौर-तरीक़ों पर चर्चा की. इस परिचर्चा का ज़ोर मुख्य रूप से स्वास्थ्य के ऐसे समावेशी समाधानों की ज़रूरत पर बल देना था, जो समाज की अलग अलग ज़रूरतों को पूरा कर सकें. इस कार्यक्रम के दौरान ही ऐतिहासिक हेल्थ इक्विटी एंड इंक्लूजन इन एक्शन रिपोर्ट को जारी किया गया. इस रिपोर्ट में, अफ्रीका, दक्षिणी और दक्षिणी पूर्वी एशिया के तमाम संदर्भों के मामले में स्वास्थ्य के क्षेत्र में समता और समावेश को बढ़ावा देने के लिए नए नए तरीक़ों का ज़िक्र किया गया है.
इस लेख में पैनल की परिचर्चाओं से निकले कुछ अहम सबक़ों का विश्लेषण किया गया है, जिनमें स्वास्थ्य के क्षेत्र में तरक़्क़ी को समावेशी और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील होना सुनिश्चित करने के लिए विशेष स्थानीय परिस्थितियों को समझने, पूरे उत्तरदायित्व से तकनीक का इस्तेमाल करने और तमाम सेक्टरों के बीच तालमेल की महत्वपूर्ण भूमिका पर काफ़ी ज़ोर दिया गया था. आज जब दुनिया में ऐसी लचीली स्वास्थ्य व्यवस्थाएं बनाने की कोशिश की जा रही है, जो समतावादी, सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और तकनीकी रूप से उन्नत हों. इन प्रयासों को देखते हुए, ये परिचर्चा बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है.
इस पैनल ने जिन अहम थीमों पर चर्चा की उनमें ये विषय मुख्य रूप से शामिल थे: हम स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में हो रही तरक़्क़ी को कैसे समावेशी बनाना सुनिश्चित कर सकते हैं, जो समाज के सभी तबक़ों की अलग अलग ज़रूरतें पूरी कर सकें? स्वास्थ्य सेवाएं ये कैसे सुनिश्चित कर सकती हैं कि वो स्थानीय संस्कृतियों पर आधारित हों और समावेशीकरण का लक्ष्य प्राप्त करने में तकनीक का ज़िम्मेदारी से इस्तेमाल करती हों? स्वास्थ्य के क्षेत्र में समता और समावेश की पहलों को उजागर करने में अलग अलग क्षेत्रों के बीच सहयोग में कितनी संभावनाएं हैं?
सेहत के समावेशी समाधानों की ज़रूरतें
समाज के सभी वर्गों और ख़ास तौर से हाशिए पर पड़े और स्वास्थ्य सेवाओं से महरूम समुदायों को स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने के लिए इनके समावेशी समाधान आवश्यक हैं. महामारी ने दिखा दिया है कि स्वास्थ्य सेवाओं की कमियां किस तरह से समाज के कमज़ोर तबक़ों पर तुलनात्मक रूप से कहीं अधिक असर डालती हैं. इससे सेहत के ऐसे समाधानों की ज़रूरत पर बल देने की बात रेखांकित हुई, जो न केवल तकनीकी रूप से नए हैं, बल्कि तमाम सांस्कृतिक परिवेशों के लिहाज़ से आसान पहुंच रखने वाले और फौरी सहायता उपलब्ध कराने वाले हों. समावेशी होना एक नैतिक ज़रूरत है. लेकिन, समावेश के मोर्चे पर कामयाबी हासिल करने से पूरे समाज को व्यापक फ़ायदे मिल सकते हैं. ऐसा इसलिए है, क्योंकि समावेशी स्वास्थ्य सेवाएं टिकाऊ विकास को गति दे सकती हैं और आर्थिक प्रगति को शिखर पर पहुंचा सकती हैं.
समतावादी स्वास्थ्य सेवा के लिए तकनीक का उपयोग
डिजिटल मेडिसिन, वैक्सीन तकनीक और लक्ष्य आधारित इलाज के विकल्प, स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में असमानताओं से निपटने के मामले में काफ़ी उम्मीद जगाते हैं. लेकिन, इन तकनीकों को जिन स्थानीय क्षेत्रों में लागू किया जाना है, वहां के हालात बारीक़ समझना इन समाधानों को प्रभावी बनाने के लिए बहुत ज़रूरी है. रायसीना डायलॉग में स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता सुधारने में तकनीक के उपयोग की संभावनाओं को रेखांकित किया गया. इनमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और टेलीमेडिसिन जैसी तकनीकें भी शामिल हैं. इसके साथ साथ, परिचर्चा में तकनीक के ज़िम्मेदारी भरे इस्तेमाल की अहमियत पर भी बल दिया गया, ताकि मौजूदा असमानताओं की खाई और गहरी होने से बचा जा सके.
दक्षिण अफ्रीका की स्वास्थ्य व्यवस्था में ज़िम्मेदारी के तबादले और प्रगतिशील सरकारी नीतियों की अहमियत एवं भारत में मोबाइल तकनीक के ज़रिए दूर-दराज़ के इलाक़ों में रहने वाले समुदायों तक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के उदाहरण शामिल हैं.
हालांकि, स्वास्थ्य के समावेशी आविष्कार विकसित करने की कोशिश करना ही पर्याप्त नहीं है. इनोवेशन से जनता की सेहत तभी बेहतर हो सकेगी, जब ये नए आविष्कार उन लोगों तक पहुंच सकें, जिनके लिए ये बनाए गए हैं. ये साफ़ है कि इनोवेशन की मांग बढ़ाने के लिए व्यापक और बहुआयामीत रणनीतियों की ज़रूरत है. ऐसी रणनीतियां प्रभावी और समावेशी हों, इसके लिए उन्हें हाशिए पर पड़े वर्गों को उनकी विशेष परिस्थितियों के मुताबिक़ टारगेट करने के हिसाब से तैयार करने की आवश्यकता है, जहां वो पलते बढ़ते हैं, जीते हैं और काम करते हैं. ये मक़सद पूरा करने के लिए ऐसे व्यापक प्रयास करने होंगे, जो स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले संस्थानों पर भरोसे को बढ़ा सकें, और इसके साथ साथ, ग़लत जानकारी का मुक़ाबला करने के लिए मीडिया और समुदायों के साथ अर्थपूर्ण संवाद भी संभव बनाएं.
अलग अलग सेक्टरों के बीच सहयोग की ताक़त
स्वास्थ्य सेवाओं में समता और समावेश की पहलों के असर को उजागर करने के लिए सरकार, जन स्वास्थ्य के संस्थानों, तकनीकी आविष्कारकों और जैविक विज्ञान के आविष्कारकों जैसे अलग अलग सेक्टरों के बीच सहयोग ज़रूरी है. सेहत को बढ़ावा देने के सभी प्रयासों में अलग अलग क्षेत्रों के बीच सहयोग महत्वपूर्ण है. भले ही हम स्वास्थ्यवर्धक खाने को बढ़ावा दे रहे हों, लैंगिक आधार पर हिंसा का मुक़ाबला कर रहे हों या फिर कमज़ोर समूहों की मानसिक सेहत की हिफ़ाज़त कर रहे हों. ऐसी साझेदारियों से संसाधनों, ज्ञान और विशेषज्ञता को इकट्ठा किया जा सकता है, जिससे स्वास्थ्य समस्याओं के अधिक व्यापक और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील समाधानों को बढ़ावा मिलता है. रायसीना डायलॉग ने ऐसे सफल सहयोगों का उदाहरण पेश किया. इसमें दक्षिण अफ्रीका की स्वास्थ्य व्यवस्था में ज़िम्मेदारी के तबादले और प्रगतिशील सरकारी नीतियों की अहमियत एवं भारत में मोबाइल तकनीक के ज़रिए दूर-दराज़ के इलाक़ों में रहने वाले समुदायों तक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के उदाहरण शामिल हैं.
वैश्विक और स्थानीय संदर्भों की समझ
ये बहुत ज़रूरी है कि सेहत के समाधान, उन स्थानीय संस्कृतियों और संदर्भों से मेल खाते हों, जहां उन्हें लागू किया जाता है. इस तरीक़े से ये सुनिश्चित होता है कि स्वास्थ्य से जुड़े विकल्प न केवल प्रभावी हों बल्कि टिकाऊ भी हों और उन समुदायों द्वारा अपना लिए जाए, जिनकी वो सेवा करते हों. थाईलैंड में सबको स्वास्थ्य सेवा देने पर परिचर्चा ने ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया, जहां स्थानीय ज़रूरतों और प्राथमिकताओं को समझकर स्वास्थ्य सेवा से जोड़ने से सबको बराबरी से ये सेवा दी जा सकती है.
स्वास्थ्य सेवा में असमानताओं से पार पाना
स्वास्थ्य सेवा की असमानताओं से निपटने के लिए ऐसी नई रणनीतियों की ज़रूर होती है, जो तकनीकी तरक़्क़ी से आगे जाती हों. परिचर्चा में ऐसी नीतियों और व्यवहारों पर ज़ोर दिया गया, जिससे स्वास्थ्य सेवा तक सबकी पहुंच बराबरी से हो, डिजिटल खाई से निपटा जा सके और ऐसी सेवाओं की कमी वाले समुदायों की सामाजिक आर्थिक हक़ीक़तों के प्रति संवेदनशील हों. पैनल में शामिल लोग तमाम भौगोलिक और पेशेवर तबक़े से ताल्लुक़ रखने वाले थे. उनके विचारों ने इन चुनौतियों से पार पाने के लिए कई अलग अलग नज़रिए उपलब्ध कराए.
इस परिचर्चा वैश्विक स्वास्थ्य की चुनौतियों से निपटने के लिए तमाम सेक्टरों के बीच सहयोग, तकनीक के ज़िम्मेदारी भरे उपयोग और स्थायीन संदर्भों की गहरी समझ की ज़रूरत को उजागर किया.
निष्कर्ष: भविष्य के लिए लचीली, समावेशी स्वास्थ्य व्यवस्था बनाने के लिए ज़रूरी क़दम उठाने की मांग
रायसीना डायलॉग 2024 ने महामारी के बाद के विश्व में समावेशी स्वास्थ्य समाधानों की सख़्त ज़रूरत को रेखांकित किया. इस परिचर्चा वैश्विक स्वास्थ्य की चुनौतियों से निपटने के लिए तमाम सेक्टरों के बीच सहयोग, तकनीक के ज़िम्मेदारी भरे उपयोग और स्थायीन संदर्भों की गहरी समझ की ज़रूरत को उजागर किया. आज जब दुनिया 21वीं सदी की जटिलताओं भरी स्वास्थ्य सेवाओं से तालमेल बिठा रही है, तो रायसीना डायलॉग से मिले सबक़, ऐसे स्वास्थ्य समाधान विकसित करने के लिए मशाल का काम करने वाले हैं, जो समतावादी, समावेशी और भविष्य के संकटों के झटके झेल सकने वाले हों.
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