डिजिटल क्रांति ने हमारी रोज़मर्रा की बातों को, बाज़ार के आयामों और खपत की आदतों में बहुत बड़ा बदलाव ला दिया है. कोविड-19 महामारी ने इस परिवर्तन की गति और तेज़ कर दी है. इसकी वजह से दूर बैठकर काम करना और कामकाज के माहौल को आम बनाया और इसे लेकर हमारी समझ का दायरा भी बढ़ा दिया है.
ग्लोबल आंत्रेप्रेन्योशिप मॉनिटर की साल 2023 की विमेन आंत्रेप्रेन्योरशिप रिपोर्ट के मुताबिक़, अगले छह महीनों में महिला उद्यमी अपने काम में और अधिक डिजिटल औज़ारों को हिस्सेदार बनाएंगी.
ग्लोबल आंत्रेप्रेन्योशिप मॉनिटर की साल 2023 की विमेन आंत्रेप्रेन्योरशिप रिपोर्ट के मुताबिक़, अगले छह महीनों में महिला उद्यमी अपने काम में और अधिक डिजिटल औज़ारों को हिस्सेदार बनाएंगी. जबकि, 25 प्रतिशत महिला उद्यमियों ने तो महामारी के दौरान नई डिजिटल तकनीकों को पहले ही अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना लिया है. ये चलन, महिलाओं की अगुवाई वाले कारोबारों को और सशक्त बनाने में डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की अहमियत को रेखांकित करता है. इनोवेशन में मदद और बाज़ार तक पहुंच का विस्तार करके ये डिजिटल औज़ार अब आर्थिक विकास और कारोबार में तरक़्क़ी के लिए ज़रूरी बनते जा रहे हैं.
हालांकि, बड़ी तेज़ी से बदलते इस डिजिटल मंज़र में हमें आपस में जुड़े क्षेत्रों की चुनौतियों और ख़ास तौर से लैंगिक समानता से जुड़े मसलों से अपनी नज़रें नहीं फेरनी चाहिए.
मौजूदा स्थिति क्या है?
डिजिटल कौशल के मामले में इस वक़्त महिलाएं, पुरुषों की तुलना में पीछे हैं. ये फ़ासला काम-काज की जगहों पर और अहम हो जाता है, जहां अब ये क़ाबिलियत अपरिहार्य होती जा रही है. यूनिसेफ की गर्ल्स डिजिटल लिटरेसी इन ईस्ट एशिया ऐंड पैसिफ़िक रीजन रिपोर्ट 2023 इस नतीजे पर पहुंची है कि बुनियादी कामों के लिए महिलाओं द्वारा तकनीक का इस्तेमाल करने की संभावना 25 प्रतिशत कम होती है. वैसे तो शुरुआती शिक्षा के दौरान लड़कों और लड़कियों के बीच डिजिटल साक्षरता की दर लगभग बराबर ही होती है. लेकिन, बाद के दौर में दोनों के बीच इसका फ़ासला बढ़ता जाता है, और लड़कियों द्वारा उन्नत डिजिटल कौशल हासिल करने की संभावना कम होती जाती है.
यूज़र के उपयोग करने में आसान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक और स्वचालन से आज काम-काज की प्रक्रिया में अभूतपूर्व गति से बदलाव आ रहा है. हालांकि, ये तकनीकी तरक़्क़ियां कई चुनौतियां भी पेश करती हैं, ख़ास तौर से रोज़गार की सुरक्षा के मामले में.
यूज़र के उपयोग करने में आसान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक और स्वचालन से आज काम-काज की प्रक्रिया में अभूतपूर्व गति से बदलाव आ रहा है. हालांकि, ये तकनीकी तरक़्क़ियां कई चुनौतियां भी पेश करती हैं, ख़ास तौर से रोज़गार की सुरक्षा के मामले में. AI और ऑटोमेशन से नौकरी जाने का ख़तरा बढ़ जाता है. ये ख़तरा महिलाओं पर तुलनात्मक रूप से अधिक असर डालता है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की जेंडर, टेक्नोलॉजी ऐंड फ्यूचर ऑफ वर्क रिपोर्ट के अनुसार, इन उभरती हुई तकनीकों की वजह से दुनिया भर में 18 करोड़ महिलाओं की नौकरी पर मंडराता ख़तरा और बढ़ गया है.
इसके अतिरिक्त, डिजिटल तकनीकें और ख़ास तौर से ख़ुद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रहों का प्रदर्शन करती हैं. कई अध्ययनों से संकेत मिला है कि रिज़्यूमे की काट-छांट में इस्तेमाल होने वाले AI सिस्टम इंसानों के मौजूदा पूर्वाग्रहों की न सिर्फ़ नक़ल करते हैं, बल्कि उसे और बढ़ा देते हैं. इसका असर भर्ती की प्रक्रिया में महिलाओं को मिलने वाले मौक़ों पर भी पड़ता है. यूनिबैंक द्वारा कराए गए एक अध्ययन में पाया गया था कि, AI के एल्गोरिद्म उन्हीं लैंगिक पूर्वाग्रहों का प्रदर्शन करते हैं, जो अभ्यर्थियों की छंटनी करने वाले इंसान करते हैं. इस तरह AI सिस्टम भी महिला अभ्यर्थियों के बजाय पुरुष अभ्यर्थियों को तरज़ीह देते हैं. ऐसे उन्नत सिस्टम जब पर्याप्त पारदर्शिता के बग़ैर काम कर रहे होते हैं, तो इनके मौजूदा पूर्वाग्रहों को बढ़ाने और उन्हें जारी रखने को लेकर चिंताएं बढ़ जाती हैं.
सकारात्मक प्रभाव के लिए आवश्यक नीतियां
महिलाएं, कंपनियों के भीतर ऐसे विविधता भरे नज़रियों का समावेश लाती हैं, जिनकी बेहद सख़्त आवश्यकता होती है, और इससे काम-काज की जगहों पर बेहतर मूल्यों को बढ़ावा मिलता है. किसी कंपनी की वित्तीय सफलता और उसके यहां काम करने वाली टीमों में लैंगिक रूप से विविधता भरे नेतृत्व के बीच काफ़ी अहम संबंध होता है. मैक्किंसी द्वारा किए गए एक रिसर्च के मुताबिक़, जिन कंपनियों में नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं की तादाद अधिक होती है, उनके उन कंपनियों की तुलना में वित्तीय रूप से शानदार प्रदर्शन करने की संभावना 48 फ़ीसद से अधिक होती है, जहां लैंगिक विविधता कम होती है. यही नहीं, महिला और पुरुष कर्मचारियों की संख्या में अंतर को पाटने से दुनिया की GDP में 12 ट्रिलियन डॉलर का इज़ाफ़ा किया जा सकता है. इस तरह काम-काज की जगहों पर महिला कर्मचारियों को बनाए रखना, और उनके करियर को आगे बढ़ने में मदद करना न केवल एक नैतिक ज़िम्मेदारी है, बल्कि ये अक़्लमंदी वाला आर्थिक फ़ैसला भी है.
लैंगिकता और तकनीक के बीच जटिल संबंध को देखते हुए, ऐसे हालात में समावेशी डिजिटल नीतियां अपनाना काफ़ी महत्वपूर्ण हो जाता है.
लैंगिकता और तकनीक के बीच जटिल संबंध को देखते हुए, ऐसे हालात में समावेशी डिजिटल नीतियां अपनाना काफ़ी महत्वपूर्ण हो जाता है. ऐसी नीतियां कामकाज की जगह में महिलाओं को बराबरी का मौक़ा उपलब्ध कराना सुनिश्चित करने, करियर में उनकी तरक़्क़ी सुरक्षित बनाने और ये सुनिश्चित करने के लिहाज़ से अहम होती हैं कि टिकाई प्रगति के मामले में वो दुनिया का नेतृत्व कर रही हैं.
2017 के वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम (WEF) के एक रिसर्च में अंदाज़ा लगाया गया था कि किसी हुनर की उपयोगिता की आधी उम्र लगभग पांच साल होती है. इसका मतलब है कि किसी कौशल की क़ीमत अगले पांच साल में आधी रह जाती है. ज़्यादा तकनीकी कौशल के मामले में, आईबीएम का आकलन तो इससे भी कम यानी लगभग 2.5 वर्ष ही है. यही नहीं, डिजिटल प्रतिभा में बढ़ते अंतर से भर्ती की प्रक्रिया का वक़्त, जोखिम और इससे जुड़ी लागत भी बढ़ती जाती है. जिस तरह के बदलाव आज डिजिटल तकनीकों की वजह से आ रहे हैं, ऐसे में नए कौशल सीखना और पुराने हुनर को बेहतर बनाना सबसे अहम हो जाते हैं.
डिजिटल शिक्षा और प्रशिक्षण उपलब्ध कराकर, तमाम क्षेत्रों में काम कर रही कंपनियां विशेष रूप से महिलाओं के लिए ट्रेनिंग कोर्स तैयार कर सकते हैं. जिससे महिलाएं ज़्यादा मांग वाले और ज़रूरी हुनर सीख सकें. कौशल विकास के ये कोर्स महिलाओं को उनकी मौजूदा भूमिकाओं में और सशक्त बनाने के साथ साथ करियर में उनकी तरक़्क़ी की संभावनाएं और उभरती हुई तकनीकों के क्षेत्र में उनकी भागीदारी को बढ़ा सकते हैं. हालांकि, इन पहलों को करियर में स्पष्ट रूप से तरक़्क़ी, वित्तीय फ़ायदों और प्रमोशन से जोड़ा जाना चाहिए. अमेज़न वेब सर्विसेज़ (AWS) और गैलप (Gallup) द्वारा एशिया प्रशांत क्षेत्र के नौ देशों में कराए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि, डिजिटल कौशल के मामले में महिलाओं और पुरुषों के बीच आत्मविश्वास का अंतर होता है. इस रिसर्च में सुझाया गया था कि महिलाओं को अपने डिजिटल हुनर, और भविष्य के अवसरों के लिए ज़रूरी कौशल सीखने की अपनी क्षमता के बारे में कम आत्मविश्वास होता है. यही नहीं, इस स्टडी में ये बात भी रेखांकित हुई थी कि डिजिटल कौशल के प्रशिक्षण से करियर में तरक़्क़ी के मामलों में भी पुरुषों और महिलाओं के बीच अंतर होता है. नए डिजिटल कौशल सीखने पर महिलाओं की तुलना में पुरुषों के प्रमोशन पाने की संभावना 10 प्रतिशत से अधिक होती है. इससे पता चलता है कि ऐसे प्रशिक्षण से फ़ायदा उठा पाने के मामले में भी महिलाओं से भेदभाव होता है.
प्रभावी कार्यक्रमों के ज़रिए ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि महिलाओं की व्यापक भागीदारी हो और पाठ्यक्रम तैयार करने में भी महिला नेतृत्व को शामिल किया जाना चाहिए.
कौशल विकास के मामले में रणनीतिक नज़रिया अपनाने से इन कमियों को दूर किया जा सकता है. प्रभावी कार्यक्रमों के ज़रिए ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि महिलाओं की व्यापक भागीदारी हो और पाठ्यक्रम तैयार करने में भी महिला नेतृत्व को शामिल किया जाना चाहिए. इन कार्यक्रमों को चाहिए की वो लैंगिक रूप से निरपेक्ष कंटेंट वाले और लचीले फॉर्मैट में हों. रोज़गार के बदलते हुए बाज़ार के मुताबिक़ ढाल सकने के लिहाज़ से ये बेहद ज़रूरी है. करियर में ब्रेक के बाद दोबारा नौकरी पर लौटने वाली महिलाओं के लिए तो ये विशेष रूप से फ़ायदेमंद होगा. इससे उन्हें तेज़ी से हो रही डिजिटल तरक़्क़ी के बीच दोबारा आत्मविश्वास और क्षमता हासिल करने में मदद मिलेगी.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के लैंगिक भेदभाव की कमी दूर करने के लिए एक बहुआयामी नज़रिया अपनाने की ज़रूरत है. ये तोड़-मरोड़कर तैयार किए गए प्रशिक्षण के डेटा और एक दूसरे से मिलते लोगों द्वारा AI विकसित करने वाली टीमों से पैदा होने वाले मसलों से निपटने के लिए ज़रूरी है.
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अलग अलग लैंगिकताओं, जातीयताओं, उम्र वर्गों की नुमाइंदगी के लिए AI की ट्रेनिंग में इस्तेमाल होने वाले डेटा में विविधता लाने की ज़रूरत है. उतनी ही अहम AI के डेवेलपर्स के बीच विविधता लाना भी है, जिससे डिज़ाइन तैयार करने से लेकर उसे लागू करने तक की प्रक्रिया में अलग अलग दृष्टिकोण शामिल किए जा सकें.
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AI कंपनियों को चाहिए कि तकनीकी भूमिकाओं में वो सक्रियता से महिलाओं और कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों की भर्ती और उनकी मदद करें, ताकि एक अधिक समावेशी उद्योग को मज़बूती मिले. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आउटपुट में पूर्वाग्रहों की लगातार निगरानी करके एल्गोरिद्म में ज़रूरी बदलाव करना भी अहम है.
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पूरे डिजिटल उद्योग के लिए नैतिक मानक और दिशा-निर्देश स्थापित करके उनका पालन कराना सुनिश्चित होना चाहिए, ताकि AI के इस्तेमाल में पूर्वाग्रहों को कम करने के प्रयास लगातार जारी रखना सुनिश्चित हो सके.
अब कई कंपनियां ये स्वीकार करने लगी हैं कि डिजिटल प्लेटफॉर्म को महिलाओं के करियर में प्रगति के लिहाज़ से ढालने में काफ़ी संभावनाएं हैं. डिजिटल कोचिंग से महिलाओं को पेशेवर तरक़्क़ी के मामले में अधिक लचीले और आसानी से उपलब्ध औज़ार मुहैया कराए जा सकते हैं. इससे लोगों के अपनी निजी तरीक़ों और अपनी पसंद के समय से सीखने के अवसर बढ़ते हैं. जो कई ज़िम्मेदारियां निभाने वाली महिलाओं के लिए आदर्श हो सकते हैं. नेतृत्व और आत्मविश्वास जैसे अहम क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके ये ट्रेनिंग मॉड्यूल महिलाओं को कामकाजी क्षेत्र की चुनौतियों को प्रभावी ढंग से निपटने में सहायता करते हैं. इसके अतिरिक्त ये मॉड्यूल उन्हें प्रशिक्षकों और अपने समकक्षों के वैश्विक नेटवर्क से जोड़ता है, जिससे उन्हें बेशक़ीमती मदद मिलने के साथ साथ उनका पेशेवर नज़रिया भी व्यापक होता है. ये तरीक़ा भौगोलिक बाधाओं को दूर करता है और नए अवसरों और दिशा-निर्देश के मार्ग प्रशस्त करता है.
डिजिटल क्रांति महिलाओं की आर्थिक भागीदारी के लिए नए अवसरों के द्वार खोलती है. उन्हें वैश्विक बाज़ार तक पहुंच, दूर बैठकर काम करने और तकनीक से चलने वाले क्षेत्रों में शामिल होने के मौक़े देती है.
डिजिटल क्रांति महिलाओं की आर्थिक भागीदारी के लिए नए अवसरों के द्वार खोलती है. उन्हें वैश्विक बाज़ार तक पहुंच, दूर बैठकर काम करने और तकनीक से चलने वाले क्षेत्रों में शामिल होने के मौक़े देती है. हालांकि, महिलाओं की सच्ची भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए इस विकास को लैंगिक रूप से संवेदनशील नीतियों के ज़रिए आगे बढ़ाना चाहिए. ऐसी नीतियों को डिजिटल लैंगिक अंतर, ऑनलाइन शोषण और तकनीकी क्षेत्र में महिलाओं की कम भागीदारी की समस्याएं दूर की जानी चाहिए, ताकि उन्हें डिजिटल शिक्षा तक समान रूप से पहुंच और संसाधन मिल सकें. इसके अतिरिक्त इन नीतियों को ऑनलाइन कामकाज के सुरक्षित माहौल निर्मित करने चाहिए, तकनीक के क्षेत्र में महिलाओं के नेतृत्व को बढ़ावा देना चाहिए और काम-काज और जीवन के बीच संतुलन जैसे अनूठी चुनौतियों पर भी विचार करना चाहिए. ऐसी केंद्रीकृत नीतियों से डिजिटल तरक़्क़ी के ज़रिए लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया जा सकता है और अर्थव्यवस्था में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को सशक्त बनाया जा सकता है.
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